प्यारे बच्चों

कल सपने में देखा -मैं एक छोटी सी बच्ची बन गई हूं । तुम सब मेरा जन्मदिन मनाने आये हो । चारों ओर खुशियाँ बिखर पड़ी हैं ,टॉफियों की बरसात हो रही है । सुबह होते ही तुम में से कोई नहीं दिखाई दिया ।मुझे तो तुम्हारी याद सताने लगी ।

तुमसे मिलने के लिए मैंने बाल कुञ्ज के दरवाजे हमेशा के लिए खोल दिये हैं। यहाँ की सैर करते समय तुम्हारी मुलाकात खट्टी -मीठी ,नाटी -मोती ,बड़की -सयानी कहानियों से होगी । कभी तुम खिलखिला पड़ोगे , कभी कल्पना में उड़ते -उड़ते चन्द्रमा से टकरा जाओगे .कुछ की सुगंध से तुम अच्छे बच्चे बन जाओगे ।

जो कहानी तुम्हें अच्छी लगे उसे दूसरों को सुनाना मत भूलना और हाँ ---मुझे भी वह जरूर बताना ।
इन्तजार रहेगा ----! भूलना मत - -

मंगलवार, 9 अप्रैल 2013

एक-दूसरे को ठीक से समझने मेँ ही बुद्धिमानी है तभी शांति और एकता का बीज पैदा होता है ।

बुद्धिमानों की दुनिया





हम जब भी कांव-कांव की आवाज सुनते है ,हमारे कान  फटने लगते है और कौए को दुतकारते हुये कहते हैं ---अरे भाग यहाँ से --न जाने कहाँ से आगया । चिड़ियों के लिए रोटी डालते हैं और आ गया भूले भटके से  कागा तो कर देते हैं उसकी इज्जत के टुकड़े -टुकड़े --खा गया शैतान । 

पर बच्चों यह ठीक नहीं ।यह न सोचो कि हमारे ही दिमाग होता है । कौवे भी  बड़े बुद्धिमान होते हैं । मैंने खुद अपनी बालकनी में खड़े होकर उन्हें  बड़ी होशियारी से कोयल के बच्चे को बचाते  देखा है  । कैसे ?उसी को कहानी के रूप में लिख डाला है । इसे पढ़कर तुम भी उनकी चतुरता का लोहा मानने लगोगे । 

अब सुनो कहानी 



एक कोयल थी । वह बड़ी आलसी थी । उसने  कोई घोंसला नहीं बना रखा था ,बस डाल-डाल फुदकती और मीठा गाना गाती ।



एक बार उसने अंडे दिये ।
-अब इन अंडों को कहाँ रखूँ ,कैसे देखभाल करूं । इनके रहने के लिए तो मैंने कोई घर भी नहीं बनाया । सोच –सोचकर नन्ही कोयल परेशान हो गई ।

तभी उसे ध्यान आया –मेरे और कौए भाई के अंडे मिलते जुलते हैं ,क्यों  न उसके घोंसले में अपने अंडे रख आऊँ । वह तो पहचान भी नहीं पायेगा । पहचान भी गया तो उन्हें मारने से रहा । बड़े नरम दिल का सीधा -सादा है ,बस उसकी बोली ही  कड़वी है ।

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एक शाम को कोयल अपने अंडे कौवे के घोंसले में रख आई । उस समय कौवा –कौवी दाना चुगने गए थे । कौवे के घोंसले में जाते  समय कोई पक्षी उसे पहचान भी नहीं पाया क्योंकि कोयल भी काली और कौवा भी काला ।

कुछ दिनों के बाद अंडों में से छोटे से कोमल से प्यारे से बच्चे निकल आए ।
-अरे इनमें दो तो कोयल के बच्चे हैं । कौवी आश्चर्य में पड़ गई ।
-कोई बात नहीं । हम अपने बच्चों की देखभाल तो करेंगे ही ,साथ में ये भी पल जाएँगे ।कितनी प्यारी बोली में दोनों चहक रहे हैं । बिलकुल अपनी माँ पर गए है ।कौवा बोला ।

  
    
एक शाम कौवा –कौवी बच्चों के लिए दाना लेकर लौटे तो देखा –कोयल का बच्चा पेड़ के नीचे गिरा पड़ा है ।एक दुष्ट काली  बिल्ली थोड़ी दूर पर बैठी इस ताक में है कि मौका मिले तो बच्चे को खा जाऊं। 


नाजुक सा बच्चा डरा सा --सहमा सा चीं-चीं करता अपने प्राणों की भीख मांग रहा है।   

कौवे ने उसे भगाने के लिए चिल्लाना शुरू किया –कांव –कांव,कांव -कांव  ।लेकिन बिल्ली पर इसका कोई असर न हुआ । वह यह सोचकर आगे बढ्ने लगी –एक कौवा मेरा क्या बिगाड़ लेगा । जितनी देर में वह नीचे आयेगा उससे पहले ही मैं  इस बच्चे को निगल जाऊँगी। 


इस बार कौवा –कौवी मिलकर कांव –कांव करने लगे पर बिल्ली  आगे बढ़ती ही गई । अब तो कौवा –कौवी ने कांव –कांव करके आसमान सिर पर उठा लिया ।
 चारों तरफ से कौवे उड़ –उड़ कर आने लगे ।




कुछ पेड़ पर बैठ गए ,कुछ पेड़ के नीचे । जब कौवों ने देखा –बिल्ली रुकने का नाम ही नहीं ले रही है ,पेड़ के कौवे भी छ्पाक –छपाक नीचे उतर आए 
और सबने मिलकर कोयल के बच्चे के चारों तरफ एक घेरा बना लिया ।  


 सबकी चोंचे बिल्ली की ओर बन्दूक की तरह निशाना साधे तनी हुई थीं –जो कह रही थी –एक कदम भी आगे बढ़ाया तो चोंचों से तुम्हारा शरीर गोद गोदकर छलनी कर दिया जाएगा । यह नजारा देख बिल्ली ऐसी डर कर भागी कि जंगल से बाहर  जाकर ही दम लिया ।


कौवों की खुशी का ठिकाना न था । वे फुदकते हुये चोंच भिड़ाने लगे मानो कह रहे हों –दोस्त हम इसी तरह से मिलकर बुद्धिमानी से  मुसीबत भगाते रहेंगे । देखते ही देखते वे पंख फैलाकर नीले आकाश में उड़ गए ।





कौवा –कौवी  तो उनका किया उपकार भूल ही नहीं सकते थे--- धन्यवाद देते हुये अपने साथियों को टकटकी लगाए  देखते रहे जब तक वे आँखों  से ओझल न हो गए । 



(चित्र -गूगल से साभार )
प्रकाशित -दक्षिण भारत राष्ट्रमत हिन्दी दैनिक अखबार बैंगलोर- 8 .12. 2013