प्यारे बच्चों

कल सपने में देखा -मैं एक छोटी सी बच्ची बन गई हूं । तुम सब मेरा जन्मदिन मनाने आये हो । चारों ओर खुशियाँ बिखर पड़ी हैं ,टॉफियों की बरसात हो रही है । सुबह होते ही तुम में से कोई नहीं दिखाई दिया ।मुझे तो तुम्हारी याद सताने लगी ।

तुमसे मिलने के लिए मैंने बाल कुञ्ज के दरवाजे हमेशा के लिए खोल दिये हैं। यहाँ की सैर करते समय तुम्हारी मुलाकात खट्टी -मीठी ,नाटी -मोती ,बड़की -सयानी कहानियों से होगी । कभी तुम खिलखिला पड़ोगे , कभी कल्पना में उड़ते -उड़ते चन्द्रमा से टकरा जाओगे .कुछ की सुगंध से तुम अच्छे बच्चे बन जाओगे ।

जो कहानी तुम्हें अच्छी लगे उसे दूसरों को सुनाना मत भूलना और हाँ ---मुझे भी वह जरूर बताना ।
इन्तजार रहेगा ----! भूलना मत - -

शुक्रवार, 21 नवंबर 2025

सपनों का बगीचा -2025 पहला संस्करण


बाल विज्ञान उपन्यास 

सुधा भार्गव 



अद्विक प्रकाशन 
दिल्ली -110092
मोबाइल-9560397075
advikpublication1@gmail.com 

2025 में मेरी तीन पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं ----



और यह चौथी किताब भी आन पहुंची  .. जिसका नाम है 'सपनों का बगीचा' । यह बाल विज्ञान उपन्यास है :जिसमें बड़े दिलचस्प और मनोरंजक तरीके से खेती की आधुनिक विधियां हाइड्रोपोनिक, एरोपोनिक और वर्टिकल फार्मिंग की चर्चा हुई है। इसमें नादान बच्चे अपने-अपने सपने बुनते हैं। लेकिन मुझे लगता है कि यह मेरे सपनों का भी बगीचा है। मेरे पिताजी के पास सब कुछ था लेकिन कोई बगीचा नहीं था। मुझे कोयल की कूंक में  अमिया बीनना,डाली झुककरअमरूद तोड़ना और गन्ने चूसने का बड़ा शौक था। मैं बाबा से कहा करती… “पिताजी से बोलो ना ;मेरे लिए  एक बगीचा खरीद दें ।” बगीचा तो नहीं खरीदा गया लेकिन बच्चों के लिए उपन्यास लिखते-लिखते मैंने अपनी कल्पना का बगीचा जरूर बुन लिया। एक बार जो इस फल -फूल  और सब्जियों से लदे बगीचे में घूम आया वह वही का होकर रह जाएगा।

  यह उपन्यास 60 पृष्ठ का  है।  गुणवत्ता की दृष्टि से इस पुस्तक का  कागज बहुत अच्छा है। फोंटभी ऐसा है कि बच्चे और बूढ़े बहुत सरलता इसे   पढ़ सकते हैं। चित्र भी विषय का प्रतिनिधित्व करते हुए सफल हुए हैं। आकृतियां तो  बोलती -हंसती नजर आती है।

इसके लिए अद्विक पब्लिकेशन व उनकी पूरी टीम का बहुत-बहुत धन्यवाद।





 

राक्षस की धमाचौकड़ी -प्रथम संस्करण -2025


बाल कहानी संग्रह 
 
कोरोना काल  की कहानियाँ 




श्वेतवर्णा प्रकाशन 
नई दिल्ली 
मोबाइल -+91 8447540078
Email:shwetwarna@gmail.com
Book Design by Sharda Suman  
पिछले मास ही यह कहानी संग्रह प्रकाशित हुआ है। 75 पृष्ठों के इस कहानी संग्रह में 15 बालकहानियाँ हैं। सब कहानियाँ अलग तेवर लिए कोरोना महामारी की त्रासदी के बारे में बताती है । जिसे अब भी याद करने से रोएँ खड़े हो जाते हैं।  इस राक्षस ने हमें बहुत दुख दिया । हमने इसके कारण क्या खोया --क्या पाया !इसको स्मरण रखना बहुत जरूरी है। ताकि भविष्य में फूँक -फूँक कर कदम उठाए जाएँ। इन कहानियों में मन में उठते हजार प्रश्नों का उत्तर भी समाये  हैं।  यह सब जानना बच्चों के लिए बहुत जरूरी है।  मेरे विचार से ये प्रकृति से प्यार करना सिखाएँगीं और परम्पराओं का मूल्य भी बताएँगीं । 

पुस्तक की छपाई ,चित्रांकन व फॉन्ट साइज़ बच्चों के लिए बहुत उत्तम हैं। श्वेतवर्णा व उसकी टीम का बहुत आभार।  

 
 



गुरुवार, 20 नवंबर 2025

उड़क्कू की जीत( 2025 ) डॉ सुरेन्द्र विक्रम जी के विचार

 

बाल उपन्यास 

         प्रथम संस्करण  2025 

      

 डिजिटल युग में भावनाओं और संवेदनाओं के अभाव में मोबाइल पर हैलो-हाय होने लगी है। प्यार भरे रिश्तों में औपचारिकता नजर आती है। बच्चे क्या बड़े क्या !पत्र लिखना तो भूल ही गए हैं। जो हमारी परम्पराओं  एक हिस्सा थी उसे ताक पर रख दिया है। । युगयुगों से संदेशा ले जाने वाली चिट्ठी का किसी न किसी रूप में बोलबाला रहा। अपने प्रिय की चिट्ठी का लोगों को इंतजार रहता । पढ़ते समय आत्मविभोर हो खुशी  के आँसू टपक पड़ते । और तो और अपने बेटे-बेटी की याद आती तो एक पत्र को माँ-बाप बार बार पढ़ते। कुछ लोगों ने आज तक अपने प्रिय जनों के पत्र स्मृति स्वरूप सुरक्षित रख छोड़े  हैं। जो बात पत्र में वह मोबाइल की कुछ पंक्तियों में कहाँ?यही देख और सोचकर मैंने पत्र  लेखन शैली को ओर ध्यान आकर्षित करने का निश्चय किया और उड़क्कू की जीत उपन्यास का जन्म हुआ। 
इस उपन्यास के चित्र ,छपाई व पेपर की गुणवत्ता प्रशंसनीय हैं। इसके लिए प्रकाशन विभाग और उसकी पूरी टीम की मैं बहुत -बहुत आभारी हूँ।
डॉ सुरेन्द्र विक्रम जी ने इस उपन्यास के बारे में लिखा है ---सुधा भार्गव इतना डूबकर लिखती हैं कि उनकी पुस्तकें पढ़ते समय ,मन अपने आप एकाग्र होकर जुड़ता चला जाता है। उड़क्कू के बहाने उन्होंने पोस्टकार्ड की कहानी का ऐसा ताना-बाना बुना है कि लंबे समय से चला आ रहा संचार का यह साधन आज भी बरकरार है। हाँ, इतना अवश्य हुआ है कि आधुनिक संचार माध्यमों ने इसकी गति बहुत धीमी बल्कि यह कह लीजिए कि लगभग समाप्त ही कर दी है। सोशल मीडिया के दौर में आज पत्र-लेखन कहाँ से कहाँ पहुँच गया है। पहले कबूतरों के माध्यम से पत्रों को भिजवाया जाता था, अब यह काम मोबाइल से हो रहा है।
राष्ट्रीय पुस्तक न्यास से प्रकाशित दो पुस्तकें डॉ. साजिद खान की पुस्तक लेटरबाक्स ने पढ़ी चिट्ठियाँ तथा बहुत पहले छपी अरविन्द कुमार सिंह की पुस्तक भारतीय डाक सदियों का सफरनामा पढ़कर भी मैं बहुत दिनों तक इस परंपरा को लेकर सोचता रहा था। उड़क्कू की जीत ने भी मुझे प्रभावित किया।
सुरेन्द्र विक्रम जी ने अपना अमूल्य समय देकर अपना मंतव्य बताया ॥इसकेलिए उनका बहुत बहुत धन्यवाद ।

बुधवार, 27 अगस्त 2025

कहानी की किताब -जैमिनी गूगल का कमाल

 

पुस्तक -रसगुल्ला भैया और तितली 


लेखिका -सुधा भार्गव 

चित्रांकन -जेमिनी गूगल 

साथियों ,मैंने जेमिनी गूगल की सहायता से पहली बार किताब तैयार करने की कोशिश की है। पूरी सफलता तो नहीं मिली है। कमियाँ हैं। कहानी मेरी है पर चित्र उसी के बनाए हुए  हैं। इसलिए उनपर copy right जेमिनी गूगल का  ही  है। 

कहानी अवश्य पढ़िएगा। लिंक दी जा रही है। 

https://gemini.google.com/share/8f069054f58dhttps://gemini.google.com/share/8f069054f58d

कहानी 

रसगुल्ला भैया और तितली

वसंत राजा के आने से धरती फूली नहीं समा  रही थी ।लाल नारंगी लहंगा पहने ,हरी चुनरिया ओढ़े लगता था छमछम नाच रही है। रुनक - झुनक आवाज सुन आसमान मेँ गोलमटोल बादल ने धावा बोल दिया। वह तो  धरती की सुंदरता को देख चकित रह गया।  । सोचने लगा-कितना अच्छा हो यदि मैं भी नीचे उतरकर खुशबूदार हवा मेँ गहरी- गहरी सांस लूँ ,कोयल का मीठा- मीठा गाना सुनूं। और तितलियों के साथ हवा मेँ उड़ूँ ।

जैसे ही नीचे को सरका तितली चिल्लाई-

ए रसगुल्ले भैया नीचे न आना । मेरे पर भीग जाएंगे। फिर मैं कैसे उड़ूँगी।

ऊँह अपने पंख देखे हैं!कितने गंदे हैं 1लगता है महीनों से नहाई नहीं है । उफ कितनी बदबू आ रही है।

तितली परेशान सी अपने पंखों को सूंघने लगी-नहीं तो –मेरे पंखों में  तो कोई बदबू नहीं आ रही।

मैंने कहा ना!  –आ रही है।

भोली तितली नटखट बादल की बात को सच मान बैठी। खिसिया कर बोली -तब क्या करूँ बादल भैया!

तुझे कुछ नहीं करना । धरती पर आने से मेरी रिमझिम- रिमझिम फुआरों मेँ सारी धूल फुर्र से पानी में बह जाएगी। देखते ही देखते सारे पेड़-पौधे ,फूल-पत्तियाँ और चिड़ियाँ हीरे मोती की तरह चमकने लगेंगे।

मेरा तो नाम ही नहीं लिया।

अरे तितली बहना –सबसे ज्यादा खूबसूरत  तो तू ही लगेगी।

ठीक है पर ज्यादा गरजना-बरसना नहीं।तेरा कोई विश्वास नहीं!

रसगुल्ला हँसता हुआ धरती की ओर उड़ चला।साथ में बूँदा बूंदी  होने लगी।देखते ही देखते सारी धरती नहा धोकर और भी ज्यादा सुंदर लगने लगी। ठंडी हवा के झोंके जैसे ही तितली से  टकराये  वह तो झूमने लगी। झूमते उड़ते एक फूल पर बैठती, प्यार से उसे सहलाती  फिर उड़ जाती दूसरे फूल पर। बादल को भी सबके बीच बहुत आनंद आ रहा था। 

एकाएक वह ठिठक गया।  तितली के पंख कुछ ज्यादा ही भीग गए थे। वह सोचने लगा -मैं तो यहाँ  खुशियां  देने आया हूँ  किसी को दुखी  करने नहीं। मुझे अब चले जाना चाहिए।” 

तितली उसके मन  की बात जान  गई थी। जैसे ही रसगुल्ले ने  अपनी उड़ान भरी, तितली प्यार से अपने पंख हिलाने लगी ।   

मंगलवार, 22 जुलाई 2025

साहित्य सप्तक मासिक पत्रिका


मेरी बालकहानी 

लाल ग्रह का मेहमान /सुधा भार्गव 

प्रकाशित -साहित्य सप्तक अंक जुलाई 2025 

संपादक -डॉ नागेश पांडे 

संपादकीय कार्यालय -सेक्टर 4 बी /1048

वसुंधरा ,गाजियाबाद ,

उत्तरप्रदेश 201012 

मोबाइल-08076941157 

पत्रिका की रंगसज्जा व चित्रांकन सुंदर बन पड़ा  है। पृष्ठ का गुलाबीपन मोहक है। इतनी अच्छी पत्रिका के लिए   नागेश जी व उनकी पूरी टीम को बहुत -बहुत बधाई । 




रविवार, 22 जून 2025

डॉ सुरेन्द्र विक्रम की फेस बुक पोस्ट


मेरा बालसाहित्य संसार 

https://www.facebook.com/surendra.vikram.98/posts/10027286957364045




कहानियाँ बालसाहित्य की प्रमुख विधाओं में से एक हैं, जिसे बच्चे खूब पसंद करते हैं। समय-समय पर लिखी गई बालकहानियों में अलग-अलग तेवर देखने को मिलते हैं। कभी परियों को लेकर लिखी गई बाल कहानियों का दौर था तो कभी भूत-प्रेत की कहानियाँ भी बच्चों का मनोरंजन करती थीं। ऐय्यारी , तिलिस्म और जादू-टोने की कहानियों के लिए चंदामामा और गुड़िया जैसी बालपत्रिकाएँ इसीलिए लोकप्रिय थीं कि उन्हें बच्चों से ज्यादा उनके अभिभावकों और माता -पिता पसंद करते थे। अब तो भूतों को भला बताकर भले भूतों की भी कहानियाँ लिखी जा रही हैं, लेकिन उनकी बनावट और बुनावट में महत्त्वपूर्ण साहचर्य भी देखा जा सकता है।
नंदन पत्रिका लंबे समय तक परीकथा विशेषांक प्रकाशित प्रकाशित करती रही, हालांकि परीकथाओं की प्रासंगिकता पर छठें-सातवें-आठवें दशक में ही प्रश्नचिन्ह लगने शुरू हो ग‌ए थे। महत्त्वपूर्ण साहित्यिक पत्रिका धर्मयुग में बाकायदा लंबे समय तक धारावाहिक बहस भी चलती रही। परीकथाएँ हमारी धरोहर हैं, अतः हम उनका बहिष्कार किसी भी कीमत पर नहीं कर सकते जबकि दूसरे वर्ग का मत था कि अब वह जमाना गुजर गया जब हम बच्चों को कहानियों के माध्यम से परीकथाएँ देकर खोखली कल्पना के सब्ज़बाग दिखाए करते थे। आज का बच्चा यथार्थ में जी रहा है अतः उसे यथार्थवादी रचनाएँ ही दी जानी चाहिए।
यहाँ यह तथ्य बिल्कुल स्पष्ट है कि पहले की अपेक्षा आज का बालक अधिक समझदार है। वह हर बात को आँख बंदकर स्वीकार नहीं करता है। वह ऊल- जलूल परीकथाओं या भूत-प्रेतों की कहानियों पर प्रश्नचिन्ह लगता है ,और अपना संदेह प्रकट करने में भी नहीं चूकता है ।जो कथानक बच्चों की कल्पना और परिवेश से नहीं जुड़ते हैं, वह उन्हें सहज ही नकार देता है। किसी परी द्वारा जादू की छड़ी घुमाकर महल बनाना आज के बच्चे की कल्पना में संभव नहीं है।
मेरी इस भूमिका का कारण यह है कि विगत 40-50 वर्षों में हिन्दी बालकहानियों में आए बदलावों को समसामयिक परिवेश में अवश्य देखा जाना चाहिए। लोककथाओं के इतने अधिक संस्करण उपलब्ध होने के बावजूद आज भी लोककथाएँ लिखी जा रही हैं। इन्हें सरकारी और गैर-सरकारी प्रकाशन संस्थान धड़ल्ले से छाप भी रहे हैं। निश्चित रूप से बिक रही हैं, तभी तो छप रही हैं। यह सवाल आज भी बना हुआ है कि ये पुस्तकें बच्चों तक कितनी पहुँच रही हैं। पुस्तक की तमाम आवृत्तियों से तो यही लगता है कि स्कूलों में पुस्तकें जा रही हैं, अब बच्चे कितना पढ़ रहे हैं, यह अलग बात है। कहीं ऐसा तो नहीं है कि पुस्तकें केवल आलमारियों की शोभा ही बढ़ा रही हैं। इस पर काफी बहस हो चुकी है, लेकिन यह बहस बिना किसी निष्कर्ष के ही समाप्त भी हो चुकी है।
कल की डाक में सुधार भार्गव जी तीन पुस्तकें उड़क्कू की जीत (बाल उपन्यास), कल जब कथा कहेंगे ( भीबालकहानियाँ) तथा न‌ए भारत का नया सवेरा (बाल उपन्यास) मिलीं तो यह देखकर प्रसन्नता हुई कि तमाम ऊहापोह और अंतर्विरोध के बावजूद अच्छा बाल-साहित्य लिखा जा रहा है और वह सरकारी तथा गैर- सरकारी स्तर पर प्रकाशित भी हो रहा है। इसके पहले सुधा भार्गव जी की पुस्तकों ---मिश्री मौसी का मटका, ककड़िया के भालू ,जब मैं छोटी थी, बुलबुल की नगरी,, अँगूठा चूस तथा अहंकारी राजा को पढ़ते हुए यह अवधारणा बन चुकी है कि वे निर्विवाद रूप से बच्चों की प्रतिष्ठित रचनाकार हैं। भारत सरकार के प्रकाशन विभाग से प्रकाशित रोशनी के पंख पुस्तक पर हाल ही में मेरी लंबी टिप्पणी फेसबुक पर आ चुकी है।
सुधा भार्गव इतना डूबकर लिखती हैं कि उनकी पुस्तकें पढ़ते समय मन अपने आप एकाग्र होकर जुड़ता चला जाता है। उड़क्कू के बहाने उन्होंने पोस्टकार्ड की कहानी का ऐसा ताना-बाना बुना है कि लंबे समय से चला आ रहा संचार का यह साधन आज भी बरकरार है। हाँ, इतना अवश्य हुआ है कि आधुनिक संचार माध्यमों ने इसकी गति बहुत धीमी बल्कि यह कह लीजिए कि लगभग समाप्त ही कर दी है। सोशल मीडिया के दौर में आज पत्र-लेखन कहाँ से कहाँ पहुँच गया है। पहले कबूतरों के माध्यम से पत्रों को भिजवाया जाता था, अब यह काम मोबाइल से हो रहा है।
राष्ट्रीय पुस्तक न्यास से प्रकाशित दो पुस्तकें डॉ. साजिद खान की पुस्तक लेटरबाक्स ने पढ़ी चिट्ठियाँ तथा बहुत पहले छपी अरविन्द कुमार सिंह की पुस्तक भारतीय डाक सदियों का सफरनामा पढ़कर भी मैं बहुत दिनों तक इस परंपरा को लेकर सोचता रहा था। उड़क्कू की जीत ने भी मुझे प्रभावित किया।
दोनों पुस्तकें कल जब कथा कहेंगे और न‌ए भारत का नया सवेरा प्रवासी प्रेम पब्लिशिंग, भारत से प्रकाशित हुई हैं जिनमें भी न‌ई सोच और विकसित भारत की कल्पना की गई है। पर्यावरण संरक्षण से ही हम न‌ए भारत की मजबूत परंपरा को विकसित कर सकते हैं। इन पुस्तकों को पढ़ने से पहले सुधा भार्गव की दोनों संक्षिप्त लेकिन बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिकाएँ अवश्य पढ़ी जानी चाहिए।
---- यह सर्वदा सत्य है कि कल जब हम कहानी कहेंगे, तो वह आज की कहानियों से भिन्न होंगी। उसमें विज्ञान की लोरियाँ होंगी, व्हाट्सएप पर चुटकुले होंगे, रिमोट कंट्रोल व सनसनी पैदा करने वाले साइबर आक्रमण होंगे। बच्चों को पढ़ाएंगे तो रोबोट्स, कहानी सुनाएँगे तो रोबोट्स। कहानियों में पक्षी- जानवर तो होंगे, पर उनमें भी अधिकतर रोबो ही होंगे। प्राकृतिक और अप्राकृतिक जीवो में अंतर करना मुश्किल हो जाएगा। यहाँ तक कि दादी- बाबा की देखभाल भी मानव रोबोट करेंगे। इससे लोगों की सोच बदलेगी।सोच का प्रभाव जीवन- शैली पर पड़ेगा। यह कृत्रिम बुद्धि का धमाका उन कहानियों को आकर देगा, जिन्हें हम कल पढ़ने वाले हैं।




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