प्यारे बच्चों

कल सपने में देखा -मैं एक छोटी सी बच्ची बन गई हूं । तुम सब मेरा जन्मदिन मनाने आये हो । चारों ओर खुशियाँ बिखर पड़ी हैं ,टॉफियों की बरसात हो रही है । सुबह होते ही तुम में से कोई नहीं दिखाई दिया ।मुझे तो तुम्हारी याद सताने लगी ।

तुमसे मिलने के लिए मैंने बाल कुञ्ज के दरवाजे हमेशा के लिए खोल दिये हैं। यहाँ की सैर करते समय तुम्हारी मुलाकात खट्टी -मीठी ,नाटी -मोती ,बड़की -सयानी कहानियों से होगी । कभी तुम खिलखिला पड़ोगे , कभी कल्पना में उड़ते -उड़ते चन्द्रमा से टकरा जाओगे .कुछ की सुगंध से तुम अच्छे बच्चे बन जाओगे ।

जो कहानी तुम्हें अच्छी लगे उसे दूसरों को सुनाना मत भूलना और हाँ ---मुझे भी वह जरूर बताना ।
इन्तजार रहेगा ----! भूलना मत - -

शनिवार, 12 मई 2012

बच्चो

आजकल तो तुम्हारे दिन मोती जैसे और रातें  चांदी सी हैं छुट्टियाँ जो चल रही हैं ।स्कूल की किताबें
 छूने को तो मन ही नहीं करता होगा ।तुम्हारी तरह मंटू चूहा भी बहुत खुश है ।मालूम है क्यों ?

चलो उसी की कहानी  सुनाते  है ।

 हमने इस बार कहानी  को कविता में ढाल दिया है। तुम हाव-  भाव  के साथ कविता पाठ करोगे तो बहुत अच्छा
 लगेगा ।


जीत गया भई जीत गया  /सुधा भार्गव 




एक भूरी बिल्ली थी।
भूरी के ऊपर काली बिल्ली थी
उस बिल्ली के ऊपर भी
एक  गोरी बिल्ली थी ।

भूरी की आँखें नीली
काली की कजरारी
गोरी की भूरी-भूरी
दिन रात चमकती तारों सी ।


तीनों चल दीं छुनक –छुनक
पैरों मेँ बाँधे हों मानो घुँघरू
एक मोटा चूहा जंगल मेँ टकराया 
मुँह मेँ पानी सबके भर आया ।


भूरी बिल्ली ने मटकाई आँखें
बोली –
चूहे की सेहत अच्छी
छूने मेँ है गुदगुदा
खून भी होगा उसका
मीठा –मीठा स्वाद भरा ।
काली बिल्ली ने पूँछ को झटका –
बोली--
बहुत कर ली बकबास
अब सुन मेरी  बात
तू नहीं ,मैं खाऊँगी इसको
लगता मक्खन सा मुझको ।
गोरी बिल्ली ने दिखाया पंजा –
बोली –
खबरदार !बढ़े जो आगे
पंजों से नोच गिराऊंगी
नरम –नरम मांस है इसका
मैं अकेली ही खाऊँगी ।

तीनों मेँ हुई गुत्थम गुत्था
बहसा –बहसी मेँ बीता घंटा  
भले –बुरे से अंजान रहीं
चूहे को खाना भूल गईं ।

चूहे ने अच्छा मौका पाया
बिल मेँ वह सरपट भागा
बिल्ली भागीं उसके पीछे
चूहा भागा  बिल्ली भागीं   


भागमभाग –भागमभाग ---
आया न चूहा किसी के हाथ
शक्तिवान रह गया पछताता
निर्बल ने विजय का ढोल बजाया ।



चित्र गूगल से साभार 

(अनुराग पत्रिका में प्रकाशित )