विश्व कविता दिवस
इस अवसर पर मेरे प्रिय कवि हास्य सम्राट काका हाथरसी की कुछ यादें जिन्होंने मुझे सिखाया -खूब हंसो,हँसते रहो और हँसते -हँसते हर मुसीबत का सामना करो।
उनको हार्दिक नमन
इस अवसर पर मेरे प्रिय कवि हास्य सम्राट काका हाथरसी की कुछ यादें जिन्होंने मुझे सिखाया -खूब हंसो,हँसते रहो और हँसते -हँसते हर मुसीबत का सामना करो।
उनको हार्दिक नमन
बच्चों
21 मार्च को कविता दिवस था।जिसका मतलब ही है खूब कविता पढ़ो,लिखने की कोशिश करो और कविता दूसरों को सुनाओ।
कभी न सोचो तुम्हारी कविता ठीक नहीं। उसमें तो तुम्हारे
मन की मिठास घुली है। तुम जैसी सरल और निर्मल है। फिर तो ठीक ही ठीक होगी।
इस दिन मुझे अपने प्रिय कवि बहुत याद आए।शुरू से ही काका हाथरसी की कविताएं बहुत पसंद थीं।हमेशा सोचा करती,कैसे वे ऐसी गुदगुदाने वाली कविताएं लिख लेते हैं। उनका कविता पाठ बड़े शौक से सुना करती थी। उनकी दो किताबें जो मैंने बहुत पहले खरीदी थीं अभी तक अलमारी में सावधानी से रख छोड़ी हैं।
इस दिन मुझे अपने प्रिय कवि बहुत याद आए।शुरू से ही काका हाथरसी की कविताएं बहुत पसंद थीं।हमेशा सोचा करती,कैसे वे ऐसी गुदगुदाने वाली कविताएं लिख लेते हैं। उनका कविता पाठ बड़े शौक से सुना करती थी। उनकी दो किताबें जो मैंने बहुत पहले खरीदी थीं अभी तक अलमारी में सावधानी से रख छोड़ी हैं।
काका हाथरसी हास्य रचनावली-नोक झोंक –प्रथम संस्कारण
1982,मूल्य केवल 60रुपए।
श्रेष्ठ हास्य व्यंग कविताएं 9काका हाथरसी ,गिरिराज शरण )संस्कारण 1981,मूल्य 35 रुपए ।
इनकी कीमत देखकर तो तुम जरूर चौंक गए होगे।आश्चर्य से
जरूर मुंह से निकला होगा –इतनी सस्ती।
इनको पढ़ -पढ़ कर खूब हँसती थी और सहेलियों को सुनाती थी।साथ ही सपने देखा करती कि मैं हास्य कवि बनूँ। इस तरंग में
अल्हड़ बीकानेरी ,जैमिनी हरियाणवी ,बरसाने लाल चतुर्वेदी ,शैल चतुर्वेदी ,सरोजिनी प्रीतम और हुल्लड़ मुरादाबादी की कविताएं खूब पढ़ीं और सुनी। कभी रेडियो पर तो कभी
दूरदर्शन में। होली के अवसर पर तो हास्य कवियों का खूब धूमधड़ाका रहता ही है।सो हास्यकवि सम्मेलन में जाकर घंटों के लिए जम जाती थी।
बहुत दिनों से मैं काका हाथरसी को पत्र लिखने की कोशिश कर रही थी। जब भी लिखने बैठती दिल बैठने लगता इतने महान कवि मेरा पत्र पाकर न जाने क्या सोचेंगे,जबाब देंगे भी या नहीं!पर एक दिन 1990 में हिम्मत जुटाकर मैंने उन्हें काँपते हाथों से पत्र लिख ही डाला। क्या लिखा वह तो याद नहीं पर ताज्जुब!उनका जबाव अगले ही हफ्ते आ गया।
पत्र पाकर मैं तो उछल पड़ी। एक बार नहीं उसे सौ बार पढ़ा होगा। ऐसे महान थे काका हाथरसी जो अति व्यस्त होते हुए भी मुझ जैसे लोगों की भावनाओं की कदर करते थे। इस पत्र का एक -एक शब्द मेरे लिए अमूल्य और ऊर्जावान है।
मैंने उसका जबाब भी दिया। पंक्तियाँ इस प्रकार हैं-
मैंने जब बच्चों को कलकता बिरला हाई स्कूल
में पढ़ाना शुरू किया तो काका हाथरसी की कविताओं का मंच पर छात्रों से कविता पाठ कराती थी।एक बार तो मैंने उनके प्रहसन को
आधार बनाकर एकांकी नाटक भी लिखा और वार्षिक सांस्कृतिक कार्यक्रम में बच्चों ने मंच पर
खेला। खतम होने पर पूरा सभागार तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा। अपने प्रोग्राम की
सफलता देख मेरे तो पैर जमीन पर पड़ते ही न थे।
लेकिन इस सबका श्रेय किसको जाता हैं ?मेरे प्रिय कवि काका हाथरसी को।
तो प्यारे बच्चो ,यदि तुम्हें
कविता में दिलचस्पी है,उसका आनंद लेना है,कविता लिखनी है तो मनपसंद कवियों को
खूब पढ़ो। देखना, पढ़ते- पढ़ते तुम्हारी कलम भी चलने लगेगी। कवि
काका हाथरसी को भी पढ़ो तो अच्छा है।हँसते -हँसते पेट फूल जाएगा।
हाँ याद आया -काका हाथरसी ने अपनी किताब में एक हास्य कवि सम्मेलन लिखा है। उसमें कुछ कवियों की कविताएं बहुत मजेदार है।
कवि पिलपिला जी की कविता सुनो-
पिल्ला बैठा कार में,हम सब ढोते बोझ
भेद न इसका मिल सका ,बहुत लगाई खोज
बहुत लगाई खोज ,रोज पिल्ला साबुन से नहाता
देवी जी के हाथ से दूध रोटी खाता
कहे पिलपिला वर मांगत मैं चिल्ला-चिल्ला
अगले जन्म में भगवन ,हमको बनाना पिल्ला।
खिल गए न गालों पर हजार गुलाब। अब कवयित्री शवनम का कीर्तन सुनो। अच्छा लगे तो तुम दादी माँ के साथ इस कीर्तन को कर सकते हो।
जै रघुनंदन जै सियाराम,जानकी बल्लभ सीताराम
हलुवा में हरि बसत हैं,घेवर में घनश्याम
मक्खन में मोहन बसें,रबड़ी में श्री राम
रसगुल्ला में शालिग्राम ,जै रघुनंदन जै सियाराम
रसगुल्ला में शालिग्राम ,जै रघुनंदन जै सियाराम
बोलो सियावर राम चंद्र की जै।
अरे ,चारों तरफ हंसी के गुब्बारे ही उड़ते नजर आ रहे हैं। हँसना तो वैसे भी सेहत के लिए अच्छा है।
हाँ याद आया -काका हाथरसी ने अपनी किताब में एक हास्य कवि सम्मेलन लिखा है। उसमें कुछ कवियों की कविताएं बहुत मजेदार है।
कवि पिलपिला जी की कविता सुनो-
पिल्ला बैठा कार में,हम सब ढोते बोझ
भेद न इसका मिल सका ,बहुत लगाई खोज
बहुत लगाई खोज ,रोज पिल्ला साबुन से नहाता
देवी जी के हाथ से दूध रोटी खाता
कहे पिलपिला वर मांगत मैं चिल्ला-चिल्ला
अगले जन्म में भगवन ,हमको बनाना पिल्ला।
खिल गए न गालों पर हजार गुलाब। अब कवयित्री शवनम का कीर्तन सुनो। अच्छा लगे तो तुम दादी माँ के साथ इस कीर्तन को कर सकते हो।
जै रघुनंदन जै सियाराम,जानकी बल्लभ सीताराम
हलुवा में हरि बसत हैं,घेवर में घनश्याम
मक्खन में मोहन बसें,रबड़ी में श्री राम
रसगुल्ला में शालिग्राम ,जै रघुनंदन जै सियाराम
रसगुल्ला में शालिग्राम ,जै रघुनंदन जै सियाराम
बोलो सियावर राम चंद्र की जै।
अरे ,चारों तरफ हंसी के गुब्बारे ही उड़ते नजर आ रहे हैं। हँसना तो वैसे भी सेहत के लिए अच्छा है।
विश्व कविता दिवस
बच्चों-बड़ों सबको बहुत- बहुत मुबारक हो।
बच्चों-बड़ों सबको बहुत- बहुत मुबारक हो।
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 24-03-2016 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2291 में दिया जाएगा
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (25-03-2016) को "हुई होलिका ख़ाक" (चर्चा अंक - 2292) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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रंगों के महापर्व होली की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सुन्दर संस्मरण...सार्थक प्रस्तुति...
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