होली खेलते- खेलते रंगबिरंगी सुंदर चिड़ियाँ तो खुशी के मारे चीं-चीं--चीं कर इठला रही हैं और पशुओं के अंदर बहता प्यार का झरना तो पहले से भी ज्यादा तेजी से कलकल बहने लगा है। अरे यह भालू --यह तो हमारी तरफ ही आ रहा है। सबसे पहले इसी से मिलते हैं।
एक गोलमटोल भालू था। जिसका नाम था मटल्लू । वह डंडे से टिक-टिक की आवाज करता गुल्लू किसान के खेत की रखवाली किया करता । किसान होली खेलने का बड़ा शौकीन था इसीलिए हर वर्ष इस अवसर पर अपने गाँव चला जाता। इस साल भी जाने लगा तो भालू दुखी सा हो गया।
गिड़गिड़ाते बोला-- गुल्लू भैया ,इस बार गाँव न जाओ।हमारे साथ होली मनाना।
-तू तो बड़ा भोला है-- अरे दो लोग में क्या
होली मनती है ।
-दो!दो कहाँ ?हम दोस्त तो दस हैं --देखते ही देखते सारा जंगल होली खेलने आ जाएगा।
-खेलने की होली तो कल है। पहले तो आज शाम को होलिका जलाई जायेगी और उसके लिए लकडियाँ इकट्टी करनी
पड़ेंगी।समय तो बहुत कम है। तू अपने दोस्तों के साथ इतनी जल्दी लकड़ियाँ जुटा पाएगा?
-हाँ –हाँ क्यों नहीं। ,
-तब ठीक है । मैं अभी आता हूँ,मुझे कुछ काम याद आ
गया है।
भालू जोर से
चिल्लाया -
गोरी कबूतरी,काली कोयलिया
रिंकू हाथी ,चिंकू घोड़ी
जल्दी जल्दी आ जाओ ,
सूखी लकड़ी
जुटा जाओ
होलिका आज जलानी है ।
खुशियाँ खूब मनानी हैं।
सब लस्टम-पस्टम दौड़े आये। हैरानी से बोले -
–ओए मटल्लू , होलिका क्यों जलानी है ?
- यह तो मुझे
भी नहीं मालूम । वह तो गुल्लू भैया ही बताएँगे।
-हाँ—हाँ,इसे
क्या मालूम!शरीर से तो यह मोटा है ही ,बुद्धि भी इसकी
मोटी है।
-ओह कोयलिया क्यों सताती है तू इसे बार बार। देखो—देखो, भैया आ
गए-भैया आ गए। कबूतरी गुटर-गूं,गुटर-गूं कर उठी।
*
सबने किसान
को घेर लिया,भैया बताओ न !होली क्यों जलाते हैं ?
-क्योंकि आज के दिन
होलिका जल गई थी।
-वह क्यों जल गई ?चिंकू घोड़ी दुखी हो उठी।
-क्योंकि उसने अपने बुरे भाई राजा हिरण्याकश्यप का साथ दिया।
-होलिका का भाई बुरा क्यों था?
-ओह !एक के बाद एक प्रश्न ---अरे इसकी बड़ी लंबी कहानी है।
-तो सुना दो न भैया ,कहानी तो हमें बहुत अच्छी लगती है।
-अच्छा सुनो- राजा अपने को भगवान
से भी बड़ा समझता था और अपने बेटे प्रह्लाद से कहता –बस मेरी पूजा करो। जब बेटे ने उसकी बात न सुनी तो उसे कई
बार जान से मारने की कोशिश की पर उसके तो एक खरोंच भी नहीं आई। इससे राजा परेशान
हो उठा।
उसकी एक बहन होलिका भी थी। उससे अपने भाई का कष्ट
देखा न गया। बोली –भैया, मैं आग से नहीं जल सकती। कहो तो प्रह्लाद को गोदी में लेकर
आग में बैठ जाऊं।
भाई बड़ा खुश -अरे बहन यह तूने अच्छा बताया । प्रह्लाद
जल कर खाक हो जाएगा हा—हा—हा। देखता हूँ इस बार वह कैसे बचता है?
होलिका प्रह्लाद को लेकर आग की ऊंची- ऊंची लपटों के बीच
बैठ तो गई पर कुछ ही देर में उसके बिलखने-चिल्लाने की आवाज आने लगी –अरे मुझे बचाओ—मुझे
बचाओ।
जब तक आग की
लपटें शांत हुईं होलिका बुरी तरह जल चुकी थी।
-क्या प्रह्लाद भी जल गया?घोड़ी ने बेचैनी से पूछा।
-नहीं।वह तो बच गया क्योंकि वह अच्छे काम ही करता था।
जलती तो होलिका भी नहीं क्योंकि उसे आग में न जलने का भगवान से वरदान मिला था पर वह यह भूल गई कि किसी को
नुकसान पहुँचाने से भगवान गुस्सा हो जावेंगे और वरदान का असर न होगा।
-अच्छा हुआ
होलिका जल गई --होलिका जल गई –अच्छे का बोलबाला,गंदे
का मुँह काला। कोयल कूक उठी ।
अच्छा शाम होने
वाली है सबको
मिलकर होलिकादहन की तैयारी भी करनी है। अपने अपने काम में लग जाओ।
*
कोयलिया –और कबूतरी उड़ चले । चोंच में तिनके भर कर लाये और खुले मैदान में रख दिए । हाथी सूखी टहनियों का गट्ठर अपनी सूड़ में लपेट लाया और तिनकों पर रख
दिया ।भालू के
दोनों हाथ भूसे से भरे थे । उसने भी भूसा गट्ठर पर धीरे से रख दिया ।
किसान भी समय पर आ गया । कुछ बड़ी -बड़ी लकड़ियाँ उसने भी घास -फूस और टहनियों के ढेर पर डाल दीं और बोला – बहुत पहले होलिका लकड़ियों के ढेर पर ही बैठकर जली थी। हर वर्ष इसी तरह हम उसे जलाकर खाक कर देते हैं ताकि सबको याद रहे कि उसकी तरह गलत रास्ते पर चलने वालों की किसी को भी जरूरत नहीं होती।
किसान भी समय पर आ गया । कुछ बड़ी -बड़ी लकड़ियाँ उसने भी घास -फूस और टहनियों के ढेर पर डाल दीं और बोला – बहुत पहले होलिका लकड़ियों के ढेर पर ही बैठकर जली थी। हर वर्ष इसी तरह हम उसे जलाकर खाक कर देते हैं ताकि सबको याद रहे कि उसकी तरह गलत रास्ते पर चलने वालों की किसी को भी जरूरत नहीं होती।
इस ढेर में आग लगाने से पहले मुझे होलिका से प्रार्थना करनी है कि जिस तरह से उसने बालक प्रहलाद को कष्ट देने की कोशिश की वैसा वह किसी के बच्चे के बारे में न सोचे।
होलिका के जलते ही चारों और रोशनी फैल गई । आग की जब लपटें ऊपर उठने लगीं,किसान टहनी में लगीं गेहूँ की बालियाँ भूनने लगा । गेहूँ के छिलके उतारे और आस -पास खड़े पशु-पक्षियों को देते हुए बोला -होली के दिनों में हम किसान मस्ती से झूम उठते हैं क्योंकि नई फसल कटती है। जितनी ज्यादा
फसल उतनी ज्यादा खुशी की लहरें । लो नया अनाज चखो फिर प्यार से एक दूसरे
के गले मिलो।
सबने बढ़कर दाने लिए और अपनी भाषा में चिल्लपौं करने लगे।
कोयलिया और कबूतरी चोंच से चोंच भिड़ाकर प्रेम के गीत गाने लगीं। हाथी
अपनी सूड़ से सबको
छूता और फिर उसे अपने मस्तक से लगा लेता मानो स्नेह की बौछारों
में भीगना -भिगाना चाहता हो । रिंकू घोड़ी किसान के पास हिनहिनाकर उसके आगे -पीछे घूमने लगी ।
*
होलिका तो जल गई पर कल होली कैसे खेलेंगे ?रंग तो हैं ही नहीं। चिंकू
घोड़ी बोली।
-मेरे होते
हुए चिंता न करो
। मेरे दादा कहते थे टेसू के फूलों से भी तो होली खेली जाती है।चलो तुम्हें उससे
मिलवाता हूँ। किसान बोला।
-कहाँ जा रहे हो?तुम्हारे पास ही तो खड़ा है -तुम्हारा टेसू ।
-तुम टेसू हो?ऊँह किसने रख दिया तुम्हारा नाम टेसू। ढेर सारे लाल-लाल फूल
तुम पर आलती पालती मारे बैठे है। तुम्हारा नाम तो लाल लंगूर होना चाहिए।
-कोयलिया तू तो मेरी बड़ी हंसी उड़ाती है। पर तू इतना मीठा बोलती है कि अपनी
छोटी बहन की बात पर गुस्सा भी नहीं आता। लाल लंगूर तो नहीं पर कुछ लोग मुझे आग का
गोला जरूर कहते हैं।
-आग का गोला !आग लगाने वाला । जरूर तूने चिड़ियों के घोंसले जला डाले होंगे।
-क्या पागलपने की बात कर रही है। क्या मैं ऐसा दुष्ट लगता हूँ?मैं जब अपने परिवार के साथ खड़ा होता हूँ तो आकाश के नीचे लाल -लाल फूलों की चादर सी तन जाती है।
दूर से उसे देखने पर लगता है मानो जंगल में आग लग गई हो। अब कहने को तो मुझे सुग्गा पेड़ भी कहते हैं ।
-सुग्गा
--मजाक कर रहे हो क्या ?तुम क्या टें—टें टीटाराम—सीताराम करते हो?मटल्लू बोला।
-मेरा फूल
देखो --इसकी लाल -पीली पंखुड़ी तोते की चोंच की तरह मुड़ी है ।
-चोंच मुड़ी तो है--मान गए सुग्गा भाई।
-अच्छा टेसूराम , हमें होली खेलनी है
अपने कुछ फूल दे दो।किसान बोला ।
-क्यों नहीं –क्यों नहीं। टेसू इतनी जोर से हिला कि खूब सारे फूल जमीन पर टपक पड़े।
किसान ने सारे फूल बटोर लिए और बोला –इन्हें में पानी में भिगो दूंगा। सुबह
तक होली का रंग तैयार ।
*
*
अगले दिन भालू की
दोस्त मंडली देर तक सोती रही पर वह खरगोश की घबराहट भरी आवाज सुन जल्दी जाग गया था। आवाज की ओर ठुमक-ठुमक दौड़ा -दौड़ा गया तो देखा- खरगोश टेसू के
पानी से भरी बालटी में डुबकियाँ लेता बोलने
की कोशिश कर रहा हैं-
-रिंकू-चिंकू मैं डूबा रे –मटल्लू बचाले। मटल्लू भालू ने उसे तुरंत ऊपर खींचा और झुंझलाया -यह क्या तमाशा है !
-रिंकू-चिंकू मैं डूबा रे –मटल्लू बचाले। मटल्लू भालू ने उसे तुरंत ऊपर खींचा और झुंझलाया -यह क्या तमाशा है !
-मैं सुबह
उठकर पानी में झांका। उसमें मैं बहुत सुन्दर लग रहा था। अपने को पकड़ने को झुका तो गिर गया धड़ाम से ।
उसके भोलेपन
पर भालू को हँसी आ गई । इतने में
रिंकू हाथी और चिंकू घोडी भी आन पहुंचे । कोयलिया और कठफोड़वी चोंच में पानी भरकर
एक दूसरे पर
डालने लगीं। किसान को देखते ही उसे भी पल भर में सबने ऊपर से नीचे तक भिगो दिया ।
इन पशु
-पक्षियों की निराली होली देखकर गुल्लू किसान अवाक् था ।सोच रहा था -इस बार गाँव न जा
कर उसने अच्छा ही किया। यहाँ न छल -कपट न ईर्ष्या की भावना, बस इनके बीच प्यार की एक धारा बह रही है जिसे इंसान ने सुखा
दिया है।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (12-03-2016) को "आवाजों को नजरअंदाज न करें" (चर्चा अंक-2279) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत बहुत धन्यवाद
हटाएंबालकुंज में "उत्सवों का आकाश"पढ़ा ।आपको ब।त बधाई ।इतनी अच्छी तरह बच्चों को त्योहार की विस्तृत जानकारी दी गई ।
जवाब देंहटाएंबालकुंज में "उत्सवों का आकाश"पढ़ा ।आपको ब।त बधाई ।इतनी अच्छी तरह बच्चों को त्योहार की विस्तृत जानकारी दी गई ।
जवाब देंहटाएंवाह बेहद मनोरंजक तरीके से अपने बच्चो को होली के उत्सव की जानकारी के साथ प्रेम ओर सद्भावना बनाये रखने की प्रेरणा दी :) शुभकामनाये जय श्री कृष्णा
जवाब देंहटाएंBahut hi payari aur manoranjak kahani.hame behad pasand aayi.
जवाब देंहटाएंविभा जी,सुनीता व रश्मि जी आपको बाल कहानी पसन्द आई यह जानकार मुझे बहुत अच्छा लगा। आपकी टिप्पणियाँ मेरे लिए बहुत मूल्यवान व ऊर्जायुक्त हैं। धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंकहानी की चित्रमय प्रस्तुति बहुत अच्छी लगी .बधाई.
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया । आपको प्रस्तुति अच्छी लगी यह जानकार मुझे बहुत खुशी हुई।
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