प्यारे बच्चों

कल सपने में देखा -मैं एक छोटी सी बच्ची बन गई हूं । तुम सब मेरा जन्मदिन मनाने आये हो । चारों ओर खुशियाँ बिखर पड़ी हैं ,टॉफियों की बरसात हो रही है । सुबह होते ही तुम में से कोई नहीं दिखाई दिया ।मुझे तो तुम्हारी याद सताने लगी ।

तुमसे मिलने के लिए मैंने बाल कुञ्ज के दरवाजे हमेशा के लिए खोल दिये हैं। यहाँ की सैर करते समय तुम्हारी मुलाकात खट्टी -मीठी ,नाटी -मोती ,बड़की -सयानी कहानियों से होगी । कभी तुम खिलखिला पड़ोगे , कभी कल्पना में उड़ते -उड़ते चन्द्रमा से टकरा जाओगे .कुछ की सुगंध से तुम अच्छे बच्चे बन जाओगे ।

जो कहानी तुम्हें अच्छी लगे उसे दूसरों को सुनाना मत भूलना और हाँ ---मुझे भी वह जरूर बताना ।
इन्तजार रहेगा ----! भूलना मत - -

शुक्रवार, 14 सितंबर 2012

बालकथा निशाने बाज


बच्चों
मुझे कुछ कहना है ----
कुछ कहानियाँ ऐसी होती हैं जो चखी जाती हैं ,कुछ सटक ली जाती हैं मगर कुछ खूब अच्छी तरह चबाई जाती है तब भी हजम नहीं होतीं | लगता है उनके बारे में दूसरों से बातें करो ,दूसरों को उन्हें सुनाओ |ऐसी ही एक कहानी मैं इस ब्लॉग पर पोस्ट करने जा रही हूँ |यदि कोई शब्द समझ में न आये तो अपनी मम्मी से पूँछ लेना इससे तुम्हारा  शब्द भंडार बढ़ेगा ,यदि कोई वाक्य समझ में न आये तो पापा से समझ लेना |इससे तुम समझदार बनोगे |
हाँ तो अब पढ़ना शुरू करो --अरे याद आया !पढ़ो तो जोर -जोर से |यदि तुम कुछ गलत पढ़ोगे तो सुननेवाला उसे ठीक कर देगा ,फिर तो कक्षा में पढ़ाई की परीक्षा  (reading test )के समय सबसे ज्यादा अंक आयेंगे |
 तो शुरू करते हैं कहानी ----
निशाने बाज /सुधा भार्गव
एक गाँव में गेंदाराम रहता था |
वह निशाना लगाने में बहुत चतुर था |सुबह उठते ही बहुत से पत्थर बटोर लेता और कुँए की तरफ गुलेल लेकर निकल जाता | 
उस समय लड़कियां और औरतें कुएं से पानी खींचकर घड़े भरतीं ,फिर उन्हें सिर पर उठाकर घर की ओर धीरे -धीरे

कदम बढ़ातीं|गेंदाराम दूर से भरे घड़े पर निशाना लगाकर उन्हें फोड़ देता  और खिलखिलाता----

हो गया छेद 
फूट गया मटका 

पानी गिरा टप से 

उसे लगा झटका |
गाँव वाले बड़े परेशान !सब उसे छेदाराम-छेदाराम कहकर चिढ़ाने  लगे |चिढ़कर तो वह और भी तेजी से घड़े फोड़ता
|बच्चे -बड़े पानी के लिए तरसने लगे |

एक बार उस गाँव में दाढ़ी वाले  साधुबाबा आये |
परेशान गांववाले  उनके पैरों पर गिर गये और चिल्लाये ---
--महाराज,बचाओ ---बचाओ --इस छेदीराम ने घड़ों में छेद कर- करके  हमारा जीना हराम कर दिया है |
--क्यों छेदीराम !क्यों सताते हो इन लोगों  को  ?
--मेरा नाम छेदीराम नहीं गेंदाराम है |इन्होंने मेरा नाम बिगाड़ दिया है |मैं भी गुस्से में आकर इनके घड़ों की शक्लें बिगाड़ देता हूँ|
--तुम्हें जितना गुस्सा करना है करो ,जितने घड़े फोड़ने हैं  फोड़ो ,पर एक शर्त है ---
--साधुबाबा ,आप  तो बहुत अच्छे हैं |घड़े फोड़ने को मना भी नहीं किया !आपकी हर शर्त मानने को तैयार हूँ |
--सुनो ,जितने घड़े तुम फोड़ोगे,उतने तुम्हें  बाजार से खरीदने होंगे |फिर उन्हें भरकर घर -घर पहुँचाओगे|
--यह तो मेरा चुटकियों का काम है दीये तो मुझे बनाने आते ही हैं घड़े भी बना लूंगा  फिर पानी भरने में क्या देर !

अब तो वह पेड़ की ऊंची सी डाली पर बैठकर खूब निशाना लगाता|रात घड़े बनाने में गुजर जाती और दिन में उन्हें भरकर घर -घर पहुँचाता रहता | 
गाँव वाले खुश --पुराने घड़ों की जगह उन्हें नये घड़े मिलने लगे |औरतें खुश -बिना मेहनत के पानी भरे घड़े उनके घर पहुँच रहे थे |गेंदराम खुश -निशानेबाजी के शौक को जी भरकर पूरा कर रहा था |पर उसका यह शौक कुछ दिनों तक ही पूरा  हो सका |
रात -दिन के जागने से और पानी की ठंडक ने गेंदराम को बुखार ने आन दबोचा |घड़े बनाने से जो आमदनी होती थी वह कम होने लगी क्योंकि बने घड़े तो बाजार की जगह गांववालों के घरों में पहुँच जाते | 
धीरे -धीरे घड़ों पर निशाना लगाना उसका कम हो गया |एक दिन ऐसा आया जब न ही उसने किसी के घड़े पर निशाना लगाया और न छेदीलाल कहने से चिढ़ा |
औरतें परेशान हो उठीं ---
-अरे इसे क्या हो गया है --न घड़े फोड़ता है और न चिढ़ता है |हमें सारा पानी भरना पड़ रहा है |इस ढोया-ढाईसे तो हमारे कंधे दुखने लगे |
--अब वह समझ दार हो गया है --एक लड़की बोली |
-गेंदा राम हँसकर बोला --सच में मैं समझदार हो गया हूँ |
अब न मैं अपने लिए गड्ढा खोदूंगा और न ही उसमें जाकर पडूँगा |

कुछ सोचना है कुछ समझना है --
-कहानियों में बच्चों का भविष्य समाया हुआ होता है |
-अच्छी कहानी उनका मार्गदर्शक ,शिक्षक और अनुरागी मित्र होती है |
-बिना कहानियों के बचपन अधूरा है |
* * * * * *

20 टिप्‍पणियां:

  1. कहानी द्वारा बच्चों को सन्देश दिया गया है । कहने का तरीका रोचक है।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. गिरिजाजी ,सर्वप्रथम अपनी अमूल्य राय देने के लिए आभार |इसी प्रकार सहयोग बनाये रखियेगा |

      हटाएं
  2. aapne ek achchhi tatha sikshaprad kahani bachchon ke liye prastut kii hai.ummed hai ki bachche isse ek nayaa sandesh grahan karke labhanvit honge.

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. अशोक जी, आपने एक उम्मीद जगायी कि बच्चे कहानी से नया सन्देश ग्रहण करेंगे पर वे पढ़ते कहाँ हैं !

      उन पर तो प्रौढ़ बचपन छाया हुआ है |

      हटाएं
  3. उत्तर
    1. इस दौड़ धूप की जिन्दगी में कहानी पढ़ने से दो पल को सुकून मिला यह जानकर बहुत हर्ष हुआ |भविष्य में भी इसी प्रकार सहयोग बनाये रखियेगा |सधन्यवाद !

      हटाएं
  4. सुधा जी ...आप जैसे मार्गदर्शक अगर हर बच्चे को मिल जाए तो बच्चे अपनी शैतानी के साथ साथ सीखने का काम भी बहुत जल्दी से करंगे...बहुत उम्दा कहानी के रूप में सीख ...

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. अंजू जी ,मैंने शिक्षा प्रद कहानी लिखने का प्रयत्न तो किया है पर कितना अच्छा होता यदि इसे बच्चे भी पढ़ते |अपने अमूल्य विचार प्रकट करने के लिए आभार !

      हटाएं
  5. बाल कहानी चित्रों के साथ सजीव हो उठी है ..बच्चों को चित्रमय कहानी बहुत अच्छी लगती है.. समझ जल्दी आती है..
    सुन्दर प्रस्तुति हेतु आभार

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. कविता जी ,यह जानकर अच्छा लगा कि आप बाल मनोविज्ञान से भली भांति परचित है और इसी दृष्टि से इस कहानी को पढ़ा |आभार

      हटाएं
  6. इस कहानी से पहले हम सबको सबक लेनी चाहिए। किसी को तंग करने से पहले उसकी भरपाई कर सकने का हौसला रखना चाहिए।..बढ़िया कहानी। बढ़िया चित्र संयोजन से इसकी खूबसूरती बढ़ गई है।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. देवेन्द्र जी ,आपने कहानी का अवलोकन कर उसे बहुत ध्यान से पढ़ा यह अनुभव कर मुझे खुशी हुई |धन्यवाद !

      हटाएं
  7. बहूत हि बढीया कहानी
    चित्रो ने तो इसे और भी सजा दिया है...
    बेहतरीन..

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपने कहानी के साथ -साथ चित्रों को भी सराहा ,यह देख मुझे बहुत अच्छा लगा और असीमित उत्साह छलकने लगा |धन्यवाद !

      हटाएं
  8. बाल-स्मृतियों को कलमबद्ध करने और बालकथा लेखन में आप लाजवाब हैं। रीना मौर्या जी ने मेरे भी मन की बात कह दी है। कथाओं के साथ नि:संदेह आप इतने सटीक चित्र लगाती हैं कि मैं एक बार यह ज़रूर सोचता हूँ कि इन्हें सर्च करना आपसे सीखूँ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. बलरामजी ,हर कलमप्रेमी अपनी कलम की करामात जानना चाहता है सो इसके बारे में आपने मुझे बताकर धन्य किया |

      रही बात चित्रों की !आपको फोटोग्राफी का बहुत शौक है इसी कारण उनकी ओर विशेष ध्यान गया ,वरना उनके चयन में कोई खास बात नहीं|

      हटाएं
  9. सुधा जी आपको कहानी के लिए बहुत तारीफ मिल गई है,मुबारक हो। लेकिन मेरा कहना है कि इसमें वैज्ञानिक दृष्टिकोण का अभाव है। आज के बच्‍चों को आप इतना अतार्किक भी मत मानकर चलिए।
    क्‍या सचमुच गेंदाराम इतना बुद्धू था कि वह साधु बाबा की बात नहीं समझ सका। क्‍या इस बात को कहने के लिए साधु बाबा की जरूरत थी। अगर यह बात कहलानी ही थी तो गांव के किसी बड़े बूढ़े से कहलाई जा सकती थी।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. राजेशजी, आपके सुझाव का स्वागत है |अगली बार कहानी लिखते समय साधुबाबा की जगह बड़े -बूढ़े दादा या बाबा के बारे में जरूर सोचूँगी |भविष्य में इसी प्रकार सहयोग बनाये रखियेगा |

      हटाएं
  10. चर्चा मंच पर इस कहानी की प्रविष्टी के लिए धन्यवाद |

    जवाब देंहटाएं