प्यारे बच्चों

कल सपने में देखा -मैं एक छोटी सी बच्ची बन गई हूं । तुम सब मेरा जन्मदिन मनाने आये हो । चारों ओर खुशियाँ बिखर पड़ी हैं ,टॉफियों की बरसात हो रही है । सुबह होते ही तुम में से कोई नहीं दिखाई दिया ।मुझे तो तुम्हारी याद सताने लगी ।

तुमसे मिलने के लिए मैंने बाल कुञ्ज के दरवाजे हमेशा के लिए खोल दिये हैं। यहाँ की सैर करते समय तुम्हारी मुलाकात खट्टी -मीठी ,नाटी -मोती ,बड़की -सयानी कहानियों से होगी । कभी तुम खिलखिला पड़ोगे , कभी कल्पना में उड़ते -उड़ते चन्द्रमा से टकरा जाओगे .कुछ की सुगंध से तुम अच्छे बच्चे बन जाओगे ।

जो कहानी तुम्हें अच्छी लगे उसे दूसरों को सुनाना मत भूलना और हाँ ---मुझे भी वह जरूर बताना ।
इन्तजार रहेगा ----! भूलना मत - -

गुरुवार, 21 जनवरी 2016

बाल कहानी


    शबरी शिक्षा समाचार पत्रिका ,जनवरी 2016  में प्रकाशित 
                  मेरी कहानी                 



प्यारा दोस्त

माँ –माँ –देखो तो मैं क्या लाया हूँ?स्कूल से आते ही तब्बू ने रंगबिरंगी रबर दिखते हुए कहा।
-अरे यह तो बड़ी सुंदर है। कहाँ से मिली।
-यह मेरे दोस्त टपलू की है। मेरे पास ही बैठता है। घर जाते समय वह रबर को डेस्क पर ही छोड़ गया। मुझे यह बहुत अच्छी लगी । इस कारण मैं इसे ले आया।
-बेटा ,यदि तुम्हें इतनी पसंद है तो आज  शाम को ही ऐसी रबर बाजार से खरीद लेंगे। टपलू की रबर उसे लौटा देना। गृहकार्य करने बैठा होगा तो अपनी रबर खोज रहा होगा।
-ओह,मैंने तो यह सोचा ही नहीं। दोस्त सच में बहुत परेशान होगा।
-आगे से मेरे बच्चे इस तरह से किसी की चीज न लेना ।
-हाँ फिर वह भी खोजते खोजते दुखी हो  जाएगा।
-और किसी को दुखी करना बुरी बात है।
-अब मैं ऐसी बुरी बात कभी नहीं करूंगा।
-और एक बात ---यदि तुम फिर बिना पूछे किसी की वस्तु चुपचाप लाओगे तो वह चोरी कहलाएगी।
 -मैंने चोरी की है क्या माँ ?फिर तो मैं चोर हो गया। चोर को तो पुलिस पकड़कर ले जाती है।

-बेटे,तुमने चोरी नहीं की। रबर उठाते समय तो तुम्हें मालूम ही न था कि यह काम गलत है या सही। मालूम होने यदि तुम फिर किसी की वस्तु चुपचाप उठाओगे तो चोरी कहलाएगी। 
 -ओह फिर तो मैं चोर नहीं। माँ आज तो तुमने मुझे बचा लिया पर माँ भविष्य में मुझे कैसे मालूम हो कि क्या गलत है और क्या सही। आप बड़ी है इसलिए आपको तो सब मालूम है ।
-मैं माँ होने के साथ साथ तुम्हारी दोस्त भी हूँ जिस तरह से तुम अपने मित्र से  मन की बातें कह देते हो इसी तरह से मुझसे भी कह सकते हो। जो देखा जो सुना उसे भी बता सकते हो। फिरमैं बता दूँगी ,तुम्हें क्या करना उचित होगा।
-मुझे तो मालूम ही न था कि मेरा दोस्त मेरे घर में ही है। इतना प्यारा –प्यारा--- कहकर वह अपनी माँ से लिपट गया।



1 टिप्पणी:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (23-01-2016) को "विषाद की छाया में" (चर्चा अंक-2230) पर भी होगी।
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    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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