बच्चों ,आज राखी का त्योहार है जो भाई-बहन के पवित्र प्यार का प्रतीक है । उनके प्यार की गहराई को बताना बड़ा कठिन है । वे दुनिया के सबसे अच्छे दोस्त होते हैं। लड़ते हैं झगड़ते हैं,एक दूसरे के बाल खींचते हैं पर कुछ ही देर में सब भुलाकर सरलता से अपने दिल की बात कह बैठते हैं। सुख-दुख में एक साथ खड़े रहते हैं । हम दुनिया के लिए कितने ही बड़े-बुड्ढे हो जाएँ पर जैसे ही भाई-बहन मिलते हैं एकदम स्कूल के बच्चे बन जाते हैं। वही हंसी-ठट्टा ,गप्प -शप्प ,बहसबाजी। है न अजीब बात।
कुछ राखी बंधवाकर बड़े खुश होंगे ,कुछ इंतजार कर रहे होंगे कि कब प्यारी बहन आए और सूनी कलाई पर रंगबिरंगी राखी खिल खिल जाए। इस प्रेममय आकाश के नीचे बैठे -बैठे हम तुम्हें एक कहानी सुना देते हैं इससे तुम्हारा मन और भी खिल उठेगा।
चटपटी चाट
राखी का त्योहार आने वाला
था । भाइयों की मंडली बातों में मगन थी। कोई कहता—मैं तो अपनी बहन को घड़ी दूंगा
---अरे मैं तो उसे बातूनी गुड़िया दूंगा –ऊह--मेरी बहन के पास तो गुड़ियाँ बहुत हैं
उसे पैन देना ठीक रहेगा,पढ़ाई में काम आएगा। । गुट्टू खड़ा सोच रहा था –मैं अपनी
बहन चंपी को क्या दूँ? मैं तो इनकी तरह पैन -घड़ी दे भी नहीं सकता लेकिन उसे
बहुत प्यार करता हूँ और कुछ न कुछ जरूर
दूंगा।
घर जाकर अपनी गुल्लक उलट-
पुलट की । बड़ी बेचैनी से सिक्के गिनने
शुरू किए –एक –दो ---तीन । अरे ये तो 20 रुपए
ही हुए।सब तो खर्च नहीं कर सकता । दादा जी हमेशा कहते हैं गुल्लक को कभी खाली नहीं
छोड़ना चाहिए इसलिए 10 रुपए मैं इसी में रख देता हूँ। गुल्लक बंद करके दिमागी घोड़े
दौड़ाने लगा –कान के कुंडल तो दस रुपए में
आ ही जाएंगे पर उसके तो कान ही नहीं छिदे हैं। पहनेगी कैसे?गले की माला कैसी रहेगी? न
बाबा उसे नहीं ख़रीदूँगा। कोई चोर गले से खींचकर ले गया तो --। दस रुपयों की तो
बहुत सी टॉफियाँ आ जाएंगी पर उन्हें तो वह मिनटों में चबा जाएगी । अच्छा किताब
खरीद लेता हूँ । पहले मैं पढ़ लूँगा फिर वह पढ़ लेगी । हम दोनों के ही काम आ जाएगी।
किताब कैसी दी जाए ?वह फिर उलझ गया । कहानी की किताब तो उसे देना बेकार है पहले से
ही उसके पास किताबों का ढेर लगा है । तब क्या दूँ?चुटकुलों की किताब ठीक रहेगी । पढ़ते –पढ़ते खुद भी हँसेगी और दूसरों को सुनाएगी तो उन्हें भी
गुद्गुदी होने लगेगी । अपने दिमाग की खेती पर वह मंद-मंद मुस्कराने लगा जैसे बहुत
बड़ा तीर मार लिया हो। दस रुपए उसने जेब के हवाले किए और इठलाता हुआ बाजार चल दिया
। तभी चंपा दरवाजा रोककर खड़ी हो गई –क्यों
भैया, इस बार भी क्या रुपए देकर टरका दोगे। वैसे तुम
बहुत सयाने हो।पिछली बार पाँच रुपए का नोट दिया था । अगले दिन वापस भी ले लिया।
बड़े प्यार से बोले थे-ला छोटी बहना पाँच का नोट,तुझसे खो जाएगा। इस बार तुम्हारे झांसे में नहीं आने वाली।
-मेरी चंपा ,इस बार रुपये तो नहीं दूंगा पर जो भी दूंगा उसमें
मेरा भी थोड़ा हिस्सा रहेगा।
-जाओ मैं तुमसे नहीं
बोलती। मीनू-छीनू के भाई बहुत अच्छे हैं। वे उन्हें गुड़ियाँ देते हैं,बिंदी-चूड़ी देते हैं और तुम –तुम ही एक ऐसे भाई हो जो देकर ले लेते
हो या उसमें हिस्सा-बाँट करने की सोचते
हो।
-तूने भी तो घर में आकर मेरे हिस्से का प्यार बाँट लिया। अकेला होता तो
मम्मी-पापा का सारा प्यार मैं लूटता। न जाने क्या सोचकर माँ ने तुझे कल्लो भंगिन
से पाँच किलो नमक के बदले ले लिया।
चंपा खिसियाकर रो पड़ी। माँ—माँ—देखो
गुट्टू मुझे तंग कर रहा है।
माँ के आने से पहले ही वह
वहाँ से खिसक गया। जानता था,हर बार की तरह माँ उसे ही डांटेगी।
गुट्टू बड़ी शान से किताबों
की दुकान पर जा पहुंचा कि बन जाएगा उसका काम चंद मिन्टों में। वहाँ जाकर तो उसका
दिमाग घूम गया जब उसने देखा किताबों का पहाड़!कहीं लिखा था इतिहास ,कहीं भूगोल,कहीं संगीत तो कहीं चित्रकला। मन ललचाने लगा-यह भी
ले लूँ—वह भी ले लूँ पर जेब में थे केवल 10 रुपए। अचानक उसकी निगाहें एक किताब से
जा टकराईं जिसका नाम था ‘चटपटी चाट’। उसकी
जीभ चटकारे लेने लगी। उसने तुरंत उसे खरीद लिया और रंगबिरंगे कागजों से सजाकर बीच
में भोले मुखड़ेवाली चम्पा की फोटो चिपकाई । नीचे लिखा था –
दो चुटइया वाली चम्पी को
भइया की चटपटी चाट
राखी के दिन चम्पा ने बड़े
उत्साह से अपने भैया को राखी बांधी। बेचैनी से इधर उधर तांक-झांक भी कर रही थे –देखें
क्या देता है गुट्टू उसे।
गुट्टू ने उसके हाथों में किताब थमा दी पर यह क्या---वह तो
चम्पा की जगह चंपी लिखा
देख तुनक पड़ी—नहीं लेती तुम्हारी किताब –लो वापस लो –अभी लो। मेरा नाम ही बदल दिया
!क्यों बदला बोलो –बोलो।
-अरी बहन इसे खोल तो।
इसमें चाट -पापड़ी ,गोलगप्पे,समोसे
भरे हुए हैं।
-यह जादू की किताब है क्या
जो खोलते ही पानी से भरे गोलगप्पे प्लेट में सजे धजे हाजिर हो जाएंगे और
कहेंगे-हुजूर हमें खाइये। उसने झुककर ऐसी अदा से कहा की गुट्टू को हंसी आ गई।
-हाँ—हाँ –आ जाएंगे पर
इन्हें बनाने में कुछ मेहनत तो करनी पड़ेगी।
-कौन बनाएगा?
-मेरी बहना और कौन? गुट्टू ने उसे खिजाने की कोशिश की।
-मुझे तो खाना आता है
बनाना नहीं। मासूम चम्पा बोली।
-कोई बात नहीं। बड़ी होने पर
बना देना। मैं इंतजार कर लूँगा।
-मैं बड़ी कब होऊँगी?
-यह तो मुझे भी नहीं
मालूम। चलो माँ से पूछते हैं।
तभी गुट्टू के दोस्तों ने खेलने
के लिए आवाज लगा दी। वह तो वो गया वो गया। रह गई चम्पा। माँ को खोजती आँगन में आई।
-माँ-माँ मैं कब बड़ी होऊँगी?
माँ ऐसे प्रश्न के लिए तैयार
न थी। एक पल बेटी का मुख ताकती रही फिर दुलारती बोली-मेरे बेटी को बड़ी होने की क्या
जरूरत आन पड़ी। तू छोटी ही ठीक है।
-भैया चटपटी चाट की किताब लाया
है । समझ नहीं आता उसके लिए कैसे बनाऊँ?वह कह रहा
था बड़ी होने पर मुझे सब आ जाएगा।
-मैं किसी दिन चाट बना दूँगी।
खिला देना अपने चटटू भैया को । अपने मतलब के लिए यह किताब खरीद लाया है।
-ऐसे न बोलो । मेरा भैया बहुत
अच्छा है। माँ आज ही उसके लिए कुछ बना दो। चम्पा गिड़गिड़ाते हुए बोली।
माँ उसका दिल नहीं दुखाना चाहती
थी इसलिए चाट पापड़ी बनाने को तैयार हो गई। एक तरह से वह इन भाई-बहन के स्नेह को देख
खुश भी थी। आखिर गुट्टू अपनी बचत के पैसों से बहन के लिए उपहार लेकर आया था। इस त्याग
का मूल्य किताब से कहीं—कहीं ज्यादा था।
खेलने के बाद गुट्टू की भूख
राक्षस जैसी हो जाया करती थी। हाथ-पैर-मुंह धोकर चटपट रसोई की तरफ जाने लगा । भुने
जीरे की खुशबू से उसकी नाक कुछ ज्यादा ही मटकने लगी। उसी समय चम्पा
प्लेट लेकर आई-गुट्टू पापड़ी-चाट खाएगा?
-भला चाट कैसे छोड़ सकता हूँ?मगर इतनी जल्दी बन कैसे गई!
-माँ ने कहा –मेरे बड़े होने
से पहले भी चाट बन सकती है। मैं माँ को देख कुछ कुछ सीख रही हूँ। माँ ने तो जादू से
कुछ मिनटों में ही चाट बना दी।
-जुग जुग जीओ मेरी छोटी बहना!अब
तू जल्दी जल्दी सीखती जा और मैं जल्दी जल्दी खाता जाऊं। हे भगवान हर जनम में चंपा को ही मेरी बहन बनाना।
-चम्पा को तंग न कर। अभी उसके
खाना बनाने के दिन नहीं। खेलने-खाने के दिन हैं।
-ओह माँ,मगर मेरे तो खाने के दिन हैं। फिर मैंने उसे खेलने को मना तो नहीं
किया। मैं तो बस यह चाहता हूँ कि रोज कुछ चटर-पटर चटपटा मिल जाए। आज आलू की चाट तो
कल आलू की टिक्की—आह तो परसों पानी से भरे मटके की तरह फूले गोलगप्पे ।
-बस बस बंद कर पेट का राग अलापना।
मैं सब जानती हूँ स्कूल से आकर तुझे दूध पीना तो पसंद नहीं इसी कारण यह किताब उठा लाया।
-ओह माँ, भैया को डांटो मत। यह किताब तो सबके काम आने वाली है। हाँ याद आया -- मुझे भी तो गुट्टू को कुछ देना
होगा।
-मुझे तो उपहार मिल गया—दुनिया
का सबसे अच्छा --।
-किसने दिया?
-माँ ने।
-मुझे भी तो दिखाओ।
-चल दिखाता हूँ।
गुट्टू ने उसे शीशे के सामने
ला खड़ा किया।
-दिखाई दिया?
-क्या दिखाई दिया--! इसमें तो कुछ दिखाई नहीं दे रहा । बस मैं ही मैं दीख रही हूँ ।
-यही तो हैं मेरा प्यारा सा
उपहार जो मुझे माँ ने दिया है।
चम्पा खुशी की लहरों में डूब
सी गई जिसमें उसे गुट्टू का चेहरा ही नजर आ रहा था। उसका भाई तो दुनिया का सबसे अच्छा भाई था।
समाप्त