मातृत्व दिवस -8मई (जननी महोत्सव)
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बच्चो मुझे कुछ कहना है -
आज 8 मई को मातृत्व दिवस है और रविवार भी। अपनी
प्यारी माँ के साथ खूब जोश के साथ जननी महोत्सव को मना रहे होगे।हाँ याद आया---आज
तो तुम्हें उनकी सुख -सुविधा का भी बहुत ध्यान रखना हैं। कुछ स्कूलों में तो कल ही
यह दिन मना लिया होगा। यह मातृत्व दिवस केवल
भारत में ही नहीं करीब 49 देशों में बड़े ज़ोर -शोर से उत्सव के रूप में मनाया जाता
है।
कुछ लोग
कहेंगे –ऊँह हम यह दिवस क्यों मनाएँ?यह तो हमारी संस्कृति का अंग नहीं। इसमें विदेशी बू आती है। एक बात समझकर
चलना है:दूररदर्शन,कम्प्यूटर,लैपटॉप,मोबाइल,आई पेड,आई फोन ,स्मार्ट वाच से दुनिया बहुत छोटी हो गई हैं। घर बैठे ही हम एक दूसरे के
बहुत नजदीक आ गए हैं।मेरे-तुम्हारे के बीच लक्ष्मण रेखा नहीं खींची जा सकती। विभिन्न
संस्कृतियों का मेल मिलाप और आदान-प्रदान सहज ही हो जाता है। कब और कैसे हुआ इसका
पता ही नहीं चलता। इसको रोका नहीं जा सकता। इसलिए दूसरी संस्कृतियों की अच्छी
बातें ग्रहण करके अपनी संस्कृति को समृद्ध बनाया जा सकता है। साल में एक बार अन्य
दिनों की तुलना में और ज्यादा समय अपनी माँ का ध्यान रखें,उसे याद करें, उसके साथ रहें तो वात्सल्यमयी को खुशी ही होगी।
अब मैं तुम्हें परी माँ के बारे में बताने जा रही
हूँ। ओह,बताने से तो तुम्हें फिर इस कहानी को पढ़ने में आनंद ही नहीं आएगा। अच्छा
तुम ही पढ़ लो।
परी माँ
-माँ -माँ भूख लगी है।
-अभी तो सात ही बजे है, तुझे इतनी जल्दी भूख लगने लगी। रोज तो आठ बजे दूध पीकर जाता है। आज तो स्कूल भी देर से जाना है।
-ओह दीदी !पेट में चूहे कूद रहे हैं तो मैं
क्या करूँ!
-कुछ भी कर पर माँ को मत जगा। तुझे तो मालूम
है आज मातृत्व दिवस है,पूरा दिन माँ का दिन। वह कोई घर का काम नहीं करेगी और न रसोई में घुसेगी। जो
करेगी अपने लिए करेगी।
-तो फिर मैं खाऊँगा क्या?
-एक दिन देर से खाएगा तो क्या हो जाएगा। माँ तो हमारे लिए न जाने
कितनी घंटे भूखे रह लेती है। हम स्वस्थ रहें इसके लिए भगवान से प्रार्थना करते हुए
उपवास करती है।
चकोर खिसिया गया और रोते -रोते अपने पापा से लिपट
गया।
-अच्छे बेटे रोते नहीं –चल मैं तुझे दूध देता
हूँ। और हाँ रसीली , तुम माँ के लिए कमरे में ही
चाय बना कर ले जाओ।ज्यादा आवाज न करना । जरा सी आहट उसके कानों तक गई कि यहाँ आन
धमकेगी।
-पापा रोज तो माँ चाय बनाती है और सबके साथ
बैठकर पीती है। आज यह नई बात क्यों?
-आज वे काम करने हैं जिससे तुम्हारी माँ को
खुशी मिले ,आराम मिले और सबसे बड़ी बात हम चुप-
चुप ऐसा करके उनको चकित कर देना चाहते हैं।
-हम भी तो स्कूल में यही करेंगे।ओह मुझे तो स्कूल
के लिए भी तैयार होना है। रसीली, माँ से कहना –स्कूल
के लिए सुंदर-सुंदर साड़ी पहने –एकदम परी
माँ की तरह।
रसीली ने चाय बनाकर ट्रे में नए कप रखे साथ
में अपने हाथ का बना ग्रीटिंग कार्ड।धीरे -धीरे माँ के कमरे की ओर चल दी। दबे पाँव
पीछे –पीछे पापा कब हो लिए उसको भनक भी न पड़ी।
-माँ - माँ उठो।
-बारीक सी आवाज सुन माँ ने आँखें खोल दी। रसीली
को चाय की ट्रे लिए खड़ा देख आश्चर्य मिश्रित खुशी उसके चेहरे पर छा गई।
-अरे बेटा तू तो बहुत बड़ी समझदार हो गई है।
अच्छा अब ट्रे रख दे । मैं चाय पी लूँगी। अरे यह कार्ड कैसा? जरा पढ़ूँ तो -‘माँ तुम दुनिया की सबसे प्यारी माँ हो। मातृत्व दिवस
मुबारक हो।‘ ओह तो यह बात है।
-आज चाय का प्याला अपने हाथों से तुम्हें पकड़ाऊंगी
ठीक वैसे ही जैसे तुम , स्कूल जाने से पहले मेरे हाथ
में दूध का गिलास थमा देती हो माँ।
-तेरे पापा कहाँ हैं ?चाय तो हम साथ -साथ पीएंगे।
-रसोई में छोडकर आई हूँ। अभी पुकारती हूँ।
-तेरे पापा तो वो खड़े।
रसीली ने मुड़कर देखा –दादी की फोटो के आगे वे हाथ जोड़े खड़े हैं। यह
देख उसकी मम्मी की आँखें भर आईं।
-अरे माँ आज आँसू बहाने का दिन नहीं है।
-बेटी,ये खुशी के
आंसू है। माँ संसार के किसी भी कोने में हो दूर रहकर भी पास रहती है। रात में लगता
है तकिये की बजाय उसका हाथ मेरे सिर के नीचे है। दिन में वही हाथ सिर के ऊपर दिखाई
देता है मानो उसके असीस की छतरी तनी हो।उसकी याद! उसकी याद तो हमेशा सुखदाई है।
पापा ने बड़ी श्रद्धा से सिर झुकाया मानो
साक्षात माँ उनके सामने मंगल कलश लिए खड़ी हों। फिर बोले –जाने से पहले अपनी माँ के
लिए साड़ी निकाल देना । आज तो वाकई में वह तुम्हारी परी माँ लगनी चाहिए। उन्होंने
कनखियों से अपनी पत्नी को देखा जो मृदुल मुस्कान से खिली हुई थी।
चकोर अपनी परी माँ के साथ स्कूल चल दिया । घर
की सारी ज़िम्मेदारी आज रसीली और उसके पापा
ने ओढ़ ली थी।
*
स्कूल रंगबिरंगी झंडियों से सजा हुआ था। बच्चे अपनी –अपनी माँ के साथ आ रहे थे।
हरकोई उत्साह से भर हुआ था। बच्चे माँ को
आदर देकर इस बात का विश्वास दिला देना चाहते
थे कि उनको वे सबसे ज्यादा प्यार करते हैं। माँ देखना चाहती कि बच्चे उनके
लिए क्या करते हैं?
शिक्षिकाओं
ने आगे बढ़कर माताओं का स्वागत किया और वे अपने बच्चों के साथ उनकी कक्षाओं में चली
गईं। चकोर और उसके दोस्तों ने हाथ का बना ग्रीटिंग कार्ड अपनी अपनी मम्मी को
दिया।साथ ही उपहार के छोटे छोटे पैकिट दिए। उत्सुकतावश तभी पैकिट खोल लिए गए। किसी
में हेयर पिन निकला तो किसी में पैन। चकोर ने कागज के फूल बना कर दिए थे।जो सचमुच के लग रहे थे। हर माँ
की खुशी की कोई सीमा न थी। कुछ देर बाद उन्हें ओडोटोरियम ले जाया गया।
एक छोटा सा गोलमटोल बच्चा हिलता –डुलता मंच पर
आया। वह कक्षा 2 में पढ़ता होगा। अपने हाथ हिला हिलाकर ऊँची आवाज में बोलने लगा-
मेरी माँ –सबसे अच्छी
रोता तो टॉफी देती
गिरता तो गोदी लेती
हँसता
तो झप्पी देती
हहा हा-----------हहा हा।
उसके उतरते ही एक मिनट का सब्र किए बिना चकोर अपनी
मुस्कान बिखेरता हुआ मंच पर दौड़ पड़ा और मटकता हुआ गाने लगा-
मेरी माँ -----सबसे न्यारी
खूब हँसाती हलुआ खिलाती
लोरी गाकर मुझे सुलाती
पापा की नीली –पीली आँखों से
माँ हरदम मुझे बचाती।
आखिरी लाइन सुनकर सब हंस पड़े। चकोर की माँ इतना
तो समझ गई कि कविता लिखने वाला रसीली के अलावा और कोई नहीं पर चंचल बेटे ने कविता याद
कैसे कर ली ---यह उसकी बुद्धि के बाहर था।
कुछ समय बाद माइक से आवाज आई-बच्चों की प्यारी न्यारी
माताएं ,
अपने नन्हें मुन्नों को खुश करने के लिए मंच
पर आयें और जो उन्हें आता है वह करके दिखाएँ।
हॉल छोटी छोटी हथेलियों से बजाई तालियों से
गूंज उठा। नादानों की आंखें कौतूहल वश मंच पर टिकी रह गईं।
चकोर की माँ ने जैसे ही मंच की ओर बढ़ना शुरू किया उसके बाल हृदय की धड़कने तेज हो
गईं। मन ही मन बुदबुदाने लगा –माँ जरूर गाना गाएगी पर उसने तो बहुत दिनों से गाया
ही नहीं हैं। जरूर भूल गई होगी।भगवान -- -बचाओ।
माँ ने गान से पहले बच्चों को समझाया-
तुम्हारी तरह कृष्ण भी बचपन में बहुत
शैतान थे। वे अपने सिर की चोटी बड़े भाई
बलराम की तरह लंबी चाहते थे। पर यशोदा माँ का कहना था पहले दूध पी तब तेरी चोटी
बढ़ेगी। एक दिन नटखट दूधचोर शिकायत भरे स्वर में कहते हैं -माँ दूध पीते -पीते मुझे बहुत समय हो गया पर
चोटी तो छोटी ही है। केवल कच्चा दूध पीने को देती है मक्खन रोटी तो देती नहीं।फिर
चोटी कैसे बढ़े?
इसके
बाद सुरीली आवाज में गान शुरू हुआ-
मैया ,कबहि बढ़ेगी चोटी
किती बार मोहि दूध पियत भई,यह अजहू है छोटी
काचो दूध पियावति पचि-पचि,देति न माखन रोटी।
बच्चे
गाना सुनकर बहुत खुश हुए । एक को तो कहते सुना –माँ मुझसे बार बार न कहना-दूध पीओ
दूध पीओ। उसकी जगह आइसक्रीम कोल्ड ,कॉफी चलेगी। बच्चे
के भोलेपन पर आस -पास बैठे लोग हँसे बिना न रहे । किसी माँ ने कहानी सुनाकर तो
किसी ने चुटकुला सुनाकर भी बच्चों का मनोरंजन किया।
कार्यक्रम समाप्त होने पर आँखों में अनोखी चमक
लिए चकोर अपनी माँ के साथ घर की ओर चल दिया। कविता की पंक्तियाँ याद कर-कर माँ को चकोर पर बहुत प्यार आ रहा था।
*
घर पहुँचकर चकोर अपने को रोक न सका । माँ के
गाल की चुम्बी लेते हुए बोला-- माँ,मेरी परी माँ तुमने तो गाना बहुत अच्छा गाया।
-क्या --?गाना गाया !हमने तो कभी सुना नहीं। चकोर
के पापा और बहन दोनों ही अचरज से आँखें झपझपाने लगे।
-हाँ तो रसीली , तेरी माँ का
गाना -हो जाए शाम को फिर एक बार।
-शाम की शाम की देखी जाएगी। अभी तो रसोई में
जा रही हूँ।
-एकदम नहीं माँ –हमने कहाँ न ,रसोई काम की
एकदम छुट्टी ।
-क्या पागलपन लगा रखा है भूख -हड़ताल करनी है
क्या रसीली ?
-आज के दिन क्यों मिजाज गरम कर रही हो। कुर्सी
पर जरा बैठो तो—। टेबल पर खाना अपने आप पककर,चलकर आ जाएगा।
-आपकी बातें भी दीन-दुनिया से निराली होती
हैं।
तभी राधिका ने देखा उसके दोनों बच्चे प्लेटें
चम्मच ला रहे हैं। उनके पापा भी रसोई में
जाकर दाल सब्जी के डोंगे लाने उठ गए। वह बैठी -बैठी बड़ी हैरानी से देख रही थी।
सब खाने बैठे तो रसीली पूंछ बैठी -माँ खाना
कैसा बना है?
-पहले यह बता खाना किसने बनाया?
-ओह तुम भी कमाल करती हो । आम खाने से मतलब की
गुठलियों के दाम गिनने से मतलब।पापा बोले।
-देखो जी ।अच्छे बच्चे अपनी माँ से कुछ नहीं
छिपाते।
-कौन,किस्से क्या छिपा रहा है? बच्चों को तो बस तुम्हें आश्चर्य के समुद्र में गोते लगवाने थे।
-ओह, अब आप ही बता दो। आप तो बच्चों के साथ
मिलकर बच्चे बन जाते हैं।
-न—न मैं किसी के बीच नहीं पड़ता ।तुम जानो
तुम्हारे बच्चे जाने।
-माँ खाना पंजाबी ढाबे से मंगवाया है जहां हम
अकसर खाने जाते हैं। रसीली ने धीरे से कहा
। डर रही थी कि कहीं डांट न पड़ जाय।
राधिका अपनी बच्ची की मनोदशा ताड़ गई। ममता का आँचल
फड़फड़ा उठा- बेटी मुझे तो सपने में भी इस बात का अंदाजा न था कि तुम दोनों भाई-बहन मुझे इतना प्यार करते हो, इतना ख्याल रखते हो। आओ –मेरे पास आओ ।उसकी स्नेहसिक्त बाँहें बेटा-बेटी को
अपने घेरे में लेने को मचल उठीं।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (10-05-2016) को "किसान देश का वास्तविक मालिक है" (चर्चा अंक-2338) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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मातृदिवस की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
bahut hi pyari kahani :)
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