बच्चों
विजयदशमी
अगरबत्ती सी खुशबू लिए
तुम्हारे घर आँगन में आ चुकी है
जो कह रही है
अच्छे काम करो
बुराई से बचो
जो बता रही है
राम अच्छा था
रावण बुरा था
राम ने अच्छा किया
बुरे का अंत किया ।
पर इससे भी ज्यादा जानना तुम्हारे लिए जरूरी है ।
इसके लिए एक कहानी सुनाती हूँ ।कहानी की कहानी और जानकारी की जानकारी ।
घर का भेदिया
एक दिन वह सरपट के जन्मदिन पर उसके घर गया |सरपट बहुत सरल हृदय का था |उसको जो भी नई चीज मिलती अपने दोस्तों को दिखा -दिखाकर खुश होता |मनचला तो उसका खास दोस्त था |जन्मदिन पर वह उसे अपने कमरे में ले गया |
उपहारों के पैकिट देखकर मनचला का मन चल निकला --
-इनमें क्या -क्या है | उसने पूछा |
-ज्यादातर टाफियां -चाकलेट के डिब्बे हैं |
-एक डिब्बा खोलकर दिखाओ न |
-हाँ --हाँ अभी दिखाता हूँ |
अरे सर्रू---सरपट आ --|केक काटने का समय हो गया है | सरपट को प्यार से घर में सरू कहते थे |
माँ की आवाज कानों से टकराते ही सरपट भागा पर मनचला-- मनचला जो ठहरा ---सो वहीं ठहर गया |
उसके दिमाग ने शुरू कर दी अपनी कसरत --- डिब्बा खुल तो गया ही हैं जरा हाथ डालकर देखूँ,क्या चमकीला -चमकीला सा है |
अरे टाफी --इतनी बड़ी --खुशबूदार !एक तो खा ही लूँ इतनी सारी टाफियों में एक कम हो गई तो क्या पता लगेगा |
बंद मुँह में टाफी का रस चूसता हुआ कमरे से निकला |उसके साथी केक का स्वाद ले लेकर खा रहे थे |
वह दबे पाँव लौट गया कमरे में और इस बार मुट्ठी भरकर टाफियां जेब के हवाले कीं |चुस्ती से बाहर आकार केक खाने में लग गया जिससे किसी को उस पर शक न हो | |केक समाप्त करके बच्चे खेलने में लग गये पर मनचले को चैन कहाँ ! दिमाग में शैतान आन बैठा ----अभी तो डिब्बे में बहुत टाफियां हैं क्यों न एक मुट्ठी दूसरी जेब में भी भर लूँ फिर तो घर जाना ही है |घर में तो मुझे कोई इतनी टाफियां देता भी नहीं हैं |उसने इच्छा पूरी की और अपनी विजय पर मुस्काता जल्दी -जल्दी घर की राह ली |
मेहमानों के जाने के बाद दादा जी बोले --सरपट जरा अपने उपहार तो दिखाओ |
-अभी लाया दादाजी --|
दादा जी इंतजार करते रहे पर सरपट के आने का नाम ही नहीं |हैरान से वे उसके कमरे में गये |सरपट के आगे टाफी का एक डिब्बा खुला पड़ा था और वह सुबक रहा था |
--क्या हुआ बेटा ?खुशी के दिन यह रोना -धोना क्यों |
-मेरी टाफियां कोई खा गया ---बहुत सी चुरा ले गया |
--किसी को मालूम था क्या कि तुम्हें मिले उपहार यहाँ रखे हैं !
-हाँ ,मनचले को !मैं उससे कुछ नहीं छिपाता |वह तो मेरा सबसे अच्छा दोस्त है |
-यह तुम गलत करते हो |कल को कह दिया -मेरी गुल्लक माँ की अलमारी में रखी रहती है और उसमें बहुत सुन्दर -संदर साड़ियाँ भी है तो आज छोटा चोर मिला है कल बड़ा भी मिल सकता है |घर के भेदी ने तो लंका भी ढा दी थी |
-वही लंका ---- जिसका राजा रावण था ----- |वह दुष्ट तो सीता जी को चुरा कर ले गया था और देखने में भी पूरा राक्षस --दस सिर --बीस हाथ |अच्छा किया राम ने उसे मारकर ।
-- बिना जाने बूझे तुम उसकी हँसी उड़ा रहे हो |राक्षसों जैसे बुरे काम करने के कारण वह दुष्ट कहलाया पर था बहुत विद्वान् !दस दिमागों के बराबर उसमें बुद्धि थी और बीस हाथों के बराबर उसमें शक्ति | उस साहसी और युद्ध कला में चतुर योद्धा को लड़ाई में राम चन्द्र जी भी नहीं हरा पा रहे थे ---एक सिर उसका धड़ से अलग करते दूसरा आन लगता |
-फिर वह कैसे मारा गया ?
-घर के भेदिये के कारण ---|
-कौन था दादाजी--- भेदिया ?
--तुम सुनकर ताज्जुब करोगे--- भेदिया था उसका ही छोटा भाई विभीषण जिसे रावण बहुत प्यार करता था |उसपर विश्वास करके
अपनी और अपने राज्य की सारी बातें उसको बता दिया करता |पर वही सगा भाई राम से जाकर मिल गया और उसने रावण के सारे रहस्य राम के सामने उगल दिए।
- दुश्मन से दोस्ती कर ली !तब तो वह देश द्रोही था ।
-तुम ठीक कह रहे हो !युद्ध के मैदान में विभीषण ने चिल्लाकर कहा --- हे राम ! रावण की नाभि में उसकी मृत्यु का भेद छिपा है |पहले
उसमें भरा अमृत का तालाब नष्ट करो वरना वह अमर रहेगा | वह कभी नहीं मरेगा ।
बस फिर क्या था -- बिना देर किये ,राम ने नाभि पर निशाना लगाकर उसके टुकड़े -टुकड़े कर दिये और रावण के सीने में तीर मार कर सदैव के लिए उसे सुला दिया |
मरते समय रावण को मरने या हारने का इतना दुःख नहीं था जितना विश्वासघात का |विभीषण ने अपने भाई को कम दुःख नहीं पहुँचाया था ||रावण को लगता मानो ,उसके भाई ने उसके दिल में कीलें ठोक दी हों और उनसे खून बह रहा है ।
घर का भेदिया तो बड़ा खतरनाक होता है |मैं ऐसा खतरा कभी नहीं बनूंगा -सरपट बुदबुदा उठा |
दादाजी उसकी मनोदशा समझ गये |प्यार से बोले --बेटे, कल की बात छोड़ो आगे की सोचो |
--तुम को तो एक ऐसा वीर सिपाही बनना है जो देश की रक्षा करेगा ,जो न देशद्रोही होगा न किसी का जी दुखायेगा ।
--मैं जरूर वीर सिपाही बनूंगा ।सर्रू उत्साह से भर उठा ।
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