गोपाल
भाई
बचपन में माँ से सुनी कहानी
सुधा भार्गव
एक लड़का था
ननकू। अपनी माँ को बहुत प्यार करता था।
उसकी हर बात मानता। घर से उसका स्कूल बड़ी दूर था और उससे भी भयानक बात कि जंगल
से होकर उसे जाना पड़ता, वह भी
नंगे पैर। धूल से पैर भर जाते, कंकड़ –पत्थर
भी उस पर रहम न खाते। ऊबड़ –खाबड़
रास्ते पर चलते उसे डर लगता -कोई बिच्छू न काट ले,झाड़ियों के पीछे से कोई जंगली
जानवर ही न निकल आए। जैसे ही ननकू किसी को जाता देखता वह भागता हुआ उसके साथ हो
लेता । साथ मिलने पर उसका डर ऐसे भागने लगता जैसे बिल्ली को देखकर चूहा।
परेशान सा
एक दिन वह माँ से बोला –“मुझे तो
स्कूल जाते समय रास्ते में डर लगता है। मेरा कोई दोस्त अकेला नहीं आता । किसी के
साथ उसके दादा होते हैं तो कभी बापू । कोई
–कोई तो अपने नौकर के साथ भी आता है। उसके तो बड़े ठाठ
होते हैं । बैग नौकर संभालता है और वह इठलाता हुआ आगे-आगे चलता
है।’’
“बेटा, किसी से
बराबरी करना ठीक नहीं। रास्ते में तुझे जब भी डर लगे अपने गोपाल भाई को पुकार
लेना।वे तेरी मदद को दौड़े –दौड़े
आएंगे।’’
“गोपाल भाई –मैंने तो उन्हें कभी देखा नहीं ! पहचानूंगा
कैसे उन्हें ?
“अरे
मेरे बच्चे वे तो बांसुरी वाले हैं। उसकी मीठी धुन उनकी पहचान है। देख लेना। तेरे पुकारते
ही वे बांसुरी बजाते चले आएंगे।’’
दूसरे दिन आकाश में बादल उछलकूद मचा रहे थे । ननकू स्कूल जाते समय
जब घने जंगल से गुजरा तो काले बादल गिराने लगे मोटी-मोटी बूंदें । भयभीत ननकू पेड़
के नीचे खड़ा ठंड के मारे काँपने लगा । न तो बरसते पानी में वह स्कूल पहुँच सकता था
और न घर लौटकर जा सकता था। ऐसे में उसे गोपाल भाई की याद आई और पुकारने लगा “गोपाल
भाई –गोपाल भाई तुम कहाँ हो?
मुझे डर लग रहा है। तुम जल्दी से आ जाओ।’’
“डरने की क्या बात है । मैं तो तुम्हारे
साथ हूँ। पीछे मुड़कर देखो।’’
ननकू ने
पीछे मुड़कर देखा –सच में गोपाल भाई उसके ऊपर छतरी
ताने खड़े हैं ।
वह तो
उन्हें देखता ही रह गया। वे उसे बहुत सुंदर लग रहे थे। खुश होते हुए बोला-“वाह
भाई! साँवले होते हुए भी तुम तो बहुत अच्छे लग रहे हो।पीले कपड़े ,सिर
पर मोरपंखी मुकुट ,हाथ में बांसुरी। पैर में पायल भी
पहन रखी हैं! आह!तब तो इसकी रुनझुन से ही तुम्हारे आने की खबर मिल जाएगी।’’
“ओह ,तुम
तो बहुत बातूनी हो। जल्दी से स्कूल चलो वरना देरी हो जाएगी।’’
जल्दी –जल्दी
पैर बढ़ाता हुआ ननकू बोला –“स्कूल से
लौटते समय भी मुझे डर लगता है। उस समय भी तुम्हें आना पड़ेगा।’’
गोपाल
भाई केवल मुस्कुरा भर दिए ।
आज ननकू
बड़ा खुश था। गालों पर ताजे गुलाब खिल रहे थे। सबसे हँस- हँस कर बात करता। पढ़ाई भी
मन लगाकर कर रहा था। अब उसे इस बात का खौफ न था कि घर लौटते समय यदि अंधेरा हो गया
तो---तो क्या होगा? दोपहर को टन—टन
–टनानन घंटा बोला। छुट्टी होते ही बच्चे चहचहाने लगे और ननकू तो कक्षा से बाहर की ओर
इतनी तेजी से भागा मानो उसके पैरों में पहिये लग गए हों। उसे गोपाल भाई से मिलने
की उतावली थी । उनके साथ खेलना था , बहुत सी
बातें करनी थीं। जैसे ही जंगल में पहुँचा ही पायल की छम-छम आवाज सुनाई दी । दूसरे
ही पल गोपाल भाई सामने आकर थे।
“बांसुरी
वाले भाई तुम्हें कैसे मालूम हुआ कि मैं जंगल में हूँ। मैंने तो तुम्हें आवाज भी न
दी थी।’’ ननकू चकित था।
“जो
मुझे प्यार करता है मैं उसकी मदद करने दौड़ पड़ता हूँ।’’
“तो फिर मेरे दोस्त बन जाओ,फिर
मैं तुमसे अपने मन की बात कह सकूँगा।यहाँ मेरा कोई दोस्त नहीं है जिससे मैं अपने
मन की बात कह सकूँ। सब मेरी हँसी उड़ाते हैं। ’’
“अरे
उदास क्यों होते हो?मैं हूँ न तुम्हारा दोस्त! पहले
चेहरे पर मुस्कान लाओ--। फिर बोलो क्या कहना है ?”
“कल
मेरे गुरू जी का जन्म दिन है। सब कुछ न कुछ लेकर जाएंगे । मैं क्या लेकर जाऊँ?कुछ
समझ नहीं आता । मेरी माँ तो एक वक्त मुझे दूध भी नहीं पिला पाती। उसे बताकर परेशान
नहीं कर सकता।’’
“दोस्त
के होते हुए क्या चिंता। कुछ न कुछ लेकर कल मैं आ जाऊंगा ।’’
“भाई,तुम
तो बहुत अच्छे हो। चुटकी में मेरी चिंता दूर
कर दी।’’ ननकू प्रसन्न था।
जंगल पार
होते ही गोपाल भाई बांसुरी बजाते न जाने कहाँ चले गये।ननकू ने एक पल इधर –उधर
आँखें दौड़ाई फिर हँस दिया-हो गया गायब जादूगर।
***
घर में
घुसते ही ननकू शुरू हो गया-उसकी आँखों में चाँदनी सा उजाला भरा था। “माँ –माँ
–आज गोपाल भाई आए थे। उनके आते ही मेरा डर उड़नछू हो
गया । मेरी उनसे गहरी दोस्ती हो गई है। अब तो रोज हम मिला करेंगे।मैं उनसे जी भर
कर –इत्ती सारी बातें किया करूंगा। ’’
“क्या सच
में कन्हैया तुझे मिला था?” माँ
मुसकाई।
“ये
कन्हैया कौन ?मैं तो इसे नहीं जानता!”
“अरे
पगले गोपाल का दूसरा नाम ही कन्हैया है। जैसे तू मेरा कन्हैया है वैसे ही वह अपनी
यशोदा माँ का लाड़ला कन्हैया है।”
“तब तो वह यशोदा मैया का कन्हैया ही था। माँ—माँ कल
मास्टर जी का जन्मदिन है । मुझे उनके लिए कुछ लेकर जाना होगा।’’
“बेटा तेरी गरीब माँ के पास क्या है देने को।’’
सूनी
सूनी आँखों से वह बोली।
“ओह
प्यारी माँ तू चिंता न कर। गोपाल भाई ने कहा है–वे
जरूर कुछ लेकर आएंगे।’’
“देखा--
कन्हैया कितना मददगार है! बड़ा होकर तुझे
भी ऐसा बनना होगा---दूसरों की सहायता करने वाला।’’
“हाँ --हाँ माँ,
बनूँगा –बनूँगा !जो तू कहेगी वही बनूँगा।’’माँ-बेटे
प्यार से लिपट गए।’’
अगले दिन
स्कूल जाते समय जंगल में बांसुरी की मीठी
आवाज सुनते ही ननकू समझ गया गोपाल भाई उसके आसपास ही हैं । वह ज़ोर से चिल्लाया-“भाई
जल्दी आओ। गुरू जी को देने वाला उपहार लाना तो नहीं भूले। उसे मुझे दिखाओ।’’
गोपाल भाई दो कटोरियाँ लिए उसके सामने उपस्थित
हो गए।“लो आ गया तुम्हारा दोस्त –तुमने पुकारा और हम चले आए।”
“इन
कटोरियों से तो बड़ी खुशबू आ रही है।’’ ननकू
बोला।
“हाँ,इनमें
मीठा-मीठा हलुआ है। एक कटोरी का हलुआ तुम अभी खा लो। घर से कुछ खाकर भी नहीं चले
हो।’’
“ओहो तुम्हें
पता भी लग गया।पूरे के पूरे जादूगर हो! तुम भी तो खाओ। अकेले-अकेले मैं नहीं खाऊँगा। ’’
“पहले
तुम खाओ ननकू। उन्होंने बड़े प्यार से कहा।’’
बिना
आनाकानी किए ननकू गपागप खा गया और एक ज़ोर की डकार ली । गोपाल को भी डकार आ गई ।
“अरे तुम्हें
बिना खाए ही डकार आ गई?’’ ननकू चकित
था।
“जब तुम
खा रहे थे मुझे लगा वह मेरे पेट में जा रहा है ।फिर भरे पेट पर तो डकार आएगी ही।’’
“खाऊँ
मैं और पेट भरे तुम्हारा। हा-हा—कितनी अजीब बात है।’’ननकू
आँखें मटकाते हुए बोला।
बातों ही
बातों में स्कूल आ गया। वह बड़े उल्लसित मन से स्कूल में घुसा। मन ही मन वह सोचने लगा
-मास्टर जी हलुए की सुगंध पाते ही उसकी तारीफ करेंगे। लेकिन उसकी तरफ तो उन्होंने
आँख भी उठाकर नहीं देखा। वहाँ पहले से ही देने वालों की कतार लगी थी । बड़े-बड़े
पैकिट वे बटोरने मेँ लगे थे। उसका मन बड़ा खराब हो गया। इंतजार करते थक सा भी गया था पर उसकी बारी नहीं आई। अंत में उसे गिड़गिड़ाना ही
पड़ा -
“मास्टर
जी ,मेरा भी ले लो---- ले लो न--- ।’’
“क्या ले—लो की रट
लगा रखी है। दे अपनी कटुरिया। छटंकी भर हलुआ और शोर मचा रहा है मनभर का ।’’
ननकू का
चेहरा उतर गया और बुझे मन से हाथ आगे बढ़ा दिया ।
मास्टर
जी ने अपने बर्तन मेँ हलुआ डाल कर कटोरी को सीधा किया और बुरा सा मुंह बनाते बोले –“ले
कटोरी और दफा हो जा ।’’ पर आश्चर्य ! कटोरी मेँ तो फिर
हलुआ भर गया। मास्टर जी चकरा गए। बर्तन पर बर्तन लाने लगे। कटोरी से तश्तरी,
तश्तरी
से थाली और थाली के बाद आए थाल। सब भर गए। हलुआ दुगुना,
चौगुन, अठगुना बढ़ता ही गया—बढ़ता ही गया।
“अरे
रे--- यदि इसी तरह से हलुआ बढ़ता रहा तो बर्तन कहाँ से लाऊँगा?
बहुत हो गया । अच्छा यह तो बता ---ये हलुआ तुझे किसने दिया ?”
“गोपाल
भाई ने दिया।’’
“वह भाई कोई
जादूगर है क्या? उससे कह ,अपना
जादू समेट ले ।’’
ननकू ज़ोर
से चिल्लाया –“गोपाल भाई मास्टर जी को हलुआ नहीं
चाहिए। ’’
“उनसे
कहो वे पहले हलुआ खाएं - सबको खिलाएँ और बताएं हलुआ कैसा है?’’
एक आवाज गूंजी। हैरत से सबकी गर्दन उधर घूम गई जिधर से आवाज आई पर कोई दिखाई न दिया।
आफत से
छुटकारा पाने के लिए मास्टर जी ने बेमन से थोड़ा सा हलुआ खाया पर वह तो जीभ पर ऐसा
चढ़ा कि न जाने कितनी कटोरी खा गए। दूसरों को खिलाया।वे उँगलियाँ चाटते रह गए ।
“ननकू ,
इतना अच्छा हलुआ तो मेरे दादी भी नहीं बनाती । मुझे भी अपने गोपाल भाई से मिला दे
। जब इच्छा होगी गोपाल भाई से मीठा -मीठा घी का हलुआ मांग लूँगा।’’
ननकू का सहपाठी टनटू बोला।
“चल तुझे
मिलाता हूँ।’’
“तुम दोनों कहाँ चले ,चलो
हम भी साथ चलते हैं।’’मास्टर जी बोले।
आगे –आगे
ननकू-टनटू और पीछे –पीछे मास्टर जी के साथ बच्चों की पूरी
की पूरी टोली । जंगल मेँ पहुँचते ही ननकू
ने आवाज लगाई –“गोपाल भाई –गोपाल
भाई ,देखो तो तुमसे मिलने मेरे मास्टर जी
और दोस्त आए हैं। जल्दी आओ।’’
काफी
देर तक किसी को न आता देख मास्टर जी बिगड़ पड़े –“खूब
उल्लू बनाया तूने तो ननकू। झूठे, तेरा कोई
गोपाल –सोपाल भाई नहीं है। ’’
ननकू रूआँसा सा हो गया। भर्राते गले से बोला-“गोपाल
भाई आ जाओ। मुझे झूठा न बनाओ।’’
आनन-फानन
मेँ बांसुरी की मीठी आवाज उभरने लगी। पायल की खनक से लगा कोई पास मेँ आकर
खड़ा हो गया है।
“गोपाल
भाई आ गए –गोपाल भाई आ गए। ’’ताली
पीटता --ननकू उछल पड़ा।
“कहाँ
हैं?हमें तो नहीं दिखाई दे रहा तेरा गोपाल। हंसी-ठठ्ठा
करने को मैं ही रह गया हूँ । कल स्कूल आ ,तेरी
चुटैया पकड़ कर गोल-गोल ऐसा घुमाऊंगा कि गोपाल का नाम लेना भूल जाएगा।’’
“मैं
मज़ाक नहीं कर रहा मास्टर जी। पास के पेड़ के नीचे ही तो मेरे बांसुरी वाले भाई खड़े
हैं।’’
“फिर झूठ
बोला।’’
“हमको भी
नहीं दिखाई दे रहे तेरे गोपाल भाई।’’ बच्चे
एकसाथ चिल्लाए।
“हाँ ,मैं
किसी को भी नहीं दिखाई दूंगा। पहले तुम अच्छे बच्चे बन कर आओ।’’
“गोपाल
भाई,मास्टर जी के सामने तो आ जाओ।’’
“उनके
सामने तो बिलकुल नहीं आऊँगा। वे सब बच्चों को समान नहीं समझते हैं। किसी को कम
प्यार करते हैं तो किसी को ज्यादा।’’
“गोपाल
भाई, गलती हो गई।कान
पकड़ता हूँ अब से ऐसा नहीं होगा। इनसे
मैं स्नेह रखूँगा और बच्चों को भी प्यार का पाठ सिखाऊँगा। बस एक बार मुझे अपने
दर्शन दे दो।’’ मास्टर जी शर्मिंदा हो उठे ।
“जब प्यार
की गंगा मेँ गोते लगाने लगोगे तो मुझे अपने पास हमेशा पाओगे। अभी थोड़ा धीरज रखो।’’
ननकू
अपने गोपाल भाई के साथ हो लिया। बच्चे व मास्टर जी एक नया संकल्प लिए अपने घरों की
ओर बढ़ गए।
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