प्यारे बच्चों

कल सपने में देखा -मैं एक छोटी सी बच्ची बन गई हूं । तुम सब मेरा जन्मदिन मनाने आये हो । चारों ओर खुशियाँ बिखर पड़ी हैं ,टॉफियों की बरसात हो रही है । सुबह होते ही तुम में से कोई नहीं दिखाई दिया ।मुझे तो तुम्हारी याद सताने लगी ।

तुमसे मिलने के लिए मैंने बाल कुञ्ज के दरवाजे हमेशा के लिए खोल दिये हैं। यहाँ की सैर करते समय तुम्हारी मुलाकात खट्टी -मीठी ,नाटी -मोती ,बड़की -सयानी कहानियों से होगी । कभी तुम खिलखिला पड़ोगे , कभी कल्पना में उड़ते -उड़ते चन्द्रमा से टकरा जाओगे .कुछ की सुगंध से तुम अच्छे बच्चे बन जाओगे ।

जो कहानी तुम्हें अच्छी लगे उसे दूसरों को सुनाना मत भूलना और हाँ ---मुझे भी वह जरूर बताना ।
इन्तजार रहेगा ----! भूलना मत - -

बुधवार, 21 अगस्त 2024

संगिनी बाल विशेषांक में प्रकाशित

मेरी बालकहानी
पापा ओ पापा 


मुस्कान हमेशा मुसकराने वाली आज बहुत उदास है । उसे पापा की याद आ रही है।  समझ नहीं पा रही  कि चार दिन से पापा घर क्यों  नहीं आये। रोज तो अँधेरा होते ही आ जाते थे ।  शाम को दरवाजे पर वह खडी हो जाती अपने पापा  के इन्तजार में । उसे शाम बहुत प्यारी लगती भी  क्योंकि वह उसके प्यारे पापा को अपने साथ लाती थी । 

      माँ कहती रह जाती -”बेटा ,  शाम का समय है जरा बच्चों के साथ पार्क में खेल आओ।”  भला उसे कहाँ सुनाई देता !उसके कान तो पापा की कार का हॉर्न सुनने को तरसते  थे। वह हॉर्न की आवाज पहचानने लगी थी। गली में घुसते ही उसके प्यारे पप्पू हॉर्न बजाते वह उछलना शुरू कर देती --पापा आ गए --पापा  आ गए। 

 इन दिनों तो   मम्मी उसे दरवाजे पर खड़ा नहीं होने देती है। कहती है  -कोरोना महामारी का  कीड़ा आ जाएगा और वह इतनी जोर से काटता है कि उसका ज़हर सारे शरीर में फैल जाता है ।  बड़ा ही दर्द होता है । ठीक होना भी मुश्किल हो जाता है। खुली खिड़की के पास आकर खडी होती तो माँ पीछे से आकर तुरंत खिड़की बंद  कर देती। कहती -“कोरोना का कीड़ा उड़ना भी जानता है।  उड़कर कमरे में  आ जाएगा। बच्ची नहीं समझ पा रही थी कि मम्मी क्या कहती है। इस रोक टोक से मुस्कान का खिला- खिला चेहरा मुरझा गया है। 

      एक दिन मुस्कान बोली-“माँ बाहर चलो --आज तो मैं कोरोना को देखूँगी और उससे कहूँगी जहाँ से आया है वही  लौट जा।” 

     “बेटी वह छोटा सा है पर है बड़ा जिद्दी । किसी की नहीं सुनता।” 

     “मेरी बात उसे सुननी ही पड़ेगी।  नहीं सुना तो उस छुटके  को  मुर्गा बना दूंगी।”  

     “वह तो बेटा इतना  छोटा है कि  हम उसे देख ही नहीं सकते पर वह हमको देख सकता है। बॉल  की तरह लुढ़कता-फुदकता हुआ किसी से भी टकरा जाता है। फिर तो उसे कोरोना बीमारी जरूर हो जाती  है।” 

     “ठीक है मैं बाहर नहीं जाती पर फ़ोन करके  पापा को बुला दो।  उन्हें कोरोना हो गया तो क्या होगा!” 

      मम्मी ने सुनकर भी उसकी बात अनसुनी कर दी। रसोई में जाकर बर्तन साफ करने लगीं। यह देख मुस्कान को गुस्सा चढ़ आया। पास ही मेज पर माँ का मोबाईल खड़खड़ा उठा। वह समझ गई कि फ़ोन उसके पापा का ही होगा। वे अक्सर ४ बजे ही करते  थे।गुस्से में भरी तो वह बैठी ही थी ,बोल पड़ी -

    “पापा जल्दी से आ जाओ। मम्मी बहुत खराब हैं। मेरी बात  नहीं सुनतीं।”

     “बेटा आज तो नहीं  आ सकूँगा।” 

     “क्यों पापा ?”

    “बहुत से लोगों को कोरोना हो गया है। उनका इलाज करना होगा।” 

     “उन्होंने अपनी मम्मी की बात नहीं सुनी होगी। बड़े गंदे बच्चे हैं।” 

     “हाँ बेटा लगता तो ऐसा ही है। पर  उनको छोड़ कर कैसे आऊँ?”तुम्हारा पापा एक डॉक्टर है। उसका  काम है इलाज करना ।” 

  “ठीक है पापा !सबको जल्दी से ठीक कर दो ।लेकिन  शाम को आप मुझे रोज अपने हाथ से खाना खिलाते थे। अब किसके हाथ से खाऊँ ?”

    “माँ से खा  लो।”

     “वो तो पापा सारे दिन घर का ही काम करती रहती हैं। मेरा काम करने को तो उनके पास समय ही नहीं हैं।” 

     “बेटा ऎसी बात न करो। तुम्हारी मम्मी बहुत  अच्छी हैं।  उन्हें अकेले सारे काम करने पड़ रहे हैं। बस ,रिक्शा चलनी बंद हैं ।लक्ष्मी भी  माँ की सहायता को   नहीं आ सकती। मैं भी घर पर  नहीं हूँ। तुम थोड़ा अपनी मम्मी के काम कर दिया करो।” 

    “पापा  मुझे तो कोई काम आता ही नहीं हैं। आप ही तो कहते हैं मेरे छोटे -छोटे हाथ हैं, मैं इनसे कैसे करूँगी।” 

    “मेरी छोटी सी बिटिया अपने छोटे-छोटे हाथों से बहुत कुछ कर सकती है! बताऊँ--।” 

    “हाँ--हाँ बताओ पापा--- जल्दी बताओ।” 

     “तुम उनके बालों में कंघी कर सकती हो--जब वे थककर  बैठी हों तो उन्हें एक गिलास पानी पकड़ा देना और--।”

     “और क्या पापा!”

    “और तुम खुद नहा -धोकर सुन्दर सा फ्रॉक पहनकर रानी बनी रहा करो। अपने खिलौने और गुड़ियों को सजाकर रखना। आकर  देखूंगा मेरी बेटी का कमरा साफ रहता है या गन्दा । साफ सुथरा  घर  देखकर  कोरोना पास  आने  की  हिम्मत  नहीं  करता ।”

    “ठीक  है पापा। पर देखो जल्दी आना वरना मैं रूठ जाऊँगी  ।”  

    “मैं खूब सारी चॉकलेट देकर रुठी बेटी को मना लूँगा ।”

    “ओह पापा आप तो मुझे बहुत तंग करते हैं ।चलूँ --मुझे मम्मी के भी काम करने हैं ।”

पापा ने हंसकर मोबाइल बंद कर दिया ।

    कंघा लेकर मुस्कान अपनी मम्मी के पास पहुँच गई और बालों में कंघी करने लगी।

    “अरे यह  क्या कर रही है ?छोड़ मेरे बाल !”

    “मम्मी मैं तुम्हारी चोटी कर दूँ ।बहुत सुन्दर लगोगी ।”

   “तू  बाल काढ़कर मेरी चोटी करेगी  !कभी अपने बाल काढ़े हैं ?”मम्मी झुंझला उठी ।

    “आज से मैं अपने काम खुद करूँगी । नहाऊंगी ,कपडे पहनूँगी, आपी -आपी  दाल-चावल खाऊँगी । 

     मम्मी आश्चर्य से उसकी ओर देखती बोली -”यह किसने पट्टी पढ़ाई है तुझे।” 

     “यह सब पापा ने कहा पर मम्मी पापा ने ऐसा क्यों कहा?

     “क्योंकि पापा हमें बहुत  बहुत प्यार करते हैं ।”

     “और मम्मा  आप--!”

     “मैं---मैं---।एक माँ ने  भावावेश में बेटी को  अपनी बाँहों में समेट लिया और  उसका माथा चूम लिया। 

     मुस्कान समझ न पाई कि उसकी मम्मी बोलते -बोलते रुक क्यों गई पर प्यार की गरमी महसूस कर रही थी।उसकी खोई मुस्कुराहट फिर वापस आ गई। 





 

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