समय
कहाँ से कहाँ चला गया। गांवों में शहरी हवा बहने लगी और शहरों में विदेशी हवा। पर
अंधविश्वास की हवा बहने से नहीं रुकी। विश्वास करना अच्छी बात है पर जब विश्वास
करने वाला बिना सोचे-समझे अंधमार्ग पर चल पड़े तब अंध विश्वास का जन्म होता है।
मूर्ख,अनपढ़ आँख मींचकर पुराने रीतिरिवाजों
को माने यह बात तो समझ में आती है पर शिक्षित वर्ग भी अंधविश्वास की जंजीरों में
जकड़ा रहे यह बात गले से नहीं उतरती। नई पीढ़ी कितनी भी चेतन व बुद्धिजीवी हो मगर अंधविश्वास की जड़े इतनी गहरी हैं कि पैदा
होते ही उनके दिलोदिमाग पर इसकी गहरी छाप होगी। इससे वे कैसे बचें हमें सोचना
होगा। मैंने कुछ कहानियों के माध्यम से अंधविश्वास की दुनिया में प्रवेश करने की
कोशिश की है ताकि बच्चे खुद निर्णय ले सके कि उन्हें क्या करना है।
1-रास्ता काट गई रे टिपुआ
1-रास्ता काट गई रे टिपुआ
स्कूल बस के आने का समय हो गया था। टिपुआ जैसे ही अपना स्कूल बैग लेकर दरवाजे से
निकला ,पीछे से आवाज आई – “बिल्ली रास्ता काट गई रे टिपुआ --- जरा रूक जा।कहीं कुछ बुरा न
हो जाए।”
“क्या
बुरा हो जाएगा माँ ?” टिपुआ सहम सा गया।
“हो
सकता है तेरा पेपर ही खराब हो जाय।परीक्षा के दिन हैं—सावधान तो रहना ही पड़ेगा। ”
टिपुआ रुक तो गया पर दूर से स्कूल बस के ड्राइवर
ने उसे देख लिया जो उसका ही इंतजार कर रहा था।
उसने गुस्से से हॉर्न पर हॉर्न बजाना शुरू कर दिया। पर टिपुआ वह तो
टस से मस न हुआ। ड्राइवर हैरान था , चलते-चलते इसके पैरों को क्या हो गया। बस में बैठी मैडम भी झुँझला उठी। पलक
झपकते ही बस से उतरकर टिपुआ के पास जा पहुंची। हाथ खींचते हुए बोलीं-“तुम्हारे कारण बस को देर हो रही है। तुम आते क्यों नहीं?बस छूट गई तो स्कूल कैसे पहुंचोगे। आज तो इतिहास का पेपर भी है।”
मैडम के
गुस्से को देख टिपुआ एक मिनट को सकपका गया क्या करे क्या न करे। मैडम का वह
विरोध भी न कर सका। बस में वह उदास सा बैठ गया।
मैडम को
उस पर बड़ी दया आई। बड़े प्यार से बोलीं-“ टिपुआ तुम्हारे मन में क्या चल रहा है?तुम बड़े दुखी लग रहे हो।”
टिप्पू
की रुलाई फूट पड़ी-“मैडम आज मेरा पेपर जरूर खराब हो जाएगा।”
“मगर क्यों
?”
“माँ ने
बिल्ली के रास्ता काटने पर मुझे रुकने को कहा था। यह भी कहा था कि नहीं रुका तो
कुछ बुरा हो सकता है। मेरा पेपर जरूर खराब हो जाएगा अब तो मैडम।” वह सुबकने लगा।
“ओह रोना बंद करो। अच्छे बच्चे आँसू नहीं
बहाते। कुछ बुरा नहीं होगा।”
‘मैडम मैडम यह तो मेरी मम्मी भी कहती
है’----‘मेरी मम्मी भी कहती है।‘आगे पीछे
से आवाजें उठने लगीं।
“अच्छा तो
ऐसी बात है!बच्चो, बिल्ली के रास्ता काटने पर रुकने
को क्यों कहा जाता है इसका असली कारण मैं बताती हूँ। ध्यान से सुनो।”उन्होंने ऊंचे
स्वर में कहना शुरू किया।
“बहुत पहले आज की तरह रेल हवाई जहाज नहीं थे।
लोग बैलगाड़ी-ऊंटगाड़ी-
घोड़ागाड़ी से यात्रा करते थे। अकेले कभी नहीं जाते थे। । झुंड बनाकर जाते थे ताकि
मुसीबत आने पर उससे मिलकर टकरा सकें। रात में घने जंगल पार
करने पड़ते थे। चारों तरफ गुप्प अंधेरा। कहीं से उल्लू के बोलने की आवाज आती तो कहीं
चमगादड़ उड़ती फट फट करती।शेर की दहाड़ से कलेजा
काँप उठता।इन सबसे बचते-बचाते मिट्टी के
तेल से जलने वाली लालटेन की हल्की सी रोशनी में आगे बढ़ते। ”
“लालटेन से तो बहुत कम रोशनी होती है। उससे तो
ठीक से दिखाई ही नहीं देता। हमारे यहाँ जब लाइट चली जाती है तो माँ लालटेन जलाती है।
मैं तो बिस्तर में दुबक जाता हूँ। कोई काम ही नहीं कर पाता । न खेल सकता हूँ न पढ़ सकता
हूँ। गाड़ी में बैठे-बैठे यात्रियों को तो बहुत
डर लगता होगा मैडम। ”लिट्टू बोला।
“हाँ डर तो लगता ही था। अक्सर उनका सामना जंगली
बिल्लियों से हो जाता जो लंबी-चौड़ी और बड़ी भयानक होती थीं। उनकी चमकदार आँखें देख गाय घोड़े और बैल भयभीत हो उठते। बिल्ली को जरा भी अपने आगे रास्ता पार करते देखते, यात्रियों का
समूह रुक जाता और पास ही कोई सुरक्षित जगह
देखकर कुछ समय के लिए पड़ाव डाल लेता। इससे उनके जानवरों को आराम भी मिल जाता और जंगली बिल्ली उनके रास्ते से इधर उधर हो
जाती। आने वाले यात्रियों को भी चेतावनी देते
कहते ‘बिल्ली रास्ता काट गई है---रुक
जाना ।’
र्धीरे धीरे लोग जंगली बिल्ली को तो भूल गए पर
यह वाक्य कहना न भूले- ‘बिल्ली रास्ता काट गई रे ---रुक जा।’ नतीजा यह हुआ कि घरेलू बिल्ली के रास्ता काटने पर भी लोगों ने कुछ देर
रुकना शुरू कर दिया। जबकि घरेलू बिल्ली तो
घर में पाली जाती है। बहुत सीधी होती है।”
“हाँ ,आप ठीक कह रही हो। मेरे घर में छोटी सी भूरी पूसी है।बड़ी प्यारी है।
मुझे तो उससे बिलकुल डर नहीं लगता। जब मैं स्कूल से आता हूँ तो मेरे पैरों से चिपट
चिपट जाती है। वह तो मेरा कुछ बिगाड़ ही नहीं
सकती।टिल्लू ने बड़ी शान से कहा।
"क्यों
टिपुआ, अब तो
तुम्हें मालूम हो गया कि बिल्ली के रास्ता काटने पर कुछ नुकसान नहीं होता।”
टिपुआ के चेहरे की खोई रौनक लौट आई। उसके अंदर का डर जाता रहा
। बड़े
उत्साह से बोला –“हाँ मैडम मैं समझ गया। मेरा पेपर तो बहुत अच्छा होगा।”
वह
उछलता हुआ बस से उतरा और हिरण की तरह भागता हुआ स्कूल में घुस गया।
सुधा भार्गव
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (14-03-2018) को "ढल गयी है उमर" (चर्चा अंक-2909) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
राधा तिवारी
धन्यवाद
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