प्यारे बच्चों

कल सपने में देखा -मैं एक छोटी सी बच्ची बन गई हूं । तुम सब मेरा जन्मदिन मनाने आये हो । चारों ओर खुशियाँ बिखर पड़ी हैं ,टॉफियों की बरसात हो रही है । सुबह होते ही तुम में से कोई नहीं दिखाई दिया ।मुझे तो तुम्हारी याद सताने लगी ।

तुमसे मिलने के लिए मैंने बाल कुञ्ज के दरवाजे हमेशा के लिए खोल दिये हैं। यहाँ की सैर करते समय तुम्हारी मुलाकात खट्टी -मीठी ,नाटी -मोती ,बड़की -सयानी कहानियों से होगी । कभी तुम खिलखिला पड़ोगे , कभी कल्पना में उड़ते -उड़ते चन्द्रमा से टकरा जाओगे .कुछ की सुगंध से तुम अच्छे बच्चे बन जाओगे ।

जो कहानी तुम्हें अच्छी लगे उसे दूसरों को सुनाना मत भूलना और हाँ ---मुझे भी वह जरूर बताना ।
इन्तजार रहेगा ----! भूलना मत - -

गुरुवार, 2 अगस्त 2012

कहानी -गुल्लक की करामात

राखी का त्यौहार
सबको
मुबारक हो

आज राखी का त्यौहार है ।इस अवसर पर मैं एक  नई कहानी पोस्ट कर रही हूँ जिसका नाम है --

गुल्लक की करामात

तुम जरूर कहोगे राखी  पर राखी  की कहानी होनी चाहिए यह  गुल्लक कहाँ से आ गई !थोड़ा धैर्य रखो --समझ जाओगे --मैंने यही क्यों लिखी  है ।

 टीटू और छुटकी कोयलिया की माँ को अपने भाई के घर राखी बाँधने जाना था  |जाने से पहले मेज पर उनके   लिए लड्डू रख दिये पर जल्दी -जल्दी में वह कुछ कहना भूल गई |
लड्डुओं को देखते ही टीटू की आँखें चमक उठीं और शुरू कर दिया भोग लगाना ।खाते -खाते उसका मुंह भी लड्डू की तरह गोल हो गया ।कोयलिया  तिरछी नजर से देखने  लगी कि वह अब रुके ,अब रुके  --- ।जब दो ही लड्डू रह गये तो चिल्लाई 
-सब खा जायेगा या मेरे लिए भी छोड़ेगा ?
टीटू सोते से जागा--हैं --माँ तो ऐसा कुछ कह कर नहीं गई --!
--तो यह भी तो कहकर नहीं गई कि तुम सब खा लेना |मुझे भी तो भूख -- लगी है |उसकी आँखों से आँसू टपकने लगे |
--ठीक है --ठीक है , टपकन बाजी  छोड़ |ये दो लड्डू बचे हैं इसी से पेट भर ले |
कुछ देर में ही उनकी माँ आगई |साथ में बहुत से उपहार भी लाई जो उनके मामा ने दिये थे |
टीटू ,अब तुम भी राखी बंधवा लो और इन्हीं में से जो उपहार कोयलिया को अच्छा लगे दे दो |
राखी तो उसने खुशी -खुशी बाँध दी मगर उपहारों के नाम अड़ गई ---


मुझे नहीं लेना इसमें से ,ये तो आपके भाई ने दिये हैं |मैं तब लूंगी जब मेरा भाई लायेगा |
--ठीक है --टीटू ये ले ५० रूपये और ले आ बाजार से |
--नहीं ! इन रुपयों का भी नहीं लूंगी
-तो मैं कहाँ से लाऊँ  रूपये --?
--मैं नहीं जानती !
कोयलिया पैर पटकती हुई कमरे से बाहर हो गई |
--माँ की भी त्यौरियां चढ़ गईं -ओह !क्या जिद लगा रखी है |आज का दिन क्या मुँह फूलाने  का है |मुझे तो हजार काम !मैं तो चली ---|
टीटू समझ नहीं पा रहा था -कोयलिया  क्या चाहती है उसका अपना तो कुछ है ही नहीं, सब  माँ -बाप का है।

अचनक दिमाग में कौंधा ---अरे है-- मेरा है --मेरी गुल्लक! वह खुशी से उछाल पड़ा |जो गुल्लक उसे जान से भी प्यारी  थी उसे टीटू ने  एक झटके में  तोड़ दिया |सारे पैसों को जेब के हवाले कर बुदबुदाया -- ऐसा सुन्दर उपहार खरीदूंगा जैसा किसी भाई ने अपनी बहन को न दिया होगा |
बाजार में बड़े -बड़े फूलों वाली फ्रोक उसे बहुत पसंद आई |जेब के सारे पैसे पलटते हुए दूकानदार से  बोला -इनके बदले वह फ्रोक दे दो |
पहले इन्हें गिनने तो दो --एक --दो --तीन ----।अरे, ये तो केवल  पाँच रूपये हैं |फ्रोक तो पचास रुपयों की है |
--पचास रूपये !टीटू उदास हो गया |पैसों को बटोर कर आगे चल दिया |
चप्पल की दुकान पर रूककर उसने उसके भी दाम पूछे | उसके बीस रूपये सुनकर  पूरी तरह निराश तो  नहीं हुआ |हां ,उसे अपने पर गुस्सा जरूर आया -यदि मैं कल दो रूपये की टाफी न खाता ,परसों पेन्सिल  न खरीदता तो और पैसा बचा सकता था और वह पैसा आज काम आता |
बाजार की खाक छानते -छानते उसने देखा -छोटे से  डिब्बे  में दो  हेयर पिन (hair pin )पड़े हैं मानो कह रहे हों  --हमें  इस कोठरी से निकालो --हम किसी के बालों की शोभा बनना चाहते हैं ।
-कोयलिया के बाल तो काले और चमकीले हैं यदि ये  पिन उसके बालों में लगा दिए जाएँ  तो बाल और भी सुन्दर  लगने लगेंगे -यह सोचकर उसने दुकानदार से कहा -मेरे पास पाँच रूपये हैं ,उनके बदले  दोनों गुलाबी  हेयर  पिन(hair pin) दे दो |
-इनकी  कीमत तो छ ;रूपये है |
-

-मेरे पास और नहीं हैं |पाँच रुपयों में ही दे दो वरना मैं अपनी बहन को राखी का उपहार नहीं दे पाऊँगा |
--तुमने तो बहुत अच्छे कपड़े पहन रखे हैं लगता नहीं कि तुम्हारे पास केवल पाँच रूपये हैं |
-मैं अपनी गुल्लक के पैसों से बहन को कुछ देना चाहता हूँ |
--यह तो तुम्हारी बचत की कमाई है |सब बहन पर खर्च कर दोगे !
--हां !उसे मैं बहुत प्यार करता हूँ |
--तब तो ये  पिन तुमको देने  ही पड़ेंगे और हां --अपनी बहन को मेरी ओर से भी राखी की मुबारकबाद देना |
-जरूर --जरूर--- कहता हुआ टीटू पिन लेकर घर की ओर उड़ चला ||

उस ने सोती हुई कोयलिया के बालों में धीरे से क्लिप लगा दिये  |कागज पर कुछ लिखा और उसे भी मोड़कर उसके सिरहाने रख दिया |दूर बैठकर वह उसके उठने का इंतजार करने लगा |
अंगडाई लेते ही कोयलिया का हाथ कागज पर पड़ा |वह फड़ -फड़ करने लगा | दोनों हेयर पिन की उस पर नजर गई |वे मटक -मटक कर गाने लगे  -

-मेरी बहन फुलझड़ी
रोये तो बिजली गिरी
हंसे तो जुगनू की लड़ी
लड़े तो झांसी की रानी
प्यार करे  तो महक उठे
बेला ,चमेली चंपा  सी
मेरे दिल की क्यारी |
कोयलिया की नींद भाग गई |लगा सिर पर कोई रेंग रहा है |उसने दोनों  हाथ ऊपर मारे  ,खट से हेयर पिन उसके हाथ में आ गए  |
-तुम कहाँ से आये ?वह हैरान थी |

हम आये हैं बाजार से
टीटू भैया लाया है
जगह -जगह वह भटका है
राखी का तोफा लाया है
जाकर उसको प्यार करो
झगड़ा उससे बंद करो ।

कोयलिया, भैया -भैया कहती टीटू की ओर दौड़ी |एक दूसरे के गले लगकर दोनों भाई -बहन स्नेह के धागों में न जाने कितने देर तक गुंथे रहे |

* *    *       *      * *
प्यारे बच्चों



तुम्हारे हाथ उसी तरह जुड़े होने  चाहिए जैसे ऊपर के चित्र में हैं ।तुम्हें एक रहस्य की बात बताएं --जिन भाई -बहन के हाथ मिले रहते हैं उनके दो हाथ दो पैर नहीं --चार हाथ -चार पैर होते हैं ।अगर यह बात समझ में न आये तो अपने मम्मी -पापा से पूछना और सबको बताना ।

9 टिप्‍पणियां:

  1. "रुनझुन"ने कहानी -गुल्लक की करामात " पर एक टिप्पणी छोड़ी है:

    ओह आंटी, बहुत-बहुत-बहुत ही अच्छी कहानी है ये...पढ़ते-पढ़ते मेरा मन भर आया...
    अभी दो दिन पहले ही तो मैंने भी रक्षाबंधन का प्यारा सा त्योहार मनाया है...
    मैं बहुत लकी हूँ कि मेरे पास भी एक बहुत ही प्यारा सा भाई है...
    पता है आंटी आपकी इस कहानी के पात्र तो हम दोनों भाई-बहन ही हैं...
    मेरे भाई ने भी मुझे अपने हाथों से बना हुआ एक प्यारा सा कार्ड और अपने बचत के पैसों से खरीदकर एक सुन्दर सा कंगन दिया है.... :) :) :)



    "रुनझुन" द्वारा बालकुंज के लिए 3 अगस्त 2012 8:50 pm को पोस्ट किया गया

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  2. प्यारी सी रुनझुन

    तुम्हारा एक -एक शब्द कानों में रस घोल रहा है |

    टीटू की तरह तुम्हारे भाई ने भी अपनी बचत से तुम्हें राखी का उपहार दिया यह जानकर बहुत खुशी हुई |इसका मतलब --तुमको वह बहुत प्यार करता है |ठीक कहा न !तुम्हारा प्यार फूलों की तरह हमेशा खिलता रहे |

    बाल कुञ्ज ब्लॉग पर तुम्हारा स्वागत है |बाल मित्रों सहित इसपर आते रहना |

    आंटी सुधा

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  3. bachchon ke liye bahut pyari kahani rakhi ke avsar par prosee hai aapne ,jo unhen pasand aaegee.sundar.

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  4. सुधा जी ...क्या इतेफाक हैं ...राखी वाले दिन मैं एक भाई की कलाई में रखी नहीं बंध पाई थी ...इसका मलाल मुझे और भाई दोनों को था ...पर आज उनसे मिलने पर उन्होंने वैसे ही रखी बंधवाई जैसे कि हम लोग रखी वाले दिन बंधाते हैं ...एक बार पहले नेग मिलने पर वो खुशी नहीं हुई थी ...जो आज उन्होंने चिप कर मेरी हथेली में रखी का नेग रखा ....ये प्यार ही तो हैं जो हम सबको साथ बंधे हुए हैं .......

    बहुत अच्छी शिक्षा के साथ लिखी गई हैं आपकी ये कहानी ......

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  5. इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.

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