वीर सिपाही/सुधा भार्गव
सूरज से दमकते चन्दन बाबू के घर में उमड़ते घुमड़ते
काले बादलों का साया छा जाना चाहता था। एक
पल खामोश न रहने वाली उनकी लाड़ली आज खामोशी के जंगल में दिखाई दे रही थी। उसके लिए तो चुप रहना उतना ही कठिन था जैसे
बादलों में छलांग लगाना। उसका उदास चेहरा माँ-बाप की बेचैनी ही बढ़ा रहा था। वे तो
उसे कल की वही शैतान चंचल पारो देखना चाहते थे।
विद्यालय से आते ही न उसने खाया न पूरे विद्यालय की
चकल्लस सुन माँ ने कानों में उँगलियाँ ठूँसी। बस बिस्तर पर लोटन कबूतर हो गई।
घर में घुसते ही पर्वत ने अपनी बहन को असमय लेटे देखा तो उछल पड़ा –ए पारो –कोपभवन
में कैसे लेटी है?एकदम फुल्ले फुल्ले गाल—बिलकुल कैकई
लग रही है।माँ से कितनी बार कहा –तुझे दूरदर्शन की हिन्दी धारावाहिक न देखने दें ।
बिगड़ जाएगी ---बिगड़ जाएगी। बिगड़ गई न तू!
-देखो भैया ,मुझे छेड़ो
मत –वरना बहुत बुरा होगा।
-बुरा तो हो ही रहा है। तेरी चुप्पी ने सिर दर्द कर
दिया है। इससे बुरा अब क्या होगा! मेरी अच्छी बहना अपने भाई को तो बता दे –तेरे दिमाग में क्या चल रहा
है?
-भैया,विद्यालय की दीदी कह
कह रही थीं –सेना में भर्ती हो रही है लड़कों के साथ लड़कियों की भी। मैं भी
तुम्हारी तरह एन ॰सी ॰सी॰ की ट्रेनिंग लेना चाहती हूँ । सेना में भर्ती होकर देश
का वीर सिपाही बनूँगी।पता नहीं मम्मी-पापा इसके लिए सहमत होंगे या नहीं।
-तू पागल हो गई है क्या?अगर नहीं हुई है तो एन॰सी॰सी ॰की ट्रेनिंग के समय रात -दिन मेहनत करके पागल
हो जाएगी। शिविर में तो सुबह ही जगा देते हैं । भोर की किरणों के साथ दौड़,व्यायाम और ऊंचाई पर चढ़ने का अभ्यास शुरू हो जाता है। अच्छे-अच्छे मुर्गे बन
जाते हैं और कूकड़ू करते भाग जाते हैं । फिर तू किस खेत की मूली है।
-भैया देखो—तुम मुझे फिर चिढ़ा रहे हो। न जाने तुम मुझको
अपने से कम क्यों समझते हो ? मैं तुम्हारी तरह
यह सब कर सकती हूँ और हाँ, समय आने पर सीमा पर भी लड़ने
जाऊँगी।
-हिन्द पाक की सीमा पर जब देखो दुश्मनों की फौज से
मुठभेड़ होती रहती है। न बाबा !मैं अपनी इकलौती बहन को सेना में भर्ती नहीं होने दूंगा। माँ तो जल्दी
से लड़का खोजकर तेरी शादी करने की सोच रही है फिर तू जाने और –हमारे जीजा जी जाने।
-ओह भैया !तुम कभी मेरी मदद नहीं कर सकते सिवाय खिल्ली
उड़ाने के। जाओ तुमसे नहीं बोलती।
भाई की बातों से पारो का मन बुझ सा गया। । इतने में
पिताजी आ गए। काफी देर से भाई-बहनों की तकरार सुन रहे थे। पापा को देख पारो बड़ी उम्मीद
के साथ बोली—पिताजी, क्या आप भी चाहते हैं किमैं घर साफ
करने ,खाना बनाने,फटे कपड़े सीने में ही
गुजार दूँ। दुनिया कितनी आगे बढ़ रही है। घर के साथ -साथ मैं बाहरी दुनिया में भी
तो कदम रख सकती हूँ। मुझे आप घर की चारदीवारी में ही बंद क्यों रखना चाहते हैं---बोलिए न पिताजी?
-बेटी ! तुम गलत समझ रही हो। हम तो तुम्हें इतना
आराम और प्यार देना चाहते हैं कि हमेशा गुलाब की तरह खिली रहो।
-पिताजी ,ऐसा प्यार,आराम किस काम का जो मुझे अपाहिज
बना दे।अपने काम के लिए हमेशा दूसरों का मुँह ताकूँ। । मुसीबत आने पर मैं बेचारी नहीं बनना चाहती। नहीं
चाहिए किसी की दया ।
-बिटिया,तुम्हें दूसरों की
जरूरत पड़ेगी । क्या अपनी रक्षा खुद कर पाओगी?
-मैं बंदूक चलना सीखूंगी –जूड़ो कराटे सीखूंगी। केवल
अपनी ही नहीं देश की भी रक्षा करूंगी।
-पारो की माँ!सुन रही हो अपनी बेटी की बातें । लगता
है हमारे घर में झांसी की रानी ने दुबारा जन्म ले लिया है। चन्दन बाबू अपनी बेटी के
साहस और देशभक्ति की भावना को देख बहुत खुश
थे।
-आप भी किसकी बातों में आ गए। भला यह सीख पाएगी।
-सीखने के लिए लगन होनी चाहिए। यह लगन हमारी बेटी में
है। वसंत कुंज में रहनेवाली भारत की पहली महिला आकाश गोताखोर (स्काई ड्राइवर )रीचल
थॉमस ने तो नानी-दादी बनने के बाद नॉर्थ पोल से छ्लांग लगा दी। लगन के कारण न जाने
कब से अभ्यास कर रही होंगी। देखना –हमारी बेटी भी एक दिन देश का नाम ऊंचा करेगी। और
हाँ पारो जब तुम्हें एन॰सी॰सी ॰की ट्रेनिंग लेनी ही है तो देरी किस बात की है। कल ही
विद्यालय से आवेदन पत्र ले आओ। चन्दन बाबू उसकी ओर देख मुस्कुरा उठे।
-ओह मेरे अच्छे पिताजी !कहकर वह उनके गले लग गई।
पारो के चेहरे ए उदासी का घाना कोहरा छंटचुका था। वह
कमर कसकर वीर सिपाही बनने का अपना सपना सच करने में लग गई।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (07-01-2017) को "पढ़ना-लिखना मजबूरी है" (चर्चा अंक-2577) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
नववर्ष 2017 की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'