प्यारे बच्चों

कल सपने में देखा -मैं एक छोटी सी बच्ची बन गई हूं । तुम सब मेरा जन्मदिन मनाने आये हो । चारों ओर खुशियाँ बिखर पड़ी हैं ,टॉफियों की बरसात हो रही है । सुबह होते ही तुम में से कोई नहीं दिखाई दिया ।मुझे तो तुम्हारी याद सताने लगी ।

तुमसे मिलने के लिए मैंने बाल कुञ्ज के दरवाजे हमेशा के लिए खोल दिये हैं। यहाँ की सैर करते समय तुम्हारी मुलाकात खट्टी -मीठी ,नाटी -मोती ,बड़की -सयानी कहानियों से होगी । कभी तुम खिलखिला पड़ोगे , कभी कल्पना में उड़ते -उड़ते चन्द्रमा से टकरा जाओगे .कुछ की सुगंध से तुम अच्छे बच्चे बन जाओगे ।

जो कहानी तुम्हें अच्छी लगे उसे दूसरों को सुनाना मत भूलना और हाँ ---मुझे भी वह जरूर बताना ।
इन्तजार रहेगा ----! भूलना मत - -

मंगलवार, 20 मार्च 2018

अंधविश्वास की दुनिया


(2) पगला गया क्या!नाखून काटेगा 

सुधा भार्गव
     
     स्कूल पहुँचते ही खरबूजे  को याद आया –अरे नाखून कटवाना तो भूल ही गया। कल जामुनी मिस ने चेतावनी भी दी थी। आज तो जरूर पकड़ा जाऊंगा। हे भगवान फिर तो डांट डांटकर मेरा हलुआ बना दिया जाएगा।
      वही हुआ जिसका उसे शक था। प्रात: ईश प्रार्थना के बाद मिस ने उसे रंगोहाथ पकड़ लिया। आँखें तरेरती बोलीं- –“खरबूजे,आज भी नाखून नहीं कटे। तुरंत मैदान में जाकर खड़े हो जाओ। तुम्हें प्रिन्सिपल के पास जरूर ले जाऊँगी। खरबूजे का तो डर के मारे रंग ही बादल गया।
      सारे बच्चे कक्षाओं में चले गए । जामुनी मिस ने गुस्से में कहा-“चलो, तुम जैसे बच्चों के  एक बार की कही बात समझ में ही नहीं आती।”
     प्रिन्सिपल ने कनखियों से खरबूजे  को देखा फिर मिस से आने का कारण पूछा।
     “मैडम, हम हर मंगलवार को नाखूनों की जांच करते हैं कि वे गंदे या बढ़े हुए तो नहीं हैं। नाखून बढ़े होने पर खरबूजे से कहा था-नाखून काट कर आए आज मैं देखूँगी। पर इसके कान पर तो जूं भी न रेंगी। देखिये न इसके नाखून कितने भद्दे लग रहे हैं।”
     “बेटे क्या तुम्हें मालूम है नाखून को काटने के लिए क्यों कहा जाता है?”
     “हाँ मैडम। नाखून बढ्ने से गंदगी उनमें भर जाती है। खाना खाते समय वह शरीर के अंदर जाकर बीमारियाँ कर देती है।”
     “अरे तुम तो बड़े होशियार हो। इतना सब जानते हुए भी तुम नाखून कटवा कर नहीं आए?”
     "मैंने शाम को माँ से कहा था पर दादी बोलीं- “पगला गया है क्या--नाखून न काट रे संझा हो गई है। कल सुबह माँ को याद दिला दीजो।”
     “और सुबह कहना तुम भूल गए और माँ भी भूल गईं। ठीक कह रही हूँ न।” मैडम शांत स्वर में बोलीं ।
     “हाँ ,पर आप कैसे जान गईं?”खरबूजा चकित था।  
     “इसलिए कि सुबह हर माँ को बहुत काम होते हैं और बच्चों को स्कूल आने की जल्दी होती है।”  उसे  मैडम की बातें बहुत अच्छी लगीं। हल्के से मुस्कुरा दिया।
     “शाबाश! बच्चे ऐसे ही मुस्कराते अच्छे लगते हैं। बेटे एक बात बताओ। तुम्हारी माँ ने शाम को नाखून काटने से मना क्यों कर दिया?”
     “मुझे तो नहीं मालूम।”
     “मैं बताऊँ!”
     “हाँ—हाँ जल्दी बताइये।” कारण जाने के लिए खरबूजा उतावला हो उठा।
      “देखो,हमारे बाबा,परबाबा के समय न तो बिजली थी और न ही आजकल की तरह नाखून काटने का नेलकटर। अंधेरा होते ही घर-घर मिट्टी के दीये जलते थी। उनमें सरसों का तेल और रुई की बत्ती होती। इससे थोड़ा ही उजाला होता था।  


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      कुछ घरों में लालटेन और मिट्टी के तेल के लैंप  रोशनी देते थे। पर पढ़ाई,सिलाई के कामों में तो कठिनाई होती ही थी। कम रोशनी से आँखों पर ज़ोर पड़ता था। नाखून काटने में तो और भी खतरा था। उस समय पैनी धार वाले चाकू से नाखून काटे जाते थे। जरा सी भूल-चूक होने से नाखून ज्यादा कट गया या उसके के अंदर की खाल कट गई तो मुसीबत।  साफ खून झलकने लगता । इसलिए शाम के बाद नाखून नहीं कटे जाते थे। कोई काटने भी बैठता तो उसे टोक देते –संझा हो गई नाखून न काट भैया।  लेकिन आज यह बात लागू नहीं होती।  बल्बों की जगमगाती रोशनी से अंधेरा भागता ही नजर आता है। पर बहुत से लोग बुद्धि का प्रयोग किए बिना पिछली बात ही दोहराते  रहते हैं –नाखून न काटो—नाखून न काटो। खुद भी नहीं काटते  और दूसरों को भी नाखून नहीं काटने देते। अब तुम्ही बताओ बल्ब की रोशनी  मेँ नेलकटर से मैं नाखून रात को काट लूँ तो क्या कोई खतरा है?
  


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    "बिलकुल नहीं मैडम! मैं भी उल्टे हाथ के काट सकता हूँ पर सीधे हाथ के नहीं काट पाऊँगा।”
   
    "अभी तुम बच्चे हो। जरा बड़े होने पर बहादुरी दिखाना। पर रात में नाखून न काटने का रहस्य घर जाकर बताना और कल जरूर नाखून काटकर आना।"
      खरबूजा 'हाँ' में जोरदार गर्दन हिलाता कक्षा की ओर चल दिया और सोचने लगा -मैडम सबसे ज्यादा होशियार हैं। इनके पास तो सब प्रश्नों के उत्तर हैं। जरूरत पड़ने पर इनके पास ही भागा भागा आऊँगा। 
समाप्त