प्यारे बच्चों

कल सपने में देखा -मैं एक छोटी सी बच्ची बन गई हूं । तुम सब मेरा जन्मदिन मनाने आये हो । चारों ओर खुशियाँ बिखर पड़ी हैं ,टॉफियों की बरसात हो रही है । सुबह होते ही तुम में से कोई नहीं दिखाई दिया ।मुझे तो तुम्हारी याद सताने लगी ।

तुमसे मिलने के लिए मैंने बाल कुञ्ज के दरवाजे हमेशा के लिए खोल दिये हैं। यहाँ की सैर करते समय तुम्हारी मुलाकात खट्टी -मीठी ,नाटी -मोती ,बड़की -सयानी कहानियों से होगी । कभी तुम खिलखिला पड़ोगे , कभी कल्पना में उड़ते -उड़ते चन्द्रमा से टकरा जाओगे .कुछ की सुगंध से तुम अच्छे बच्चे बन जाओगे ।

जो कहानी तुम्हें अच्छी लगे उसे दूसरों को सुनाना मत भूलना और हाँ ---मुझे भी वह जरूर बताना ।
इन्तजार रहेगा ----! भूलना मत - -

गुरुवार, 10 दिसंबर 2015

बालकहानी




यह बाल कहानी 

नीदरलैंड्स से प्रकाशित होने वाली पहली हिंदी पत्रिका 'अम्स्टेल गंगा' का तेरहवाँ (अक्टूबर - 
दिसम्बर २०१५) अंक में प्रकाशित हुई है। 

पत्रिका को आप ऑन लाइन नीचे दिये गए लिंक पर भी पढ़ सकते हैं -

रामराम –सीताराम


Image result for मोची


एक मोची था। वह धर्मशाला से बाहर बैठा जूते गाँठा करता और आने जाने वालों के जूतों पर पोलिश करता। गर्मी आती ,उसे पसीने में डुबो जाती,ठंड उस गरीब के हाथ –पाँव ही कंपा देती। बरसात तो है ही भिगोने में कुशल। मौसम की नाराजगी की परवाह किए वह अपने काम में जुटा रहता। उसे देखकर राहगीरों का दिल पिघल जाता और वे उसे दुगुनी मजदूरी देने में भी न हिचकते। फिर तो वह भी जोश में आ जाता और जूतों पर ऐसी पोलिश करता—पोलिश की ऐसी मालिश करता कि वे जलते बल्ब की तरह जगरमगर करने लगते।
वह अपनी पत्नी और बेटे का भी बहुत ध्यान रखता और अकसर सोचा करता – मैं तो बेपढ़ा ठहरा ,बाप –दादा से थोड़ा –बहुत जूते गाँठने का काम सीख पाया। मेरा बेटा कुछ पढ़ जाए तो मैं उसे जूते बनाने का काम किसी स्कूल में सिखाऊँगा ताकि उसके हुनर का डंका बजने लगे।
चौथी कक्षा पास करते ही बेटे के तो पर निकाल आए। उसे चमड़े से बदबू आने लगी । पिता का काम उसे छोटा लगता। पढ़ाई में भी मन नहीं लगता। उसके इस रवैये को देखकर मोची परेशान हो उठा । ऐसा न हो कि बेटा यह झोंपड़ी ही बेचकर खा जाए और हम दर –दर की ठोंकरे खाएं ।
उसने एक दिन अपनी पत्नी से कहा –कचालू को रोटी तभी देना जब वह पसीना बहाकर आए।
-उसकी उम्र है क्या मजदूरी करने की,अभी तो वह दस साल का ही है ।
-मुझे गलत न समझ। पसीना बहाने का मतलब मेहनत करने से हैं । खेलने के साथ –साथ उसे पढ़ने लिखने में भी मेहनत करनी है । अच्छे नंबर लाकर दिखला सकता है। अगर फेल हो गया तो फिर मैं फीस नहीं भरने का । मेरे पास पैसा उड़ाने के लिए नहीं है।
कचालू ने अपने बाप की बात सुन ली। सीधी सी बात में उसे अपना बड़ा अपमान लगा और दूसरे दिन ही उसने घर छोड़ दिया । 2-3 दिन तो अपने दोस्त के घर रहा पर एक दिन उसने साफ कह दिया –मेरी बीमार माँ बड़ी मुश्किल से रोटी का जुगाड़ कर पाती है। तू अपने लिए काम ढूंढ । हाँ रात हमारी खोली में जरूर गुजार सकता है।
अपनी तकदीर आजमाने वह शहर चल दिया । वहाँ एक छोटा सा उसे होटल मिला । घी –मसालों की खुशबू से उसकी भूख जाग उठी। काफी देर तक होटल के सामने खड़ा रहा ।होटल का मालिक उसे देख बड़बड़ाया –आ जाते हैं सुबह ही सुबह भीख मांगने,-अरे पिंगलू ,इस छोकरे को पूरी सब्जी दे चलता कर ।
कचालू को भीख लेना अच्छा नहीं लगा । होटल से बाहर एक नल था । उसके नीचे ग्राहकों के झूठे बर्तन रखे हुए थे। उनपर निगाह पड़ते ही चिंहुक पड़ा –मैं ये बर्तन साफ कर दूँ ?इसके बदले आप जो देंगे वह मैं ले लूँगा पर मुफ्त की पूरी सब्जी नहीं लूँगा ।
-ओह !तुम मेहनत की कमाई खाना चाहते हो– यह तो बहुत अच्छी बात है । तुम्हें यहाँ कोई न कोई काम मिलता रहेगा।
उसका काम शुरू हो गया। दो दिन में ही उसके कपड़े मैले हो गए,हाथ –पैर काले कलूटे। अब वह वाकई में कालू कचालू लगने लगा था । फिर भी खुश था। भरपेट रोटी तो मिल रही थी साथ में 50)हर महीने पगार।
माँ –बाप से अलग रहकर कचालू को जल्दी अकल आ गई। वह पाई –पाई बचाने लगा और होटल के बाहर पान की दुकान खोल ली। दुकान खूब चल निकली । होटल में खाने वाले पान चबाना न भूलते ।
अकेलापन दूर करने के लिए उसने एक तोता पाल लिया। उसने तोते को कुछ वाक्य रटवा दिए। कोई भी दुकान के पास से गुजरता ,पिंजरे में बैठा तोता आँखें मटकाते हुए बोलता –

राम –राम सीताराम
मामू- जल्दी आओ
बनारस का पान खाओ ।
लड़की को आता देख तोता चिल्लाता –
राम –राम सीताराम
Image result for dancing parrot in cage cartoon
मन्नो कैसी है ?
पान की लाली जैसी है
महिला को देखता तो धीरे से बोलता –
राम –राम सीताराम
मौसा की प्यारी मौसी
मीठा पान चबाए मौसी
तोते की बातें सुनकर ग्राहक बड़े खुश होते और जाते समय एक सिक्का उसकी ओर बढ़ा देते । तोता लपककर उसे अपनी चोंच से पकड़ लेता और मालिक की ओर बढ़ा देता । कचालू कहता –मिट्ठूराम ,धन्यवाद । तोता भी इनाम देने वाले की ओर थोड़ा झुकता और कहता –धन्यवाद । उसकी इस अदा पर दर्शकखिलखिलाकर हंस पड़ते । तोते के कारण कचालू की आमदनी बढ़ती ही गई ।
एक रात वह सपना देखते –देखते उठ बैठा और माँ –माँ पुकारने लगा। उसकी बेचैनी तोते से न देखी गई। उसकी व्यथा जानने को पंख फड़फड़ाने लगा ।
-मेरे प्यारे मिट्ठू ,मैं जबसे यहाँ आया हूँ तब से माँ को मैंने एक पत्र भी नहीं लिखा। वह तो हमेशा मेरे बारे में ही सोचा करती थी। अब भी मैं उसके दिल में ही रहता होऊँगा।पर उससे मिलूँ कैसे । बाप ने तो मुझे बहुत डांटा, उसी के कारण मुझे अपनी माँ से अलग होना पड़ा।
अपना दुख कहकर कचालू हल्का हो गया और झपकियाँ लेने लगा। लेकिन तोते की नींद उड़ गई। वह गहरे सोच में पड़ गया कि किस तरह कचालू को उसके माँ –बाप से मिलाऊँ । भोर होते ही मुर्गे ने कुकड़ूँ-कूं का हल्ला मचाया।कचालू की नींद टूट गई।
-तोता बोला-भाई राम –राम सीताराम। माँ कैसी है?
-कैसे पता लगाऊँ ?कचालू दुखी मन से बोला।
-पता करो –पता करो। टै—टै।
उसने झटपट सामान की गठरी बांधी। पिजरे को उठाया और गाँव जाने वाली बस में जाकर बैठ गया।
बस से उतरकर कचालू बोला –तुम्हारे कहने मैं अपने घर जा रहा हूँ । खुश तो हो मिट्ठूराम । मिट्ठू नाच उठा।
जैसे ही दरवाजा खटखटाया ,माँ को सामने खड़ा पाया मानो वह अपने बेटे ही की प्रतीक्षा कर रही हो ।आदत के अनुसार मिट्ठू ठुमकने लगा –राम –राम सीताराम । मैया कैसी है ?
कचालू माँ के सीने से लग गया। दोनों की आँखेँ खुशी के आंसुओं से भर गईं।इतने में उसके बापू आ गए। तोते ने टर्राना शुरू कर दिया –राम राम सीताराम । बापू कैसा है?
कचालू मुंह फेर कर खड़ा हो गया।
बापू को देख तोते को कचालू की यह हरकत ठीक न लगी। उसने चीखना शुरू कर दिया-
बापू ने डांटा –ठीक किया –ठीक किया–।
-क्या कहा—फिर से तो कह। कचालू बिगड़ उठा।
हाँ –हाँ –ठीक– किया
बापू ने डांटा ठीक किया
घर से निकला कचालू
मेहनत करना सीख गया।
जोड़-जोड़ पैसा वह तो
पनवाड़ी राजा बन गया।
माँ से भी बेटे की नाराजगी छिपी न रह सकी।
-बेटा,जो हुआ अच्छा ही हुआ । तुम अपने पैरों पर खड़ा होना सीख गए। बच्चों को उनकी गलतियाँ न बताना उन्हें गलत रास्ता दिखाना है।
कचालू ने अनुभव किया कि बापू के प्रति उसका व्यवहार गलत है। वह बापू के पास आकार खड़ा हो गया।
-बेटा,तू मुझसे कितने दिन और गुस्सा रहेगा?अब तो मेरे कलेजे से आकर लग जा।
कचालू बापू के सीने से लगकर फफक पड़ा—बापू अब तुझे छोडकर कहीं जाऊंगा –कभी नहीं जाऊंगा। मुझे माफ कर दे।
सालों का जमा बाप-बेटे के मन का मैल आंसुओं में बह गया।
कचालू ने पान की दुकान अपने ही गाँव में खोल ली । तब से आज तक तोता पिजरे में बैठा गा रहा है –
राम राम सीताराम
मीठी बीन बजाए मिट्ठूराम
बीड़े लाल चबाए पूरा गाँव
बोलो भैया सीताराम
Image result for dancing parrot in cage cartoon
- सुधा भार्गव

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें