प्यारे बच्चों

कल सपने में देखा -मैं एक छोटी सी बच्ची बन गई हूं । तुम सब मेरा जन्मदिन मनाने आये हो । चारों ओर खुशियाँ बिखर पड़ी हैं ,टॉफियों की बरसात हो रही है । सुबह होते ही तुम में से कोई नहीं दिखाई दिया ।मुझे तो तुम्हारी याद सताने लगी ।

तुमसे मिलने के लिए मैंने बाल कुञ्ज के दरवाजे हमेशा के लिए खोल दिये हैं। यहाँ की सैर करते समय तुम्हारी मुलाकात खट्टी -मीठी ,नाटी -मोती ,बड़की -सयानी कहानियों से होगी । कभी तुम खिलखिला पड़ोगे , कभी कल्पना में उड़ते -उड़ते चन्द्रमा से टकरा जाओगे .कुछ की सुगंध से तुम अच्छे बच्चे बन जाओगे ।

जो कहानी तुम्हें अच्छी लगे उसे दूसरों को सुनाना मत भूलना और हाँ ---मुझे भी वह जरूर बताना ।
इन्तजार रहेगा ----! भूलना मत - -

रविवार, 13 अक्तूबर 2024

समीक्षा -डॉ जाकिर अली रजनीश

 


सुधा भार्गव जी की रचनाओं का मनोरम संसार

https://www.facebook.com/sudha.bhargava.7/posts/pfbid0HBSwobvGXpgrcVxcqvvUcjxj6m2KHs2YtNPz9z8emmu7nBEiN8bhDxnPT4z7UJ2Jl?notif_id=1728819990792019&notif_t=feedback_reaction_generic&ref=notif

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सुधा भार्गव जी एक जानी-पहचानी लेखिका हैं। यूं तो उन्होंने कविता, कहानी, डायरी लेखन, यात्रा संस्मरण सभी कुछ लिखा है, पर मुख्य रूप से वे बाल कहानियों के लिए जानी जाती हैं। बाल कहानियों पर उनकी अद्भुत पकड़ है। पिछले दिनों उनकी छ: पुस्तकें डाक से प्राप्त हुईं। उनके नाम हैं- बाल झरोखे से हंसती-गुदगुदाती कहानियां (बाल कहानी संग्रह), यादों की रिमझिम बरसात (बाल कहानी संग्रह), धूप की खिड़कियां (बाल कहानी संग्रह), कल जब कथा कहेंगे (बाल कहानी संग्रह), बुलबुल की नगरी (बाल उपन्यास) एवं लालटेन (लघुकथा संग्रह)

सुधा जी को प्रकृति से गहरा लगाव है। यह बात उनके बाल कहानी संग्रह 'बाल झरोखे से हंसती-गुदगुदाती कहानियां' (20 बाल कहानियां) में प्रमुख रूप से दृष्टिगोचर होती है। उनकी कहानियों में मनुष्यों के अलावा जीव-जन्तु और यहां तक कि पेड़-पौधे भी कहानी के पात्र हैं। इस श्रेणी की कहानियों में 'मन की रानी' एक स्ट्राबेरी की घुमक्कड़ी की कहानी है, तो 'पलाश मुस्कराया' पेड़ पौधों की दुनिया की बातें। इसी तरह 'लंगूरे का अमरूद' और 'तितलियों का मोहल्ला' में भी प्रकृति के साथ सहचर्य का मनोरम अंकन है। जबकि 'चोरनी' में चिड़िया और किसान के आपसी रिश्ते की झलक मिलती है, तो 'भूरी मां', 'चांद सा महल' और 'टीटू के साथी' में पशु-पक्षियों के प्रेम को दर्शाया गया है। ये कहानियां मनोरंजन के साथ-साथ कोई न कोई संदेश भी देती हैं। पर ये संदेश उपदेश के रूप में न होकर कहानी में भिदे हुए हैं। इस वजह से ये कहानियां पाठक के मन पर गहरा प्रभाव डालती हैं। 'वन भोज', 'गुट्टू की बगिया दादी', 'प्यासे की मुस्कान', 'दादी का पीपा', 'पहले काम फिर नाम', 'गुगल गुरू' और गरीबों का फ्रिज' इसी श्रेणी की कहानियां हैं। संग्रह की अन्य कहानियां भी रोचक और पठनीय हैं।

बाल कहानी संग्रह 'यादों की रिमझिम बरसात' में भी 20 बाल कहानियां संकलित हैं- तमंचे का जादू, बाललीला, बरसात की रिमझिम, जाुदई मुर्गी, अलमारी की खुशबू, होली की मस्ती, बाग-बगीचे खेत-खलिहान, भूत भूतला की चिपटनबाजी, तमाशा ही तमाशा, मेरी चोखी काकी, प्यारा मौसम आया रे, नटखटिया, दंगल टोली, बर्फ का महल, चाहत का समुंदर, एजी आयो रे सावन, मास्टर मैडम का चक्रव्यूह, मां गंगे, वानर सेना, मुटापे की जंग। ये सभी कहानियां लेखिका से किसी न किसी रूप में जुड़ी हुई हैं और उनकी स्मृतियों से निकल कर कागज के कैनवास पर उतरी हैं। इन कहानियों में नटखटपन के साथ-साथ सामाजिक परिवेश भी विराजमान है। ये ऐसी सुनहरी यादें हैं, जो रोचक भी हैं और बालमनोविज्ञान के अनुकूल भी। इसीलिए ये कहानियां पाठकों के मन को छूने में सक्षम हैं और उनके मस्तिष्क पर गहरा असर डालती हैं।

पुस्तक 'धूप की खिड़कियां' में 12 कहानियों को संजोया गया है। इन कहानियों के नाम इस प्रकार हैं- बताशा रोबो बेबी, गाजर-सा मिट्ठा-मिट्ठा, सोनार का सुपरमैन, मनमौजी जलपरियां, इंडियन रोलर निलुआ, मुंह से बरसा पानी, कद्दू का सिंदूरा, हल्की पकौड़ी कल्का पकौड़ा, शैतानों क किला, रूक्का चची के चूल्हे, सिक्के पर सिक्का, वह क्यों रोता। ये सभी कहानियां वर्णनात्मक शैली में लिखी गयी हैं। इन कहानियों में दो प्रमुख तत्व हैं, पहला है प्रकृति से रचनाओं का जुड़ाव और दूसरा है वैज्ञानिकता की ओर झुकाव। 'गाजर-सा मिट्ठा-मिट्ठा', 'मनमौजी जलपरियां', 'कद्दू का सिंदूरा' और 'रुक्का चची के चूल्हे' में हमें प्रकृति के प्रति एक लगाव देखने को मिलता है, वहीं 'बताशा रोबो बेबी', 'मुंह से बरसा पानी', 'शैतानों का किला', 'सिक्के पर सिक्का' में वैज्ञानिक दृष्टिकोण और परिवेश का सुंदर अंकन किया है। इस संग्रह की यूं तो सभी कहानियां पठनीय हैं, पर 'बताशा रोबो बेबी', 'मनमौजी जलपरियां' विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। ये अपने अनूठे विषय के कारण पाठकों के पाठकों के मस्तिष्क में छप जाती हैं और फिर भुलाए नहीं भूलतीं।

'कल जब कथा कहेंगे' संग्रह 10 बाल कहानियों का गुलदस्ता है। ये सभी कहानियां यूं तो अलग-अलग विषयों पर आधारित हैं, पर इनमें एक चीज ऐसी है, जो सभी में कॉमन है। और वह वैज्ञानिक दृष्टिकोण। 'बादल बरस पड़े' कहानी में कृत्रिम वर्षा को कथानक का आधार बनाया गया है, तो 'पूजा पंडाल की धूम' को चंद्रयान और सूर्ययान से जोड़ने का प्रयास किया गया है। 'गोलू मास्टर जी' में रोबोट टीचर की संभावनाओं को चित्रित किया गया है, तो 'बुद्धि का खजाना' में ब्रेन चिप को रचना का आधार बनाया गया है। कहानियों का शहर' में ऐसे रोबोट का वर्णन है, जो कहानी लिखता ही नहीं उसे प्रिंट भी करता है और पुस्तक रूप में बाइंड भी करता है। इसी प्रकार 'भागो रे बाढ़ आई' में बाढ़ की विभीषिका में रोबोट को मददगार के रूप में दर्शाया गया है। इसी प्रकार 'पंकी की चप्पलें' में गैजेट के सुंदर प्रयोग को दर्शाया गया है, 'चाचू पायलेट' में ड्रोन के उपयोग को आधार बनाया गया है और 'बेबी रोबो रेस्टोरेंट' में रोबोट रूपी वेटर को कथानक का केंद्र बनाया गया है। संग्रह की अंतिम कहानी 'हनुमान लाइब्रेरी' में एक रोबोटिक लाइब्रेरी का चित्रण है जो बच्चों को आकर्षित ही नहीं करती है, उन्हें किताबों से जोड़ने का माध्यम भी बनती है। इस तरह से इस संग्रह की सभी कहानियां आज के दौर की कहानियां हैं और तकनीक व गैजेट्स के माध्यम से बच्चों का मनोरंजन करती हैं।

ये सभी कहानियां रोचक और मजेदार हैं। कभी ये कहानियां हमें किसी अनूठी दुनिया में ले जाती हैं, कभी कल्पना के नये आयामों के दर्शन कराती हैं, कभी समाज के विभिन्न रंगों से परिचय कराती हैं तो कभी बच्चों की मनोवैज्ञानिक उड़ानों से हमें दो-चार कराती हैं। इन कहानियों की सबसे बड़ी विशेषता ये है कि ये नदी की तरह धीरे-धीरे बहती हैं और अपने साथ पाठक को कब बहा ले जाती हैं, उसे इसका पता ही नहीं चलता। और इस बहाव को प्रभावी बनाने में मददगार है कहानियों की सरल एवं प्रवाहमयी भाषा, जो पाठकों को मंत्रमुग्ध करने में अहम भूमिका निभाती है।

बाल उपन्यास 'बुलबुल की नगरी' एक भोली-भाली बालिका चुलबुली और उसकी गुड़िया की रोचक दास्तान है। चुलबुली घर की अकेली बच्ची है। अगर उसका कोई साथी है तो वह उसकी गुड़िया बुलबुल। उसे वह हर समय अपने साथ रखती है और जब मौसी के घर जाती है, तो कपड़ों के बैग में छिपाकर वहां भी ले जाती है। वह अपनी मौसी और उनके परिवार से मिलती है, तो उसके साथ बहुत सारी रोचक घटनाएं घटती हैं, फिर वह अपनी बुआ से भी मिलती है और सबसे मजेदार बात यह कि उसे इसी दौरान अपनी गुड़िया की शादी करने का विचार आता है। और इस सबके बीच जो रोचक और मजेदार घटनाएं घटती हैं, उन्हें इस उपन्यास में बहुत सुंदर तरीके से पिरोया गया है।

छठी पुस्तक 'लालटेन' एक लघुकथा संग्रह है। इसमें जीवन के विविध पहलुओं को कथानक का आधार बनाया गया है। इन लघुकथाओं की तरलता पाठकों के लिए चुम्बक का कार्य करती है। ये लघुकथाएं कहीं हमारी संवेदनाओं को झृकृत करती हैं, तो कहीं ठहरकर सोचने के लिए विवश करती हैं। इसके लिए लेखिका विशेष रूप से बधाई की पात्र हैं।

बालसाहित्य की दुनिया में सुधा भार्गव जी किसी परिचय की मोहताज नहीं हैं। मैं भी यत्र-तत्र पत्र-पत्रिकाओं में उनकी बाल कहानियों को पढ़ता रहा हूं। पर इन किताबों को देखने के बाद उनकी रचनात्मकता से एक वृहद साक्षात्कार हुआ और मैं उनकी लेखनी का मुरीद हो गया। इन शानदार पुस्तकों के लिए सुधा जी को बारम्बार बधाई।

पुस्तक— लालटेन (लघुकथा संग्रह)

प्रकाशक— श्वेतांशु प्रकाशन, दिल्ली

प्रकाशन वर्ष— 2023

पुस्तक— बाल झरोखे से हंसती-गुदगुदाती कहानियां (बाल कहानी संग्रह)

प्रकाशक— श्वेतवर्णा प्रकाशन, दिल्ली

प्रकाशन वर्ष— 2022

पुस्तक— यादों की रिमझिम बरसात (बाल कहानी संग्रह)

प्रकाशक— साहित्यागार, जयपुर

प्रकाशन वर्ष— 2022

पुस्तक— धूप की खिड़कियां (बाल कहानी संग्रह)

प्रकाशक— अद्विवक पब्लिकेशन, दिल्ली

प्रकाशन वर्ष— 2023

पुस्तक— कल जब कथा कहेंगे (बाल कहानी संग्रह)

प्रकाशक— प्रवासी प्रेम पब्लिशिंग, गाजियाबाद

प्रकाशन वर्ष— 2024

पुस्तक— बुलबुल की नगरी (बाल उपन्यास)

प्रकाशक— प्रकाशन विभाग, सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय, भारत सरकार

प्रकाशन वर्ष—2023

पुस्तक— लालटेन (लघुकथा संग्रह)

प्रकाशक— श्वेतांशु प्रकाशन, दिल्ली

प्रकाशन वर्ष— 2023

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