प्यारे बच्चों

कल सपने में देखा -मैं एक छोटी सी बच्ची बन गई हूं । तुम सब मेरा जन्मदिन मनाने आये हो । चारों ओर खुशियाँ बिखर पड़ी हैं ,टॉफियों की बरसात हो रही है । सुबह होते ही तुम में से कोई नहीं दिखाई दिया ।मुझे तो तुम्हारी याद सताने लगी ।

तुमसे मिलने के लिए मैंने बाल कुञ्ज के दरवाजे हमेशा के लिए खोल दिये हैं। यहाँ की सैर करते समय तुम्हारी मुलाकात खट्टी -मीठी ,नाटी -मोती ,बड़की -सयानी कहानियों से होगी । कभी तुम खिलखिला पड़ोगे , कभी कल्पना में उड़ते -उड़ते चन्द्रमा से टकरा जाओगे .कुछ की सुगंध से तुम अच्छे बच्चे बन जाओगे ।

जो कहानी तुम्हें अच्छी लगे उसे दूसरों को सुनाना मत भूलना और हाँ ---मुझे भी वह जरूर बताना ।
इन्तजार रहेगा ----! भूलना मत - -

शनिवार, 24 मई 2025

बालप्रहरी प्रतियोगिताएं 2025

मुझे दोनों ही कहानियों में सफलता मिली । क्यों न उनसे मिल भी लिया जाए । 

पुष्प लता जोशी स्मृति बाल कहानी प्रतियोगिता

२०२५-सांत्वना पुरस्कार

आक्सीजन की लूटमार/सुधा भार्गव

              लव के पापा  के पास एक हेलीकॉप्टर था। जो घर के पिछवाड़े बड़े से मैदान में खड़ा  रहता था।  लव अक्सर  उसे ललचाई निगाहों से देखता । एक दिन वह अपने ख्यालों की पतंग उड़ाने में लगा था  – ‘काश मैं जल्दी बड़ा हो जाऊँ! चुपचाप इसे उड़ाते हुए बादलों में छिप जाऊँगा। माँ ढूँढती आयेगी । मुझे पुकारेगी ---- बेटा तू कहाँ है ?मैं बादलों से झांकता कहूँगा - मां मैं यहाँ हूँ। मेरी भोली माँ चकित हो जाएगी। इस आँख मिचौनी में कितने मजा आएगा।”तभी पापा की आवाज सुनाई दी  –“चलो बेटा, आकाश की सैर करने चलें।“

              लव की तो बिना कहे ही  इच्छा पूरी हो रही थी । उसका दिल बल्लियों उछलने लगा। पापा ने रिमोट दबाया । खुल जा सिमसिम … हेलीकॉप्टर  के दरवाजे खुद खुल गए। बैठते ही लव को तो ऐसा  लगा जैसे वह पुष्पक विमान में बैठा हो । नीचे देखा तो उसके आश्चर्य का ठिकाना नहीं!बहुमंजिलें इमारतें  चुहिया सी दीख रही थीं।कारें  चींटियों की तरह रेंग रही थीं।

  उड़ते हुये वे एक ऐसे टापू पर पहुंचे जहां सब भारी-भारी  मास्क लगाए हुए थे।कार से उतरते ही बशीरा और रेमी दो युवकों  ने उनका स्वागत किया और उन्हें  एक -एक मास्क पकड़ा दिया। 

              इतना भारी !हेलमैट से भी  तगड़ा !मेरा तो हाथ ही टूटा जा रहा है!” लव बोला। 

              यह आक्सीजन मास्क है ।इसको जल्दी लगा लो। वरना कुछ ही देर में तुम्हारा दम घुटने लगेगा।“ रेमी बोला।  

              यहाँ  आक्सीजन की बहुत कमी है क्या  !”

              हाँ !ऑक्सीजन मास्क भी इसलिए बहुत महंगे   हैं। “ 

              बड़ी अजीब बात है!”लव के पापा बोले।

              साहब जान तो सबको प्यारी होती है। गरीबों के लिए तो यह टापू नरक है । ऑक्सीजन की बोतलें सोने के सिक्कों के दाम  बिक रही हैं । उनके पास इतना पैसा कहाँ  कि मास्क खरीद सके । बस छीनाझपटी शुरू हो जाती है।  “

              अरे, यहां तो  ऑक्सीजन सिलेंडर भी अपने साथ लेकर घूम रहे हैं।“लव  हैरान!

              हाँ, ये बुजुर्ग हैं।  इनको ज्यादा आक्सीजन की जरूरत पड़ती है। आए दिन बीमार रहते हैं।“ बशीरा ने बताया। 

              यहाँ बच्चे नहीं रहते क्या ?”लव ने पूछा।

              रहते हैं पर घर में! वे खेलने की  बजाय घरों में बंद रहते हैं। “

              पढ़ने नहीं जाते!” 

              वे क्या खाकर पढ़ने जाएंगे । खाली पेट  मास्क के लिए पैसा कहाँ से लाए? केवल धनिकों  के बच्चे ही स्कूल में नजर आते हैं।“

              ये धन के राजा गरीबों के लिए कुछ नहीं सोचते!”लव के पापा हैरान थे।

              उनका पेट तो  दिनोंदिन बड़ा होता जा रहा है। कुछ  ने मास्क फैक्ट्री लगा ली है। दाम बढ़ाते ही जा रहे हैं। सबको अपनी मुट्ठी में कर रखा है। जरा भी कोई उनके खिलाफ गया—बातों ही बातों में  उसका मास्क उतार कर दूर फेंक देते है lजब तक   वह हाँफता हुआ  मास्क  लेने जाय तब तक उसका आधा दम तो निकला ही समझो। । हर पल ज़िंदगी से खिलवाड़!”

              बड़े  दुष्ट है  ....!”लव दुख से भर उठा।

              यह सब एक दिन में तो हुआ नहीं होगा!” पापा ने पूछा।  

              आप ठीक कह रहे हो साहब। एक दिन था जब  इस टापू पर कभी घने जंगल हुआ करते थे। लेकिन बढ़ती आबादी और औद्योगीकरण ने पेड़ों को काट डाला। ऑक्सीजन का स्तर लगातार गिरता गया।अब इसे  खरीदना पड़ता है ।सम्पन्न घरों में आक्सीजन के गोदाम के गोदाम भरे हुये हैं।व्यापारियों ने अपना पूरे  घर में ऑक्सीजन का पाइप डलवा रखा है।और तो और---टापू से ऑक्सीजन के सिलेंडर चोरी-छुपे मंगल ग्रह भेजे जा रहे हैं।”

              पापा  यह कैसे हो सकता है? मंगल ग्रह पर तो  रहना  कोई आसान नहीं !"

              "बेटा, कुछ लोग बहुत धनवान हैं। वे मंगल ग्रह पर बस्तियां बसाकर  रहना  चाहते हैं। लेकिन  सांस लेने के लिए वहाँ ऑक्सीजन नहीं । इसलिए यहां से ऑक्सीजन चोरी छिपे भेजी जा रही है।"

              इसमें तो बड़ा खतरा है । पकड़े गए तो----।”

              खतरा किस बात का!यह काम तो रोबॉट्स से लिया जाता है। एक खतम तो दस पैदा। कभी सोचा भी न था  कि  इंसान रोबॉट्स का दुरुपयोग करके ,इंसान और प्रकृति के साथ इतना क्रूर व्यवहार करेगा।”रेमी ने आह भरी।   

              लव के पापा ने तय किया कि वे ऑक्सीजन के अकानून कारोबार को बंद करवाएंगे।अपने साथियों की एक टीम बनाई और  जान ख़तरे में डालकर  पुलिस को इसकी सूचना  दी।नतीजन एक रात के अंधेरे में पुलिस  ने ऑक्सीजन के गोदाम पर धाबा बोल दिया।अमीरजादों को जेल की हवा खानी पड़ी। टापू के लोगों को भी उन्होंने पेड़ लगाने के लिए प्रेरित किया। टीम ने टापू के लोगों को पेड़ों की देखभाल करना सिखाया।कई सालों बाद, टापू पर हरे-भरे पेड़ उग आए। ऑक्सीजन का स्तर बढ़ गया और लोग स्वस्थ होने लगे।

              लव   जहां कहीं भी जाता आक्सीजन मास्क का किस्सा बताना न भूलता। उसके पापा भी अक्सर कहते -”कोई ऐसा काम न करो जिससे कार्बन पैदा हो और विष भरे  घूंट पीने पड़ें।” 

गंगा अधिकारी स्मृति बाल कहानी प्रतियोगिता

2o२५ प्रथम पुरस्कार

अंतरिक्ष यात्री का जन्म/सुधा भार्गव

              रौनक को आकाश से प्यार था। जब देखो वह  उसकी  तरफ टकटकी लगाए देखता रहता। चमकते  तारों  के बीच  हंसता हुआ चंद्रमा, नीले  आकाश की गोद में खेलता  सूर्य, उसे चकित कर देते। घुमक्कड़ बादलों की उछलकूद देख  तो वह हँसते -हँसते लोटपोट हो जाता।  सोचता ..कितना अच्छा होता! अगर मैं उनसे बातें कर पाता।

              छुट्टियों में वह अपने पापा के साथ सिंगापुर जाने वाला था। एयरपोर्ट पर ही   पायलट मिल गए। उत्सुकता से पूछा -अंकल ,आप मेरा जहाज उड़ाओगे क्या !

              हां ।

              तो तारों से मेरी जरूर बातें करवा देना।” 

              अरे बेटा,तारों पर जाने के लिए तो दूसरे पायलट की जरूरत पड़ेगी जो अंतरिक्ष में जा सके।” 

              यदि आप  मुझे  हवाई जहाज उड़ाना सिखा दें  तो मैं खुद  तारों से मिलने जा सकता हूं।फिर  देखना  जूम - जूम ----- मेरा जहाज आसमान का पेट फाड़कर अंतरिक्ष में घुस जाएगा। मगर अंतरिक्ष को ढूँढूँगा  कहाँ?”

              "वह धरती से करीब 100 किलोमीटर की ऊंचाई पर है। तुम वहाँ जरूर जा सकते हो लेकिन उसके लिए अंतरिक्ष के  बारे में जानना होगा।

              उसने अंकल की बात मन में बैठा ली और  अंतरिक्ष की माला जपने लगा।  अपने कमरे में बैठकर उसके बारे में किताबें पढ़तासमाचार सुनता और वीडियो देखा करता । उसे अक्सर सपने आते रहते। सपनों में बड़बड़ाता.. ‘मैं अंतरिक्ष यात्री बन गया हूँ ।मैं मंगल ग्रह जा रहा हूँ।’

              एक दिन  रौनक को पता चला कि भारत का मंगलयान, मंगल ग्रह पर सफलतापूर्वक पहुंच गया है । उछलते हुए बोला-माँ , अब तो मंगलयान स्टेशन भी बन जाएगा ।  मैं तो अंतरिक्ष यान से वहां जाऊंगा।

               बेटा मंगल ग्रह पर जाना तो बड़ा मुश्किल है।

              क्यों मां!

              वहाँ तो ऑक्सीजन  बहुत कम है। बिना उसके दम ही घुटने लगेगा।

              ओ मां !चिंता न करो मैं अपने साथ ऑक्सीजन सिलेंडर ले जाऊंगा।

              उससे क्या होता है।मंगल ग्रह पर   रात में सो भी नहीं पाएगा ।वहां तो इतनी ठंड  है कि तेरी कुल्फी जम जाएगी।

              बाप रे इतनी ठंड!लेकिन  मैँ रात मैं प्लेन से निकलूंगा ही नहीं। उसी में सोता रहूँगा। दिन में धूप में  सैर करूंगा।

              कहां की सैर!दिन में भी कम ठंड  कहां! तापमान   जीरो डिग्री रहता है। ऐसे में न हाथ चलें न पैर।    अब  तू ही बता !वहां कैसे रहेगा!

              मां वहां इतनी ठंड पड़ती ही क्यों है!रौनक ने भोलेपन से पूछा।

                “हमारी पृथ्वी तो सूर्य से 15 करोड़ किलोमीटर दूरी पर ही  है लेकिन मंगल ग्रह  तो करीब 23 करोड़ किलोमीटर दूर है। । अब तू  ही बता, सूर्य की गर्मी वहां पहुंचे तो पहुंचे कैसे !

              तब मैं बिजली के अस्तर वाले गर्म कपड़े  पहन लिया करूंगा।

              हा ..हा! भारी कपड़े पहनकर मोटा तरबूजा हो जाएगा। गिरेगा धड़ाम से !फिर तो न उठ   सकता है न बैठ सकता है ।

  "मां तुम तो मेरी हंसी उड़ा रही हो।भैंस भी तो मोटी होती है। वह जब जमीन पर बैठ जाती है तो उठ  भी जाती है। मैं क्यों नहीं उठ सकता!

              मैं  तेरी हंसी नहीं उड़ा रही। मैं तो गुरुत्वाकर्षण की बात सोचकर  कह रही हूं।  मंगल ग्रह पर गुरुत्वाकर्षण पृथ्वी का  आधा भी नहीं है।बस लटके रहो बीच में। वह ग्रह अपनी तरफ खींचता ही नहीं है।

              कोई बात नहीं ।मैं लटकने  का भी  अभ्यास कर लूंगा।” 

              अभ्यास करने के लिए किसी से पूछना तो पड़ेगा। !वहां तो बेटा बात करना ही नामुमकिन है ! अंतरिक्ष में कोई वायु तो है नहीं । वायु के बिना, ध्वनि तरंगें यात्रा नहीं कर सकतीं । फिर एक कान से दूसरे कान तक आवाज कैसे पहुंचेगी?”

              उफ!एक के बाद एक झंझट !रौनक ने बुरा  सा मुंह बनाया। 

              अरे इतनी देर से क्यों अपनी मां को तंग कर रहा है क्या आज ही  अंतरिक्ष में जाना है।

              अच्छा हुआ बाबा आप आ गए !

              मां कहती है , हवा के न होने से मैं वहां किसी से बात नहीं कर सकता । तब तो  मैं बड़ा बोर हो जाऊंगा।मन  भी नहीं लगेया। कोई तरकीब भिड़ाओ  ना--- जिससे मैं बातचीत  कर सकूँ।

              तू सांकेतिक भाषा सीखकर जा।इशारों से जी भर बतियाना।

              अरे हां.. मेरे स्कूल में उसकी क्लासेज भी शुरू हो गई हैं। कल ही उसका फॉर्म ले आऊंगा।

              तू  तो मेरा बजरंगबली है । मंगल ग्रह  पर  धूल के शैतान हमेशा  तूफ़ान मचाते रहते हैं।  तू भी कम तूफानी शैतान नहीं!बस दोनों का धूमधड़का शुरू हो जाएगा।"

              आप कुछ भी कहें।इसे भेजने का  मेरा  रत्ती भर मन नहीं !वहाँ न पेड़-पौधे न खेतीबाड़ी! एक -एक दाने को तरस जाएगा । ऐसे में मेरे गले में क्या रोटी उतरेगी !

              ओ भोली माँ! अभी कहाँ जा रहा हूँ ! जाने से पहले तो मुझे अन्तरिक्ष यात्री बनना पड़ेगा।रौनक शैतानी से मुस्कराया।

              उफ!नटखट कहीं  का –।सताने से बाज नहीं आता।“ माँ ने राहत की साँस  ली और बेटे को कलेजे से लगा लिया।   

समाप्त 

              

 

सोमवार, 19 मई 2025

बालप्रहरी का ऑन लाइन कार्यक्रम

 बालप्रहरी वीडियो - कहानी वाचन कार्यशाला 

18 मई, 2025




कहानी वाचन  कार्यशाला
          18 मई,2025 रविवार                                        
          सायं 7 बजे गूगल मीट पर        
         बालप्रहरी का 1184वां
            ऑनलाइन कार्यक्रम

                    अध्यक्षता : 
        डॉ. शकुंतला कालरा जी
                       दिल्ली

               मुख्य अतिथि  :
    डॉ. एम.एन.नौडियाल ‘मनन’
                देवप्रयाग,टिहरी

                कहानी वाचन
        श्रीमती सुधा भार्गव जी,
               बैंगलौर, कर्नाटक
                     
         अध्यक्ष मंडल ( बाल मंच)
   

     कहानी वाचन का मुझे शौक है और मैंने कई बार किया है पर इस बार जब उदय किरौला जी द्वारा मुझे कहानी वाचन का निमंत्रण मिला, मेरी प्रसन्नता की  सीमा न थी। क्योंकि कार्यशाला की  अध्यक्षता डॉ शकुंतला कॉलरा जी करने वाली थीं। यह पहला मौका था जब कोई वरिष्ठ जाना माना साहित्यकार मेरी कहानी सुनकर उसकेबारे में अपने विचार व्यक्त करे . यह सोचकर मैं और भी रोमांचित हो उठी कि आज मुझे पता लगेगा --- मैं कितने पानी में हूँ। धड़कते दिल से नहीं बल्कि बड़े उत्साह से मैंने कहानी वाचन किया । बच्चों ने व अन्य विद्धजनों ने कहानी को   काफी पसंद किया। बच्चों ने बेझिझक टिप्पणी भी दीं। । सबसे बड़ी बात  शकुंतला जी ने भी मुझे पास कर दिया । मैं तो उछल पड़ी । 

              

वैसे भी मुझे बालप्रहरी के ऑन लाइन कार्यक्रम इसलिए अच्छे लगते हैं क्योंकि बच्चे खुद  भाग लेते हैं। उसका संचालन करते हैं। विविध कार्यक्रमों के द्वारा बच्चों की प्रतिभा के द्वार खुलते हैं। उन्हें आगे बढ़ने का मौका मिलता है। प्रोत्साहन मिलने के कारण  बच्चों में गजब का  आत्मविश्वास कौतूहल विचारणनीय शक्ति देखने को मिलती है जिससे मैं हैरान हो उठती हूँ। मुझे इनके  कार्यक्रमों में भाग लेना अच्छा लगता है क्योंकि बच्चों का संसर्ग मिलता है।उनकी छल -फरेब से परे  एक दुनिया होतीहै। कहानी अच्छी लगी या नहीं इसके निर्णायक बच्चे  खुद हों तो समझ लो रचना के साथ न्याय हुआ है। 
यदि ऐसी ही अन्य ऑन लाइन कार्यशालाओ का आयोजन हो और पूरे देश से बच्चे जुड़ें तो मेरे ख्याल से इससे अच्छी क्या बात होगी।