प्यारे बच्चों

कल सपने में देखा -मैं एक छोटी सी बच्ची बन गई हूं । तुम सब मेरा जन्मदिन मनाने आये हो । चारों ओर खुशियाँ बिखर पड़ी हैं ,टॉफियों की बरसात हो रही है । सुबह होते ही तुम में से कोई नहीं दिखाई दिया ।मुझे तो तुम्हारी याद सताने लगी ।

तुमसे मिलने के लिए मैंने बाल कुञ्ज के दरवाजे हमेशा के लिए खोल दिये हैं। यहाँ की सैर करते समय तुम्हारी मुलाकात खट्टी -मीठी ,नाटी -मोती ,बड़की -सयानी कहानियों से होगी । कभी तुम खिलखिला पड़ोगे , कभी कल्पना में उड़ते -उड़ते चन्द्रमा से टकरा जाओगे .कुछ की सुगंध से तुम अच्छे बच्चे बन जाओगे ।

जो कहानी तुम्हें अच्छी लगे उसे दूसरों को सुनाना मत भूलना और हाँ ---मुझे भी वह जरूर बताना ।
इन्तजार रहेगा ----! भूलना मत - -

रविवार, 4 सितंबर 2016

उत्सवों का आकाश

8-गणेश चतुर्थी 
प्यारे -प्यारे बच्चों को और बड़ों को   मंगलमय हो ।
कल भी  ,आज भी  और कल भी |
मतलब --पूरे वर्ष 


आओ 
एक साथ दिल से बोलें ----
एक -दो -तीन -चार 
गणपति की जयजयकार।
पाँच -छह- सात -आठ 
गणपति करते मालामाल।
नौ- दस -ग्यारह- बारह 
हरते कष्ट बारम्बार।
तेरह- चौदह- पन्द्रह -सोलह 
गणपति हैं सबसे भोले ।
सत्रह- अठारह -उन्नीस- बीस 
गणपति रहते हमारे बीच ॥

 बच्चों, तुम्हारी जान पहचान कुछ तो गणपति(गणेश ) जी से  हो गई है पर  अभी डमरू के दोस्त से मिलना बाक़ी है |

तुम भी जरा सोचो डमरू  का दोस्त कौन हो सकता है  !
नहीं दिमाग में आया ----चलो ---हम बताते हैं |

डमरू कल अपनी माँ के साथ पूजा पंडाल गया।वहाँ उसकी मुलाकात गणेश जी से हुई । पहले पहल तो वह उनको देखकर डर गया 
-लम्बी सी सूढ़ .मोटा सा पेट ,लम्बे नुकीले वह भी दो बड़े दांत ! दरवाजे से ही वह तो भागा बाहर की ओर ------



गणेश जी भी उसका पीछा छोड़ने वाले कब थे  ।उन्होंने तुरंत अपनी सूढ़ लम्बी करके उसे लपेट लिया और  ले आये अपने पास।

बोले ---डरो नहीं बच्चे ,लो यह लड्डू खाओ --मुझे लड्डू बहुत
पसंद हैं ।
 -नहीं, मैं नहीं खाऊँगा  ।मेरा पेट भी तुम्हारे पेट की तरह लड्डू हो जायेगा।
-हा ---हा ---हा !तुम तो बहुत हँसाते हो  । एक लड्डू से कुछ नहीं होता ।मैं तो कटोरा  भरकर लड्डू खाता हूं।
-बाप रे --!डमरू आश्चर्य से अपनी आँखें झपकने लगा लेकिन उसका डर जाता रहा।

डमरू गणेश  जी के पास खिसक आया।उनका सिर छूते हुए बोला --
--तुम्हारा सिर हाथी सा क्यों  है ?
-तुमने सुना नहीं ---सिर बड़े  सरदारों के ,पैर बड़े  गवांरों के ,तो समझ लो हाथी की तरह मैं बहुत बुद्धिमान हूं।

--और यह इतनी लम्बी सूढ़ ! किस काम की ----न जाने चलते भी कैसे हो । मुझे तो आफत की पुड़िया लगती है।
--यह आफत की पुड़िया नहीं --आफत भगाने की पुड़िया है । कदम बढ़ाने से पहले ही इससे सूँघ कर पता  लगा लेता हूं कि आगे कोई खतरा तो नहीं ---!

-तुम्हारे कान कहाँ है ?सुनते कैसे  हो ----कान तो तुम्हारे हैं ही नहीं हा --हा ।
-पंखों से ही मेरे कान हैं  ।दूसरों की बातें मैं बहुत ध्यान से सुनता हूं और कान  में बंद करके उन्हें निकलने नहीं देता ।
--मैं तो अपने मम्मी -पापा की बातें एक कान से सुनता हूं और दूसरे कान से निकाल देता हूं ।
-यह आदत ठीक नहीं । इससे तुम्हारा नुकसान ही होगा।
--तुमभी कहाँ ठीक से सुनते हो। तुम्हारी मम्मी जरूर कहती होंगी --गणेशा कम खाओ --कम खाओ जिससे पेट पिचक जाये।
-यह पिचक तो सकता ही नहीं है । मैं दूसरों की  बातों को अपने पेट में रखता हूं और अपनी बातें किसी को बताता नहीं।
वे भी मेरे पेट में समाई  रहती है  ।इससे पेट फूल जाता हैं
 ।

--तुम तो बहुत चतुर हो-- दुनिया का  भेद पा लिया और अपना भेद किसी को नहीं दिया , लेकिन इससे क्या फायदा !
-फायदा यही  कि  दुश्मन हो या दोस्त -मेरा कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता ।
जब तुम बड़े हो जाओगे और अपना कोई काम(व्यापार) शुरू करोगे ,तब मेरी बातें समझ में आयेंगी।
--हां याद आया---दुकानमें तुम्हारी बड़ी सी फोटो लगी है। सुबह -सुबह सबसे पहले पिताजी तुम पर  फूलमाला चढ़ाते हैं ,पूजा करते है------
जय गणेश जय गणेश
जय गणेश देवा--
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-तुम तो सच में गणेश देवा हो !
-तुम्हारे लिए मैं केवल गणेश हूं --तुम्हारा दोस्त ।


एकाएक माँ की आवाज आई --अरे डमरू --!कहाँ गया ?                         
--घर में पूजा का समय हो गया ।
डमरू चलने-चलते बोला ---
-दोस्त अब कब मिलेंगे ?
-जब याद करोगे मुझे अपने पास पाओगे । मैं अपने चाहने वालों को बहुत प्यार करता हूं।

डमरू  की आंखों में अपने दोस्त की प्यारी  छवि थी  और अपनी माँ के साथ मग्न होकर गा रहा था ---
जय गणेश जय गणेश

जय गणेश देवा  
माता जाकी  पार्वती
पिता महादेवा |
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