हम ज़्यादातर बच्चों को आदेश देते रहते हैं –सावधान रहो,तमीज से रहो।क्या नादान बच्चे इन शब्दों के कहने का तात्पर्य समझते हैं ?
सावधान / सुधा भार्गव
आर्या रोते-रोते
घर में घुसा। उसको देखते ही माँ का मिजाज एकदम चढ़ गया –अरे
यह क्या शक्ल बना ली। अभी अभी तो साफ कपड़े पहनकर गया था । आधे घंटे में ही उनमें घूल भर गई और यह तेरा घुटना –यह कैसे छिल गया?खून भी रिस रहा है !
-माँ ,रानू –सानू के साथ
दौड़ते समय गिर गया।
– कितनी
बार कहा है सावधान रहाकर सावधान !पर कुछ असर हो तब न –सुनता ही नहीं । अब भुगत, तेरे
साथ -साथ मुझे भी सूली पर चढ़ना पड़ता है ।
-गुस्सा होने से तो
कोई लाभ नहीं ।मरहम पट्टी तो करनी ही पड़ेगी । इतनी ज़ोर
से चिल्लाने से बच्चा सहम जाएगा । दो शब्दों के बोलने से ही क्या जरूरी है कि
बच्चा तुम्हारे मन की बात समझ जाए । वह
क्या जाने सावधान किस चिड़िया का नाम है । उसको तो धैर्य से पूरी बात समझानी होगी ।आर्या के पिता जी बोले।
-मेरे पास न इतना दिमाग है और न ही धैर्य। तुम्ही
समझा दो। आर्या की माँ झुँझला उठी ।
आर्या के पिता ने चुप रहना ही ठीक समझा । शाम होने
पर वे उसे अपने साथ घुमाने ले गए ।
पथरीली सड़क आने पर बोले –बेटा ,धीरे –धीरे चलो । मैं तुम्हारी तरह तेज -तेज नहीं भाग सकता ।
-ठीक है पिता जी । मैं आपके साथ चलूँगा।
रास्ते में केले का छिलका पड़ा था । आर्या के पिता
ने उसे उठाकर कूड़ेदान में फेंक दिया ।
-ओह पिता जी ,आपके तो हाथ गंदे
हो गए । गंदा छिलका क्यों छू लिया?
-केले के छिलके पर पैर पड़ने से कोई भी फिसल सकता था
,मैं तुम भी फिसल
सकते थे । फिर लंगड़दीन होकर घर में कैसे घुसते !तुम्हारी माँ की करारी –करारी डांट
खाने को मिलती। तुम तो रो लेते हो,मैं रो भी नहीं सकता । सब
चिढ़ायेंगे –इतना बड़ा होकर रोता है।
-पिताजी , माँ तो बस डांटती
रहती है । पता नहीं --वे क्या चाहती है ? मैं आपसे छोटा हूँ
तो मेरी बुद्धि भी तो छोटी है । बड़ा होकर मैं माँ की सब बातें समझ जाऊंगा पर इसके
लिए मुझे समय तो देना ही होगा ।
पिता जी ने ज़ोर से सिर हिलाते हुए कहा –क्यों नहीं
---क्यों नहीं ।
आर्या खिलखिलाकर हंस पड़ा –पिता जी ,आप तो मेरे मित्र की तरह हिल रहे हैं । एकदम छोटा बच्चा बन गए हो । चलते –चलते उसने पिता जी का हाथ कसकर पकड़ लिया
इस विश्वास के साथ कि वे उसका हमेशा साथ देंगे।
उसने तेजी से कदम बढ़ा दिये पर यह क्या !नुकीले
पत्थर से ठोकर खा गया । वह तो गनीमत हुई कि गिरा नहीं क्योंकि उसके पिता ने उसका हाथ कसकर
थाम रखा था ।
दोनों ने देखा –एक लंबा सा नुकीला पत्थर सीने तक
जमीन में धंसा है । मानो कह रहा हो –बच गए बच्चू!वरना आ जाती अक्ल ठिकाने । आँख
खोलकर चला करो ।
-हे भगवान! अगर तुम्हें कुछ
हो जाता तो ----- इस पत्थर को तो निकाल कर फेंका भी नहीं जा सकता । आर्या के पिता दुखी
हो उठे ।
-पिता जी आप चिंता न करो । आगे से मैं सड़क पर चलते
हुए आस –पास और नीचे भी निगाह रखूँगा । ऐसे
कंकड़ -पत्थरों से बचकर निकलना ही ठीक है।
पिताजी उसके फूले नहीं समा रहे थे क्योंकि जो बात
वे आर्या को समझाना चाह रहे थे वह समझ गया था । उनके मुंह से भी निकाल पड़ा –बेटा हमेशा
सावधान रहो ।
-हा –हा – पिताजी ,आप ठीक कह
रहे है।मुझे सावधान रहना चाहिए वरना ---।
-न –न बेटा ,तुझे कुछ नहीं
होगा। पिता ने उसके मुँह पर हाथ रखते हुए कहा।
पिता का प्यार देखकर आर्या का चेहरा चमक उठा।
इस समय आर्या के पास
सुलझा दिमाग था,शब्दों में उलझा हुआ नहीं। मुस्कुराहट थी,झुंझलाहट नहीं।
समाप्त
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