गुस्सैल सँपेरा /सुधा भार्गव
यह कथा शबरी शिक्षा समाचार जून 2014,वर्ष 16,अंक 06 में
प्रकाशित हो चुकी है ।
एक सँपेरा 
था । वह साँप का तमाशा दिखाया करता । उसने एक बंदर भी पाल रखा था जो तमाशे
के बीच नाचता ,सीटी बजाता और सलाम करके सबसे पैसे लेता। 
एक बार शहर में  पाँच दिनों का बड़ा सा मेला लगने वाला था । सँपेरा
साँप की पिटारी लेकर बीन बजाता नगर की ओर चल दिया और बंदर को अपने मित्र के पास
छोड़ दिया । मित्र बंदर का बहुत ध्यान रखता । पहले उसको खाने को देता फिर खुद खाता। 
-इतना ध्यान तो मेरा सँपेरा भी नहीं रखता है ,मुझे भी इसके लिए कुछ करना चाहिए। 
 यह सोचकर बंदर
भी बगीचे से आम तोड़कर उसके लिए लाने लगा। 
पांचवें दिन सँपेरा मेले से लौटा । उसने तमाशा
दिखाकर काफी धन कमा लिया था पर थका –थका सा था । उसने मित्र का धन्यवाद किया और बंदर
को लेकर बाग में थोड़ा आराम करने के लिए चल दिया । बंदर को भूख लगी और उसने सँपेरे
से खाने को मांगा । झुंझलाकर सँपेरे ने डंडी से उसकी पिटाई कर दी । दुबारा खाने को
मांगा तो रस्सी से उसे बांध दिया और सो गया। बंदर ने किसी तरह मुंह से रस्सी की
गांठें खोली और अपने को आजाद किया।  वह
उछलकर आम के पेड़ पर जा बैठा और रसीले आम खाने लगा। 
सँपेरे की 
आँख खुली तो उसने बंदर को अकेले –अकेले आम खाते देखा । वह समझ गया कि बंदर
उससे गुस्सा है क्योंकि रोज तो वह एक खाता था तो दूसरा उसके लिए नीचे गिरा देता था।
  
उसने बहलाने की गरज से कहा –बंदर बाबू तुम बहुत
सुंदर  हो और जब गुस्सा होकर गाल फुलाते हो
तो और भी सुंदर लगते हो। 
-बस ज्यादा चापलूसी न कर। कभी किसी ने बंदर को
सुंदर कहा है ?मेले में जाकर दो पैसे क्या कमा लिए तुझे तो
घमंड होगया और मुझ पर हाथ उठा दिया । तूने मुझ भूखे को मारा ---क्या कभी भूल सकता हूँ । अब न मैं तुझे आम दूंगा और न तुझ जैसे  गुस्सैल और मतलबी से  दोस्ती रखूँगा। 
शांत न रहने से सँपेरा अपना धीरज खो बैठा और अपनी
मदद करने वाले मित्र को भी खो दिया।  
