प्यारे बच्चों

कल सपने में देखा -मैं एक छोटी सी बच्ची बन गई हूं । तुम सब मेरा जन्मदिन मनाने आये हो । चारों ओर खुशियाँ बिखर पड़ी हैं ,टॉफियों की बरसात हो रही है । सुबह होते ही तुम में से कोई नहीं दिखाई दिया ।मुझे तो तुम्हारी याद सताने लगी ।

तुमसे मिलने के लिए मैंने बाल कुञ्ज के दरवाजे हमेशा के लिए खोल दिये हैं। यहाँ की सैर करते समय तुम्हारी मुलाकात खट्टी -मीठी ,नाटी -मोती ,बड़की -सयानी कहानियों से होगी । कभी तुम खिलखिला पड़ोगे , कभी कल्पना में उड़ते -उड़ते चन्द्रमा से टकरा जाओगे .कुछ की सुगंध से तुम अच्छे बच्चे बन जाओगे ।

जो कहानी तुम्हें अच्छी लगे उसे दूसरों को सुनाना मत भूलना और हाँ ---मुझे भी वह जरूर बताना ।
इन्तजार रहेगा ----! भूलना मत - -

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शुक्रवार, 6 जनवरी 2017

देवपुत्र पत्रिका में प्रकाशित -वीर सिपाही



                              देवपुत्र पत्रिका 
            (ऊपर क्लिक करने से आप पत्रिका में भी यह कहानी पढ़ सकते हैं।)     

वीर सिपाही/सुधा भार्गव 

सूरज से दमकते चन्दन बाबू के घर में उमड़ते घुमड़ते काले बादलों का साया छा  जाना चाहता था। एक पल खामोश न रहने वाली उनकी लाड़ली आज खामोशी के जंगल में दिखाई दे रही थी।  उसके लिए तो चुप रहना उतना ही कठिन था जैसे बादलों में छलांग लगाना। उसका उदास चेहरा माँ-बाप की बेचैनी ही बढ़ा रहा था। वे तो उसे कल की वही शैतान चंचल पारो देखना चाहते थे।

विद्यालय  से आते ही न उसने खाया न पूरे विद्यालय की चकल्लस सुन माँ ने कानों में उँगलियाँ ठूँसी। बस बिस्तर पर लोटन कबूतर हो गई।
घर में घुसते ही पर्वत ने अपनी बहन को असमय लेटे देखा तो उछल पड़ा –ए पारो –कोपभवन में कैसे लेटी है?एकदम फुल्ले फुल्ले गाल—बिलकुल कैकई लग रही है।माँ से कितनी बार कहा –तुझे दूरदर्शन की हिन्दी धारावाहिक न देखने दें । बिगड़ जाएगी ---बिगड़ जाएगी। बिगड़ गई न तू!
-देखो भैया ,मुझे छेड़ो मत –वरना बहुत बुरा होगा।
-बुरा तो हो ही रहा है। तेरी चुप्पी ने सिर दर्द कर दिया है। इससे बुरा अब क्या होगा! मेरी अच्छी बहना अपने  भाई को तो बता दे –तेरे दिमाग में क्या चल रहा है?
-भैया,विद्यालय की दीदी कह कह रही थीं –सेना में भर्ती हो रही है लड़कों के साथ लड़कियों की भी। मैं भी तुम्हारी तरह एन ॰सी ॰सी॰ की ट्रेनिंग लेना चाहती हूँ । सेना में भर्ती होकर देश का वीर सिपाही बनूँगी।पता नहीं मम्मी-पापा इसके लिए सहमत होंगे या नहीं। 
-तू पागल हो गई है क्या?अगर नहीं हुई है तो एन॰सी॰सी ॰की ट्रेनिंग के समय रात -दिन मेहनत करके पागल हो जाएगी। शिविर में तो सुबह ही जगा देते हैं । भोर की किरणों के साथ दौड़,व्यायाम और ऊंचाई पर चढ़ने का अभ्यास शुरू हो जाता है। अच्छे-अच्छे मुर्गे बन जाते हैं और कूकड़ू करते भाग जाते हैं । फिर तू किस खेत की मूली है।
-भैया देखो—तुम मुझे फिर चिढ़ा रहे हो। न जाने तुम मुझको अपने से कम क्यों समझते हो ? मैं तुम्हारी तरह यह सब कर सकती हूँ और हाँ, समय आने पर सीमा पर भी लड़ने जाऊँगी।
-हिन्द पाक की सीमा पर जब देखो दुश्मनों की फौज से मुठभेड़ होती रहती है। न बाबा !मैं अपनी इकलौती बहन को  सेना में भर्ती नहीं होने दूंगा। माँ तो जल्दी से लड़का खोजकर तेरी शादी करने की सोच रही है  फिर तू जाने और –हमारे जीजा जी जाने।
-ओह भैया !तुम कभी मेरी मदद नहीं कर सकते सिवाय खिल्ली उड़ाने के। जाओ तुमसे नहीं बोलती।

भाई की बातों से पारो का मन बुझ सा गया। । इतने में पिताजी आ गए। काफी देर से भाई-बहनों की तकरार सुन रहे थे। पापा को देख पारो बड़ी उम्मीद के साथ बोली—पिताजी, क्या आप भी चाहते हैं किमैं घर साफ करने ,खाना बनाने,फटे कपड़े सीने में ही गुजार दूँ। दुनिया कितनी आगे बढ़ रही है। घर के साथ -साथ मैं बाहरी दुनिया में भी तो कदम रख सकती हूँ। मुझे आप घर की चारदीवारी में ही बंद क्यों रखना चाहते हैं---बोलिए न पिताजी?
-बेटी ! तुम गलत समझ रही हो। हम तो तुम्हें इतना आराम और प्यार देना चाहते हैं कि हमेशा गुलाब की तरह खिली रहो।
-पिताजी ,ऐसा प्यार,आराम किस काम का जो मुझे  अपाहिज बना दे।अपने काम के लिए हमेशा दूसरों का मुँह ताकूँ। ।  मुसीबत आने पर मैं बेचारी नहीं बनना चाहती। नहीं चाहिए किसी की दया ।
-बिटिया,तुम्हें दूसरों की जरूरत पड़ेगी । क्या अपनी रक्षा खुद कर पाओगी?
-मैं बंदूक चलना सीखूंगी –जूड़ो कराटे सीखूंगी। केवल अपनी ही नहीं देश की भी रक्षा करूंगी।
-पारो की माँ!सुन रही हो अपनी बेटी की बातें । लगता है हमारे घर में झांसी की रानी ने दुबारा जन्म ले लिया है। चन्दन बाबू अपनी बेटी के साहस और देशभक्ति की भावना को  देख बहुत खुश थे।
-आप भी किसकी बातों में आ गए। भला यह सीख पाएगी।
-सीखने के लिए लगन होनी चाहिए। यह लगन हमारी बेटी में है। वसंत कुंज में रहनेवाली भारत की पहली महिला आकाश गोताखोर (स्काई ड्राइवर )रीचल थॉमस ने तो नानी-दादी बनने के बाद नॉर्थ पोल से छ्लांग लगा दी। लगन के कारण न जाने कब से अभ्यास कर रही होंगी। देखना –हमारी बेटी भी एक दिन देश का नाम ऊंचा करेगी। और हाँ पारो जब तुम्हें एन॰सी॰सी ॰की ट्रेनिंग लेनी ही है तो देरी किस बात की है। कल ही विद्यालय से आवेदन पत्र ले आओ। चन्दन बाबू उसकी ओर देख मुस्कुरा उठे।  
-ओह मेरे अच्छे पिताजी !कहकर वह उनके गले लग गई।
पारो के चेहरे ए उदासी का घाना कोहरा छंटचुका था। वह कमर कसकर वीर सिपाही बनने का अपना सपना सच करने में लग गई।



मंगलवार, 23 अक्तूबर 2012

दशहरे के अवसर पर बालकथा





बच्चों 
विजयदशमी  
अगरबत्ती सी खुशबू लिए 
तुम्हारे घर  आँगन में आ चुकी है 
जो कह रही है
अच्छे काम  करो
 बुराई से  बचो 
जो बता रही है
 राम अच्छा था
 रावण बुरा था
 राम ने अच्छा किया
 बुरे का अंत किया ।
पर इससे भी ज्यादा जानना तुम्हारे  लिए जरूरी है
इसके लिए एक  कहानी सुनाती हूँ  ।कहानी की कहानी और जानकारी की जानकारी ।

घर का भेदिया 

मनचला मन का बड़ा चंचल था | मिठाई देखकर तो उसका मन हिरन  की तरह कुलाचें  मारने लगता | मन ही मन हिसाब लगाता -एक खाऊँ ---दो खाऊँ-- या-- सब खा जाऊँ |






एक दिन वह सरपट के जन्मदिन पर उसके घर गया |सरपट बहुत सरल हृदय का था |उसको जो भी नई चीज मिलती अपने दोस्तों को दिखा -दिखाकर खुश होता |मनचला तो उसका खास दोस्त  था |जन्मदिन पर वह उसे अपने कमरे में ले गया |


उपहारों के पैकिट देखकर मनचला का मन चल निकला --


-इनमें क्या -क्या है | उसने पूछा  |
-ज्यादातर टाफियां -चाकलेट के डिब्बे हैं |
-एक डिब्बा खोलकर दिखाओ न |
-हाँ --हाँ अभी दिखाता  हूँ |

अरे सर्रू---सरपट आ --|केक काटने का समय हो गया है | सरपट को प्यार से घर  में सरू कहते थे |
माँ की आवाज कानों से टकराते ही सरपट भागा पर मनचला-- मनचला जो ठहरा ---सो वहीं ठहर गया |


उसके दिमाग ने शुरू कर दी अपनी कसरत ---  डिब्बा खुल तो गया ही हैं जरा हाथ डालकर देखूँ,क्या चमकीला -चमकीला सा है |

अरे टाफी --इतनी बड़ी --खुशबूदार !एक तो खा ही लूँ इतनी सारी टाफियों में एक कम हो गई तो क्या पता लगेगा |
बंद मुँह में टाफी का रस चूसता हुआ कमरे से निकला |उसके साथी केक  का स्वाद ले लेकर खा रहे थे |






वह दबे पाँव लौट गया कमरे में और इस बार मुट्ठी भरकर टाफियां  जेब के हवाले कीं |चुस्ती से  बाहर आकार केक खाने में लग गया जिससे किसी को उस पर शक न हो | |केक समाप्त करके बच्चे खेलने में लग गये पर मनचले को चैन कहाँ ! दिमाग में शैतान आन बैठा ----अभी तो डिब्बे  में बहुत टाफियां हैं क्यों न एक मुट्ठी दूसरी जेब में भी  भर लूँ फिर तो घर जाना ही है |घर में तो मुझे कोई इतनी टाफियां  देता भी नहीं हैं |उसने इच्छा पूरी की और अपनी विजय पर मुस्काता जल्दी -जल्दी  घर की राह  ली |

मेहमानों के जाने के बाद  दादा जी बोले --सरपट जरा अपने उपहार तो दिखाओ |
-अभी लाया दादाजी --|
दादा जी इंतजार करते रहे पर सरपट के आने का  नाम ही नहीं |हैरान से वे उसके कमरे में गये |सरपट के आगे टाफी का एक डिब्बा खुला पड़ा था और वह सुबक रहा था |

--क्या हुआ बेटा ?खुशी के दिन यह रोना -धोना क्यों | 
-मेरी टाफियां कोई खा गया ---बहुत सी  चुरा ले गया |

--किसी को मालूम था क्या कि तुम्हें मिले उपहार यहाँ रखे हैं !
-हाँ ,मनचले को !मैं उससे कुछ नहीं छिपाता  |वह तो मेरा सबसे अच्छा दोस्त है |

-यह तुम गलत करते हो |कल को कह दिया -मेरी गुल्लक माँ की अलमारी में रखी रहती है और उसमें बहुत सुन्दर -संदर साड़ियाँ भी है तो आज छोटा चोर मिला है कल बड़ा भी मिल सकता है |घर के भेदी  ने तो लंका भी ढा दी थी |
-वही लंका ---- जिसका राजा रावण था ----- |वह  दुष्ट   तो  सीता जी को चुरा कर ले गया था  और देखने में भी पूरा राक्षस --दस सिर --बीस हाथ |अच्छा किया राम ने उसे मारकर ।



-- बिना जाने बूझे तुम उसकी हँसी उड़ा रहे हो |राक्षसों जैसे बुरे काम करने के कारण वह दुष्ट कहलाया  पर था बहुत विद्वान् !दस दिमागों  के बराबर उसमें बुद्धि थी  और बीस हाथों के बराबर उसमें शक्ति | उस साहसी और युद्ध कला में चतुर  योद्धा को लड़ाई  में राम चन्द्र जी भी  नहीं हरा पा रहे थे ---एक सिर उसका धड़ से अलग करते दूसरा आन लगता |

-फिर वह  कैसे मारा  गया ?
-घर के भेदिये के कारण ---|
-कौन था दादाजी--- भेदिया ?
--तुम सुनकर ताज्जुब करोगे---  भेदिया था उसका ही  छोटा भाई विभीषण जिसे रावण   बहुत प्यार करता था |उसपर विश्वास करके  




अपनी और  अपने राज्य की सारी बातें उसको बता दिया करता |पर वही सगा भाई राम से जाकर  मिल गया और उसने रावण के सारे रहस्य राम के सामने उगल दिए।

 - दुश्मन से दोस्ती कर ली !तब तो वह देश द्रोही था ।

-तुम ठीक कह रहे हो !युद्ध के मैदान में विभीषण  ने चिल्लाकर  कहा --- हे राम ! रावण की नाभि में  उसकी मृत्यु का भेद  छिपा है |पहले 
उसमें भरा  अमृत का तालाब  नष्ट करो वरना वह अमर रहेगा  | वह कभी नहीं मरेगा ।

बस फिर क्या था -- बिना देर किये ,राम ने नाभि पर   निशाना लगाकर उसके टुकड़े -टुकड़े कर दिये और रावण के  सीने में तीर मार कर सदैव के लिए उसे सुला दिया  | 

 मरते समय रावण को मरने या हारने का इतना  दुःख नहीं था जितना विश्वासघात का |विभीष ने अपने भाई को कम दुःख नहीं पहुँचाया था ||रावण को  लगता मानो ,उसके भाई  ने उसके दिल में कीलें ठोक दी हों और उनसे खून बह रहा है ।






घर का भेदिया तो बड़ा खतरनाक होता है |मैं ऐसा खतरा कभी नहीं बनूंगा -सरपट बुदबुदा उठा |
दादाजी उसकी मनोदशा समझ गये |प्यार से बोले --बेटे, कल की बात छोड़ो आगे की सोचो | 
--तुम को तो एक  ऐसा  वीर सिपाही बनना है जो देश की रक्षा करेगा ,जो न देशद्रोही होगा न किसी का जी दुखायेगा ।

--मैं जरूर वीर सिपाही बनूंगा ।सर्रू उत्साह से भर उठा ।

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