प्यारे बच्चों

कल सपने में देखा -मैं एक छोटी सी बच्ची बन गई हूं । तुम सब मेरा जन्मदिन मनाने आये हो । चारों ओर खुशियाँ बिखर पड़ी हैं ,टॉफियों की बरसात हो रही है । सुबह होते ही तुम में से कोई नहीं दिखाई दिया ।मुझे तो तुम्हारी याद सताने लगी ।

तुमसे मिलने के लिए मैंने बाल कुञ्ज के दरवाजे हमेशा के लिए खोल दिये हैं। यहाँ की सैर करते समय तुम्हारी मुलाकात खट्टी -मीठी ,नाटी -मोती ,बड़की -सयानी कहानियों से होगी । कभी तुम खिलखिला पड़ोगे , कभी कल्पना में उड़ते -उड़ते चन्द्रमा से टकरा जाओगे .कुछ की सुगंध से तुम अच्छे बच्चे बन जाओगे ।

जो कहानी तुम्हें अच्छी लगे उसे दूसरों को सुनाना मत भूलना और हाँ ---मुझे भी वह जरूर बताना ।
इन्तजार रहेगा ----! भूलना मत - -

शुक्रवार, 5 सितंबर 2014

नमन व निबंध


शिक्षक दिवस 2014/सुधा भार्गव 



नमन 

आज हमारे प्रिय आदर्श शिक्षक डॉ राधाकृष्णन का जन्मदिन है जिनसे हमने ही नहीं पूरे विश्व ने बहुत कुछ सीखा और सीख रहा है। ऐसे महान पुरुष को दिल से नमन करते हुए श्रद्धा के दो फूल उनके चरणों मेँ अर्पित करते हैं। 

ऐसे समय मेँ महान संत कबीरदास जी का एक दोहा याद आ रहा है—

सब धरती कागज करूँ,लेखनी सब बनराय।
सात समुद्र की मसि करूँ ,गुरू गुण लिखा न जाय।।

उन्होंने गुरू की महिमा का बखान करते हुए सच ही कहा है  --
यदि मैं सारी पृथ्वी को कागज बना दूँ और सब जंगलों को कलम । सात समुद्रों के पानी को मिलाकर स्याही तैयार कर लूँ तब भी उससे गुरू के गुण नहीं लिखे जा सकते। 

ऊपर लिखी पंक्तियाँ डॉ राधाकृष्णन के बारे मेँ खरी उतरती हैं।

अब जरा उनके बारे मेँ जान लें जिनका हम जन्मदिन मना रहे है ताकि उनसे कुछ प्रेरणा ले सकें। 
सब जानते हैं कि दिनोंदिन गुरू शिष्य के संबंध बिगड़ते जा रहे है। न छात्रों के हृदय में गुरू के प्रति मान- सम्मान रह गया है और न ही गुरू ,शिक्षण के प्रति ईमानदार और समर्पित है। वे सोचते हैं कि कक्षा में चंद घंटे पढ़ाने से उनका कर्तव्य पूरा हो गया । वे यह क्यों नहीं समझते कि उनकी शिक्षा को छात्र तभी ठीक से ग्रहण कर पाएंगे जब वे अपने स्नेह व मृदुल व्यवहार से उनके दिल में जगह बना लें । छात्रों की ज्ञान पिपासा और जिज्ञासा को जो निरंतर शांत करता है वही उनका आदर पा सकता है। इसके लिए एक बार डिग्री लेना ही काफी नहीं है बल्कि अपनी बुद्धि की धार हमेशा पैनी करते रहना होगा। तभी तो वे अज्ञान की गहरी गुफा को काट सकेंगे।

5सितंबर हमें उत्साह से भर देता है ,एक नई चेतना जगाता है। लगता है हम सोते से जाग गए हैं क्योंकि  शहर-शहर ,गाँव-गाँव में स्कूल ,कालिज ,यूनिवर्सिटी में शिक्षक दिवस बड़ी धूम धाम से मनाया जाता है। इस दिन डॉ राधा कृष्णन का जन्म हुआ था पर उन्होंने कहा था –मेरे जन्मदिन को शिक्षक दिवस के रूप में मनाने से निश्चय ही मैं गौरव का अनुभव करूंगा।तभी से हम सब उनके जन्मदिन को शिक्षक दिवस के रूप में मनाते है।

वे बचपन से ही बहुत बुद्धिमान थे तभी तो आगे जाकर हमारे स्वतंत्र भारत के प्रथम उपराष्ट्रपति व दूसरे राष्ट्रपति बन सके। इससे पहले वे 40 वर्षों तक अध्यापनकार्य मेँ रत रहे।वे एक आदर्श शिक्षक थे। कोई जरूरी नहीं कि उच्च शिक्षित दूसरों को सफलता से पढ़ा भी सके क्योंकि पढ़ाना एक कला है और इस कला मेँ डॉ राधाकृष्णन पूर्ण पारंगत थे। वे पढ़ाते समय अपने बुद्धिचातुरी से व्याख्याओं ,आनंद पूर्ण अभिव्यक्तियों और खिलखिलाने वाली कहानियों से छात्रों का मन मोह लेते थे। जिस विषय को वे कक्षा मेँ पढ़ाने  जाते उसका पहले से ही गहन अध्ययन कर लेते । अपनी शैली से नीरस पाठ को भी सरस और रुचिकर बना देते ।इससे छात्र बहुत मन लगाकर पढ़ने लगते ।

वे भारतीय संस्कृति ,संस्कार और नैतिक मूल्यों मेँ विश्वास करते थे और उन पर उन्हें गर्व था। उन्होंने गीता, वेद –उपनिषद का अध्ययन कर दुनिया को हिंदूत्व की महत्ता को बताया। शिक्षण देते समय उन्होंने हमेशा नैतिक मूल्यों पर ज़ोर दिया । वे इन्हें उनके आचरण का गहना समझते थे। उन्हें इस बात का गर्व था कि हिन्दू परिवारों मेँ सहनशीलता ,प्यार ,त्याग और मेलजोल का पाठ बच्चे जन्म से ही सीखने लगते है। बड़ों के प्रति शिष्टता ,आदर की भावना सयुंक्त परिवार मेँ खुद ही अंकुरित होने लगती है।

उनकी भाषण देने की क्षमता अपूर्व थी। विद्यार्थी जीवन में हम उनके निबंध पढ़ते थे और उनका भाषण सुनने को लालायित रहते थे। उन दिनों दूरदर्शन नहीं थे पर रेडियो में ही उनके  भाषण की पूर्व घोषणा कर दी जाती थी। सारे काम रोक कर रेडियो की आवाज तेज करके उसके पास बैठ जाते। ऐसा जुनून था उनकी बात सुनने का । वे जो कहते हम उसी के बहाव में बह जाते और सोचते वे एकदम ठीक ही कह रहे हैं। 
वे विदेशों मेँ भी शिक्षा और धर्म संबंधी व्याख्यान देने जाते थे। उनको ससम्मान बुलाया जाता जिसे मिशनरी समाज ,छात्र मंडली सुनकर बहुत प्रभावित होती। वे ताजगी व शांति का अनुभव करते। 

भारत सरकार ने उन्हें भारत रत्न की उपाधि से विभूषित किया तथा उनके नाम टिकट लिफाफा आदि निकाला जिन्हें खरीदकर भारतीयों ने यादों की पुस्तक में सुरक्षित रख छोड़ा है। 



























भारत रत्न प्राप्त सर्वपल्ली डॉ राधाकृष्णन को उनकी मृत्यु के बाद मार्च 1975 मेँ टेम्पलटन पुरस्कार प्रदान किया गया । यह सम्मान अमेरिकन सरकार की ओर से दिया गया था। । यह उसको ही प्रदान किया जाता है जो धर्म के क्षेत्र मेँ प्रगति के लिए विशेष कार्य करता है। इस पुरस्कार को पाने वाले ये गैर ईसाई संप्रदान के प्रथम व्यक्ति थे। वे हमेशा विश्व मेँ भारत का नाम ऊंचा करते रहे और आज भी उन्हें एक आदर्श शिक्षक,हिन्दू विचारक, दर्शनज्ञाता,व्याख्याता  के रूप मेँ याद किया जा रहा है। 
हम भारतीयों को उनपर गर्व है। 

पुन: नमन