अंतर्जाल पत्रिका , अंक जनवरी-मार्च 2016 में प्रकाशित
http://amstelganga.org
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आनंद की बारिश
नए साल में बच्चों की दुनिया में बच्चों का और बड़ों का स्वागत हैI हम इसमें पूरे एक वर्ष रहेंगेI न कोई डर होगा न कोई चिंताI बस हँसेंगे- हंसाएंगे .,अपने हिस्से की रोटी दूसरों को
खिलाएंगे जिसका कोई न होगा उसके हम सब कुछ बन जायेंगे। यदि आप भी हमारा साथ देना चाहते है तो
अवश्य आइयेI आपके आने से —-
नये वर्ष की धूप में,
पल- पल
चमक उठेगा I
नव वर्ष
की छाँह में
आँखों में गुलाब खिलेगा।
धरती के इस शोर गुल को सुनकर मटकू बादल चंचल हो उठा और लगा झाँकने
नीचे लालची निगाहों से। वैसे तो आकाश की गोद में दुबका पड़ा था, जनवरी का महीना .कड़ाके की
ठण्ड –भला उसे कहाँ बर्दाश्त !पर अब अपने पर काबू रखना उसके लिए मुश्किल
ही हो गया। मटकता हुआ मुस्कराता हुआ चल दिया नीचे आनंद की बारिश में भीगने।
उस दिन बच्चे अपनी ही धुन में थे ,किसी को उसकी तरफ देखने की
फुरसत ही नहीं थी।
मटकू कुछ देर तो इंतजार करता रहा –शायद कोई उससे बोले। जब कोई
नहीं बोला तो उसी ने पूछ लिया-
-यह काटा -काटी क्या कर रहे हो ?
-अरे तुम्हें यह भी नहीं मालूम –! नया साल आने वाला है। हमें
नए -नए कपडे पहनने हैं, घर सजाना है, चाकलेट खानी है , .गुब्बारे भी फोड़ने हैं।
उफ!बहुत सारे काम करने हैं ।
-मुझे भी कोई काम बता दो,मैं तुम्हारी कुछ मदद कर
सकता हूँ !
-हाँ –हाँ क्यों नहीं! उपहारों के पैकिट पर लाल -पीले रिबिन बाँध
दो।
तभी उसकी निगाह सलोनी पर पड़ी जो पेड़ के नीचे घुटनों के बीच अपना सिर टिकाए बैठी थी।
-’सारी धरती खुशी से नाच रही है। ऐसे समय सलोनी को क्या हो
गया है !इसे भी बुला लूँ जरा—
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‘सलोनी – ओ सलोनी –
कोई जबाब न आने पर वह उसके पास उड़ चला और प्यार से उसका सिर ऊपर
किया । मटकू को देख तो उसकी आँखों से झर झर आँसू बहने लगे।
-यह क्या!तुम रो रही हो?
‘हाँ मटकू !
-मगर क्यों ?
-मनु मेरा छोटा भाई है। भाई होते हुए भी उसने मेरी गुड़िया तोड़ मरोड़
दी । अब मैं किसके साथ खेलूंगी?
-क्या तुमने अपनी मम्मी से अपने शैतान भाई की शिकायत की?
‘हाँ ,जब मैंने अपनी घायल गुड़िया को दिखाया
तो उन्होंने भाई को डांटा भी नहीं। उल्टे मुझे कहने लगीं –पागलों की तरह क्यों रोंती
है।दूसरी गुड़िया ला देंगे।
मटकू वे मेरा दर्द नहीं समझतीं। मैं उस गुड़िया के साथ बहुत दिनों
से रहती हूँ। उसके बिना मैं बहुत दुखी हूँ । मुझे उदास देखकर माँ भी मुझपर हंसती
हैं और भाई अंगूठा दिखा -दिखाकर मुझे चिढ़ाता है । ‘
मटकू सलोनी का आंसुओं से भरा चेहरा अपने रुई से मुलायम हाथों में
लेकर बोला -
-सलोनी बहन ,अपने लिए इतना मत रोओ वरना
दूसरे तो हँसेंगे ही।
‘तुम भी तो रोते हो। कभी धीरे -धीरे ,कभी जोर से । लेकिन तुम पर
कोई नहीं हँसता। —यह तुमने कैसे जाना ?
-जब रिमझिम बरसात होती है तो मैं समझ जाती हूँ तुम धीरे से रो रहे
हो । जब मूसलाधार पानी बरसता है तो तुम जोर से रो देते हो।परन्तु तुम्हारे आंसुओं
की धार में नहाकर कोई खुश होता है तो कोई तुम्हारी तारीफ करता है। सलोनी ने अपने
दिल की बात कह दी ।
-तुम्हारा कहना एकदम ठीक है।परन्तु तुम्हारे और मेरे रोने में एक
अन्तर है। तुम अपने लिये रोती हो, मैं दूसरों के लिये रोता हूँ।
तुम अपनी भलाई की बात सोचती हो ,मैं दूसरों के हित को ध्यान
में रखता हूँ।
-तुम किस तरह से दूसरों का भला करते हो?
‘मेरे पानी बरसाने से सूखे पेड़ -पौधे ,हरे- भरे हो जाते हैं।
खेतों में पानी पड़ने से फसल लहलहाने लगती है जिसे देख किसान झूम उठता है । नदी ,तालाब में जल भरने से पशु
पक्षी उसे पीकर अपनी प्यास बुझाते हैं ।मोर तो पंख फैलाकर एक बार नाचना शुरू करता
है तो नृत्य करता ही रहता है। मैं इन सबको प्रसन्न करने के लिये ही तो आंसू बहाता
हूँ। ‘
‘इससे तुम्हें क्या मिलाता है?’
‘दूसरों को खुश होता देख मैं भी बहुत खुश होता हूँ । ‘
- मटकू तुम तो दूसरों का बहुत ध्यान रखते हो । मैं तो अपने
खिलौने किसी को नहीं छूने देती । कभी कभी तो भइया की गेंद भी छीन लेती हूँ । ‘
-यह तो अच्छे बच्चों की पहचान नहीं है।
-मटकू,नए साल में मेरा तुमसे वायदा रहा — मैं भी ऐसे काम करूंगी
जिससे दूसरों को सुख मिले ।
सलोनी की बातें सुनकर बादल मुस्करा दिया और बोला-मेरी अच्छी बहना, चलो मेरे साथ जरा उपहार
लाल-पीले रिबिन से सजा दो।
-उपहार के पैकिट तो बहुत छोटे हैं ।बड़े -बड़े होते तो कितना अच्छा
होता।
- कोई उपहार छोटा या बड़ा नहीं होता यह तो प्यार की निशानी
है। जिसे उपहार दिया जाता है इसका मतलब तुम उसे प्यार करते हो ।
-तब तो मुझे तुमको भी उपहार देना चाहिए ।तुम मुझे बहुत अच्छे लगते
हो।
-मेरे लिए सबसे बड़ा उपहार यही है कि हमेशा खिलखिलाती रहो और अपने
भाई से ,अपने दोस्तों से मिलजुलकर रहो।
अच्छा साथियों अब मैं चला –। हवा में हाथ हिलाता हुआ
मटकू जल्दी ही बच्चों की आँखों से ओझल होने लगा।
बच्चे भी एक साथ चिल्लाये –
मटकू धीरे-धीरे जाना
जल्दी-जल्दी आना
हमें न भुलाना
नया साल मुबारक
हो---------------।
- सुधा भार्गव
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (01-02-2016) को "छद्म आधुनिकता" (चर्चा अंक-2239) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
धन्यवाद।
हटाएंअच्छी कहानी और एक अच्छा blog.
जवाब देंहटाएंhindisuccess.com
धन्यवाद!
हटाएंसुन्दर कहानी के लिए आभार ।
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