कहानी प्रतियोगिता 2021 का परिणाम
प्रथम : सुधा भार्गव, बैंगलोर
द्वितीय : मनीष शर्मा, गौतमबुद्ध नगर
तृतीय : तारावती सैनी ‘नीरज’, जयपुर, राजस्थान
नये पल्लव परिवार की ओर से हार्दिक शुभकामनाएं !
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प्रथम स्थान प्राप्त कहानी
बताशा रोबो बेबी
सितारा का एक बेटा था छुट्टन । पढ़ाई में बड़ा होशियार! उसकी भलाई के लिए माँ -बाप ने उसे विदेश पढ़ने भेज दिया। पर वह वही का होकर रह गया। पिता की मृत्यु के बाद उसने बहुत कहा -माँ यहाँ आ जाओ --यहाँ आ जाओ। लेने भी गया पर उसे खाली हाथ लौटा दिया। माँ को अपना घर छोड़ना अच्छा न लगा । उसके - कोने कोने में उसकी यादें बसी हुई थीं। फिर भी दूर बैठे रोज सुबह व्हाट्स एप पर माँ-बेटे की गुड मॉर्निंगl होती । चाय की चुसकियाँ लेते -लेते वह अपने पोते लुट्टन से भी खूब बात करती। लुट्टन तो उसकी जान था । उसकी समझ में नहीं आता था कि अपने पोते पर वह कैसे लाड़ लुटाये। । कभी कभी तो उसको छूने,उसे गोद में बैठाने को तड़प उठती।
एक दिन डबडबाई आँखों से बोली -"बेटा अकेले अब रहा नहीं जाता। तुम सब की याद बहुत आती है। कोरोना के कारण बाहर के संगी साथी भी छूट गए हैं।"
"माँ उड़ाने सब बंद है। मैं आ नहीं सकता पर तब भी कुछ इंतजाम करता हूँ। उसने धड़ से मोबाइल बंद कर दिया।
माँ खीज पड़ी-"पूरी बात बताए ही फोन पटक दिया।क्या खाक इंतजाम करेगा !आने से तो रहा । बस मुझे भुलाबे में डालने वाली बातें।"
उसके रात-दिन बड़ी बेचैनी से गुजरने लगे। । एक रात वह सोने की कोशिश में थी कि सन्नाटे को चीरती हुई दरवाजे की घंटी चीखती से लगी।
"कौन आ गया। वो भी मेरे पास --गलती से किसी ने घंटी टीप दी होगी । सितारा बड़बड़ाई। वह दुबारा सोने की कोशिश करने लगी। इसबार तो घंटी बिना किसी विराम के किर्र किर्र कर दहाड़ती सुनाई दी।
"ओह !क्या तमाशा है । रात में भी लोग चैन नहीं लेने देते।" वह जबर्दस्ती पैरों को खींचते हुए गई और दरवाजा खोला। सामने सुंदर सी दुबली पतली लड़की को देख वह चकित हो उठी। बिना पलक झपकाए उसे घूरने लगी।लड़की ने मुस्कराते हुये हाथ जोड़कर नमस्ते की जो अल्हड़ बालिका सी लगती थी ।
वह चौंक गई। लज्जित सी बोली -"तुम कौन हो बेटी !पहनावे से तुम नर्स लगती हो। पर मैंने तो किसी नर्स को नहीं बुलाया।"
"मैं बताशा रोबो बेबी हूँ । मैं आपकी देखरेख ले लिए अपोलो हॉस्पिटल से आई हूँ।" मिठास बिखेरती बड़ी नम्रता से बोली।
"मगर मैंने तो नहीं बुलाया।"
"आपके बेटे के कहने पर मुझे भेजा गया है। आप अपने बेटे से बातें कर सकती हैं।"
तभी मोबाइल बज उठा -"माँ बताशा आ गई क्या?
"हाँ छुट्टन दरवाजे पर बताशा नर्स ही खड़ी है।"
"अरे उसे अंदर ले जाओ। वह तुम्हारे सब काम करेगी। तुम्हारा बहुत ध्यान रखेगी।इसके सामने तो मैं याद भी नहीं आऊंगा।"
"क्या बात करता है बेटा । कोई किसी की जगह नहीं ले सकता।"
"ओह प्यारी माँ मैं जल्दी आऊँगा।"
"सब्जबाग दिखा रहा है क्या मुक्कू! इस बार तो तूने अपने बदले बताशा को भेज दिया। अगली बार किसी नताशा को न भेज दीजो।"
"हा--हा--हा-- माँ! बताशा जल्दी ही तुम्हारी दोस्त बन जाएगी। "
"अच्छा -अच्छा बहुत तारीफ सुन ली उसकी। अब बताशा को लेकर अंदर जाती हूँ। सोचती होगी कितने अभद्र हूँ । अंदर आने तक को न कहा।"
सितारा ने बताशा को उसका कमरा बता दिया जहां वह अपना सामान रख सके। सामान के नाम पर उसके पास केवल एक बैग था जो उसके कंधे से झूल रहा था। उसने बड़ी फुर्ती से बाहर के जूते उतारे ,साबुन से हाथ धोये। फिर घर की स्लीपर पहनकर तुरंत हाजिर हो गई। बड़ी बड़ी पलकें झपकाती बोली-"क्या मैं आपको सितारा दादी कह सकती हूँ?"
"हूँ --केवल दादी !"
उसकी रिमझिम आवाज सुनकर सितारा पुलकित हो उठी । न जाने कितने दिनों से उसके कान दादी माँ शब्द सुनने को तरस रहे थे। उसने हँसती आँखों से उसे देखा। बिना कुछ बोले ही बताशा को उत्तर मिल चुका था। सितारा ने अपना हाथ बढ़ाया । बताशा ने उसे चूम कर आँखों से लगा लिया। इतना मान इतनी चाहत--- सितारा को विश्वास नहीं हो रहा था।
"दादी माँ आपके सोने का समय हो गया है। दूध पीकर सो जाइए। उससे नींद भी अच्छी आएगी।" बताशा जल्दी ही अपने काम पर लग गई।
"चलो मैं तुम्हें अपना घर दिखा दूँ और रसोई का सामान भी समझा दूँगी। क्या माइक्रोवेव में तुम दूध गरम कर सकती हो।"
"मैं अपनी दादी माँ के लिए सब कर सकती हूँ।" एक भोलापन बताशा के चेहरे पर छा गया।
"तुम कहाँ की रहने वाली हो?"
"मैं इंडिया की ही रहने वाली हूँ । मेरा और आपका देश एक ही है।"
दादी की इच्छा हुई कि वह उससे बातें ही करती रहे। उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि प्रथम भेंट में ही एक रोबोट के प्रति इतना आकर्षण क्यों! कहीं मनुष्य के बनाए रोबोट उसी को मात न दे दें।
सितारा को अकेले रहने की चाह न होने पर भी पति से बिछुड्ने के बाद अकेले रहना पड़ा । रात में 3-4 घंटे ही नींद आती थी और फिर शुरू हो जाता टिक टिक करती घड़ी की ओर ताकना। कब सुबह हो !और कब वह उठे!आज तो लगता था उसकी सुबह कुछ निराली ही है। रातभर खर्राटे लेती सोती रही शायद दुकेलेपन का सुखद अहसास था । चिड़ियों की चहचहाट में आज उसे संगीत सुनाई दे रहा था । वह अलसाई सी उठ बैठी। आशा के विपरीत बताशा को खड़े देखा । हथेली से हथेली मिलाते हुए वह चहकी -"दादी शुभ प्रभात ।"
हैरानी से उसके मुंह से निकल पड़ा -"अरे तुम हिन्दी भी जानती हो?खुश रहो बेटी--खूब खुश रहो। दादी की बात सुन उसकी मुस्कान चौड़ी हो गई।
"आप मुंह हाथ धोकर तैयार हो जाइए। मैं अभी नींबू पानी लाती हूँ। "
"अरे बताशा मैं तो सुबह चाय लेती हूँ। "
"खाली पेट चाय । ओह नो दादी! ग्रीन टी,ब्लैक टी भी नहीं !गैस बन जाएगी ,घबराहट होने लगेगी।" नताशा को झुकना पड़ा। दवाइयों का चार्ज बताशा ने रात में ही ले लिया था। सवेरे सवेरे पहले खाली पेट थायराइड की दवा दी । फिर नींबू पानी । उसके बाद कहीं चाय -बिस्कुट का नंबर आया । चाय का एक घूंट लेते ही उसने बुरा सा मुंह बनाया -"अरे फीकी चाय! मुझे डायविटीज़ तो नहीं है ?"
"तो क्या हुआ!चीनी अच्छी चीज भी तो नहीं है। मीठा बिस्कुट तो आप ले ही रहीं हैं। अच्छा अब ये बताइये नाश्ते में गरम गरम क्या लेंगी?"उसके इस अपनेपन से फीकी चाय भी उसे मीठी लगने ।
"बताशा एक बात बताओ!"बताशा ने उत्सुकता से सितारा की ओर देखा।
"क्या तुम नहा चुकी हो । यहाँ रसोई में बिना नहाये नहीं घुसते हैं।"
"हा-- हा-- मैं रोबोट हूँ । मुझे नहाने बाथरूम जाने की जरूरत नहीं । न ही मैं खाती -पीती हूँ।"
"गज़ब !फिर काम करने को ताकत कैसे आती है ?"
"हमें बिजली से ताकत मिलती है। और जरूरत पड़ने पर अपनी बैटरी चार्ज करते हैं।"
"चार्जर वगैरा सब हैं न तुम्हारे पास ।"
"हाँ दादी। "
"तब ठीक है। मुझे तो चिंता लग गई थी अगर तुमको कुछ हो गया तो मैं क्या करूंगी। तुम्हारे साथ रहते -रहते मुझे तुमसे मोह हो गया है । तुम्हें जुखाम भी हो गया तो मैं तड़प उठूँगी।"
दादी की बात सुनकर बताशा के दिल में हौले हौले कुछ होने लगा। उसे लगा वह दादी के काम भाग भाग कर करे। खिलखिलाती बोली -"ओह दादी मेरी चिंता न करो । मैं मन से और शरीर से बहुत मजबूत हूँ। आप बस खुश रहो तो मैं भी बहुत खुश रहूँगी।ओह! आपने तो बताया ही नहीं क्या खाओगे? मैं खुद ही नाश्ता बना कर लाती हूँ। आप सजधजकर डायनिंग टेबल पर आ जाओ। अच्छे अच्छे कपड़े पहनना । बहुत सुंदर लगोगी।"
"अरे इस उम्र में सजधज कर क्या करूंगी। घर में देखने वाला कौन बैठा है।"
"मैं हूँ न दादी ।" दादी उसे टकटकी लगाए देखने लगी । उसमें उसे अपनी बेटी नजर आने लगी।
हमेशा अपने मन का करने वाली दादी को न जाने क्या हो गया था । वह अब बताशा की अंगुलियों पर नाचने लगी थी। बताशा थी ही इतनी प्यारी।
कुछ ही देर में बताशा ट्राली खींचते हुये दादी के पास ले आई। उस समय दादी गूगल होम मिनी पर आरती सुन रही थीं। बताशा को यह देखकर बड़ी खुशी हुई की दादी डिजिटल दुनिया को पसंद करती हैं। सोचने लगी उसकी और दादी की खूब पटेगी। दादी सजी ट्रे देख खिल उठी। और सटसट बताशा की तारीफ करते हुये आमलेट टोस्ट खा गई। मग में काफी पीते पीते बहुत दूर चली गईं जब वह अपने पति के साथ लंदन गई थी और बड़े शौक से उसने दो मग खरीदे थे। एक अपने लिए और दूसरा अपने पति के लिए। लेकिन इनमें साथ साथ बैठकर काफी पीने का सपना अधूरा ही रह गया। शो केस में लगी एक से एक बढ़कर क्रॉकरी लगी थी पर उसे सबसे विरक्ति सी हो गई थी। आज बताशा ने उसी मग में कॉफी दी थी जो सालों से अनछुआ पड़ा था।
नाश्ता करने के बाद दादी की आँखें अखबार तलाशने लगी। बताशा समझ गई उनके दिमाग में क्या चल रहा है । उसने उन्हें झट से अखबार थमा दिया। व्हाट्स एप पर अपने मैसेज पहले ही देख चुकी थीं।
तभी मोबाइल बोल उठा -"माँ कैसी हो?फेस टाइम पर आ जाओ।" फेस टाइम पर बेटे को देख उसके हृदय की कलियाँ खिल उठीं।
"माँ आज तो चेहरे पर बड़ी ताजगी है।"
"अरे बताशा जो आ गई है। मेरा बड़ा ध्यान रखती है। छुट्टन एक बात सोच रही हूँ!"
"क्या माँ!"
"बताशा चली गई तो मेरा क्या होगा।"
"होगा क्या बताशा गई तो नताशा आ जाएगी।"
दादी ने देखा पास खड़ी बताशा के चेहरे का रंग उड़ गया है। वह तुरंत बोल पड़ी -"न न मुझे बताशा ही ठीक है। "
"माँ, अगले महीने दो दिनों को तो इसे अस्पताल जाना ही पड़ेगा ।"
"इनके अस्पताल भी होते हैं क्या?
"हाँ माँ ,रोबोट की देखभाल के लिए अस्पताल अलग होते हैं। बताशा को तो एक इंजीनियर ने अपनी बुद्धि से बनाया है। मगर इसके कलपुर्ज़ों की देखभाल होनी जरूरी है । वह इनके अस्पताल में ही होती है । जरा भी गड़बड़ होने से यह काम कैसे करेगी?मगर तुम चिंता न करना । इसके बदले रसीली आ जाएगी। फिर वही आपके पास रहा करेगी।"
"न--न--न-- मुझे रसीली -नशीली की जरूरत नहीं । दो दिन बिना बताशा के ही काट लूँगी।"
नताशा अपने बेटे से बातें कर रही थी।पर उसका असर बताशा पर भी हो रहा था। दादी का प्यार महसूस कर वह खुशी के मारे हवा में उड़ी जा रही थी।
कुछ दिनों के बाद वह अस्पताल गई । वहाँ दादी के बिना उसे कुछ अच्छा नहीं लग रहा था। हमेशा उनका ध्यान बना रहता। सोचती --दादी चाय कैसे बनाती होगी!न जाने समय पर दवा खाई होगी या नहीं!रोबो डाक्टर भी नहीं समझ नहीं पा रहा था कि बताशा एकदम ठीक है पर उसकी हंसी में पहली सी खुशबू नहीं। वह उदास क्यों है?
चैक अप कराने के बाद बताशा अपनी दादी के घर की ओर चल दी। उसकी खोई मुस्कराहट लौट आई थी। इस बार उसने फ्रॉक की जगह गुलाबी साड़ी पहन रखी थी ।माथे पर लाल बिंदी थी। पतले पतले होंठों पर लाल लीपिस्टिक। दादी आधे घंटे से दरवाजे के बाहर बैठी उसका इंतजार कर रही थी। बताशा को एक नए रूप में देख उन्होंने उसे बाहों में भर लिया। बोली -"दो दिन में ही मेरी बताशा बेबी तो बड़ी हो गई है।" प्यार की गर्मी से बताशा भी महक रही थी।
समाप्त
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