अजीम प्रेम जी यूनिवर्सिटी
द्वारा निकलने वाली हिन्दी त्रैमासिक
पत्रिका खोजें और जानें
में प्रकाशित /सुधा भार्गव
सिरदर्द
वह कक्षा २ का छात्र था | गोरा
-गोरा ,दुबला -दुबला ,झेंपा सा |देर से बोलना
सीखा इसलिए कविता बोलते -बोलते रुक गया तो रुक गयाI दुबारा
शब्द का उच्चारण करने में लगता जैसे पत्थर घसीटना पड़ रहा हो उसके इस हाल पर साथी हँस
पड़तेI मैडम गुस्से से चिल्लाती --बैठ जाओ --बोलना नहीं आता तो इस स्कूल में
बाप ने क्यों भेज दिया ? भेजते
किसी विकलांग स्कूल में या लंगड़े -लूले ,गूंगे -हकले बच्चों के स्कूल में I बैठ जाती
जुगलबन्दी---! सौरभ की हीन ग्रंथि सक्रीय
हो उठतीI
एक दिन माँ घरमें गृहकार्य कराने बैठी कुछ पल
बाद ही बोली ---मैं अभी बाजार से आ रही हूँ। इतनी देर में इन
प्रश्नों के उत्तर लिख लेना I माँ
गई तो गई ---Iसाड़ियों की सेल का अंतिम दिन था Iउसे
तो जाना ही ----- था I-सौरभ खामोशी की गहरी खाई में भटकता माँ की प्रतीक्षा
करने लगा I बीच -बीच में एक दो शब्द भी लिख लेताIसंध्या
तक माँ आई I उसकी कॉपी में
झाँका ---अरे ,तू जल्दी क्यों नहीं लिखता----- बोल तो बंद हो
ही जाता है हाथ -पैर चलने भी बंद हो जाते हैं क्या ! एक घंटे में आठ लाइनें ही
लिखीं हैं --कैसे होगा इतना होमवर्क
!सिरदर्द है --। |
अगले दिन अधूरा गृहकार्य देखकरअगले दिन
अधूरा गृहकार्य देखकर मैडम का चेहरा तमतमा उठा ---पूरा करो स्कूल का काम तभी टिफिन
खाने को मिलेगाI--अरे टिफिन टाइम तो ख़त्म !भूख लग रही है --जल्दी -जल्दी खा लूँ ---सौरभ ने सोचा I-देखो तो खाने के
नाम कितनी जल्दी हाथ चल रहे हैं----- लिखने के नाम हाथ टूट जाते हैं I शिक्षिका
ने चिल्लाते हुए उसकी उँगलियों पर स्केल
से प्रहार किया I आँखों में डब डब करते आंसुओं से दिखाई देना बंद
हो गया---I-खड़े
रहें अधूरे काम वाले --एक कर्कश आवाज गूंजी Iबच्चे खड़े रहे ,पैर
दुखते रहे --बैठने की कोशिश की तो बादलों की सी गर्जना होती रही ---खबरदार --जो बैठे तो -- । प्रिंसिपल को स्कूल का निरीक्षण करते देखा मैडम की जीभ पर तो कोयल आन बैठी ------बच्चो ,सब
बैठ जाओ, कल का कम पूरा करके घर से लाना Iमैडम को अचानक
यह क्या हुआ-- बच्चे समझ न पाए न ही उनके समझने की उम्र थी--- छल -प्रपंच से दूर मासूमों की दुनिया ---| सौरभ
छुट्टी होने पर धीरे -धीरे क्लास से चल दिया -----लो अब तो यह चल भी नहीं सकता
व्यंग बाण उसके कलेजे को छेक गया Iघर कब आया पता ही नहीं चला I वह
तो ऊपर तक दलदल में फंसा था I-मैं लिख नहीं सकता --क्या बोल भी नहीं
सकता !नहीं --नहीं --बोल सकता हूँ |बोलने के लिए ओंठ फडफडा उठे Iचलने
में मुश्किल तो हो रही है ---शायद लंगड़ा भी हो गया हूँ--Iमैडम ठीक ही कह
रही थी ---मैं लंगड़ा -लूला हूँ --गूंगा भी हूँ I नहीं --नहीं---
--- गूँजते शब्दों की चीख से दूर जाने के लिए
उसने दोनों कानों पर कसकर हथेलियाँ जड़ दीँ Iपरीक्षा में तीन
प्रश्न छोड़ दिये लेकिन तब भी पास होकर अगली कक्षा ३,सेक्शन सी
में चला गया I सुनने वाला हर
कोई चकित ! उस दिन सब की जबान पर एक ही बात ------सुनने में आया है क्लास ३ का
सेक्शन सी जिसे भी मिलेगा वह आठ -आठ आँसू
रो उठेगा I
कक्षा ३ के सेक्शन सी का प्रथम दिन , सब
अपना नाम नई मैडम को बताने लगेI वह लड़का भी --सौरभ ---ब----ब -----I
-हाँ
!हाँ बोलो !ठीक बोल रहे हो I मैडम बोली I
उसका हौसला बढ़ा। जोर देकर बोला ---बैनर्जी I
-शाबास
सौरभ !
प्रथम बार मुस्कान ने उसके चेहरे
को गुलाबी चादर में लपेट लिया Iनई
मैडम कक्षा में घूम -घूम कर श्रुति लेख शव्द
बोल रही थीं I पांचवां शब्द
बोलते -बोलते सौरभ के पास आकर रुक गईं I घबराया सा केवल तीन शब्द लिख पाया Iचौथा
शब्द याद करने की कोशिश कर रहा था कि पांचवां शब्द बोल दिया गया I मैडम
को पास खड़ा देख वह पसीने से नहा गया मैडम ने गौर से देखा, एक -एक शब्द
कागज के पन्ने पर मोती की तरह जड़ा था I जो भी लिखा था सब ठीक था I सांत्वना भरा हाथ उन्होंने सौरभ के
कन्धों पर टिका दिया
- -मैं शब्द दुबारा बोलती हूँ ,बेटे लिखने की
कोशिश करो Iसाथ ही उन्होंने घोषणा की -जो बच्चे धीरे -धीरे
लिखते हैं उनको काम पूरा करने के लिए हमेशा दस मिनट ज्यादा दिये जायेंगे I
सौरभ जैसे
बच्चों की निगाहें मैडम पर टिक गईं
----नई मैडम की बातें तो एकदम नई -नई हैं I
हमको
अच्छी भी लगती हैं।
आत्मीयता की फुलझड़ी से बालमन भयरहित हो उमंग
से भर उठे I
-सौरभ ,टिफिन जल्दी से खाकर मेरे पास आना I
मैं
तुम्हारा कार्य पूरा करने में मदद करूंगी I
-इतनी
अच्छी मैडम !जरूर आऊंगा |वह
मन ही मन बुदबुदाया I
हलके
क़दमों से मैडम के सामने वाली कुर्सी पर वह
बैठ गया I लिखना शुरू किया ----ओह ये उँगलियाँ जल्दी
क्यों नहीं चलतीं--।
पहली
बार सौरभ को अपने पर गुस्सा आया I उसने उँगलियों में कलम फंसाकर उसे खींचने की कोशिश की I हाथ
कुछ ज्यादा गतिमान हुए I नई
मैडम इस परिवर्तन को भांप गईं I उन्हें विशवास हो गया कि सामान्य
बच्चों की तरह सौरभ भी एक दिन लिख सकेगा I
उधर
सौरभ मन की सलाई पर दूसरी तरह के फंदे डाल रहा था --मैं घर जाकर भी लिखूँगा देखता
हूँ ये उँगलियाँ कैसे नहीं चलतीं I घर में बैठा वह एक घंटे से कलम चला रहा
था I यह कैसी अनहोनी ---खुद लिख रहा है ---काम भी पूरा I माँ
सकते में आ गई I
सौरभ अपने में ही लीन रहने लगा या नई मैडम के ख्यालों में I एक
वही तो थीं जिन्होंने उसको समझा, बाकी तो उसकी कोमल भावनाओं और सुकुमार
शरीर पर आघात करके आगे बढ़ गये Iएक
बार पीछे मुड़कर न देखा-- उस पर क्या बीत रही है !वार्षिक परीक्षा में हिन्दी में
सबसे ज्यादा अंक पाकर उसने जीत हासिल की I आश्चर्य की लहर फिर एक बार आई और सुनने
वालों को समूचा भिगोकर चली गई I
यह नई मैडम और कोई नहीं मैं ही हूँ I हर
कक्षा में सौरभ जैसे बच्चे होते हैं I यदि धैर्य रखते हुए उनकी ओर प्रेम का हाथ बढ़ाकर हौंसला बढ़ाया जाय तो
उन्हें सफलता अवश्य मिलेगी I
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 05-95-2015 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2333 में दिया जाएगा
जवाब देंहटाएंधन्यवाद