गांधी जयंती के अवसर पर
हमारे राष्ट्रपिता प्यारे बापू /सुधा भार्गव
एक बार धरती ने आकाश से
कहा –हे तारों के राजा ,तू अपने चाँद और सूरज पर गर्व करके इतने ऊंचे उठते
न चले जाओ कि मनुष्य तुम्हें छू भी न सके। मुझसे सहिष्णु और दानी बनो जिसने अपने
वे दो चरण जिनमें चाँद और सूरज से कहीं
अधिक ज्योति थी देवलोक को दान कर दिये।
वे दो चरण बापू के थे।आज उन्हीं
का जन्मदिन जगह जगह राष्ट्रीय पर्व गांधी जयंती के रूप में मनाया जा रहा है।
गांधी जयंती समारोह |
वे दो पग जिधर भी चल पड़ते थे ,कोटि
–कोटि पग उनका अनुकरण करते । वे फूलों की सुरभि से पतले और यज्ञ की अग्नि से भी
अधिक क्रांतिकारी थे। वे इतना ऊंचे उठ गए कि देवता उन्हें ऊपर उठाकर ले गए।
महात्मा गांधी चाहे अवतार
नहीं थे पर वे ऐसे मानव थे जो अवतारों के भी अवतार कहे जा सकते हैं।उनकी जीवनी में,उनके
प्रयोगों में और उनके विचारों में वे सब आदर्श हैं जो किसी देवता में हुए हैं। वे
स्वर्ग का भूमिकरण करने के लिए धरती पर प्रकट हुए और भूमि का स्वर्गीकरण करते हुए निराकार हो गए।
शिक्षा प्राप्ति के लिए 1888
में गांधी जी इंग्लैंड गए मगर भारतीयता को
न छोड़ पाए । न उन्होंने मांस खाया और न ही
अन्य व्यसनों में फंसे। 1902 में अफ्रीका
जाकर वहाँ की दासता को मिटाने के लिए उन्होने अहिंसात्मक सत्याग्रह किए। अफ्रीका
में गांधी जी की यह क्रान्ति महान एतिहासिक क्रांति है।
अफ्रीका में अपने गौरवशाली
चरण चिन्ह छोड़कर 1915 में गांधीजी भारत आए। बस यही से गांधीजी की जिंदगी भारत की
बदलती हुई किस्मत की जिंदगी है। भारत भ्रमण,असहयोग आंदोलन ,चौरा –चौरी कांड उपवास,6वर्षों
की सजा जैसी कितनी ही घटनाएँ और गतियाँ गांधी जी ने वसंत के फूलों की तरह धरती पर छोडीं
।
असहयोग आंदोलन |
गांधी जी जहां कांग्रेस के
अध्यक्ष,कुशल राजनीतिज्ञ तथा महात्मा थे ,वहीं वे एक कलाकार भी थे ।
हरिजन आदि पत्रों का उन्होंने सम्पादन किया । संगीत का स्वाद भजनों के द्वारा चखा।
यही नहीं गांधीजी साहित्यकार से एक ऐसे
व्यापक तेज बन गए जिससे साहित्य जगत में गांधीयुग
और गांधीवाद की धारा बह चली।
गांधी जी भारत माता की बेड़ियाँ काटने के लिए
आए थे। । वे दलितों का उद्धार करने के लिए अवतीर्ण हुए थे। वे दानव को मानव बनाने के लिए बोले थे। उन्होंने
अपना काम किया और चले गए।
सन 1941 में व्यक्तिगत
सत्याग्रह के रूप में ‘एकला चलो रे’ की उक्ति चरितार्थ करते चले जा रहे थे । 1947 में
वे जेल से छूट स्वाधीन भारत के आँगन में ऐसे जगमगाए जैसे वनों से लौटकर राम जी
अयोध्या में सुशोभित हुए थे । किन्तु धन्य हैं गांधी जी !उन्होंने राष्ट्र पति पद
के सिंहासन को सुशोभित नहीं किया अपितु साधु की कुटिया को प्रकाशमान किया।
बापू ने भेदभाव को मिटाने
के लिए अपनी आवाज बुलंद की । अपने प्राणों की बाजी लगाकर हरिजनों को हिंदुओं से
अलग होने से रोका। ‘
हरिजन सेवा संघ |
उन्होंने हरिजन सेवा संघ की स्थापना की ताकि उनको मंदिरों में प्रवेश करने से न रोका जाए। शिक्षा से वंचित न किया जाए और जीने के समान अधिकार मिलें।
हिन्दू –मुस्लिम एकता के लिए भागीरथ प्रयत्न करते
रहे और अंत में इसी वेदी पर वे अपने प्राण न्यौछवार कर गए।
हम हर दिशा और विषय पर
गांधी जी के विचार पाते हैं । स्त्रियॉं पर साहित्य पर ,संगीत
पर ,ग्रामों पर ,गौ सेवा पर ,आध्यात्मिकता पर ,सभी पर गांधी जी ने
श्रेष्ठ विचार दिये हैं। उनकी वाणी ज्योति देने वाली ज्वलित दीप शिखा है।
गांधीजी ने मनुष्य से कहा –‘स्वावलंबी
बनो ,अहिंसा हृदय का सर्वोत्तम गुण है। करोड़ों के सम्मलित प्रयास से
जो शक्ति पैदा होती है उसका सामना कोई और शक्ति नहीं कर सकती । मैं अछूत प्रथा को
हिन्दू समाज का सबसे बड़ा कलंक मानता हूँ।’
यह है गांधी वाणी का कुछ
प्रसाद। गांधी जी हमें मनुष्य के हर रूप में दर्शन देते हैं।
चरखा कातते ,कपड़ा
बुनते ,बोझा ढोते ,किसान कर्म करते और पढ़ते-पढ़ाते भी वे दृष्टिगोचर होते
हैं। गरीबों की आँखों में,कलाकार की तूलिका में,भक्तों
के भजन में और दलितों की पुकार में ,रोगियों की सेवा में गांधी जी की छवि विद्यमान है।
रोगी की सेवा |
उनमे आकर्षण था तभी तों
खूनी काल में भी स्वतन्त्रता ने आकर उनके चरण पूज लिए । सम्पूर्ण प्रभुत्वसम्पन्न लोकतंत्रात्मक गणराज्य आज गांधी जी के चरणों का
ही प्रसाद है ।
बापू जी के लिए किसी ने
ठीक ही कहा है –
किसी को धूप में देखा कि
तन की तान दी छाया,
धार को प्यास में देखा कि
उसने नीर बरसाया।
किन्तु ऐसे साधु को भी
पापी की वह अंधी पिस्तौल खा गई जो ‘गोडसे’के हाथों चली। उस कसाई ने देवता को मार डाला। लेकिन
तब भी हमारे बापू अजर-अमर हैं। हम भारत माँ के सपूत को आदरसहित प्रणाम करते हैं।