प्यारे बच्चों

कल सपने में देखा -मैं एक छोटी सी बच्ची बन गई हूं । तुम सब मेरा जन्मदिन मनाने आये हो । चारों ओर खुशियाँ बिखर पड़ी हैं ,टॉफियों की बरसात हो रही है । सुबह होते ही तुम में से कोई नहीं दिखाई दिया ।मुझे तो तुम्हारी याद सताने लगी ।

तुमसे मिलने के लिए मैंने बाल कुञ्ज के दरवाजे हमेशा के लिए खोल दिये हैं। यहाँ की सैर करते समय तुम्हारी मुलाकात खट्टी -मीठी ,नाटी -मोती ,बड़की -सयानी कहानियों से होगी । कभी तुम खिलखिला पड़ोगे , कभी कल्पना में उड़ते -उड़ते चन्द्रमा से टकरा जाओगे .कुछ की सुगंध से तुम अच्छे बच्चे बन जाओगे ।

जो कहानी तुम्हें अच्छी लगे उसे दूसरों को सुनाना मत भूलना और हाँ ---मुझे भी वह जरूर बताना ।
इन्तजार रहेगा ----! भूलना मत - -

शनिवार, 17 अगस्त 2013

शिक्षक दिवस ----- एक कहानी भी

बच्चो 

५सितम्बर को तुम्हारे स्कूल में बड़ी धूम धाम से शिक्षक दिवस मनाया जाएगा और मनाया भी क्यों न जाए  --उसदिन तो जन -जन के प्रिय डा॰राधा कृष्णन का जन्म दिन भी है  इस दिवस के आने से पहले इनके बारे में कुछ बातें जानना जरूरी है .। ये हमारे देश का गौरव हैं। 
लो यह दिन तो आ भी गया । पंख लगाकर समय इतनी जल्दी उड़ गया । 
आओ चलें पहले हम अपने प्रेरणा स्रोत महान शिक्षक से मिल लें ।  

















डा॰राधा कृष्णन का बचपन -

साधारण बच्चों की तरह न था ।  बचपन से ही उनकी बुद्धि बड़ी तीव्र थी . इनके दिमाग में ऐसी बातें आती थीं कि  सुनने वाला आश्चर्य में पड़  जाए।     
इनके बाल्यवस्था की एक घटना तुम्हें बताती हूँ  ---
 यह घटना उन दिनों की है जब वे मद्रास के एक मिशनरी स्कूल में पढ़ते थे ।उनके  ईसाई अध्यापक बहुत ही संकीर्ण विचारों  के थे । एक दिन वे पढ़ते -पढ़ाते बोले -हिन्दू धर्म अंधविश्वास और रुढ़िवादी विचारों पर टिका है ।
 बालक राधा कृष्णन  निधड़क होकर बोले -सर क्या ईसाई धर्म दूसरे धर्मों की बुराई करने में विशवास करता है । अध्यापक कब हार मानने वाले थे । वे तपाक से बोले -हिन्दू धर्म भी तो दूसरे धर्म का सम्मान नहीं करता !
-सर यह  एकदम गलत है । गीत़ा  में भगवान् कृष्ण ने कहा है कि  पूजा के अनेक मार्ग हैं । हर मार्ग का एक ही लक्ष्य है -समानता ,एकता व प्रेम । क्या इस भावना में सब धर्मों को स्थान नहीं मिलता !एक सच्चा धार्मिक ब्यक्ति वही है जो सभी धर्मों का आदर करे और उनकी अच्छी बातों  को अपनाए।
 अध्यापक एक बालक के मुंह  से इतनी गंभीर बातें  सुनकर हैरान थे .।    

 अपने देश अपनी संस्कृति को प्यार करनेवाला यही  बालक  बड़ा होकर ---

 सर्व पल्ली डा. राधा कृष्णन कहलाये और सन 1952 मेँ भारत के प्रथम उपराष्ट्रपति चुने गए और देश की सेवा करते हुए विश्व में अपने यश का झंडा गाड़  दिया । 


भारत के प्रथम प्रधान मंत्री प . जवाहर लाल नेहरू
भारत के प्रथम उपराष्ट्रपति डा राधा कृष्णन

वे स्वतंत्र भारत के दूसरे राष्ट्रपति भी मनोनीत किये गए  (1962-1967)।भारतीय इतने योग्य व शिक्षित राष्ट्रीय  कर्णधार को पाकर धन्य हो उठे ।  

डा राधाकृष्णन  अपने अंगरक्षकों व विशिष्ट नेताओं के साथ 

वे जब राष्ट्रपति बने तो उनके कुछ छात्रों और मित्रों ने प्रार्थना  कि उनके जन्मदिन 5 सितंबर को मनाने की इजाजत दी जाए ।
-मेरा जन्मदिन मनाने की बजाय 5सितंबर को शिक्षक दिवस के रूप मेँ मनाया जायतो मुझे ज्यादा अच्छा लगेगा ।वे बोले । 
बस तभी से ------
शिक्षक दिवस मनाया जाने लगा । वे एक आदर्श शिक्षक थे . उनका विशवास था कि नई पीढी देश को सभांलेगी और उसका  मार्ग दर्शन करना शिक्षकों के हाथ में है। दोनों का एक दूसरे को समझना बहुत आवश्यक है .।  




शिक्षक दिवस के दिन --

 शिक्षकों के महत्त्व को स्वीकारते हुए योग्य अध्यापको को  सम्मानित किया जाता है 


भारतरत्न राधा कृष्णन को लंदन स्थित आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी मेँ भाषण देने बुलाया जाता था ।वे भाषण देने की कला मेँ प्रवीण थे ।

आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी  

आक्सफोर्ड की ओर से उनके सम्मान मेँ भारतीय  छात्रों को राधा कृष्णन छात्रवृति प्रदान की जाती है ।

वे आज हमारे बीच नहीं हैं तो क्या हुआ पर उनके आदर्श ----हमारे साथ हैं  जो शिक्षकों व छात्रों के लिए प्रेरणा के स्रोत हैं । 

स्मृति कानन  में श्रद्धा के दो फूल 


ठीक  ही कहा गया है ---
एक अकेला दीपक सैकड़ों और दीपों को प्रकाश दे सकता है ।ठीक उसी प्रकार एक ज्ञानी बहुतों को ज्ञान दे अकता है ।बहुत से दीप जलाने के बाद भी उस दीप के प्रकाश का तेज कम नहीं होता ।शिक्षक एक ऐसा ही दीपक है ।




अब एक कहानी हो जाए--- तो सुनो एक कहानी जिसका नाम है 

बाल गुरू 

गर्मी के दिन थे सूरज अपने ताप पर था ।ऐसे समय मेँ एक लड़का पेड़ की छाया  मेँ बैठा ठंडी –ठंडी हवा खाकर मस्त था।घुटनों से ऊंचा -ऊंचा केवल  एक नेकर पहने हुए  था ।  धूप से बचाव  के लिए सिर को तौलिये से भी नहीं क रखा था ।





राजा कुछ देर तो उसे टकटकी लगाए देखता रहा फिर उससे चुप न रहा गया और बोला -- 
-बालक तुम तो बड़े अजीब हो, चने खाने में इतना समय लगा रहे हो ।इससे तो अच्छा है मुट्ठी भर चने निकालो और दो –तीन बार मेँ गप्प से खा जाओ ।

लड़के ने ऊपर से नीचे राजा को घूर कर देखा और बोला –
श्रीमान आप मेरी बात समझ नहीं पाएंगे क्योंकि आपने भूख नहीं देखी है ।तब भी मैं आपको  समझाने की कोशिश करता हूँ ।
मैं सुबह से भूखा हूँ ।एक –एक करके चने निकालने –खाने मेँ समय तो लगता है पर उतनी देर मुझे भूख नहीं लगती यदि तीन –चार बार मेँ ही चने खा लूँ तो  वे जल्दी खत्म हो जाएंगे ,मुझे भूख भी जल्दी लगने  लगेगी ।इसलिए सोचा –--------
थोड़ा –थोड़ा करके खाया जाय ।

-तुम तो बहुत चतुर हो।तुमसे बहुत कुछ सीखने को मिलेगा ।बोलो,मेरे साथ चलोगे!
-हा –हा –मैं खुली हवा मेँ रहने वाला आजाद पंछी  ,महल तो मेरे लिए पिंजरा है पिंजरा ।चिड़िया की तरह मैं उसमें कैद हो जाऊंगा ।
-जब इच्छा हो तब यहाँ चले आना ,इसमें क्या मुश्किल है !
-चलता हूँ ,देखता हूँ आपके साथ मेरा क्या भविष्य है ?

लड़का ठहरा बातूनी !एक बार इंजन चालू हुआ तो चालू !
बोल ही उठा –तो ,आप मुझसे कुछ सीखना चाहते हैं ।
-बिलकुल ठीक कहा !
-इसका मतलब मैं आपका गुरू हुआ ।
-गुरू ----गुरू नहीं महागुरू ।राजा ने हाथ जोड़ दिये ।
महल मेँ पहुँचते ही राजा को  लड़के के साथ दरबार मेँ जाना पड़ा ।

आदत के अनुसार वह सिंहासन पर बैठ गया ।


लड़का 2मिनट तो खड़ा रहा फिर तपाक से बोला –वाह महाराज !यहाँ आते ही गिरगिट की तरह रंग बदल लिया।अपने गुरू को ही भूल गए ।

राजा बहुत शर्मिंदा हुआ ।तुरंत अपने सिंहासन से उतर पड़ा ।सेवक को  अपने से भी ऊंचा सिंहासन लाने की आज्ञा दी ।

-बैठिए बालगुरू ।राजा ने बड़ी शालीनता से कहा ।
-बस महाराज !मैं चलता हूँ फिर आऊँगा ।आज का पाठ पूरा हुआ ।आपको मालूम हो गया कि गुरू का स्थान क्या होता है ।
बालगुरू चल दिया ।

राजा सोच रहा था – जिससे भी हमें कुछ सीखने को मिले अवश्य सीखना चाहिए चाहे वह बड़ा हो या छोटा और वह सम्मान के योग्य भी है । 
राजा का स्वत: सर झुक गया --बाल गुरू  प्रणाम ! 
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