प्यारे बच्चों

कल सपने में देखा -मैं एक छोटी सी बच्ची बन गई हूं । तुम सब मेरा जन्मदिन मनाने आये हो । चारों ओर खुशियाँ बिखर पड़ी हैं ,टॉफियों की बरसात हो रही है । सुबह होते ही तुम में से कोई नहीं दिखाई दिया ।मुझे तो तुम्हारी याद सताने लगी ।

तुमसे मिलने के लिए मैंने बाल कुञ्ज के दरवाजे हमेशा के लिए खोल दिये हैं। यहाँ की सैर करते समय तुम्हारी मुलाकात खट्टी -मीठी ,नाटी -मोती ,बड़की -सयानी कहानियों से होगी । कभी तुम खिलखिला पड़ोगे , कभी कल्पना में उड़ते -उड़ते चन्द्रमा से टकरा जाओगे .कुछ की सुगंध से तुम अच्छे बच्चे बन जाओगे ।

जो कहानी तुम्हें अच्छी लगे उसे दूसरों को सुनाना मत भूलना और हाँ ---मुझे भी वह जरूर बताना ।
इन्तजार रहेगा ----! भूलना मत - -

बुधवार, 15 जनवरी 2014

बालकहानी


सोने की कढ़ी


एक लोहार था । वह घर जा -जा कर चाकू छुरी और दराँती पर धार रखा करता। जिस चाकू की धार पैनी करता वह बड़ी कुशलता से महीनों सब्जी -फल काटा करता। एक दिन वह भरी दोपहरी में आवाज लगा रहा था धार रखवा लो धार ---तलवार से भी तगड़ी धार।

एक युवती ने उसे पुकारा। छुरी वाला बोला मजदूरी के अलावा जितने छुरी चाकू पर धार रखवाओगी उस हिसाब से उतनी ज्यादा रोटियाँ मुझे खिलानी पड़ेंगी। रोटी छोटी बड़ी हो सकती हैं पर सब्जी कटोरा भरकर होनी चाहिए।

 युवती ने हँसकर अपनी गर्दन हिला दी। उसने चार चाकुओं पर धार रखवाई और उसके अनुसार मजदूरी उसकी हथेली पर रख दी। इसके साथ ही एक थाली में चार रोटियाँ और कटोरे में कढ़ी रखकर उसके आगे खिसकाई।

खाते समय उसने पूछा यह पीली -पीली सब्जी क्या है? बड़ी जायकेदार है।
-इसका नाम कढ़ी है ।




-इसमें गोल गोल गोले कैसे हैं ?
-ये सोने की पकौड़ियाँ हैं।
-तब तो कल आकर भी खाऊँगा । घर के और सारे चाकू छुरियाँ निकाल कर रखना ।
-घर में तो नहीं हैं ।
-तो क्या हुआ! पड़ोस की ले लेना । कुछ सस्ते में धार रख दूंगा ।

दूसरे दिन लोहार ठीक खाने के समय युवती के घर आन धमका। 2-3 छुरियों पर धार रखने के बाद मजदूरी तो मिल गई मगर थाली में केवल रोटियाँ देख बिदक पड़ा कढ़ी तो है ही नहीं ---रोटी कैसे खाऊँ ?
-सोना खतम हो गया ,कढ़ी की पकौड़ियाँ  कैसे बनाती ?
-ओह !सोना बहुत लगता है क्या ?
-लगता तो थोड़ा ही है। युवती ने सिर खुजलाते हुए कहा ।
-अच्छा ,मैं घर में खोजूंगा। शायद कुछ हाथ लग जाये ।

अगले दिन वह बहुत खुश था। उसके हाथ  में सोने की एक बाली थी। जब वह चाकुओं पर धार देने गया तो रास्ते में युवती का घर पड़ा ।
एक मिनट वहाँ रुका और बोला लो यह बाली । इससे जल्दी से कढ़ी बना दो और हाँ !2-3 दिनों तक इससे काम चलाना। बस मैं अभी आया ।

उस रोज युवती ने खूब सारी कढ़ी बनाई। लोहार ने जी भर कर खाई ।
चलते चलते बोला मेरी बीबी को भी दो रोटियों के साथ कढ़ी दे दे। वह भी खाकर खुश हो जायेगी।
कढ़ी खाने वाले भी खुश और कढ़ी बनाने वाली भी । अब तो हर तीसरे चौथे दिन चोरी छुपे लोहार पत्नी का गहना उठाकर युवती को सौंप देता और वह उसे लेकर तिजौरी में रख देती।अब तो उसके कब्जे में दोनों बालियाँ थीं।  

कान की बालियाँ 
एक दिन युवती ने फिर कढ़ी नहीं बनाई और बिगड़ते हुए बोली -सोना तो खतम हो गया फिर कैसे बनाती ?
लोहार इस बार नीला पीला  हो उठा और चिल्लाकर बोला मेरे लाए सोने से तुमने कढ़ी बनाई। तुमने खाई ,तुम्हारे घर वाले और बच्चों ने भी खाई होगी। एक दिन तुम अपने सोने से कढ़ी नहीं बना सकती थी ?

उसकी चिल्लाहट सुनकर पास पड़ोस के लोग वहाँ आकर जमा हो गए और लोहार की बात सुनकर हंस पड़े ।
-तुम लोग खी खी करके दाँत क्यों निकाल रहे हो ?लोहार और भी झल्ला उठा ।

एक देहाती मसखरी करता हुआ बोला अभी तक तूने सोने की कढ़ी खाई है मैं तुझे लोहे की खीर खिलाऊंगा। कढ़ी से भी ज्यादा जायकेदार ।
-लोहे की खीर ! क्यों मुझे उल्लू बनाता है । लोहे से बर्तन औज़ार तो मैंने बनाए हैं पर खीर ! कभी नहीं !अगर तूने खीर बना भी दी तो लोहे को चबाएगा कौन ?
-तूने जब सोने की पकौड़ियाँ चबा ली तो लोहे के दाने भी चबा सकता है ।

लोहार को झटका सा लगा और सिर पकड़कर बैठ गया।
 वह बड़बड़ाया ---मुझ सा मूर्ख भी भला होगा कोई दुनिया में। सोना और लोहा तो मौसेरे भाई हैं । दोनों ही दांतों से नहीं चबाए जा सकते। यह छोटी सी बात मेरी समझ में न आई।  
लेकिन कुछ ही देर में हिम्मत जुटाकर उठ खड़ा हुआ और सीना तान कर बोला -
-अब मेरी  बारी है । देखना लोहे की तरह पीट पीटकर इस चालबाज औरत से अपना सोना न निकलवा लिया तो मैं लोहार नहीं ।

इतने में उसका पति आ गया । भेद खुल जाने के डर से युवती काँपने लगी । उसे देखते ही लोहार बोला साहब आपकी पत्नी ने मुझे लूट लिया और मैं मूर्ख ,जीभ का गुलाम इसकी बातों में आ गया ।इससे कहिए मेरे सोने के जेवर वापस कर दे।


सोने के जेवर
सारी बात जानने के बाद वह अपनी पत्नी की करतूत पर शर्मिंदा हो उठा । युवती समझ गई कि उसका पति ज्वालामुखी की तरह किसी भी समय फट सकता है। उससे अपना बचाब करने के लिए वह भागी हुई कमरे में गई और आकर पति के हाथों में सोने की चैन ,बालियाँ  और अंगूठी थमा दीं ।
पति लोहार को गहने लौटाते हुए बोला -भाई ,आगे से जरा सावधान रहना । इस दुनिया में तो उल्लू बनाने वाले बहुत से मिल जाएँगे ।  


-चित्र गूगल से साभार

यह कहानी द्वीप लहरी बालसाहित्य रचना अंक जनवरी -जुलाई (हिन्दी साहित्य कला परिषद पोर्ट ब्लेयर का प्रकाशन )पेज 30 पर प्रकाशित हो चुकी है।

नववर्ष 2014 मुबारक हो ।

नए साल का उपहार /सुधा भार्गव

जापानी गुड़िया

उसका गुड़िया प्रेम कुछ निराला ही हैं । सात पूत की माँ और दर्जन भर पोते पोतियों की दादी –नानी माँ बन गई है पर गुड़िया उससे छूटी नहीं । बचपन में उसकी पिटारी कागज,काठ और कपड़े की बनी गुड़ियों से भरी रहती । उठाओ तो बड़ी भारी,खोलो तो कबाड़ा । उसकी शादी के समय पिताश्री ने सोचा –इसके लिए कुछ नई गुड़ियाँ मँगा दी जाएँ वरना यह कबाड़ा ही अपने साथ ले जाएगी। सो राजा टोंयज छाप कंपनी की छोटी –बड़ी,मोटी –पतली पाँच –छ्ह गुड़ियाँ मंगा दीं। मगर इतने से उसकी तृप्ति कहाँ! कलकत्ते ससुराल जाते ही  जाते ही बंगाली वर –बधु खरीद लिए।


 कुछ समय बाद घर में एक जीती -जागती गुड़िया आ गई। सारा समय वह उसका ले लेती पर शोकेस में सजाई गुड़ियों को निहारना न भूलती। बेटी ससुराल गई,बेटे बड़े हो गए तो बाहर घूमना क्या शुरू हुआ घर में गुड़ियों की आबादीबढ्ने लगी। योरोप से 2-3 डॉल खरीद लाई। कनाडा पोती

 के होने में गई तो वहाँ से भी बोलती-चलती-फिरती गुड़िया खरीदना न भूली। उसके इस जुनून 

को सब जानते थे। टोकाटाकी भी न करते। जानते थे रोकने से वह रुकेगी नहीं।

घर में पोती आई तो उसे कलेजे से लगा बैठी। उसे बहुत बरसों बाद जीती-जागती सुंदर सी गुड़िया मिली थी। पोती पर भी दादी की छाप पड़ गई। उसके लिए भी वह नीली –नीली आँखों वाला ,गोरा –चिट्टा गुड्डा खरीद लाई जो देखने में 6 माह का लगता था। पोती तो उससे भी दो कदम आगे 

निकली। मजाल है कोई उसे छू ले। कोई बच्चा घर में आता तो उसे छुपा देती। जब वह अपने

 मम्मी –पापा के साथ लंदन उड़ी तो गुड्डा उसकी गोद में बैठा था। पोती के जाने की बाद दादी माँ टूट सी गई। हाँ, फोन पर बातें करके ,लैपटोंप में स्काईपी पर उसे देखकर अपना कलेजा जरूर ठंडा कर लेती।
दो साल पहले बेटा जापान जाने लगा। पूछा –माँ ,आपके लिए क्या लाऊं ?
-बेटा वहाँ से जापानी डॉल लाना –बड़ी सी। बच्ची की तरह बोली।
  
-ठीक है आपके लिए ले आऊँगा।

-पहले अपने लिए लाओ ।फिर मेरे लिए लाना। जानती थी उसकी पोती को भी डॉल का बहुत शौक है। 
पिछले साल वह लंदन गई। ड्राइंग रूम  में घुसते ही आनंदित हो उठी –अरे वाह !कितनी सुंदर है!

 उसकी निगाह कोने में अटक –अटक जाती । बेटा उन निगाहों को पहचान गया। बोला-

-इस गुड़िया को भारत अपने साथ ले जाना।

--न –न । अगली बार मेरे लिए दूसरी ले आना।
2013 नवंबर में उसे मालूम हुआ ,बेटा जापान जाने वाला है।
फोन खटखटाने में देरी न की –मेरे लिए जापानी गुड़िया जरूर ले आना और हाँ, मिले बहुत दिन हो गए हैं। अगर दिसंबर में आओ तो गुड़िया यहाँ लाना न भूलना।

भाग्य से 28 दिसंबर को बेटा दो रातों को भारत आ गया और माँ के लिए नए साल का

 तोहफा लाना न भूला। उसे देखकर वह उस डॉल की यादों में डूब गई जो उससे बहुत दूर है। नए 

वर्ष 2014 में जो भी मिलने आता है वह उसे जापानी गुड़िया दिखाना नहीं भूलती है और कहती है –

ठीक ऐसी ही जीती-जागती, दौड़ती -भागती  गुड़िया लंदन में भी रहती है ।  

गुड़िया 

समाप्त