कुछ कहना है कुछ सुनना है
बच्चों होली का उत्सव बीत गया पर उसकी यादें तुम्हें अब भी गुदगुदा रही होंगी। गुदगुदाएं भी क्यों
न।तुमने मस्ती करने में कोई कसर तो छोड़ी नहीं।गुलाल की बेतहाशा आंधी उड़ाई ,रंगों
की जी भर बरसात की और तुम्हारे चेहरे! उफ
उनका तो भूगोल ही बदल गया। कोई भालू नजर आ रहा था तो कोई लाल मुंह का बंदर। कोई
लंगूरा तो कोई जेवरा। इन रंगों का छुटाना भी मुश्किल हो गया होगा। न जाने कितने
लीटर पानी काम में लेना पड़ा। पर बच्चों क्या कभी तुमने सोचा कि तुम्हारे इस उत्सवोआनंद के
पीछे न जाने कितनों की दुखभरी कहानी छिपी है। मेरे ख्याल से इसका तुम्हें रत्तीभर
आभास न होगा क्योंकि किसी ने बताया ही नहीं।चलो मैं बताती हूँ। अरे मुझे भी बताने
की जरूरत नहीं। नई कहानी पढ़ने से तुम खुद ही समझ जाओगे कि उत्सव के आकाश के नीचे कभी-कभी कितना अनर्थ होता है और फिर अच्छे बच्चों की तरह
समझदारी से कदम उठाओगे।
प्यासे की मुस्कान(बाल कहानी)
होली के हुड़दंग के बाद बच्चे स्कूल गए। अब भी उनके
चेहरों से रंग नहीं छूटे थे। उनकी आवाजें भी होली के रंगों में डूबी थीं। टिफिन का
समय होते ही वे मुखर हो उठीं।
-मैंने तो धम्मू के इतना चटक लाल रंग लगाया—इतना
चटक कि साबुन मलते-मलते उसके हाथ दुखने लगें होंगे और रंग भी न छूटा होगा। कमलू
बड़ी शान से बोला।
-मैंने तो अपनी बहना चमेलिया के चेहरे पर तो लाल के साथ –काला
रंग भी पोत दिया। एक दम भूतनी लग रही थी भूतनी। गेंदू भला कैसे चुप रहता।
-अरे वह डब्बू
है न डब्बू जो हमेशा अपनी शेख़ी ही बघारता रहता है, उसको तो मैंने अपने तीन साथियों के साथ घेर कर ही दम लिया और पिचकारी से रंगों की वो बरसात की-- वो बरसात की
कि भागा चूहे की तरह अपनी जान बचाकर।मुंह क्या उसका तो सारा बदन चितकबरा हो गया
होगा। बदन रगड़ते रगड़ते बच्चू की खाल भी छिल गई होगी।हा –हा –हा। बजरंगी ने अपना बजरंगपना दिखाया।
-अरे गुलाब, तूने अपने होंठ
क्या गोंद से चिपका लिए हैं! तेरी होली कैसी रही?
-मैं कमती कमती—केवल सूखे गुलाल से खेला।
-क्यों ?तबीयत तो ठीक है।
-अब तो ठीक हूँ पर होली के एक दिन पहले से मैं बहुत
परेशान हो गया था।
-किसने तुझे परेशान किया जरा बता तो अभी उसकी अकल
ठिकाने लगाता हूँ।
-अरे बजरंग चुप से बैठ। उसकी क्या अकल ठिकाने
लगाएगा। वह तो वैसे ही बहुत दुख में है।
चहकते बच्चे चुप हो गए और उस दुखी बच्चे के बारे
में जानने को आतुर हो उठे।
-हमें भी तो कुछ बता या खुद ही उसके बारे में सोच
-सोचकर आधा होता रहेगा। दोस्त है तो दिल की बात कहने में हिचक कैसी। बजरंग बोला।
-होली से पहले मैं छुट्टी के बाद घर जा रहा था कि
रास्ते में मैले-कुचैले कपड़े पहने एक लड़का
मिला। वह भागता हुआ मेरे पास आया और रोते-रोते बोला-
–भैया सुबह से पानी की एक बूंद गले से नहीं उतरी है।सड़क के किनारे लगे नल से एक बूंद पानी नहीं टपका। गंदे नाले का पानी पीने की कोशिश की पर बदबू के कारण उल्टी हो गई। भूखा तो मैं रह लूँ पर प्यासा कैसे रहूँ।गला सूखा जा रहा है। मुझे थोड़ा सा पानी
पिला दो। उसने मेरी पानी की बोतल की ओर इशारा किया।
रास्ते के लिए मैं हमेशा थोड़ा सा पानी बचाकर रखता
हूँ। वह बचा पानी मैंने उसे पिला दिया।
मेरे थोड़े से पानी से उसमें इतनी ताकत आ गई यह देख
मुझे बड़ा ही सुख मिला । मेरे दिमाग में आया यदि मैं रोज थोड़ा थोड़ा पानी बचा कर इस
जैसे प्यासों को पानी पिलाऊँ तो न जाने कितनों के सूखे गले तर हो जाएंगे। बस तभी से
मैं कम पानी में काम चलाने की आदत डाल रहा हूँ।
-बात तो तू ठीक कह रहा है। होली खेलने के बाद रंग
छुटाते- छूटते न जाने कितना पीने वाला साफ पानी बहा होगा।रोजाना से चौगुना पानी--। कमलू बोला।
-पानी बचाने के लिए ही मैं केवल गुलाल से खेला।
मेरा गुलाल तो एक लोटे पानी से ही धुल गया और बाल्टी भर पानी से नहा लिया।
-बाल्टी से!अरे आजकल बाल्टी से कौन नहाता है।
फब्बारे के नीचे खड़े होकर इतना मजा आता है कि कुछ पूछो मत। मन करता है गर्मी में
घंटों नहाते रहो। चंचल गेंदू ने गरदन मटकाई।
-अरे वाह अपने आनंद के लिए दूसरों के हिस्से का
पानी खराब करते रहो और उसे पीने को भी न मिले।यह कहाँ का न्याय है। मैंने तो सोच
लिया है जरूरत से ही पानी खर्च करूंगा। और हाँ ,कल से पानी
की बोतल भी बड़ी लाऊँगा।क्या मालूम फिर कोई प्यासा मिल जाए।
- दोस्त,मैं भी तेरी तरह पानी बचाऊंगा और अपने
हिस्से का बचा पानी काम वाली को दे दिया करूंगा । उस बेचारी को पीने का साफ पानी
लाने के लिए घर से काफी दूर जाना पड़ता है। काम पर आने को जरा भी देरी हुई तो माँ
उसकी तरफ बंदूक तानकर खड़ी हो जाती हैं। सच ऐसे लोगों पर बड़ी दया आती है।
-बेचारे –ये तो लगता है डांट से ही पेट भरते हैं।
गुलाब ने गहरी सांस ली।
-गुलाब तूने हमसे अपने मन की बात कही तो पानी बचाने
की तरकीब मालूम हुई ।हमारे मोटे दिमाग को
तो यह सूझा ही नहीं। यह बात तो दूसरे दोस्तों को भी बतानी पड़ेगी। केवल दया दिखाने
से तो काम चलेगा नहीं, प्यासों के लिए कुछ करना ही पड़ेगा।
-दोस्तों को ही नहीं मम्मी -पापा को भी कहना
पड़ेगा-पानी सोच समझ कर खर्च करें।बजरंग ने अपनी आवाज बुलंद की।
-बाप रे पापा! बिल्ली के गले में घंटी कौन
बांधे।
-मैं तो अपने पापा से जरूर कहूँगा। तुम्हें यह
जानकर हैरानी होगी कि बाथरूम में वे एक –एक
घंटा लगा देते हैं।
-एक घंटा!कमलू चौंका।
हाँ!कभी –कभी तो एक घंटे से भी ज्यादा।
-बजरंग,मुझे तो लगता है,यह कोई बीमारी है। किसी डॉक्टर को दिखाना चाहिए।
-तू ठीक कह रहा है । उन्हें बीमारी ही है, इलाज की भी कोशिश की पर सुनें तब न।
- कौन सी बीमारी है?सबके एक
साथ स्वर उभरे।
-गाना सुनने की बीमारी।
-एँ---।
-गाना सुनते समय यदि उनको कोई डिस्टर्ब कर दे तो
खूंखार शेर की तरह गुर्राने लगते हैं। बाथरूम में तो उन्होंने छोटा सा स्पीकर लगा लिया है। ऑफिस से आते ही बस घुस गए बाथरूम में और चालू
हो गया स्पीकर। चलते शावर के नीचे गाने सुनते -गुनगुनाते एक घंटा यूं ही निकल जाता
है और उनको पता भी नहीं लगता।
-मतलब ,एक घंटे नल चलता
रहता है। यह तो कुछ ज्यादा ही है।
-ज्यादा नहीं –बहुत ज्यादा।
-डर काहे का—अगर वे शेर है तो मैं बजरंगवली हूँ ।
उसने अपनी मजबूत कलाई हवा में घूमा दी।
इस निराले अंदाज को देख उसके दोस्तों की हँसी फूट
पड़ी।
टिफिन टाइम खतम होते ही गुलाब,कमलू ,गेंदू और बजरंगबली ने एक दूसरे का हाथ थामा और कक्षा की ओर कदम बढ़ा दिए। इन सबके दिलों में कुछ करने की चाह थी और वह चाह थी प्यासे चेहरों पर मुस्कान लाना।
टिफिन टाइम खतम होते ही गुलाब,कमलू ,गेंदू और बजरंगबली ने एक दूसरे का हाथ थामा और कक्षा की ओर कदम बढ़ा दिए। इन सबके दिलों में कुछ करने की चाह थी और वह चाह थी प्यासे चेहरों पर मुस्कान लाना।
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, " कंजूस की मेहमान नवाज़ी - ब्लॉग बुलेटिन " , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (06-04-2016) को "गुज़र रही है ज़िन्दगी" (चर्चा अंक-2304) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'