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मासिक पत्रिका गर्भनाल के अक्तूबर अंक में भी इस बार पढ़िये जातक कथा -टूटी डोर
मासिक पत्रिका गर्भनाल के अक्तूबर अंक में भी इस बार पढ़िये जातक कथा -टूटी डोर
टूटी डोर /सुधा भार्गव
एक राजा था । धार्मिक कामों को कराने वाला उसका पुरोहित बहुत होशियार था । एक
बार राजा ने प्रसन्न होकर सजा –सजाया एक घोड़ा उसे भेंट किया । वह जब भी उस पर
बैठकर राजा के दरबार में जाता , लोग घोड़े की प्रशंसा किए न
अघाते । इससे उसका मुख कमल की तरह खिल जाता । एक दिन उसने बड़े सरल भाव से अपनी
पत्नी से कहा –सब लोग हमारे घोड़े की सुंदरता का बखान करते हैं । उस जैसा दूसरा कोई
घोड़ा नहीं ।
पत्नी ठीक अपने पति के विपरीत थी । उसके हृदय छल –लपट
से भरा हुआ था । अपने पति की भी सगी न थी । वह हँसते हुए बोली –घोड़ा तो अपने साज –श्रंगार
के कारण सुंदर लगता है । उसकी पीठ पर लाल मखमली गद्दी है । माथे पर रत्न जड़ित
पट्टी पहने हुए है और गले में मूँगे -मोतियों की माला ।
तुम भी
उसकी तरह सुंदर लग सकते हो और तुम्हें प्रशंसा भी खूब मिलेगी अगर उसी का साज पहन लो और घोड़ी की
तरह घूमते –इठलाते कदम रखो ।
पत्नी की बात का विश्वास करके उसने वैसा ही किया और
राजा से मिलने चल दिया । रास्ते में जो –जो उसे देखता –हँसते –हँसते दुहरा हो
जाता और कहता –वाह पुरोहित जी क्या कहने आपकी शान के ,सूरज की तरह चमक रहे हैं ।
राजा तो पुरोहित को देख बौखला उठे – अरे ब्राहमन देवता –तुम पर पागलपन
का दौरा पड़ गया है क्या ?घोड़े की तरह हिनहिनाते –चलते शर्म
नहीं आ रही !सब लोग तुम्हारा मज़ाक उड़ा रहे हैं । अपना मज़ाक उड़वाने का अच्छा तरीका
ढूंढ निकाला है ।
पुरोहित जी को काटो तो खून नहीं । उन्हें तो कल्पना
भी नहीं थी कि जिस औरत को वे अपने प्राणों से भी ज्यादा चाहते हैं वह उनकी इज्जत के
साथ ऐसा खिलवाड़ करेगी । वे अंदर ही अंदर उबाल खा रहे थे ।
राजा को समझते देर न लगी कि बेचारा पुरोहित अपनी
पत्नी के हाथों मारा गया ।
उसको शांत करते हुए बोले-औरत से गलती हो ही जाती है
। उसे क्षमा कर दो । रिश्तों की डोर को तोड़ने से कोई लाभ नहीं । दरार पड़ते ही उसे
जोड़ देना चाहिए ।
-महाराज ,एक बार डोर टूटने
से जुड़ती नहीं ,अगर जुड़ भी गई तो निशान तो छोड़ ही जाती है ।
अपनी पत्नी के साथ रहते हुए मैं कभी भूल
नहीं पाऊँगा कि उसने मेरा विश्वास तोड़ा है और इस बात की भी क्या गारंटी कि वह
भविष्य में मेरा मज़ाक उडाकर अपमानित नहीं करेगी
। ऐसी औरत के साथ न रहना ही अच्छा है ।
राजा को पुरोहित की बात ठीक ही लगी । कुछ दिनों के
बाद उसने दूसरी औरत से शादी कर ली और पहली पत्नी को घर से निकाल दिया ।
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