प्यारे बच्चों

कल सपने में देखा -मैं एक छोटी सी बच्ची बन गई हूं । तुम सब मेरा जन्मदिन मनाने आये हो । चारों ओर खुशियाँ बिखर पड़ी हैं ,टॉफियों की बरसात हो रही है । सुबह होते ही तुम में से कोई नहीं दिखाई दिया ।मुझे तो तुम्हारी याद सताने लगी ।

तुमसे मिलने के लिए मैंने बाल कुञ्ज के दरवाजे हमेशा के लिए खोल दिये हैं। यहाँ की सैर करते समय तुम्हारी मुलाकात खट्टी -मीठी ,नाटी -मोती ,बड़की -सयानी कहानियों से होगी । कभी तुम खिलखिला पड़ोगे , कभी कल्पना में उड़ते -उड़ते चन्द्रमा से टकरा जाओगे .कुछ की सुगंध से तुम अच्छे बच्चे बन जाओगे ।

जो कहानी तुम्हें अच्छी लगे उसे दूसरों को सुनाना मत भूलना और हाँ ---मुझे भी वह जरूर बताना ।
इन्तजार रहेगा ----! भूलना मत - -

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शुक्रवार, 5 मार्च 2021

उत्सवों का आकाश


होली का हंगामा मचाने से पहले
(2016 की रचना) 

 प्यारे बच्चों 

(गूगल से साभार)


यह सोच लो तुम्हें कैसे रंगों से खेलना है और कहाँ से खरीदना है .।  आजकल लाल पीले गुलाबी गुलाल में अपने फायदे के लिए बहुत से दुकानदार मिलावट कर देते हैं जिससे बड़ा नकसान  होता है . पिछली होली पर लल्लू की आँख में गुलाल पड़  जाने से लाल हो गई .। दर्द के मारे उसका बुरा हाल --भागे उसे लेकर डाक्टर के पास ।  कल्लू पर तो किसी ने काला रंग डाल दिया ,उसके तो सारे बदन पर दाने -दाने निकाल आए । बहुत पहले हमारे दादा -परदादा चन्दन -कुंकुम से खेलते थे । पलाश के फूलों से अन्य फूलों के रंग से खेलते थे . ।  पलाश से तो तुम  अब भी मिल  सकते हो ।  चलो कुछ कथा -कहानी हो जाये ।

जंगल में मंगल (पलाश के फूल)

एक जंगल में पलाश का पेड़ अपने दोस्त मुर्गे  के साथ रहता था । वह उसके सुख दुःख का साथी था । दिसंबर -जनवरी की कड़क ठण्ड में पलाश थर -थर कांपने लगा .।  उसके सुन्दर -सुन्दर फूल ,हरे -हरे पत्ते सब ही तो झड गए । ऐसे समय उस पर बसेरा करने वाले पक्षियों ने उसका  साथ नहीं दिया।  ऐसे में वह अकेला बड़ी हिम्मत से अपने अच्छे दिनों के आने का इन्तजार करने लगा । मुर्गे को उसकी यही बात अच्छी लगती थी । 

. फरवरी से ही उसके भाग्य ने पलटा  खाया ।

पेंटिंग व चित्र संयोजन -सुधा भार्गव 

.  ठंडी  हवाओं ने अपना रुख बदला । सूर्य की गुनगुनी धूप पाते ही पेड़ -पौधे ,जीव जंतु अंगडाई ले उठ बैठे । कोमल -कोमल नये पत्तों से पलाश का शरीर ढक् गया । लाल-नारंगी रंग की कोंपलें फूटने लगीं ।  देखते ही देखते ही देखते वह  चटक लाल केसरिया फूलों वाला जंगल का राजा  लगने लगा । फूलों की खुशबू हवा  में घुल गई  ।. चिड़ियाँ आकर अपने घोंसले बनाने लगीं ।  इनकी चहचहाट से वसंत राजकुमार भी धरती पर उतर आया ।

ऐसे समय में नीलू  खरगोश को उदास देख पलाश को बड़ा अचरज हुआ जबकि वह छोटे राजकुमार के पास ही खड़ा था ।




-पूरी धरती इस समय हंस रही है और तुम इस कदर दुखी ?पलाश ने पूछा । 
-हाँ !गाँव -शहर में बच्चे होली खेलने की तैयारी में लगे हैं  । कोई  बाजार रंग  लेने गया है तो कोई  पिचकारी  । मेरा मन भी  होली खेलने को करता है 
-तो किसने मना किया ?होली तो मस्ती का, मिलन का त्यौहार होता है । तुम अपने साथियों के साथ खेलो । मुझे भी अच्छा लगेगा । 
- उफ --खेलूं कैसे ? रंग तो है ही नहीं !
-रंग तो मैं चुटकी बजाते ही तुम्हें दे सकता हूँ । कल जब तुम यहाँ आओ तो अपने साथ बड़ा सा बर्तन या थैला  ले आना । 


 दूसरे दिन धूप निकलते ही नीलू पलाश के पास आते ही चिल्लाया -भागो --भागो - दूर जंगल में आग लगी है । 
-कहाँ ?अरे वहां तो मेरे भाई  -बहन खड़े हैं ।सूर्य की किरणें जब हमारे  पत्तों पर पड़ती हैं तो वे आग की तरह चमकने लगते हैं । 
पलाश ने  खूब जोर से अपनी टहनियों को हिलाया । झरने की तरह झर -झर करके उसके फूल नीलू पर बरसने लगे ।  
-जितने फूल तुम चाहो ले जाओ । 
-लेकिन मैं करूँगा क्या इनका । 
-कुछ फूलों को धूप में सुखा  लेना और  पीसकर रख लेना । जब खेलो ,कुछ   मिनट पहले चूरे को पानी में घोलकर रख देना । बस हो गया तुम्हारा केसरिया -पीला रंग तैयार । बाक़ी फूलों को रात  में बाल्टी भर पानी में भिगो देना सुबह तक उनका रंग भी तैयार ।

नीलू ने जल्दी -जल्दी फूलों को हांडी( बर्तन )में भरा और उसका  फुदकना शुरू हो गया । वह खुशी से चिल्लाया--

आ रे हाथी आजा घोड़ा 
बिल्ली भालू तू भी आजा 
मिलकर छका छक कूदेंगे 
रूँठा रूठी छोड़ छाड़ के 
रंगों से होली खेलेंगे ।

 देखते ही देखते नीलू के दोस्त फूलों की हांडी  को घेर कर बैठ गए । हाथी पास के तालाब से अपनी सूढ़ में पानी भर कर ले आया और बर्तन  में भर दिया । रात  भर कोई  भी नहीं सोया ।  झाँक -झाँक कर देखते पानी रंगीन हुआ कि  नहीं !उनके लिए तो यह लिए यह एक बहुत बड़ा अचरज था । 

सूर्य देवता निकल आये । सूरजमुखी की हंसी को सुन उन्हें होश आया -अरे ,दिन निकल आया ।




खरगोश इतराते हुए बोला -अब तो तुम सब पर  खूब रंग  डालूँगा  और अपने को बचा कर रखूँगा । 
-न --न --ऐसा बिलकुल न करना । मेरे फूलों के पानी में तुम्हारा भी भींगना जरूरी है । इसके शरीर पर पड़ने से  बीमारियाँ कम होती हैं और धरती पर पड़ने से आस पास के मच्छर भाग जाते है। 


-मैंने तो अभी तुम्हारे ऊपर दो -तीन मच्छर भिनभिनाते देखे हैं । बिल्ली आँखें मटकाते हुए बोली । 
-तुझे नहीं मालूम मेरी बहना --मेरी खुशबू से मच्छर खिंचा चला आता है और मुझसे  टकराते ही बच नहीं पाता …अगर भूले -भटके मेरे फूल में इसने अंडे दे दिए तो उसमें से बच्चे कभी नहीं निकल पाते । 
तुम तो बहुत शक्तिशाली हो ..पेड़ों के राजा हो । मेरे घर चलो न --बहुत मच्छर  हैं वहां । तुम्हें देखते ही भागेंगे अपनी जान बचाकर ।

-कितना अच्छा होता यदि मेरे पैर होते !दूसरों का खूब भला करता ,बीमार को ठीक कर देता । 
-क्या कहा --बीमारी भगा देते हो । 
-हाँ !कल देखना तमाशा !होली केदिन  शहरों में खूब पकवान ,मिठाई खाई जाती है और फिर बोलता है पेट ---दर्द --हाय दर्द । उन्हें तो मालूम भी नहीं होगा -- मेरा एक फूल चबाकर खाने से दर्द रफू चक्कर हो जाता है ।  
- हमें तो मालूम हो गया !दो -एक  फूल  जरूर बचाकर  रखेंगे ,काम आयेंगे । 

भालू अपने को ज्यादा रोक न सका ,केसरिया पानी कटोरी में भरकर दूसरों पर डालने लगा । हाथी ने तो कमाल कर दिया ।अपनी  सूढ़ को पिचकारी बनाकर सबको  एक बार में ही भिगो दिया । बिल्ली को उठाकर  रंगीले पानी में ही डाल दिया । 
खेलते जाते और कहते गाते --
 बुरा न मानो होली है । 

तुम बहुत थके -थके लग रहे हो । नहा -धोकर और कुछ  खा -पीकर आ जाओ । गाना शाना भी हो जाये । 
जंगल में मंगल करने वालों को चैन कहाँ !जल्दी ही गाने के लिए आन खड़े हुए -


पेंटिग व चित्र संयोजन -सुधा भार्गव 

होली की धूम मची जंगल में 

                                  जंगल में हो गया मंगल 
                                           दंगल -वंगल नहीं करेंगे 
                                                  पहनेंगे   प्यार का कंगन 



मुर्गा भी कहाँ रुकने वाला था ।उसने  भी शुरू कर दिया ---


कुकड़ू कूँ---कुकड़ू कूँ

 नटखट  नन्हें -मुन्नों

कुकड़ू कूँ --कुकडू कूँ
होली की धूम मची है। 

होली तुम्हें मुबारक हो ।

प्रकाशित देवपुत्र -2020 मार्च 

शनिवार, 28 नवंबर 2020

उत्सवों का आकाश




छमछम आई दीवाली 

सुधा भार्गव

      दीवाली का दिन और लक्ष्मी पूजन का समय पर बच्चे तो ठहरे बच्चे।  वे फुलझड़ियाँ ,अनार छोड़ने में मस्त -- । तभी दादाजी की रौबदार आवाज ने हिला दिया --देव,दीक्षा ,शिक्षा जल्दी आओ --मैं तुम सबको एक कहानी सुनाऊंगा ।

     कहानी के नाम भागे बच्चे झटपट घर की ओर । हाथ मुंह धोकर पूजाघर में घुसे और कालीन पर बिछी सफेद चादर पर बैठ गये । सामने चौकी पर लक्ष्मीजी कमल पर बैठी बड़ी मनमोह लग रहीं थीं। पास में गणेश जी हाथ में लड्डू लिए मुस्करा रहे थे। 
     बातूनी देव  कुछ देर उन मूर्तियों को बड़े ध्यान से देखता रहा । उसका जिज्ञासु मन बहुत सी बातों को जानने के लिए मचल उठा।  बस लगा दी प्रश्नों की झड़ी।  “दादाजी, लक्ष्मी जी कमल पर क्यों बैठी हैं ?’’
       
कमल अच्छे भाग्य का प्रतीक है और लक्ष्मी धन की देवी है। जिस घर में वह जाती है उसके अच्छे दिन शुरू हो जाते हैं। खूब अच्छा  खाते हैं ।रोज नए कपड़े पहनते हैं। बच्चे अच्छे स्कूल में खूब पढ़ते हैं।’’

       हमारे घर में लक्ष्मी जी कब आएंगी दादा जी?उन्हें जल्दी बुला लाओ और कहो –हमारे घर में खूब सारा  रुपया –पैसा भर दें।आह फिर तो क्या  मजा! मैं तो खूब चॉकलेट खाऊँगा—खूब बम-पटाखा करूंगा।’’
          दीक्षा को अपने भाई की बुद्धि पर बड़ा तरस आया और बोली -“अरे बुद्धू !इतना भी नहीं जानता –लक्ष्मीजी  को बुलाने के लिए ही तो हम उनकी पूजा करेंगे।’’
     
देखो दीदी मुझे चिढ़ाओ मत । अच्छा तुम्ही बता दो –लक्ष्मी जी कमल के साथ कब से रहती हैं ?’’दीक्षा  सकपका कर अपने दादाजी का मुँह ताकने लगी
    बेटे,इसके पीछे भी एक कहानी है ।तुमने अपनी माँ को देखा है न !मलाई को जब वह मथती है तो मक्खन निकल आता  है। उसी तरह जब राक्षस और देवताओं ने समुद्र का मंथन किया तो सबसे पहले कमल बाहर निकला। उससे फिर लक्ष्मीजी  का जन्म हुआ। तभी से वे उसके साथ रहती हैं और उसे बहुत प्यार करती हैं।कमल का फूल होता भी तो बहुत सुंदर है।मुझे भी बहुत अच्छा लगता है।’’ दादा जी बोले। 

     ‘’आपने  तो हमारे बगीचे में ऐसा सुंदर फूल उगाया ही नहीं। ’’देव बोला। 
   बच्चे ,यह बगीचे में नहीं ,तालाब की कीचड़ में पैदा होता है।’’
   कीचड़ –वो काली काली –बदबूदार ! फिर तो कमल को मैं छुऊंगी भी नहीं।`` दीक्षा ने नाक चढ़ाई।
     पूरी बात तो सुनो !कीचड़ में रहते हुआ भी फूल ऊपर उठा मोती की तरह चमकदार रहता है।उस  पर गंदगी का तो एक दाग भी नहीं । लक्ष्मी जी तभी तो इसे पसंद करती है।''
    कमाल हो गया --गंदगी में पैदा होते हुए भी गन्दा नहीं।यह कैसे हो सकता है।``
   यही तो इसका सबसे बड़ा गुण है।तुम्हें भी गंदगी में रहते हुए गन्दा नहीं होना है।’’
     दादा जी हम तो कीचड़ में रहते नहीं ,माँ धूल में भी नहीं खेलने देती --- फिर गन्दे होने का प्रश्न ही नहीं।’’ दीक्षा बोली ।  

     “शाला  में तो तुम्हें दूसरे  बच्चे भी  मिल सकते हैं जो गंदे हों।’’

   “हमारे शाला  में कोई गंदे कपड़े पहन कर  नहीं आता। मेरी  सहेलियाँ तो रोज नहा कर आती हैं।’’ 

    “दूसरे तरीके की भी गंदगी होती है,दीक्षा बिटिया । जो झूठ बोलते हैं,,नाक- मुँह में उंगली देते हैं,दूसरों की चीजें चुपचाप उठा लेते हैं ,वे भी तो गंदे बच्चे हुए।’’

     “हाँ,याद आया परसों मोनू ने खेल के मैदान में बागची को धक्का दे दिया था और नाम मेरा ले दिया। उसके कारण शिक्षक ने मुझे बहुत डांटा। तब से मैंने उससे एकदम बोलना बंद कर दिया।’’ देव चंचल हो उठा।  

    “ठीक किया।तुमको बुरे बच्चों के साथ रहते हुए भी उनकी बुरी आदतें नहीं सीखनी है।’’  
   समझ गया समझ गया  दादा जी, हमें कमल की तरह बनना है तभी तो लक्ष्मी जी से भर -भर मुट्ठी पैसे मिलेंगे और जेब में खन-खन बजेंगे। हा –हा –खनखन –खनखन। खाली जेब में हाथ डालकर झूमने लगा।
    अब बातें एकदम बंद --। मुंह पर उंगली रखो। आँखें मीचकर लक्ष्मीजी की पूजा में ध्यान लगाओ।अरे शिक्षा तुम्हारी आँखें खुली क्यों हैं?``

     “दादा जी –मैं तो पहले गणेश जी वाला बड़ा सा पीला लड्डू खाऊँगी तब आँख मीचूंगी। मैंने आँखें बंद कर ली तो नटखट देवू खा जाएगा।’’ 

     “अरे पगली मेरे पास बहुत सारे लड्डू हैं। पूजा के बाद प्रसाद में तुझे एक नहीं दो दे दूंगा। खुश ! ’’

   “सच दादा जी ---मेरे अच्छे दादा जी।’’ उसने झट से खूब ज़ोर लगाकर आँखें मींच लीं।
    कुछ पल ही गुजरे होंगे कि बच्चे  झपझपाने लगे अपनी पलकें। बड़ों की बंद आँखें देख कुछ इशारा किया और भाग खड़े हुए तीनों, तीन दिशाओं की ओर ,पर ---पकड़े गये ।
    कहाँ भागे --पहले दरवाजे पर मिट्टी के दिये जलाओ। फिर बड़ों को प्रणाम कर उनसे आशीर्वाद लो।’’ दादाजी ने प्यार से समझाया ।
     बच्चे दीयों की तरफ मुड़ गए। टिपटिपाते दीयों की रोशनी उन्हें बहुत भाई। उमंगभरे बच्चे दीप जलाते –जलाते गाने लगे ---
दीप जलाकर हम खुशी मनाते
छ्म छ्म आई आह दिवाली
रात  है काली काल कलूटी
फिर भी छिटका जियाला
घर लगता हमको ऐसा जैसे
पहनी हो दीपों की माला।

    गान खतम करते ही उन्होंने बड़ों के पैर छुए। इसके बाद तो हिरण सी चौकड़ी भरते बाहर भागे जहां उनके दोस्त इंतजार कर रहे थे।

    “ओए देवू --देख मेरी फुलझड़ी,ये रहा मेरा बम---- धमाके वाला-- आह अनार छोडूंगा तो फुस से जाएगा आकाश में। तू देखता ही रह जाएगा।‘’

     आई दिवाली आई –छोड़ो पटाखे भाई—मित्र मंडली चहचहा उठी।बच्चों के कलरव को सुनकर दादा जी उनकी खुशी में शामिल हुए बिना न रहे।लड्डुओं का थाल लिए बाहर ही आ गए। लड्डुओं को देख बच्चों के चेहरे चमक उठे।सबने अपनी हथेलियाँ लड्डुओं के लिए उनके सामने पसार दीं।

     “हे भगवान ! तुम्हारी हथेलियाँ इतनी गंदी—। किसी के हाथ में लड्डू नहीं रखा जाएगा। आज मैं अपने हाथों से तुम्हें लड्डू खिलाऊंगा।’’

     दादा जी देव,शिक्षा,दीक्षा के अलावा उनके मित्रों को भी बड़े प्यार से लड्डू खिलाने लगे।ऐसा लग रहा था उनके चारों तरफ आनंद और उल्लास की छ्मछ्म बरसात हो रही है । लक्ष्मी जी भी उन्हें देख पुलकित हो उठीं और पूरे वर्ष हंसने-मुस्कुराने का वरदान देकर चली गईं।

प्रकाशित -देवपुत्र मासिक पत्रिका ,अंक नवंबर 2020

समाप्त