प्यारे बच्चों

कल सपने में देखा -मैं एक छोटी सी बच्ची बन गई हूं । तुम सब मेरा जन्मदिन मनाने आये हो । चारों ओर खुशियाँ बिखर पड़ी हैं ,टॉफियों की बरसात हो रही है । सुबह होते ही तुम में से कोई नहीं दिखाई दिया ।मुझे तो तुम्हारी याद सताने लगी ।

तुमसे मिलने के लिए मैंने बाल कुञ्ज के दरवाजे हमेशा के लिए खोल दिये हैं। यहाँ की सैर करते समय तुम्हारी मुलाकात खट्टी -मीठी ,नाटी -मोती ,बड़की -सयानी कहानियों से होगी । कभी तुम खिलखिला पड़ोगे , कभी कल्पना में उड़ते -उड़ते चन्द्रमा से टकरा जाओगे .कुछ की सुगंध से तुम अच्छे बच्चे बन जाओगे ।

जो कहानी तुम्हें अच्छी लगे उसे दूसरों को सुनाना मत भूलना और हाँ ---मुझे भी वह जरूर बताना ।
इन्तजार रहेगा ----! भूलना मत - -

मंगलवार, 6 मई 2025

बाल श्रेष्ठ कहानियाँ भाग चार में मेरी कहानी -एक कमी है






इस संग्रह में केवल 12 कहानियाँ हैं। सब अलग अलग तेवर लिए हैं। कहानियों का चयन बड़ी कुशलता से किया गया है। उनमें मेरी भी एक कहानी है--

एक कमी है 

     “मुझे अपनी एक फोटो दे दो।” 

     “क्यों मेरी लाडो!”

     “स्कूल जाने पर मुझे आपकी बहुत याद आती है। जब भी आपके बारे में सोचूँगी ,झट से फोटो देखूँगी।” 

     “अभी तो मेरे पास अच्छी फोटो नहीं है।”

      “कैसी भी दे दो। होगी तो मेरी दादी माँ की ही। आप बैठी रहो। मुझे बता दो कहाँ रखी है?मैं ले आऊँगी।”  

     “देख,सामने की अलमारी में नीचे के रैक में मेरी अल्बम रखी है। उसे ले आ।” 

     छ्टंकी को कहाँ इतना सब्र!उसने अल्बम से खुद ही एक फोटो निकाल ली।देखते ही चिहुँक पड़ी-“इसमें तो अम्मा आपके बाल बड़े लंबे हैं। बहुत स्मार्ट लग रही हो। मैं इसे अपनी सहेलियों को दिखाऊँगी। और हाँ,जब मैं कल स्कूल से लौटूँ तो मुझे जरूर लेने आना ।” 

“क्यों रानी जी,कल कोई खास बात है?”

     “किसी की दादी माँ पैंट नहीं पहनती। जब मैं रोनी-मोनी से बताती हूँ तो विश्वास ही नहीं करतीं। कल वे अपनी आँखों से देख लेंगी।” 

     दादी हंसी से फट पड़ी। उन्हें अपनी उम्र 10 वर्ष कम लग रही थी। 

     पायल सी झनकती बोलीं-“तेरी बात भला मैं कैसे टाल सकती हूँ।” 

    “ओह मेरी लवली दादी!मैं आपको सबसे ज्यादा प्यार करती हूँ।आप सबसे ज्यादा किसे प्यार करती हो?”

    “अपनी छुटकी छटंकी को।” दादी ने स्नेह से उसके रुई से मुलायम गालों को छुआ। पुलकित हो उन्होंने कुछ देर को आँखें बंद कर लीं।उनमें एक भोली बालिका कैद थी। 

    “इसीलिए तो मैं पापा के साथ इंग्लैंड नहीं जाना चाहती।”

    “वहाँ तो तुम्हें देखने को चमचमाती नई दुनिया देखने को मिलेगी। भला क्यों नहीं जाओगी?”

    “आप तो एकदम बच्ची हो।छोटी सी बात नहीं समझ नहीं पा रहीं। वहाँ आप नहीं होंगी,तो बातें किससे करूंगी!’’ 

    “रानी एलिज़ाबेथ से ---।’’दादी ने ठिठोली की।

    “आप तो बस ---सब समय मज़ाक। मैं इस समय बहुत सीरिअस हूँ।’’ 

    “इन्टरनेट से बातें कर लेंगे।’’ 

   “प्रोमिज—नन्हा सा हाथ बढ़ा।’’ 

   “प्रोमिज। ’’ बड़ा सा हाथ भी बढ़ा और हाथ से हाथ मिल गया। 

    कुछ पलों के लिए दोनों के बीच मौन पसर गया। अचानक छटंकी ने अपना एक हाथ मुंह पर रखा। दूसरे हाथ के सहारे अपनी दादी के पास और खिसक आई।    “अम्मा,एक बात कहूँ,किसी से कहना मत। जरा अपना कान लाओ।” आज्ञाकारी बच्चे की तरह दादी ने अपना कान बढ़ा दिया। 

     छुटकी ने इधर-उधर नजर डाली—कोई उसकी बात तो नहीं सुन रहा। फिर धीरे से अपना मुंह कान के पास लाई। फुसफुसाते हुए बोली-“पापा बहुत बुरे हैं।” 

      “ऐ---क्या  कह रही है!” दादी अम्मा को करंट सा लगा।उन्होंने कभी सोचा भी न था कि छुटकी अपने पापा के बारे में ऐसा सोचेगी। 

     “ठीक ही कह रही हूँ। आपने जो मुझे गुड्डा दिलाया था,पापा कह रहे थे—उसे इंग्लैंड नहीं ले जाएँगे।”

     “तो क्या हुआ !वह वहाँ दूसरा खरीद देगा।” 

    “मैं उसे छोड़कर नहीं जाऊँगी । वह आपका दिया हुआ है। आपकी दी हर चीज उतनी ही प्यारी है जितनी आप।” 

    “और लोग भी तो तुम्हें नई-नई-चीजें देते हैं। मैं ही तो नहीं देती।” 

     “आपकी बात कुछ और ही है। मामा-मम्मी,जूते,टी शर्ट,स्कर्ट खरीदते हैं। दीदी उन्हें पहले पहनती है,फिर मुझे मिलते हैं। मैं अब बड़ी हो गई हूँ—पुराना क्यों पहनूँ!बस गुड्डा  ,नीली आँखों वाला नया-नया है। वह तो अच्छा है कि दीदी को गुड़िया खेलने का शौक नहीं। वरना गुड्डा भी छिन जाता।” एक विजयी मुस्कान उसके चेहरे पर खेल रही थी। 

     “भोले बच्चे ,तुम दोनों ही उससे खेल सकते हो।” 

   “खेलना दूसरी बात है। वह तो रौब जमाने लगती है। कुछ भी हो गुड्डा तो मैं इंग्लैंड लेकर ही जाऊँगी। और--- किसी को छूने नहीं दूँगी।” उसकी आवाज में सूरज की सी गर्मी थी। 

     “यह कितने साल का है अम्मा?”

     “होगा एक साल का। मेरे पास छोटे –छोटे स्वटर बने रखे हैं। उन्हें वह  पहन लेगा।”

     “गुड्डे के इतनी जल्दी स्वटर बुन दिए! मेरी अम्मा बहुत चतुर है। आपको तो मालूम है इंग्लैंड में बहुत सर्दी पड़ती है। अब इसे ठंड भी नहीं लगेगी।” 

उसने खुशी में डूबकर गुड्डे को चूम लिया। “देखा मेरे गुड्डे ,तेरे स्वटर भी तैयार हैं।” 

     “पोती-अम्मा की क्या गुटर-गूं हो रही है।मैंने सब सुन लिया है। बस यह गुड्डा नहीं जाएगा,इसका टिकट लगेगा।” छटंकी को छेड़ते हुए उसके पापा बोले। 

      “बेटा इसे मत सता,छ्टंकी इसे गोदी में ले जाएगी। पिछली बार मैंने लंदन के  हिथ्रो एयरपोर्ट पर देखा था छोटी –छोटी फूल सी बच्चियों को। एक कंधे पर उनके बैग झूल रहा था। उसमें उनका टिफिन और पानी की बोतल  थी,दूसरे हाथ में अपनी गुड़िया पकड़ रखी थी।” शायद छटंकी के पापा को माँ की बात पसंद आ गई। मुस्कान बिखेरते हुये कंप्यूटर में व्यस्त हो गए। 

     गुड्डा था भी बड़ा प्यारा।रेशम से सर के बाल,गोरा -गोरा नीली आँखों वाला हँसता चेहरा। जो उसे देखता गोदी में लेने को लालायित हो उठता। 

     भारत से गुड्डा लंदन पहुंच गया । छटंकी को अम्मा  के बिना चैन कहाँ! दूसरे ही दिन फोन खटखटा दिया –“अम्मा मेरा गुड्डा यहाँ सबको बहुत पसंद आया। उसको गोद में ले-लेकर देख रहे थे। मुझे तो डर लगने लगा,कोई उसे लेकर  भाग न जाए।” 

     एक लड़के ने पूछा-कहाँ से खरीदा है? 

    मैंने कहा-“भारत से। उसे बड़ा आश्चर्य हुआ। अम्मा उसे आश्चर्य क्यों हुआ?”

      “इसलिए कि वह कभी सोच ही नहीं सकता था कि हमारे देश में इतनी सुंदर चीजें बनती हैं। ये खिलौने विदेशों में खूब बिकते हैं। कुछ ही दिनों में हमारा देश मालामाल हो जाएगा।” 

     “मेरे पास भी बहुत पैसा हो जाएगा क्या?”

    “हाँ!”

     “तब तो रोज आपको हवाई जहाज से यहाँ बुलाऊंगी। आप आओगी न—। ” 

     “हाँ बाबा,रोज आऊँगी। तुम्हें तो वहाँ बहुत अच्छा लग रहा होगा। साफ सड़कें,ऊँचे-ऊँचे घर,खाने को चॉकलेट,आइसक्रीम और केक।” 

    “बस एक कमी है।” 

    “किसकी?”

    “आपकी।” 

     यह  सुनकर  दादी माँ का मन भर आया और वे प्रेम की बारिश में न जाने कब तक भीगती रहीं।


मेरी कहानी पर माननीय प्रकाश मनु  जी की टिप्पणी  

 जो मेरे लिए अनमोल है। 


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नए भारत का नया सवेरा

 

नए भारत का नया सवेरा 

किशोर उपन्यास 

सुधा भार्गव 


साथियों ,नए भारत का नया सवेरा (किशोर उपन्यास ) आखिर आज मेरे हाथों में आ  ही गया । इसमें मैंने  पर्यावरण  की नब्ज पहचान कर प्रकृति से पलायन बाद को रोकने की कोशिश की है जिससे नए भारत का निर्माण हो और वह एक नया सवेरा लेकर आए। 

उपन्यास में एक ही विषय की विभिन्न कड़ियों  को २० अध्याय में पिरोने का प्रयत्न किया है। छुट्टियों में दो बच्चे अपने माँ -बाप के साथ दादी -बाबा के गांव जाते हैं । यह गाँव  पर्यावरण का दोस्त है।बाबा के घर में बच्चों की  मुलाकात सूर्या चूल्हा ,सूर्या  लालटेन और सूर्य पुत्र  से होती है।  उन  मछलियों से भी मिलते हैं जो तालाब में तैर रही थीं  साथ ही उसमें तैर रहे थे  हरे -भरे पौधे।

विभिन्न विषय के अनुसार उपन्यास में चित्रों की व्यवस्था है। आवरण तो बहुत लुभावना है । मनीष वर्मा ने बहुत सूझबूझ व मेहनत से इन्हें बनाया है। पंकज चतुर्वेदी के सम्पादन का कमाल है कि पुस्तक त्रुटि विहीन लगती है। इसके लिए पंकज जी व उनकी पूरी टीम का बहुत बहुत धन्यवाद।
सुधा भार्गव



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कल जब कथा कहेंगे







28 फरवरी को मेरे निवास स्थान पर इस कहानी संग्रह के प्रकाशित होने की खुशी में
विभा रानी श्रीवास्तव,मधुरेश नारायण,राश दादा राश, राही राज, प्रीति राही, ऋता शेखर मधु आए।अपना अमूल्य समय देकर इस कार्यक्रम की शोभा बढ़ाई। कहानियों के साथ-साथ कविता और गीतों के गूंजते संगीत ने सबका मन मोह लिया। ऋता जी ने कार्यक्रम का संचालन बहुत कुशलता से किया और डॉक्टर रचना(बहू )ने घर की बागडोर संभाली। जलपान व साहित्यिक चर्चा के साथ समाप्ति हुई।इस तरह सबके सहयोग से कार्यक्रम सफल रहा। दिल से मेरा सबको धन्यवाद ।





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उड़क्कू की जीत -सुधा भार्गव


प्रकाशन विभाग 

सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय 

भारत सरकार 

प्रथम संस्करण -2025 

मूल्य रुपये 75 

 

     उड़क्कू की जीत  बाल उपन्यास  आश्चर्य भरे पड़ावों से गुजरती एक ऐसी यात्रा है जिसका सम्बंध पुराने समय  से आज तक चला आ  रहा  है। उड़क्कू   के  सुनहरे दिन बड़े रोमांचक व साहस से  भरे थे। एक समय था जब वह दिलों पर राज करता था। पर धीरे -धीरे लोग उससे दूर होते गए। भावनाओं , संवेदनाओं के अभाव में  मोबाइल  पर हाय -हेलो होने लगी और प्यार भरे रिश्तों में रूखापन  आ गया। दुख की बदली छाने पर भी उड़क्कू ने  हिम्मत नहीं हारी।अंत में अपनी  ओर ध्यान आकर्षित करने में सफल ही रहा। 

अब यह उड़क्कू कौन है !यह तो पूरी तरह से  तभी पता लगेगा जब प्यारे बच्चे उपन्यास के पृष्ठ पलटते हुए उसकी उड़ान  में शामिल हो जाएँगे । आशा है उड़क्कू के साथ अपनी उड़ान भरते समय मेरे बाल पाठक   उमंग व उत्साह के झरोखों से झाँकते मिलेंगे।


 जैसे ही उपन्यास हाथ लगा आवरण ने मन जीत लिया। अंदर की चित्र सज्जा,फॉन्ट का आकार  बालमन के अनुरूप है। कागज की गुणवत्ता भी उत्तम है। इसके लिए प्रकाशन विभाग की पूरी टीम का बहुत बहुत  धन्यवाद ।