प्यारे बच्चों

कल सपने में देखा -मैं एक छोटी सी बच्ची बन गई हूं । तुम सब मेरा जन्मदिन मनाने आये हो । चारों ओर खुशियाँ बिखर पड़ी हैं ,टॉफियों की बरसात हो रही है । सुबह होते ही तुम में से कोई नहीं दिखाई दिया ।मुझे तो तुम्हारी याद सताने लगी ।

तुमसे मिलने के लिए मैंने बाल कुञ्ज के दरवाजे हमेशा के लिए खोल दिये हैं। यहाँ की सैर करते समय तुम्हारी मुलाकात खट्टी -मीठी ,नाटी -मोती ,बड़की -सयानी कहानियों से होगी । कभी तुम खिलखिला पड़ोगे , कभी कल्पना में उड़ते -उड़ते चन्द्रमा से टकरा जाओगे .कुछ की सुगंध से तुम अच्छे बच्चे बन जाओगे ।

जो कहानी तुम्हें अच्छी लगे उसे दूसरों को सुनाना मत भूलना और हाँ ---मुझे भी वह जरूर बताना ।
इन्तजार रहेगा ----! भूलना मत - -

गुरुवार, 10 दिसंबर 2015

बालकहानी




यह बाल कहानी 

नीदरलैंड्स से प्रकाशित होने वाली पहली हिंदी पत्रिका 'अम्स्टेल गंगा' का तेरहवाँ (अक्टूबर - 
दिसम्बर २०१५) अंक में प्रकाशित हुई है। 

पत्रिका को आप ऑन लाइन नीचे दिये गए लिंक पर भी पढ़ सकते हैं -

रामराम –सीताराम


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एक मोची था। वह धर्मशाला से बाहर बैठा जूते गाँठा करता और आने जाने वालों के जूतों पर पोलिश करता। गर्मी आती ,उसे पसीने में डुबो जाती,ठंड उस गरीब के हाथ –पाँव ही कंपा देती। बरसात तो है ही भिगोने में कुशल। मौसम की नाराजगी की परवाह किए वह अपने काम में जुटा रहता। उसे देखकर राहगीरों का दिल पिघल जाता और वे उसे दुगुनी मजदूरी देने में भी न हिचकते। फिर तो वह भी जोश में आ जाता और जूतों पर ऐसी पोलिश करता—पोलिश की ऐसी मालिश करता कि वे जलते बल्ब की तरह जगरमगर करने लगते।
वह अपनी पत्नी और बेटे का भी बहुत ध्यान रखता और अकसर सोचा करता – मैं तो बेपढ़ा ठहरा ,बाप –दादा से थोड़ा –बहुत जूते गाँठने का काम सीख पाया। मेरा बेटा कुछ पढ़ जाए तो मैं उसे जूते बनाने का काम किसी स्कूल में सिखाऊँगा ताकि उसके हुनर का डंका बजने लगे।
चौथी कक्षा पास करते ही बेटे के तो पर निकाल आए। उसे चमड़े से बदबू आने लगी । पिता का काम उसे छोटा लगता। पढ़ाई में भी मन नहीं लगता। उसके इस रवैये को देखकर मोची परेशान हो उठा । ऐसा न हो कि बेटा यह झोंपड़ी ही बेचकर खा जाए और हम दर –दर की ठोंकरे खाएं ।
उसने एक दिन अपनी पत्नी से कहा –कचालू को रोटी तभी देना जब वह पसीना बहाकर आए।
-उसकी उम्र है क्या मजदूरी करने की,अभी तो वह दस साल का ही है ।
-मुझे गलत न समझ। पसीना बहाने का मतलब मेहनत करने से हैं । खेलने के साथ –साथ उसे पढ़ने लिखने में भी मेहनत करनी है । अच्छे नंबर लाकर दिखला सकता है। अगर फेल हो गया तो फिर मैं फीस नहीं भरने का । मेरे पास पैसा उड़ाने के लिए नहीं है।
कचालू ने अपने बाप की बात सुन ली। सीधी सी बात में उसे अपना बड़ा अपमान लगा और दूसरे दिन ही उसने घर छोड़ दिया । 2-3 दिन तो अपने दोस्त के घर रहा पर एक दिन उसने साफ कह दिया –मेरी बीमार माँ बड़ी मुश्किल से रोटी का जुगाड़ कर पाती है। तू अपने लिए काम ढूंढ । हाँ रात हमारी खोली में जरूर गुजार सकता है।
अपनी तकदीर आजमाने वह शहर चल दिया । वहाँ एक छोटा सा उसे होटल मिला । घी –मसालों की खुशबू से उसकी भूख जाग उठी। काफी देर तक होटल के सामने खड़ा रहा ।होटल का मालिक उसे देख बड़बड़ाया –आ जाते हैं सुबह ही सुबह भीख मांगने,-अरे पिंगलू ,इस छोकरे को पूरी सब्जी दे चलता कर ।
कचालू को भीख लेना अच्छा नहीं लगा । होटल से बाहर एक नल था । उसके नीचे ग्राहकों के झूठे बर्तन रखे हुए थे। उनपर निगाह पड़ते ही चिंहुक पड़ा –मैं ये बर्तन साफ कर दूँ ?इसके बदले आप जो देंगे वह मैं ले लूँगा पर मुफ्त की पूरी सब्जी नहीं लूँगा ।
-ओह !तुम मेहनत की कमाई खाना चाहते हो– यह तो बहुत अच्छी बात है । तुम्हें यहाँ कोई न कोई काम मिलता रहेगा।
उसका काम शुरू हो गया। दो दिन में ही उसके कपड़े मैले हो गए,हाथ –पैर काले कलूटे। अब वह वाकई में कालू कचालू लगने लगा था । फिर भी खुश था। भरपेट रोटी तो मिल रही थी साथ में 50)हर महीने पगार।
माँ –बाप से अलग रहकर कचालू को जल्दी अकल आ गई। वह पाई –पाई बचाने लगा और होटल के बाहर पान की दुकान खोल ली। दुकान खूब चल निकली । होटल में खाने वाले पान चबाना न भूलते ।
अकेलापन दूर करने के लिए उसने एक तोता पाल लिया। उसने तोते को कुछ वाक्य रटवा दिए। कोई भी दुकान के पास से गुजरता ,पिंजरे में बैठा तोता आँखें मटकाते हुए बोलता –

राम –राम सीताराम
मामू- जल्दी आओ
बनारस का पान खाओ ।
लड़की को आता देख तोता चिल्लाता –
राम –राम सीताराम
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मन्नो कैसी है ?
पान की लाली जैसी है
महिला को देखता तो धीरे से बोलता –
राम –राम सीताराम
मौसा की प्यारी मौसी
मीठा पान चबाए मौसी
तोते की बातें सुनकर ग्राहक बड़े खुश होते और जाते समय एक सिक्का उसकी ओर बढ़ा देते । तोता लपककर उसे अपनी चोंच से पकड़ लेता और मालिक की ओर बढ़ा देता । कचालू कहता –मिट्ठूराम ,धन्यवाद । तोता भी इनाम देने वाले की ओर थोड़ा झुकता और कहता –धन्यवाद । उसकी इस अदा पर दर्शकखिलखिलाकर हंस पड़ते । तोते के कारण कचालू की आमदनी बढ़ती ही गई ।
एक रात वह सपना देखते –देखते उठ बैठा और माँ –माँ पुकारने लगा। उसकी बेचैनी तोते से न देखी गई। उसकी व्यथा जानने को पंख फड़फड़ाने लगा ।
-मेरे प्यारे मिट्ठू ,मैं जबसे यहाँ आया हूँ तब से माँ को मैंने एक पत्र भी नहीं लिखा। वह तो हमेशा मेरे बारे में ही सोचा करती थी। अब भी मैं उसके दिल में ही रहता होऊँगा।पर उससे मिलूँ कैसे । बाप ने तो मुझे बहुत डांटा, उसी के कारण मुझे अपनी माँ से अलग होना पड़ा।
अपना दुख कहकर कचालू हल्का हो गया और झपकियाँ लेने लगा। लेकिन तोते की नींद उड़ गई। वह गहरे सोच में पड़ गया कि किस तरह कचालू को उसके माँ –बाप से मिलाऊँ । भोर होते ही मुर्गे ने कुकड़ूँ-कूं का हल्ला मचाया।कचालू की नींद टूट गई।
-तोता बोला-भाई राम –राम सीताराम। माँ कैसी है?
-कैसे पता लगाऊँ ?कचालू दुखी मन से बोला।
-पता करो –पता करो। टै—टै।
उसने झटपट सामान की गठरी बांधी। पिजरे को उठाया और गाँव जाने वाली बस में जाकर बैठ गया।
बस से उतरकर कचालू बोला –तुम्हारे कहने मैं अपने घर जा रहा हूँ । खुश तो हो मिट्ठूराम । मिट्ठू नाच उठा।
जैसे ही दरवाजा खटखटाया ,माँ को सामने खड़ा पाया मानो वह अपने बेटे ही की प्रतीक्षा कर रही हो ।आदत के अनुसार मिट्ठू ठुमकने लगा –राम –राम सीताराम । मैया कैसी है ?
कचालू माँ के सीने से लग गया। दोनों की आँखेँ खुशी के आंसुओं से भर गईं।इतने में उसके बापू आ गए। तोते ने टर्राना शुरू कर दिया –राम राम सीताराम । बापू कैसा है?
कचालू मुंह फेर कर खड़ा हो गया।
बापू को देख तोते को कचालू की यह हरकत ठीक न लगी। उसने चीखना शुरू कर दिया-
बापू ने डांटा –ठीक किया –ठीक किया–।
-क्या कहा—फिर से तो कह। कचालू बिगड़ उठा।
हाँ –हाँ –ठीक– किया
बापू ने डांटा ठीक किया
घर से निकला कचालू
मेहनत करना सीख गया।
जोड़-जोड़ पैसा वह तो
पनवाड़ी राजा बन गया।
माँ से भी बेटे की नाराजगी छिपी न रह सकी।
-बेटा,जो हुआ अच्छा ही हुआ । तुम अपने पैरों पर खड़ा होना सीख गए। बच्चों को उनकी गलतियाँ न बताना उन्हें गलत रास्ता दिखाना है।
कचालू ने अनुभव किया कि बापू के प्रति उसका व्यवहार गलत है। वह बापू के पास आकार खड़ा हो गया।
-बेटा,तू मुझसे कितने दिन और गुस्सा रहेगा?अब तो मेरे कलेजे से आकर लग जा।
कचालू बापू के सीने से लगकर फफक पड़ा—बापू अब तुझे छोडकर कहीं जाऊंगा –कभी नहीं जाऊंगा। मुझे माफ कर दे।
सालों का जमा बाप-बेटे के मन का मैल आंसुओं में बह गया।
कचालू ने पान की दुकान अपने ही गाँव में खोल ली । तब से आज तक तोता पिजरे में बैठा गा रहा है –
राम राम सीताराम
मीठी बीन बजाए मिट्ठूराम
बीड़े लाल चबाए पूरा गाँव
बोलो भैया सीताराम
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- सुधा भार्गव

बुधवार, 30 सितंबर 2015

बालकहानी

अनहद कृति अंतर्जाल पत्रिका अंक 11 में प्रकाशित
http://www.anhadkriti.com/sudha-bhargava-story-dev-daanav
देव दानव /सुधा भार्गव 
यह कहानी उन बच्चों की कहानी है जो घर से भाग जाते हैं या चुरा लिए जाते हैं। कुछ अभागों को उनके माँ- बाप ही बेच देते हैं और फिर खुल जाता है एक नया अध्याय उनके नारकीय जीवन का। - लेखिका

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एक प्यारा-सा बच्चा था। उसका नाम डमरू था । वह अपने साथियों के साथ शाम को पार्क में घूमनेखेलने जाया करता। माँ का कहना था अंधरे से पहले ही घर आ जाना जिस दिन ज़रा-सीभी देरी हो जाती उसे मुर्गा बनना पड़ता। छोटी बहन किननी हँसकर बोलती मुर्गे भाई ,बोलो कुकड़ू कूं। डमरू सब कूछ भूल-भालकर बहन को मारने दौड़ता। फिर शुरू होता चूहा भागबिल्ली आई का खेल। डाइनिंग टेबिल के चारों ओर आगेआगे किननी पीछे-पीछे डमरू उसका पीछा करता हुआ दौड़ लगाता। पकड़कर ही वह दम लेता और कोमल-सी पीठ पर ज़ोर से दो धौल लगा देता। पाँच वर्ष की किननी रो-रोकर घर सिर पर उठा लेती। माँ के आते ही वह उसे पुचकारने लगता। मोटेमोटे आंसुओं को गिरते देख उसे पछतावा भी होने लगता उसने बहन को क्यों मारा।" इस शैतानी पर उसे डांट भी ख़ूब पड़ती पर उसे बुरा न लगता , बुरा तो तब लगता जब माँ उसे ज़्यादा बाहर न खेलने देती। वह तो चाहता था आज़ाद पंछी की तरह आकाश में उड़े। एक शाम घूमते -घूमते वह अपने साथियो से दूर चला गया। उसे पता ही न चला कि साथी कब लौट गए?
एकांत  देख एक आदमी उसके पास आया और बोला बेटा तुम भूखे लगते हो। घर जाकर तुम्हें दूध पीना अच्छा नहीं लगता इसलिए बड़ी-सी चाकलेट खाकर जाओ।
चॉकलेट का तो वह शौकीन, मुंह में पानी भर आया।
-अंकल क्या आपके पास बहुत-सी चाकलेटें हैं।"
-चाकलेट बनाने का  मेरा कारख़ाना है।"
-तब तो एक दिन मैं उसे देखने चलूँगा।"
-आज ही क्यों नहीं चलते!"
-माँ कनपकड़ी करेगी।"
-तुम चलो तो ,तुम्हारी माँ को मैं समझा दूंगा। वे गुस्सा नहीं होंगी।"

डमरू चाकलेट पाने की इच्छा से उस अजनबी के साथ हो लिया। कुछ दूर ही जा पाया था कि उसका माथा चकराने लगा और बेहोश होकर गिर पड़ा। घंटों इस अवस्था में रहा। जब उसे होश आया तो अपने को एक तंग कोठरी में लेटे पाया। ज़मीन पर गंदी-सी फटीपुरानी दरी बिछी थी। उसके पास ही तीन चार लड़के और सोये थे। तन को ढकने के नाम पर उनके शरीर पर कमीज़ मात्र थी। चार छेदों वाली वे नेकर पहने हुए थे।

प्यास से डमरू का कंठ सूखा जा रहा था। बड़ी कठिनाई से बोला अंकल अंकल मैं कहाँ हूँ ?" तभी एक अजनबी कोठरी में घुसा, कड़कते हुए बोला खा-खाकर चमड़ी मोटी हो गई है । सुबह के 6बजने को आए पर किसी कमबख्त ने उठने का नाम नहीं लिया। उठते हो या लगाऊँ दो थप्पड़।" धड़-धड़ करके लड़के खड़े हो गए। डमरू का सिर भारी था। उससे उठा ही नहीं गया ।
-ओ छोरे तुझे क्या हुआ ?" अजनबी घुर्राया
-मुझे पानी चाहिए।"
-पानी! यहाँ क्या तेरी माँ बैठी है जो पानी लाएगी। उठ और बाहर जाकर पानी पी आ। खेत पर चलना है।"
अजनबी का असभ्य व्यवहार देखकर डमरू सकते में आ गया। कल और आज वाले अंकल में ज़मीनआसमान का अंतर।उसका वश चलता तो वह उसे कच्चा चबा जाता। 


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फरवरी की ठंड। नक्कू, कक्कू, छक्कू बुरी तरह काँप रहे थे। सब के सब गायभैंस की तरह खेतों की ओर लताड़ दिए गए। नंगे पैर भागतेभागते कम से कम दो किलोमीटर का फासला तय किया। यदि किसी बच्चे की चाल धीमी हो जाती या सुस्ताने पत्थर पर बैठ जाता तो सड़ाक से छड़ी उसके पैरों पर पड़ती। मार से बचने के लिए वह तेज़ी से भागने लगता।
खेतों पर पहुँचते ही अजनबी ने आदेश दियाखेत को साफ़ करके रखना। मैं अभी नहाधोकर, खा पीकर आता हूँ।"

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उसके जाते ही डमरू बोला मेरी माँ सुबह उठते ही दूध पिलाती थी। अंकल तो खाने चले गए, हम क्या भूखे ही रहेंगे?
-बच्चू अभी नयानया आया है। कुछ दिनों में जीभ के साथसाथ पेट भी चुप हो जाएगा। तू तो पढ़ा लिखा लगता है। यहाँ कैसे आ गया?" कक्कू ने पूछा।
-मुझे चॉकलेट का लालच आ गया। अंकल ने बहुत-सी चाकलेट देने का वायदा किया था और माँ ज़्यादा खाने नहीं देती थी सो फंस गया। इनकी दी चाकलेट खाकर न जाने क्या हुआ। जब नींद खुली तो यहाँ पाया। अब मैं क्या करूं। पिता जी को कैसे बताऊँ? अच्छा तू कुछ अपने बारे में बता।"

-मैं जब तीन साल का था तभी एक दुष्ट दाढ़ी वाले बाबा ने मुझे घर के आँगन से चुरा लिया। आठ साल का होने पर उसने मुझे बाजार में बेच दिया। मुझे तो अपने माँ बाप के बारे में कुछ पता ही नहीं। चुराने वाला भी मुझे भूखा रखता था और तेरा राक्षस अंकल भी भूखा रखता है। दस दिन पहले ही तो इसने मुझे 100 रुपए में खरीदा है। इससे मिल, यह है नक्कू।"
-मेरे बाप ने तो मुझे 50 रुपए में ही बेच दिया। उसे शराब पीने को पैसा चाहिए था। बाप होते हुए भी न के बराबर है। माँ तो उसे पहले ही छोड़ कर भाग गई। बस उसे मारता रहता था। कौन रहता उस के पास।"
-अरे बात ही करते रहोगे या काम भी करोगे। जल्दी से सूखे पत्ते और कंकड़ बीन लो वरना शैतान ने देख लिया तो हमारी एक रोटी भी बंद हो जाएगी।" छक्कू बोला।
बच्चे भयभीत हो उठे। डमरू नन्हें हाथों से पौधों में पानी देने लगा।

नक्कू  ने कंकड़ पत्थर से भरा टोकरा अपने सिर पर रखा और लड़खड़ाते हुए सड़क के किनारे फेंकने लगा। तभी उसके पैर में काँटा चुभ गया। छककू ने उसे जल्दी से खींच लिया। खून की धार बह निकली।
-रे रे कितना खून बह रहा है? यदि मैं इसे चूस लू तो मेरा खून बढ़ जाएगा। देख न मैं कितना पतला हो गया हूँ।" डमरू की इस बात पर मुरझाए चेहरों पर भी हंसी रेंग गई।
धीमी और कमजोर आवाज़ में नक्कू बोला डमरू, मालिक किसी भी समय पहुँच सकता है और काम अभी तक  पूरा नहीं हुआ है।"
 
-क्या काम है मुझे बता।"
-ज़मीन खोदनी है।"
डमरू की नाजुक उँगलियों ने खुरपी थाम ली। ज़मीन खोदते हुए हथेलियाँ लाल हो गई।  खून सा झलक आया। जलन मिटाने के लिए ठंडे पानी की धार के नीचे हथेली रख दी। उसी हथेली से चुल्लू भर पानी पीकर पेट की ज्वाला मिटाई।

करीब दो घंटे बीत गए, पलपल बच्चों को लग रहा था आया राक्षस आया।" मन  ही मन डर की गुफ़ा में भटक रहे थे। तभी दिल दहलाने वाली एक कर्कश आवाज़ सुनाई दी
-क्या सांठ--गांठ चल रही है। अगर किसी ने भागने की कोशिश की तो गाजर-मूली की तरह काट दिए जाओगे। फिर बोरे में भरकर नदी मेँ बहा दूंगा। बोटी-बोटी मगरमच्छ खा जाएंगे।" 

उस ज़ालिम ने बच्चों के दिल मेँ दहशत की ऐसी दीवार चुनवा देनी चाही कि वे कठपुतली बने उसके इशारों पर नाचते रहें।

मालिक ने खेत का पूरा मुआयना किया। सूखे पत्ते कोने मेँ घुसे गुए थे। उन पर आँख पड़ते ही वह भुनभुना उठाओबे नक्कू के बच्चे, तेरी आँख फूट गई है क्या? ये पत्ते दिखाई नहीं दिये। चल उठा इन्हें।" नक्कू लंगड़ाता हुआ आया। इससे देरी हो गई। मालिक को भला यह कैसे सहन होता। लगाई उसमें दोतीन लातें। बेचारा उछलकर दूर जा पड़ा। बड़ी मुश्किल से तलुए से बहता रक्त बंद हुआ था पर बेचारे के उसी जख्म मेँ फिर से नुकीला पत्थर चुभ गया। दर्द की छटपटाहट से वह वहीं अपना पैर पकड़ कर बैठ गया।
-तेरी नाटकबाज़ी तो अभी बंद करता हूँ। इतना कहकर उसने नक्कू के बाल पकड़कर ऊपर उठाया
 और झटके से छोड़ दिया। इससे नक्कू का शरीर जगहजगह से छिल गया पर सताने वाले पर इसका कोई असर न था।

उसने पोटली खोलकर 2-2 रोटियाँ हर एक के सामने डाल दीं जिनपर नमक छिड़का हुआ था। ख़ुद स्टूल पर बैठ बीड़ी सुलगाने लगा। यहाँ तो बीड़ी सुलग रही थी पर डमरू का अंगअंग उसके दुर्व्यवहार से झुलस रहा था। उसका वश चलता तो वह अत्याचारी का गला घोंट देता पर अकेला चना क्या भाँड़ झोंकता! हाँ, वह मौके की तलाश में रहने लगा इस नारकीय जीवन से छुटकारा पाने को और अपने साथियों को मुक्ति दिलाने के लिए।
डमरू सहसा कुछ ज़्यादा ही चुप रहने लगा। चार बार उससे कोई बात ज़ोर से पूछी जाती तब वह मुश्किल से जबाब देता। दूसरों ने सोचा उसे बोलने में कठिनाई होती है। एक बार नाराज़गी में मालिक ने उसकी कनपटी पर थप्पड़ मारा तो उसका माथा भनभना गया। तब से उसने बोलना बिलकुल ही बंद कर दिया। अब तो वह बहरा-गूंगा समझा जाने लगा। उसने अभिनय भी कमाल का किया और धीरेधीरे उसे मालूम हुआ कि उसका मालिक ऐसे गिरोह से संबंध रखता है जिसका काम ही बच्चों का अपहरण व चुराकर उनका क्रयविक्रय करना था।

एक दिन दोपहर मेँ वह दरवाज़ा खोल दबे पाँव भाग निकला और खोजतेखोजते पुलिस चौकी जा पहुंचा। वहाँ उसने गिरोह के मालिक के ख़िलाफ़ रिपोर्ट दर्ज कर दी। पहले तो थानेदार को बच्चे की बात का विश्वास नहीं हुआ पर अपना कर्त्तव्य समझ वह अपने सहकर्मियों सहित उसके पीछे चल दिया। अपराधियों का पता लगते ही उन्हें सींखचों के हवाले कर दिया और मासूम बच्चों को उनके चंगुल  से छुड़ाया।
पुलिस ने बच्चों के मातापिता का पता लगाने का प्रयत्न किया। वह केवल डमरू के मातापिता को पा सकी। वह उनसे लिपटकर ख़ूब रोया। उसे देखकर नक्कू और छककू और कक्कू की आँखों मेँ बादल घिर आए।
-तुम रोओ नहीं, मैं तुमसे बीच-बीच मेँ मिलने आऊँगा।"
-आओगे कहाँ? न जाने मैं कहाँ जाऊँ? माँ का भी पता नहीं। पिता का पता मुझे मालूम है पर मैं उसके पास नहीं जाऊंगा। क्या पता वह फिर मुझे बेच दे।" कक्कू बोला ।

इन बेसहारा बच्चों की बात सुनकर डमरू के पिता का दिल व्यथा से हिल उठा और बोले तुम कहीं मत जाओ मेरे साथ चलो। हम सब साथसाथ  रहेंगे।"
तीनों बच्चे डमरू के पिता के पैरों पर गिर पड़े और बोले आप जो कहेंगे, हम करेंगे, बस हमें घर से न निकालना अंकल वरना कहाँ रहेंगे?
-ठीक है ,पर मेरी एक शर्त है।"
-क्या ?बच्चे बेचैनी से बोले।"
-जो मैं माँगूँगा वह देना पड़ेगा, लेकिन चिंता न करो। जो तुम्हारे पास होगा, उसी में से लूँगा। बोलो दोगे।"
-हाँ अंकल देंगे, पर आपको चाहिए क्या?"
-बता देंगेबता देंगे! मांगने का अभी समय नहीं आया है।" डमरू के पिता ने कहा ।
उन तीनों बच्चों के पालन-पोषण में भी बड़ी मेहनत की और वे उनके बड़े होने का इंतज़ार करने लगे। समय पंख लगाकर उड़ने लगा। पढ़-लिखकर वे अपने पैरों पर खड़े हो गए।
मौका पाकर वे एक दिन बोलेमेरी  शर्त पूरी करने का समय आ गया है बच्चों।
कक्कू ने आदर का भाव दिखते हुए कहाआपने हमें नई ज़िंदगी दी है
। हम पर आपका पूरा अधिकार है।
-बेटे,जिस तरह से मैंने तुम्हें सहारा दिया उसी तरह अपनी ज़िंदगी में यदि तुम किसी अनाथ या असहाय बच्चे के काम आ सको तो बहुत फलो फूलोगे।
-अच्छे अंकल, हम आपकी राह ही अपनाएँगे।
अंकल की आंखों से अगाध स्नेह और हर्ष की फुलझड़ियाँ 
छूटने लगी। उनके बोए बीज से मीठे-मीठे फल झर रहे थे ।
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