होली का हंगामा मचाने से पहले
(2016 की रचना)
प्यारे बच्चों
प्यारे बच्चों
(गूगल से साभार) |
यह सोच लो तुम्हें कैसे रंगों से खेलना है और कहाँ से खरीदना है .। आजकल लाल पीले गुलाबी गुलाल में अपने फायदे के लिए बहुत से दुकानदार मिलावट कर देते हैं जिससे बड़ा नकसान होता है . पिछली होली पर लल्लू की आँख में गुलाल पड़ जाने से लाल हो गई .। दर्द के मारे उसका बुरा हाल --भागे उसे लेकर डाक्टर के पास । कल्लू पर तो किसी ने काला रंग डाल दिया ,उसके तो सारे बदन पर दाने -दाने निकाल आए । बहुत पहले हमारे दादा -परदादा चन्दन -कुंकुम से खेलते थे । पलाश के फूलों से अन्य फूलों के रंग से खेलते थे . । पलाश से तो तुम अब भी मिल सकते हो । चलो कुछ कथा -कहानी हो जाये ।
जंगल में मंगल (पलाश के फूल)
जंगल में मंगल (पलाश के फूल)
एक जंगल में पलाश का पेड़ अपने दोस्त मुर्गे के साथ रहता था । वह उसके सुख दुःख का साथी था । दिसंबर -जनवरी की कड़क ठण्ड में पलाश थर -थर कांपने लगा .। उसके सुन्दर -सुन्दर फूल ,हरे -हरे पत्ते सब ही तो झड गए । ऐसे समय उस पर बसेरा करने वाले पक्षियों ने उसका साथ नहीं दिया। ऐसे में वह अकेला बड़ी हिम्मत से अपने अच्छे दिनों के आने का इन्तजार करने लगा । मुर्गे को उसकी यही बात अच्छी लगती थी ।
. फरवरी से ही उसके भाग्य ने पलटा खाया ।
पेंटिंग व चित्र संयोजन -सुधा भार्गव |
. ठंडी हवाओं ने अपना रुख बदला । सूर्य की गुनगुनी धूप पाते ही पेड़ -पौधे ,जीव जंतु अंगडाई ले उठ बैठे । कोमल -कोमल नये पत्तों से पलाश का शरीर ढक् गया । लाल-नारंगी रंग की कोंपलें फूटने लगीं । देखते ही देखते ही देखते वह चटक लाल केसरिया फूलों वाला जंगल का राजा लगने लगा । फूलों की खुशबू हवा में घुल गई ।. चिड़ियाँ आकर अपने घोंसले बनाने लगीं । इनकी चहचहाट से वसंत राजकुमार भी धरती पर उतर आया ।
ऐसे समय में नीलू खरगोश को उदास देख पलाश को बड़ा अचरज हुआ जबकि वह छोटे राजकुमार के पास ही खड़ा था ।
-पूरी धरती इस समय हंस रही है और तुम इस कदर दुखी ?पलाश ने पूछा ।
-हाँ !गाँव -शहर में बच्चे होली खेलने की तैयारी में लगे हैं । कोई बाजार रंग लेने गया है तो कोई पिचकारी । मेरा मन भी होली खेलने को करता है
-तो किसने मना किया ?होली तो मस्ती का, मिलन का त्यौहार होता है । तुम अपने साथियों के साथ खेलो । मुझे भी अच्छा लगेगा ।
- उफ --खेलूं कैसे ? रंग तो है ही नहीं !
-रंग तो मैं चुटकी बजाते ही तुम्हें दे सकता हूँ । कल जब तुम यहाँ आओ तो अपने साथ बड़ा सा बर्तन या थैला ले आना ।
दूसरे दिन धूप निकलते ही नीलू पलाश के पास आते ही चिल्लाया -भागो --भागो - दूर जंगल में आग लगी है ।
-कहाँ ?अरे वहां तो मेरे भाई -बहन खड़े हैं ।सूर्य की किरणें जब हमारे पत्तों पर पड़ती हैं तो वे आग की तरह चमकने लगते हैं ।
पलाश ने खूब जोर से अपनी टहनियों को हिलाया । झरने की तरह झर -झर करके उसके फूल नीलू पर बरसने लगे ।
-जितने फूल तुम चाहो ले जाओ ।
-लेकिन मैं करूँगा क्या इनका ।
-कुछ फूलों को धूप में सुखा लेना और पीसकर रख लेना । जब खेलो ,कुछ मिनट पहले चूरे को पानी में घोलकर रख देना । बस हो गया तुम्हारा केसरिया -पीला रंग तैयार । बाक़ी फूलों को रात में बाल्टी भर पानी में भिगो देना सुबह तक उनका रंग भी तैयार ।
नीलू ने जल्दी -जल्दी फूलों को हांडी( बर्तन )में भरा और उसका फुदकना शुरू हो गया । वह खुशी से चिल्लाया--
आ रे हाथी आजा घोड़ा
बिल्ली भालू तू भी आजा
मिलकर छका छक कूदेंगे
रूँठा रूठी छोड़ छाड़ के
रंगों से होली खेलेंगे ।
देखते ही देखते नीलू के दोस्त फूलों की हांडी को घेर कर बैठ गए । हाथी पास के तालाब से अपनी सूढ़ में पानी भर कर ले आया और बर्तन में भर दिया । रात भर कोई भी नहीं सोया । झाँक -झाँक कर देखते पानी रंगीन हुआ कि नहीं !उनके लिए तो यह लिए यह एक बहुत बड़ा अचरज था ।
खरगोश इतराते हुए बोला -अब तो तुम सब पर खूब रंग डालूँगा और अपने को बचा कर रखूँगा ।
-न --न --ऐसा बिलकुल न करना । मेरे फूलों के पानी में तुम्हारा भी भींगना जरूरी है । इसके शरीर पर पड़ने से बीमारियाँ कम होती हैं और धरती पर पड़ने से आस पास के मच्छर भाग जाते है।
-तुझे नहीं मालूम मेरी बहना --मेरी खुशबू से मच्छर खिंचा चला आता है और मुझसे टकराते ही बच नहीं पाता …अगर भूले -भटके मेरे फूल में इसने अंडे दे दिए तो उसमें से बच्चे कभी नहीं निकल पाते ।
तुम तो बहुत शक्तिशाली हो ..पेड़ों के राजा हो । मेरे घर चलो न --बहुत मच्छर हैं वहां । तुम्हें देखते ही भागेंगे अपनी जान बचाकर ।
-क्या कहा --बीमारी भगा देते हो ।
-हाँ !कल देखना तमाशा !होली केदिन शहरों में खूब पकवान ,मिठाई खाई जाती है और फिर बोलता है पेट ---दर्द --हाय दर्द । उन्हें तो मालूम भी नहीं होगा -- मेरा एक फूल चबाकर खाने से दर्द रफू चक्कर हो जाता है ।
- हमें तो मालूम हो गया !दो -एक फूल जरूर बचाकर रखेंगे ,काम आयेंगे ।
भालू अपने को ज्यादा रोक न सका ,केसरिया पानी कटोरी में भरकर दूसरों पर डालने लगा । हाथी ने तो कमाल कर दिया ।अपनी सूढ़ को पिचकारी बनाकर सबको एक बार में ही भिगो दिया । बिल्ली को उठाकर रंगीले पानी में ही डाल दिया ।
खेलते जाते और कहते गाते --
बुरा न मानो होली है ।
जंगल में मंगल करने वालों को चैन कहाँ !जल्दी ही गाने के लिए आन खड़े हुए -
पेंटिग व चित्र संयोजन -सुधा भार्गव होली की धूम मची जंगल में
जंगल में हो गया मंगल
दंगल -वंगल नहीं करेंगे
पहनेंगे प्यार का कंगन ।
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मुर्गा भी कहाँ रुकने वाला था ।उसने भी शुरू कर दिया ---
कुकड़ू कूँ---कुकड़ू कूँ
नटखट नन्हें -मुन्नों कुकड़ू कूँ --कुकडू कूँ
होली तुम्हें मुबारक हो ।
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प्रकाशित देवपुत्र -2020 मार्च
सुंदर
जवाब देंहटाएंशुक्रिया
हटाएंबहुत ही सुन्दर बाल कथा जो पलाश के आयुर्वेदिक गुणों को भी समझाती है... आभार....
जवाब देंहटाएंशुक्रिया
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