पुस्तक -रसगुल्ला भैया और तितली
लेखिका -सुधा भार्गव
चित्रांकन -जेमिनी गूगल
साथियों ,मैंने जेमिनी गूगल की सहायता से पहली बार किताब तैयार करने की कोशिश की है। पूरी सफलता तो नहीं मिली है। कमियाँ हैं। कहानी मेरी है पर चित्र उसी के बनाए हुए हैं। इसलिए उनपर copy right जेमिनी गूगल का ही है।
कहानी अवश्य पढ़िएगा। लिंक दी जा रही है।
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कहानी
रसगुल्ला भैया और तितली
वसंत राजा के आने से धरती फूली नहीं समा रही थी ।लाल नारंगी लहंगा पहने ,हरी चुनरिया ओढ़े लगता था छमछम नाच रही है। रुनक - झुनक आवाज सुन आसमान मेँ गोलमटोल बादल ने धावा बोल दिया। वह तो धरती की सुंदरता को देख चकित रह गया। । सोचने लगा-कितना अच्छा हो यदि मैं भी नीचे उतरकर खुशबूदार हवा मेँ गहरी- गहरी सांस लूँ ,कोयल का मीठा- मीठा गाना सुनूं। और तितलियों के साथ हवा मेँ उड़ूँ ।
जैसे ही नीचे को सरका तितली चिल्लाई-
“ए रसगुल्ले भैया नीचे न आना । मेरे पर भीग जाएंगे। फिर मैं कैसे उड़ूँगी।”
“ऊँह अपने पंख देखे हैं!कितने गंदे हैं 1लगता है महीनों से नहाई नहीं है । उफ कितनी बदबू आ रही है।”
तितली परेशान सी अपने पंखों को सूंघने लगी- “नहीं तो –मेरे पंखों में तो कोई बदबू नहीं आ रही।”
“मैंने कहा ना! –आ रही है।”
भोली तितली नटखट बादल की बात को सच मान बैठी। खिसिया कर बोली -”तब क्या करूँ बादल भैया!”
“तुझे कुछ नहीं करना । धरती पर आने से मेरी रिमझिम- रिमझिम फुआरों मेँ सारी धूल फुर्र से पानी में बह जाएगी। देखते ही देखते सारे पेड़-पौधे ,फूल-पत्तियाँ और चिड़ियाँ हीरे मोती की तरह चमकने लगेंगे।”
“मेरा तो नाम ही नहीं लिया।”
“अरे तितली बहना –सबसे ज्यादा खूबसूरत तो तू ही लगेगी।”
“ठीक है पर ज्यादा गरजना-बरसना नहीं।तेरा कोई विश्वास नहीं!
रसगुल्ला हँसता हुआ धरती की ओर उड़ चला।साथ में बूँदा बूंदी होने लगी।देखते ही देखते सारी धरती नहा धोकर और भी ज्यादा सुंदर लगने लगी। ठंडी हवा के झोंके जैसे ही तितली से टकराये वह तो झूमने लगी। झूमते उड़ते एक फूल पर बैठती, प्यार से उसे सहलाती फिर उड़ जाती दूसरे फूल पर। बादल को भी सबके बीच बहुत आनंद आ रहा था।
एकाएक वह ठिठक गया। तितली के पंख कुछ ज्यादा ही भीग गए थे। वह सोचने लगा -”मैं तो यहाँ खुशियां देने आया हूँ किसी को दुखी करने नहीं। मुझे अब चले जाना चाहिए।”
तितली उसके मन की बात जान गई थी। जैसे ही रसगुल्ले ने अपनी उड़ान भरी, तितली प्यार से अपने पंख हिलाने लगी ।