मेरे तुम्हारे सपने /सुधा भार्गव
पराग के
पैदा होते ही उसके माँ –बाप की आँखों में सपने तैरने लगे । उनकी जो इच्छाएँ पूरी
नहीं हुई थीं उनको वे अपने बेटे द्वारा पूरा करना चाहते थे ।
बच्चा तीसरी कक्षा में ही आया था कि कमल और उसकी
पत्नी अपने बेटे का भविष्य बुनने लगे ।
-मेरा बेटा तो इंजीनियर बनेगा।
-न-- न ,मेरा बेटा तो - - - -डॉक्टर बनेगा ।
-बस हर बात में आप मनमानी करना चाहते हैं।
-अच्छा बाबा ,जो तुम कहोगी वही बनेगा ।
-ऐसी बात नहीं। मेरी इच्छा पूरी न कर पाया तो आपकी इच्छा पूरी करेगा बेटा तो हम दोनों का है ।
कमल तो सपनों का बीज बोकर दफ्तर चला जाता पर उसकी पत्नी दिलोजान से उसमें खाद देने में लग जाती । बेटे पर पूरी तरह नजर रखती कि कहीं खेलने –कूदने में ही तो सारा समय खराब नहीं कर रहा ।
एक दिन बेटा भागता हुआ आया –माँ ,सुबह की पढ़ाई खतम कर दी है । अब मैं खेलने जाऊंगा
-पर बेटा ---आज तो छुट्टी है कुछ तो पढ़ाई पर ज्यादा ध्यान दो ।
-क्या पढूँ ?
-रिवीजन ही कर लो ।
-रिवीजन- -- मतलब पन्नों को उलट – पुलट करूं। रिवीजन के नाम तो मुझे उबकाई आने लगी है। एक ही पाठ दस बार पढ़ो----,उफ !लगता है पागल हो जाऊँगा
चलो आपकी बात मान लेता हूँ पर अभी से कह देता हूं शाम को नहीं रुकूंगा ,फुटबॉल खेलने जाऊँगा ।
-न-- न ,मेरा बेटा तो - - - -डॉक्टर बनेगा ।
-बस हर बात में आप मनमानी करना चाहते हैं।
-अच्छा बाबा ,जो तुम कहोगी वही बनेगा ।
-ऐसी बात नहीं। मेरी इच्छा पूरी न कर पाया तो आपकी इच्छा पूरी करेगा बेटा तो हम दोनों का है ।
कमल तो सपनों का बीज बोकर दफ्तर चला जाता पर उसकी पत्नी दिलोजान से उसमें खाद देने में लग जाती । बेटे पर पूरी तरह नजर रखती कि कहीं खेलने –कूदने में ही तो सारा समय खराब नहीं कर रहा ।
एक दिन बेटा भागता हुआ आया –माँ ,सुबह की पढ़ाई खतम कर दी है । अब मैं खेलने जाऊंगा
-पर बेटा ---आज तो छुट्टी है कुछ तो पढ़ाई पर ज्यादा ध्यान दो ।
-क्या पढूँ ?
-रिवीजन ही कर लो ।
-रिवीजन- -- मतलब पन्नों को उलट – पुलट करूं। रिवीजन के नाम तो मुझे उबकाई आने लगी है। एक ही पाठ दस बार पढ़ो----,उफ !लगता है पागल हो जाऊँगा
चलो आपकी बात मान लेता हूँ पर अभी से कह देता हूं शाम को नहीं रुकूंगा ,फुटबॉल खेलने जाऊँगा ।
-ओह बहस न कर ,जा पढ़ । उसकी शर्त सुनकर माँ झुँझला उठी ।
पराग ने सोते –जम्हाइयाँ लेते समय काटा । बस नाम को किताब हाथों में ले रखी थी । दिन ढलते जूते कसे और निकल गया घर से बाहर पर यह क्या ! वहाँ तो पापा खड़े मिल गये --
-कहाँ चले बेटा --?
आवाज में मिठास थी पर पराग कड़वाहट से भर गया ।
-खेलने जा रहा हूं ।
-जल्दी आना कुछ ख़ास बात करनी है ।
-ठीक है पापा ।
पराग ने सोते –जम्हाइयाँ लेते समय काटा । बस नाम को किताब हाथों में ले रखी थी । दिन ढलते जूते कसे और निकल गया घर से बाहर पर यह क्या ! वहाँ तो पापा खड़े मिल गये --
-कहाँ चले बेटा --?
आवाज में मिठास थी पर पराग कड़वाहट से भर गया ।
-खेलने जा रहा हूं ।
-जल्दी आना कुछ ख़ास बात करनी है ।
-ठीक है पापा ।
पराग अपने पर काबू न रख
सका और बड़बड़ाने लगा --
मेरे खेलने के समय ही बातें आन टपकती हैं । वैसे पापा इतने खोये -खोये रहते हैं कि मेरा पास खड़ा होना भी पता नहीं चलता । कोई नहीं चाहता कि मैं खेलूं ।
पराग खुशी- खुशी घर लौटा पर ेखाने की मेज पर पापा को बैठा देख उसका मुंह लटक गया ।
-आओ बेटा ,अब तो तुम कक्षा 5 में आ गए हो । हमारी इच्छा है तुम पढ़ने में रात –दिन एक कर डालो ताकि और अच्छे स्कूल में दाखिला हो सके । तुम्हारे लिए एक टीचर भी रख देंगे ।उसकी सहायता से ज्यादा अंक पा सकते हो ।
हमने तो कह दिया जो कहना था ,अब तुम बताओ - - -तुम क्या चाहते हो !।
-पापा आपकी कोई बात मेरी समझ में नहीं आ रही --पर हाँ ,मैं बहत कुछ करना चाहता हूं । नीले आसमान के नीचे हंसती धरती पर खिले फूलों को छूना चाहता हूं । गुनगुनी धूप में साथियों का हाथ पकड़ तितलियों का पीछा करना चाहता हूं ,फुटबॉल की तरह उछलना चाहता हूँ लेकिन कैसे करूं! आप लोगों ने मेरा सारा समय छीन लिया है। क्या करूं—कहाँ जाऊं?मुझे ,मेरा कुछ समय तो लौटा दो पापा !पराग कहते –कहते बिलख पड़ा ।
मेरे खेलने के समय ही बातें आन टपकती हैं । वैसे पापा इतने खोये -खोये रहते हैं कि मेरा पास खड़ा होना भी पता नहीं चलता । कोई नहीं चाहता कि मैं खेलूं ।
पराग खुशी- खुशी घर लौटा पर ेखाने की मेज पर पापा को बैठा देख उसका मुंह लटक गया ।
-आओ बेटा ,अब तो तुम कक्षा 5 में आ गए हो । हमारी इच्छा है तुम पढ़ने में रात –दिन एक कर डालो ताकि और अच्छे स्कूल में दाखिला हो सके । तुम्हारे लिए एक टीचर भी रख देंगे ।उसकी सहायता से ज्यादा अंक पा सकते हो ।
हमने तो कह दिया जो कहना था ,अब तुम बताओ - - -तुम क्या चाहते हो !।
-पापा आपकी कोई बात मेरी समझ में नहीं आ रही --पर हाँ ,मैं बहत कुछ करना चाहता हूं । नीले आसमान के नीचे हंसती धरती पर खिले फूलों को छूना चाहता हूं । गुनगुनी धूप में साथियों का हाथ पकड़ तितलियों का पीछा करना चाहता हूं ,फुटबॉल की तरह उछलना चाहता हूँ लेकिन कैसे करूं! आप लोगों ने मेरा सारा समय छीन लिया है। क्या करूं—कहाँ जाऊं?मुझे ,मेरा कुछ समय तो लौटा दो पापा !पराग कहते –कहते बिलख पड़ा ।
उसका फड़फड़ाना माँ बाप से न देखा गया ।
उन्होंने उसे गले लगाते
बड़े कातर स्वर में कहा –बच्चे हम तो तुम्हारे लिए सोने -चांदी सा भविष्य चाहते थे
पर यहाँ तो तुम अपने वर्तमान में ही खुश नहीं हो तो आने वाले दिनों का स्वागत कैसे
करोगे ?
-पापा , मैं जानता हूँ
पढ़ना बहुत जरूरी है पर इस समय खुश रहने के
लिए और भी तो कुछ चाहिए।
कमल और उसकी पत्नी को पहली
बार एहसास हुआ कि वे बच्चे को बहुत जल्दी बड़ा होना देखना चाहते हैं ,उससे उसका बचपन छीनना चाहते हैं ताकि उनके सपने पूरे हों । उन्होंने अपनी
भूल सुधार का निश्चय किया।
- आज से हम अपनी किसी
इच्छा का बोझ तेरे सिर पर नहीं लादेंगे । सारी टोकाटाकी बंद । तू खेलेगा –कूदेगा –पढ़ेगा
और अपने सपनों के झूले में झूलता बड़ा होगा। कमल ने दुलराते हुए उसके सिर पर हाथ
फेरा।
-सच पापा । चांदी के
सिक्कों सी उसकी खनकती हंसी से कमल और उसकी पत्नी के चेहरे भी चमक उठे ।
समाप्त
समाप्त
सुधा भार्गव
बैंगलोर
माँ बाप की आकांक्षाओं के तले आज बचपन कुचलता जा रहा है...सच में बचपन को बचपन रहने दें...बहुत सुन्दर और सार्थक कहानी...
जवाब देंहटाएंकैलाश जी -बहुत बहुत धन्यवाद कहानी पसंद आने के लिए। आज के माहौल में पलने वाले बच्चे को समझना बहुत जरूरी है। उसके अपने विचार हैं । उसकी भावनाएँ और इच्छाएँ है। उनकी हमें कदर करनी चाहिए। तभी बच्चे और माँ-बाप के मध्य मजबूत पुल बन पाएगा।
जवाब देंहटाएंसुधा जी बहुत सुंदर कहानी. स्वाभाविक रूप से ही प्रतिभा को निखरने का मौका देना चाहिए.
जवाब देंहटाएंरचना जी
हटाएंआप मेरी बात से सहमत हैं यह जानकार अच्छा लगा। साभार।
प्रविष्टि के लिए अनेक धन्यवाद । आपकी चर्चा योजना बहुत प्रशंसनीय है। रचनाओं के माध्यम से बहुत से ब्लोगर्स को एक दूसरे को जानने का मौका मिलता है।
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