8-गणेश चतुर्थी
प्यारे -प्यारे बच्चों को और बड़ों को मंगलमय हो ।कल भी ,आज भी और कल भी |मतलब --पूरे वर्ष
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आओ
एक साथ दिल से बोलें ----
एक -दो -तीन -चार
गणपति की जयजयकार।
पाँच -छह- सात -आठ
गणपति करते मालामाल।
नौ- दस -ग्यारह- बारह
हरते कष्ट बारम्बार।
तेरह- चौदह- पन्द्रह -सोलह
गणपति हैं सबसे भोले ।
सत्रह- अठारह -उन्नीस- बीस
गणपति रहते हमारे बीच ॥
बच्चों, तुम्हारी जान पहचान कुछ तो गणपति(गणेश ) जी से हो गई है पर अभी डमरू के दोस्त से मिलना बाक़ी है |
तुम भी जरा सोचो डमरू का दोस्त कौन हो सकता है !
नहीं दिमाग में आया ----चलो ---हम बताते हैं |
डमरू कल अपनी माँ के साथ पूजा पंडाल गया।वहाँ उसकी मुलाकात गणेश जी से हुई । पहले पहल तो वह उनको देखकर डर गया -लम्बी सी सूढ़ .मोटा सा पेट ,लम्बे नुकीले वह भी दो बड़े दांत ! दरवाजे से ही वह तो भागा बाहर की ओर ------
बोले ---डरो नहीं बच्चे ,लो यह लड्डू खाओ --मुझे लड्डू बहुत
पसंद हैं ।
-नहीं, मैं नहीं खाऊँगा ।मेरा पेट भी तुम्हारे पेट की तरह लड्डू हो जायेगा।
-हा ---हा ---हा !तुम तो बहुत हँसाते हो । एक लड्डू से कुछ नहीं होता ।मैं तो कटोरा भरकर लड्डू खाता हूं।
-बाप रे --!डमरू आश्चर्य से अपनी आँखें झपकने लगा लेकिन उसका डर जाता रहा।
डमरू गणेश जी के पास खिसक आया।उनका सिर छूते हुए बोला --
--तुम्हारा सिर हाथी सा क्यों है ?
-तुमने सुना नहीं ---सिर बड़े सरदारों के ,पैर बड़े गवांरों के ,तो समझ लो हाथी की तरह मैं बहुत बुद्धिमान हूं।
--और यह इतनी लम्बी सूढ़ ! किस काम की ----न जाने च
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--यह आफत की पुड़िया नहीं --आफत भगाने की पुड़िया है । कदम बढ़ाने से पहले ही इससे सूँघ कर पता लगा लेता हूं कि आगे कोई खतरा तो नहीं ---!
-तुम्हारे कान कहाँ है ?सुनते कैसे हो ----कान तो तुम्हारे हैं ही नहीं हा --हा ।
-पंखों से ही मेरे कान हैं ।दूसरों की बातें मैं बहुत ध्यान से सुनता हूं और कान में बंद करके उन्हें निकलने नहीं देता ।
--मैं तो अपने मम्मी -पापा की बातें एक कान से सुनता हूं और दूसरे कान से निकाल देता हूं ।
-यह आदत ठीक नहीं । इससे तुम्हारा नुकसान ही होगा।
--तुमभी कहाँ ठीक से सुनते हो। तुम्हारी मम्मी जरूर कहती होंगी --गणेशा कम खाओ --कम खाओ जिससे पेट पिचक जाये।
-यह पिचक तो सकता ही नहीं है । मैं दूसरों की बातों को अपने पेट में रखता हूं और अपनी बातें किसी को बताता नहीं।
वे भी मेरे पेट में समाई रहती है ।इससे पेट फूल जाता हैं
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--तुम तो बहुत चतुर हो-- दुनिया का भेद पा लिया और अपना भेद किसी को नहीं दिया , लेकिन इससे क्या फायदा !
-फायदा यही कि दुश्मन हो या दोस्त -मेरा कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता ।
जब तुम बड़े हो जाओगे और अपना कोई काम(व्यापार) शुरू करोगे ,तब मेरी बातें समझ में आयेंगी।
--हां याद आया---दुकानमें तुम्हारी बड़ी सी फोटो लगी है। सुबह -सुबह सबसे पहले पिताजी तुम पर फूलमाला चढ़ाते हैं ,पूजा करते है------
जय गणेश जय गणेश
जय गणेश देवा--
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-तुम्हारे लिए मैं केवल गणेश हूं --तुम्हारा दोस्त ।
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एकाएक माँ की आवाज आई --अरे डमरू --!कहाँ गया ?
--घर में पूजा का समय हो गया ।
डमरू चलने-चलते बोला ---
-दोस्त अब कब मिलेंगे ?
-जब याद करोगे मुझे अपने पास पाओगे । मैं अपने चाहने वालों को बहुत प्यार करता हूं।
डमरू की आंखों में अपने दोस्त की प्यारी छवि थी और अपनी माँ के साथ मग्न होकर गा रहा था ---
जय गणेश जय गणेश
जय गणेश देवा
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माता जाकी पार्वती
पिता महादेवा |
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