शबरी शिक्षा समाचार पत्रिका ,जनवरी 2016 में प्रकाशित
मेरी कहानी
प्यारा
दोस्त
माँ –माँ
–देखो तो मैं क्या लाया हूँ?स्कूल से आते ही
तब्बू ने रंगबिरंगी रबर दिखते हुए कहा।
-अरे यह
तो बड़ी सुंदर है। कहाँ से मिली।
-यह मेरे
दोस्त टपलू की है। मेरे पास ही बैठता है। घर जाते समय वह रबर को डेस्क पर ही छोड़
गया। मुझे यह बहुत अच्छी लगी । इस कारण मैं इसे ले आया।
-बेटा ,यदि तुम्हें इतनी पसंद है तो आज
शाम को ही ऐसी रबर बाजार से खरीद लेंगे। टपलू की रबर उसे लौटा देना।
गृहकार्य करने बैठा होगा तो अपनी रबर खोज रहा होगा।
-ओह,मैंने तो यह सोचा ही नहीं। दोस्त सच में बहुत परेशान होगा।
-आगे से
मेरे बच्चे इस तरह से किसी की चीज न लेना ।
-हाँ फिर
वह भी खोजते खोजते दुखी हो जाएगा।
-और किसी
को दुखी करना बुरी बात है।
-अब मैं
ऐसी बुरी बात कभी नहीं करूंगा।
-और एक
बात ---यदि तुम फिर बिना पूछे किसी की वस्तु चुपचाप लाओगे तो वह चोरी कहलाएगी।
-मैंने चोरी की है क्या माँ ?फिर तो मैं चोर हो गया। चोर को तो पुलिस पकड़कर ले जाती है।
-बेटे,तुमने चोरी नहीं की। रबर उठाते समय तो तुम्हें मालूम ही न था कि यह काम
गलत है या सही। मालूम होने यदि तुम फिर किसी की वस्तु चुपचाप उठाओगे तो चोरी
कहलाएगी।
-ओह फिर तो मैं चोर नहीं। माँ आज तो तुमने मुझे
बचा लिया पर माँ भविष्य में मुझे कैसे मालूम हो कि क्या गलत है और क्या सही। आप
बड़ी है इसलिए आपको तो सब मालूम है ।
-मैं माँ
होने के साथ साथ तुम्हारी दोस्त भी हूँ जिस तरह से तुम अपने मित्र से मन की बातें कह देते हो इसी तरह से मुझसे भी कह
सकते हो। जो देखा जो सुना उसे भी बता सकते हो। फिरमैं बता दूँगी ,तुम्हें क्या करना उचित होगा।
-मुझे तो
मालूम ही न था कि मेरा दोस्त मेरे घर में ही है। इतना प्यारा –प्यारा--- कहकर वह
अपनी माँ से लिपट गया।