प्यारे बच्चों

कल सपने में देखा -मैं एक छोटी सी बच्ची बन गई हूं । तुम सब मेरा जन्मदिन मनाने आये हो । चारों ओर खुशियाँ बिखर पड़ी हैं ,टॉफियों की बरसात हो रही है । सुबह होते ही तुम में से कोई नहीं दिखाई दिया ।मुझे तो तुम्हारी याद सताने लगी ।

तुमसे मिलने के लिए मैंने बाल कुञ्ज के दरवाजे हमेशा के लिए खोल दिये हैं। यहाँ की सैर करते समय तुम्हारी मुलाकात खट्टी -मीठी ,नाटी -मोती ,बड़की -सयानी कहानियों से होगी । कभी तुम खिलखिला पड़ोगे , कभी कल्पना में उड़ते -उड़ते चन्द्रमा से टकरा जाओगे .कुछ की सुगंध से तुम अच्छे बच्चे बन जाओगे ।

जो कहानी तुम्हें अच्छी लगे उसे दूसरों को सुनाना मत भूलना और हाँ ---मुझे भी वह जरूर बताना ।
इन्तजार रहेगा ----! भूलना मत - -

शुक्रवार, 5 जुलाई 2013

डॉल्फ़िन दुनिया के कहानी किस्से


च्चों 
छुट्टी का मौसम तो चला गया और पढ़ने का मौसम आ गया है ।  पर इन छुट्टियों में जरूर कोई दादी -नानी से मिलने गया होगा  तो कोई सिगापुर ,बैकांक व पटाया। वहाँ   डॉल्फ़िन शो भी  देखे होंगे और लगता होगा  -बार -बार देखूँ ।  डॉल्फ़िन के  चेहरे पर फैली मुस्कान ने तो तुम्हारा  दिल जीत लिया होगा । बड़े ही खिलन्दड़ी स्वभाव की होती है।  तुम्हारे वहाँ पहुँचते  ही  झुकझुककर दर्शकों की तरफ मुड़ जाती होगी  मानो अभिवादन कर रही हो।  उस की चंचलता को देख अजीब स्फूर्ति का अनुभव  होने लगता  है --ठीक कह रही हूँ न !

एक बार मैं भी सिंगापुर गई थी । तुम जैसे बच्चों में तो  उस खूबसूरत मछली को पकड़ने की होड लगी थी। इतने में एक बच्चे की गेंद पानी में गिर पड़ी ,एक डॉल्फ़िन  ने तेजी से तैरकर उसे पकड़ा 




और ट्रेनर को लाकर दे दिया । दूर दूर तक तालियों की गूंज सुनाई देने लगी । 

 मैं बार -बार डॉल्फ़िन को मछली कह रही हूँ पर तुम्हें जानकर आश्चर्य होगा कि समुद्र में रहते हुए भी यह मछली नहीं है। यह स्तनपायी जीव है । यह अंडे नहीं देती  बल्कि बच्चे पैदा कर उन्हें दूध पिलाकर  पालती है ।ठीक वैसे ही जैसे तुम्हारी मम्मी तुम्हारा ध्यान रखती हैं ।   सांस भी वह गिल से नहीं , फेफड़ों  से लेती है।  इसी कारण उसे हवा लेने के लिए पानी की सतह पर घड़ी -घड़ी  जाना पड़ता है । 
जिन्होंने डॉल्फ़िन नहीं  देखी  कोई बात नहीं । मैं जो कहानी कहने जा रही हूँ उसमें तुम्हारी रोली -पोली डॉल्फ़िन बहनों   से मुलाक़ात हो ही जाएगी ।

तो सुनो कहानी

रोली पोली हमजोली / सुधा भार्गव 

दो डॉल्फ़िन मछलियाँ थी । उन बहनों का  नाम था रोली -पोली । उन्हें समुद्र में दौड़ लगाना बड़ा अच्छा लगता ।





 एक दूसरे को पटकी खिलातीं और अकसर कमर पर चढ़कर खेल -खेल में एक दूसरे को डुबोने की कोशिश करतीं ।किनारे पर खड़े बड़े - बच्चे उनकी उछलकूद देख खुश हो तालियाँ बजाते ।पोली उनसे मिलने जरूर जाती । उसे बच्चों से प्यार भी बहुत  था 




उस दिन रोली ने कुछ ज्यादा ही मछलियाँ निगल लीं । पेट फूलकर कुप्पा हो गया ।
-चलो ,समुद्र के किनारे -किनारे भागमभाग करते हैं ,मेरा खाना हजम भी हो जाएगा । रोली बोली ।
-तुमने तो मेरे मुंह की बात ही छीन ली । पोली उत्साह से भर उठी ।
आगे रोली पीछे पोली --लगा इनाम पाने की आशा में एक दूसरे से आगे निकल जाना चाहती हैं ।



किनारे पर खड़े बच्चे तो नहाना ही भूल गए और लगे चिल्लाने --भागो ---भागो --पहली मछली जीतेगी --कुछ चिल्लाये --जीतेगी भई जीतेगी दूसरी मछली जीतेगी । बच्चों का शोर सुनकर वे कुछ ज्यादा ही जोश में आ गईं और दुगुन वेग से डुबकियाँ लगाकर  कलाबाजियाँ दिखाने लगीं । आखिर थक कर किनारे  आ लगीं ।


रोली -पोली को किनारे पर देख बच्चे सहम कर पीछे हट गए पर कुक्की-चुक्की दो बहनों ने आगे बढ़कर प्यार से उनके ऊपर हाथ फेरा । मछलियाँ समझ गईं  -उनको शाबासी दी जा रही है । वे झूम झूमकर उनकी अंगुलियाँ चूमने लगीं ।

चंचल कुक्की रोली -पोली से खेलने के लिए पानी में उतर गई । चुक्की भी उसके पीछे हो ली ।
-तुम हमारी दोस्त बन जाओ और हमें अपनी तरह तैरना सीखा दो । कुक्की बोली ।

-चलो, पहले हम अपनी दुनिया की तुम्हें सैर कराते हैं । दोनों मछलियाँ बोली । 



-अब यहाँ से हमारा  आगे बढ़ना ठीक नहीं । कभी भी शार्क मछली आ सकती है । उफ !बड़ी भयानक होती है !पोली बोली ।

-ओह ,इनको डराओ मत ।हमारे होते हुए शार्क इनके पास  फटक भी नहीं सकती । यदि उसने हमारे पास आने की कोशिश की भी तो हम ज़ोर से सीटी मारकर पहरेदार और गोताखोर को सतर्क कर देंगे । फिर तो वह दुम दबा कर भाग जाएगी ।

इतने में रोली को कुछ दूरी पर शार्क मछली आती दिखाई दी ।
 वह चिल्लाई -पोली ,देखो--देखो शार्क !तुम जल्दी से एक लड़की के आगे खड़ी हो जाओ और मैं दूसरी का ध्यान रखती हूँ । दुश्मन को 

कमजोर नहीं समझना चाहिए । यह करीब दस फुट लंबी होगी । तेजी से पानी काटती अगर हमारी तरफ आ गई तो एक बार में ही हमें निगल जाएगी ।हम लड़कियों के आगे का घेरा मजबूत कर देंगे और जरूरत होने पर दूसरे साथियो को बुला लेंगे 


-मेरे तो हाथ -पाँव फूल रहे हैं । रोली घबराई ।
-डरने से क्या काम चलेगा । हमें ऐसे खतरों से खेलने की आदत डाल लेनी चाहिए ।
शार्क मछली ने तिरछी नजर से देखा -  डॉल्फ़िन बड़े जोश से उछल रही हैं  और वे भयानक से भयानक जलचर का सामना बड़ी बहादुरी से करने  को तैयार हैं ।
 उसने चुपचाप वहाँ से खिसकने में ही अपनी भलाई समझी ।


शार्क को भागता देख मछलियाँ हर्षित हो उठीं --हम जीत गए ---हम जीत गए । कुक्की -चुक्की अवाक !
-ऐसा क्या  हो गया जो तुम इतना मटक रही हो?हमें भी तो बताओ ।

-तुम्हें बचाते हुए हमने अभी -अभी एक शार्क मछली को भगाया है । जहां एक ओर समुद्री दुनिया आश्चर्यों से भरी पड़ी है तो दूसरी ओर खतरे  ही खतरे हैं । आगे से इस तरह अकेले समुद्र में नहीं उतर पड़ना । उतरने वाले को कुशल तैराक भी होना चाहिए और बहादुर भी  । पोली ने समझाते हुए कहा ।

-तुम जैसे बचाने वाले दोस्त मिल जाएँ तो फिर कैसी चिंता ?कुक्की ने कहा ।
-तुमने हमें मित्र माना तो मित्रों की बात  सुननी ही पड़ेगी । अब तुम समुद्र से निकलो । तुम्हारे मम्मी -पापा चिंता करते होंगे ।

-ठीक है नए दोस्तों !फिर हम चलते हैं ।



-नए दोस्त  नहीं ,हमें सच्चे दोस्त कहो ।
 रोली  ने अपनी पूंछ हिलाई ।

-ठीक कहा -तुम सच्चे दोस्त ही हो ।
सच्चे दोस्तों --टा--टा--बाई --बाई ,फिर मिलेंगे ।



 जानने योग्य बातें 

क्या तुम राष्ट्रीय जलजीव को जानते हो ?

-समुद्री डॉल्फ़िन के अलावा नदी में रहने  वाली डॉल्फ़िन भी होती है।  समुद्री डॉल्फ़िन देख सकती है और उसकी पीठ पर बड़े पंख होते है। गंगा नदी में रहने वाली गांगेय डॉल्फ़िन देख नहीं सकती। इसे सोंस कहते हैं । यही हमारा राष्ट्रीय जलजीव है 
   
- बुलंदशहर ।अनूपशहर ,नरौरा स्थित उत्तर प्रदेश के वेटलैंड (रामसर साइट )में जलीय जीव का खजाना है । यहाँ बहती गंगा  में और बिहार में सब से ज्यादा डॉल्फ़िन हैं । 





-गांगेय डाल्फिन का गंगा में होना उतना ही जरूरी है जितना बाघ का जंगल में ।

- गंगा को स्वच्छ रखने के लिए प्रकृति का अपना इंतजाम था ।  कहा जाता है कि जब गंगा शिवजी  की जटाओं  से बाहर  निकली तो सबसे  पहले एक जीव बाहर आया जिसे गंगेटिक डॉल्फ़िन कहा जाता है । उसने जटाओं  में जितने  जीव फंस गए थे या मर गए थे उन सबको खाकर उन्हें साफ कर दिया।  आज यही डॉल्फ़िन गंगा के पानी को सड्ने से बचाता है। लेकिन   मछुआरे इसको  अपने स्वार्थ  के लिए मार रहे  हैं और पैसा कमा रहे हैं ।  इससे निकाला तेल और  मांस से बनी दवाओं की बहुत मांग है।  इसी कारण इनकी संख्या दिनोंदिन कम होती जा रही है ।







-  राष्ट्रीय जल जीव को हमें बचाना है । 
     
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