धनराज को हमेशा चिंता रहती कि बच्चों की सेहत कैसे बने?उन्हें अपने पोते सारंगी की सेहत की चिंता तो खाये जा रही थी। एक दिन उनके दोस्त पुखराज ने सुझाव दिया -"धनराज तू एक गाय खरीद ले। "
यह सुनकर सारंगी खुश होकर बोला , " बाबा उसका नाम रखेंगे गौरी। लेकिन वह रहेगी कहाँ? "
"तेरे कमरे में रहेगी। तेरे लिए ही तो गाय खरीद रहा हूँ। जिससे उसका दूध पीकर हट्टा कट्टा हो जाये।" बाबा धनराज मज़ाक करते ठी--ठी हंस पड़े।
"न --न मेरे कमरे में हरगिज नहीं रहेगी। उफ गोबर से एकदम बदबू फैला देगी।" उसने नाक बंद करते कहा।
"अरे क्यों खिजा रहा है छोटे से बच्चे को धनराज । बेटा चिंता न कर । उसका घर हम अहाते के एक कोने में बनवा देंगे।" पुखराज बोले ।
अगले दिन अहाते में छप्पर डालकर गाय का छोटा सा हवादार घर बनवा दिया । दोनों मित्र बड़ी मोटी -ताजी लाल गाय खरीदकर ले आए। अब तो पौ फटते ही पुखराज सारंगी के घर आन धमकते। वे और उसके बाबा हंसी ठट्ठा करते गाय को ,चारा खिलाते ,दूध दोहते और फिर सारंगी के माँ के हाथ की गरम गरम चाय पीकर घूमने निकल जाते।
सारंगी स्कूल से आकर गौरी गाय से मिलने जाता पर दूर दूर ही रहता । गौरी उसे बड़ी अजीब लगती। वह उसे प्यार भरी निगाहों से देखती, चाहती सारंगी उसके पास आए ,उससे दोस्ती करे । पर वह एक कोने में खड़ा उसे टुकुर टुकुर देखता रहता।
एक दिन सारंगी ने ही अपनी चुप्पी तोड़ी। बोला-"गौरी तुम हो तो बहुत सुंदर,आँखें तो चमकती ही रहती हैं। पर खाती कैसे हो?एकदम जंगलियों की तरह।नाद में जैसे ही चारा देखती हो उस पर नदीदों की तरह टूट पड़ती हो । जैसे पहले कभी देखा ही न हो। जल्दी जल्दी उसे गपागप मुंह में भरकर सटक लेती हो। चबाती भी नहीं हो ठीक से। बाबा कहते हैं छोटे- छोटे गस्से खूब चबा चबा कर खाने चाहिए।"
गाय हँस दी।
"चलो तुम बोले तो । कब से तुम्हारे दो बोल सुनने को तरस रही थी। पर बिना कारण जाने तुमने मुझे न जाने क्या क्या कह दिया। पहले गायें घरों में नहीं पलती थीं। वे जंगलों में रहती थीं। तुम तो जानते ही हो वहाँ शेर चीता हमारे हजार दुश्मन!उनके डर के मारे घास-पत्ते जल्दी जल्दी मुंह में ठूँस कर भाग जाते ।बस वह हमारी आदत बन गई है।''
"लेकिन गौरी जल्दी जल्दी सटकने से तो पेट में दर्द हो जाता है। "
"हमारे पेट में दर्द नहीं होता यही तो मजा है।''
"क्यों! क्या तुम्हारा पेट सबसे अलग है।''
"यही समझ लो। मेरे चार पेट हैं।''
"क्या ?एक नहीं दो नहीं चार - चार !चार उँगलियाँ दिखाते हुए वह आश्चर्य से उछल पड़ा।
"हाँ चार पेटों में बारी बारी से चारा जाकर हजम होता है।
"तुम तो बड़ी दिलचस्प हो।"
"और एक बात बताऊं?सुनकर हैरान रह जाओगे।''
''हाँ --हाँ बताओ न ।''
"मैं पहले तो अपना भोजन जल्दी -जल्दी निगल लेती हूँ । फिर उसे दुबारा मुंह में ले आती हूँ।"
"मुझे तो सुनकर ही घिन्न आ रही है । इससे तुम्हें उल्टी नहीं होती?"
"एकदम नहीं। फिर आराम से उसे धीरे धीरे चबाती हूँ। एक तरह से जुगाली करती हूँ।''
"न जाने तुम कैसे चबाती हो?चप चप की आवाज होती रहती है । मुझे यह एकदम अच्छा नहीं लगता। खाते समय कोई आवाज करता है क्या?मुंह बंद करके खाना चाहिए।''
"मैं मुंह बंद करके नहीं खा सकती। मेरे केवल नीचे के जबड़े में दांत है ऊपर नहीं।चारे को मुंह में घुमाते हुए चबाना पड़ता है ।"
"यह कैसे हो सकता है!मुंह खोलो जरा देखूँ तो।"
उसने नीचे झुककर उसके खुले मुंह में झाँका तो आँखें चौड़ गईं। ।
"बाप रे तुम्हारे तो ऊपर के दांत हैं ही नहीं। पर ऊपर का जबड़ा बहुत पैना लग रहा है। लगता है दांत
निकलते निकलते अंदर ही रह गए। अच्छा अब तुम जुगाली करो पर देखो गौरी ,कल की तरह लार जरा भी न टपकाना।"
"लार तो मैं जरूर टपकाऊंगी ।"
"तब तो मैं चला।"
" ओह सारंगी रूठो मत। मेरे चारे में नमक मिला रहता है उससे लार ज्यादा बनती है। अब बताओ मैं क्या कर सकती हूँ।''
"मैं बाबा से कह दूंगा कल से वे नमक न डालें।''
"न -- न ऐसा कभी न करना। लार पैदा होने से खाना मेरा जल्दी हजम हो जाता है। पेट हल्का होने से मैं खुश रहती हूँ। मैं जितना खुश रहूँगी उतना ही ज्यादा मीठा -मीठा दूध दे पाऊँगी।"
"और जितना मीठा दूध मैं पीऊँगा उतना ही मैं खुश रहूँगा। वह भी उछलता बोला। सारंगी ने पहली बार गौरी के सिर को प्यार से सहलाया।"
दोनों में अच्छी ख़ासी दोस्ती हो गई। शाम होते ही गौरी सारंगी को याद करती और रंभाने लगती। सारंगी भी अपना खेल छोड़ गौरी के पास भागा चला आता।
कुछ दिनों के बाद सारंगी ने देखा गौरी के पास उससे मिलता जुलता छोटा सा एक बच्चा खड़ा है और वह उसे चाट रही है। देखने में बड़ा सुन्दर ,कोमल सा दूध सा सफेद । उसका मन चाहा वह भी उसे छूए , गोद में लेकर प्यार करे।
"गौरी यह तुम्हारा बच्चा है!मुझे बहुत अच्छा लग रहा है ।"
"बच्चा नहीं बच्ची है। हाँ ,मैं इसकी माँ हूँ । इस प्यारी सी नूरी को मैं जरा दूध पिला लूँ तब तुमसे बात करूंगी। यह भूखा रही तो मुझे चैन नहीं मिलेगा। "
"नूरी --गौरी की नूरी। वाह बहुत अच्छा नाम सोचा। हाँ पहले नूरी का पेट भर दो । मेरे भूखे रहने पर मेरी माँ भी ऐसा कहती है। "
माँ शब्द सुनकर गौरी की आँखें चमकने लगी । उसे माँ बनकर बहुत अच्छा लग रहा था।
घर में सब गौरी और नूरी का बहुत ध्यान रखते । एक हफ्ते में तो नूरी और भी सलोनी लगने लगी।सारंगी को नूरी के साथ खेलना बड़ा अच्छा लगता।
एक शाम जब सारंगी गौरी से मिलने गया तो वह उसे बड़ी सुस्त लगी। नूरी उस समय अपनी माँ का दूध पी रही थी। उसके नजदीक आया तो वह चौंक पड़ा -"अरे गौरी तू रो रही है ?"अब तो उसके आँसू और तेजी से बह चले। सारंगी बड़ा दुखी हो उठा। उसने उसे पुचकारा -"बता न गौरी क्या हुआ।''
"सारंगी कल मैंने दूध कम दिया था ।दद्दा ने सोचा नूरी कुछ ज्यादा ही दूध पी गई है।इसलिए आज उन्होंने पहले नूरी को मेरे से दूर खूँटे से बांध दिया । फिर सारा दूध निकाल लिया । मैं खड़ी खड़ी लाचार अपने भूखे बच्चे को तड़पता देखती रही। उसके हिस्से का दूध तुम सबके लिए देती रही। यह कैसी मजबूरी है। मेरा बच्चा मेरे दूध के लिए तड़पे और उसके हिस्से का दूध दूसरों की भूख मिटाये।"
"तू रो मत गौरी । कल से यह नहीं होगा।''
"कल भी होगा। क्योंकि दूध मैंने आज भी कम दिया है ।"
"आज कम क्यों दिया?"
"आज मैं बहुत दुखी थी। ऐसे में दूध नहीं दे पाती। भूल गए मैंने एक बार कहा था -ज्यादा खुश होने पर ही ज्यादा दूध दूँगी।"
"तू ठीक कह रही है गौरी । मैं बिलकुल तेरी तरह हूँ। मैं भी खुश होने पर खूब पढ़ता हूँ। पाठ फटाफट याद हो जाता है। दुखी होकर पढ़ने बैठता हूँ तो धिल्ला भर दिमाग में नहीं घुसता। अच्छा मुझे सोचने दे । देखूँ तेरे लिए क्या कर सकता हूँ।"
रास्ते भर कुछ न कुछ तरकीब भिड़ाता सारंगी घर पहुंचा।मेज पर दूध का गिलास रखा था। उसने उसे छुआ तक नहीं, पीने की बात तो बहुत दूर की रही। बार बार उसकी आँखों के सामने गौरी का आँसू भरा उदास चेहरा आ रहा था।
माँ ने टोका -"अरे तूने दूध अभी तक नहीं पीया।"
"माँ मैं नूरी के हिस्से का दूध गले से नीचे नहीं उतार सकता। आज वह भूखी है। मैं भी भूखा रहूँगा।" सारंगी ने गुस्से में भरकर कहा।
"यह नूरी कौन है?"
"गौरी की बच्ची । "
"ओह बछिया की बात कर रहा है। तुझे कैसे मालूम वह भूखी है?"
"मैं खुद देखकर आ रहा हूँ। दूध निकालने से पहले बाबा ने उसे माँ से अलग कर दिया और सारा दूध निकालकर आ गए। अब नूरी क्या पीये बोलो।उसके हिस्से का दूध तो मैं चख भी नहीं सकता। माँ मेरे भूखे रहने से आप कितनी दुखी हो। गौरी गैया भी इतनी ही दुखी होगी। मालूम है वह क्या कह रही थी !वह कह रही थी --जितना मैं खुश होती हूँ उतना ज्यादा दूध देती हूँ। दुखी होने पर दूध कम देती हूँ।" कहते कहते उसकी आँखें भर आईं।
सारंगी की माँ उसका मुंह देखती रह गई। जो बात घर के बड़े न समझ सके भोला -भाला बच्चा उसे पल में भाँप गया। उसने उसे अपने कलेजे से लगा लिया। बोली -"बेटा कल से न नूरी भूखी रहेगी और न ही उसकी माँ उदास। अब अपनी भूख हड़ताल तो बंद कर दे। "
" न माँ मुझसे कुछ खाने को न कहो। मैं सुबह ही दूध पीऊँगा जब नूरी भर पेट दूध पी लेगी। "
अपनी बात का पक्का सारंगी भूखे पेट ही सो गया।
उसके बाबा को जब पता चला तो वे परेशान हो उठे। सारी रात करवटें बदलते रहे। सुबह आप जानकर वे दूध दुहने देर से पहुँचें ,तब तक नूरी अपनी माँ का दूध भरपेट पी चुकी थी। उस दिन वाकई में गौरी ने खूब दूध दिया --इतना ज्यादा दूध कि बर्तन से बाहर छलक छलक पड़ता।
सारंगी ने भूख हड़ताल खतम करके गौरी का मीठा दूध छककर पीया । फिर तुरंत वह नूरी और गौरी से मिलने चल दिया। उस समय नूरी उछलती कूदती अपनी माँ के चक्कर लगा रही थीऔर गौरी --वह तो ममता की चादर में लिपटी अपनी नूरी को बस निहारने में लगी थी।उनको खिला खिला देख सारंगी भी खिल उठा। सारंगी की आहट पा गौरी ने गर्दन घुमाई । मोती सी चमकती दो आंखें अपने दोस्त का धन्यवाद करने लगीं।