छमछम आई दीवाली
सुधा भार्गव
दीवाली का दिन और लक्ष्मी पूजन का समय पर बच्चे तो
ठहरे बच्चे। वे फुलझड़ियाँ
,अनार छोड़ने में मस्त -- । तभी दादाजी
की रौबदार आवाज ने हिला दिया --देव,दीक्षा ,शिक्षा जल्दी आओ --मैं तुम सबको एक कहानी सुनाऊंगा ।
कहानी के नाम भागे बच्चे झटपट घर की ओर
। हाथ मुंह धोकर पूजाघर में घुसे और कालीन पर बिछी सफेद चादर पर बैठ गये । सामने चौकी पर लक्ष्मीजी कमल पर बैठी बड़ी
मनमोहक लग रहीं थीं। पास में गणेश जी हाथ में लड्डू लिए
मुस्करा रहे थे।
बातूनी देव कुछ देर उन
मूर्तियों को बड़े ध्यान से देखता रहा । उसका जिज्ञासु मन बहुत सी बातों को जानने
के लिए मचल उठा। बस लगा दी प्रश्नों की
झड़ी। “दादाजी, लक्ष्मी जी कमल पर क्यों बैठी हैं ?’’
“कमल अच्छे भाग्य का प्रतीक है और लक्ष्मी धन की देवी
है। जिस घर में वह जाती है उसके अच्छे दिन शुरू हो जाते हैं। खूब अच्छा खाते हैं ।रोज नए कपड़े पहनते हैं। बच्चे अच्छे
स्कूल में खूब पढ़ते हैं।’’
“हमारे घर
में लक्ष्मी जी कब आएंगी दादा जी?उन्हें
जल्दी बुला लाओ और कहो –हमारे घर में खूब सारा
रुपया –पैसा भर दें।आह फिर तो क्या
मजा! मैं तो खूब चॉकलेट खाऊँगा—खूब बम-पटाखा करूंगा।’’
दीक्षा को अपने भाई की बुद्धि पर बड़ा तरस आया
और बोली -“अरे बुद्धू !इतना भी नहीं जानता –लक्ष्मीजी को बुलाने के लिए ही तो हम उनकी पूजा करेंगे।’’
“देखो दीदी मुझे चिढ़ाओ मत । अच्छा तुम्ही बता दो –लक्ष्मी जी कमल के
साथ कब से रहती
हैं ?’’दीक्षा सकपका कर अपने दादाजी का मुँह ताकने लगी ।
“बेटे,इसके पीछे भी एक कहानी है ।तुमने
अपनी माँ को देखा है न !मलाई
को जब वह मथती
है तो मक्खन निकल आता
है। उसी तरह जब राक्षस और देवताओं ने समुद्र का मंथन किया
तो सबसे पहले कमल बाहर निकला।
उससे फिर लक्ष्मीजी का जन्म हुआ। तभी से वे उसके साथ रहती हैं और उसे
बहुत प्यार करती हैं।कमल का फूल होता भी तो बहुत सुंदर है।मुझे भी बहुत अच्छा लगता
है।’’ दादा जी बोले।
‘’आपने तो हमारे बगीचे में ऐसा सुंदर फूल उगाया ही नहीं। ’’देव
बोला।
“बच्चे ,यह
बगीचे में नहीं ,तालाब
की कीचड़ में पैदा होता है।’’
“कीचड़ –वो काली काली –बदबूदार ! फिर तो कमल को मैं
छुऊंगी भी
नहीं।`` दीक्षा ने नाक चढ़ाई। ।
“पूरी बात तो सुनो !कीचड़ में रहते
हुआ भी फूल ऊपर उठा मोती की तरह चमकदार रहता है।उस
पर गंदगी का तो एक दाग भी नहीं । लक्ष्मी जी तभी तो इसे पसंद करती है।''
“कमाल हो गया --गंदगी में पैदा होते हुए भी गन्दा नहीं।यह
कैसे हो सकता है।``
“यही तो इसका सबसे बड़ा गुण है।तुम्हें भी गंदगी में रहते हुए गन्दा नहीं होना
है।’’
“दादा जी हम तो कीचड़ में रहते नहीं ,माँ
धूल में भी नहीं खेलने देती --- फिर गन्दे होने का प्रश्न ही नहीं।’’
दीक्षा बोली ।
“शाला में तो तुम्हें दूसरे बच्चे भी मिल सकते हैं जो गंदे हों।’’
“हमारे शाला
में कोई गंदे कपड़े पहन कर नहीं आता। मेरी सहेलियाँ तो रोज नहा कर आती हैं।’’
“दूसरे
तरीके की भी गंदगी होती है,दीक्षा
बिटिया । जो
झूठ बोलते हैं,,नाक- मुँह में उंगली देते हैं,दूसरों
की चीजें चुपचाप उठा लेते हैं ,वे भी तो
गंदे बच्चे हुए।’’
“हाँ,याद
आया परसों मोनू ने खेल के मैदान में बागची को धक्का दे दिया था और नाम मेरा ले
दिया। उसके कारण शिक्षक ने मुझे बहुत डांटा। तब से मैंने उससे एकदम बोलना बंद कर
दिया।’’ देव चंचल हो उठा।
“ठीक
किया।तुमको बुरे
बच्चों के साथ रहते हुए भी उनकी बुरी आदतें नहीं सीखनी है।’’
“समझ गया –समझ गया दादा जी, हमें कमल की तरह बनना है तभी तो लक्ष्मी जी से
भर -भर मुट्ठी पैसे मिलेंगे और जेब में खन-खन बजेंगे। हा –हा –खनखन –खनखन। खाली
जेब में हाथ डालकर झूमने लगा।
“अब बातें एकदम बंद --। मुंह पर उंगली रखो। आँखें मीचकर लक्ष्मीजी की पूजा में ध्यान
लगाओ।अरे शिक्षा तुम्हारी आँखें खुली क्यों हैं?``
“दादा जी
–मैं तो पहले गणेश जी वाला बड़ा सा पीला लड्डू खाऊँगी तब आँख मीचूंगी। मैंने आँखें
बंद कर ली तो नटखट देवू खा जाएगा।’’
“अरे
पगली मेरे पास बहुत सारे लड्डू हैं। पूजा के बाद प्रसाद में तुझे एक नहीं दो दे
दूंगा। खुश ! ’’
“सच दादा
जी ---मेरे अच्छे दादा जी।’’ उसने झट
से खूब ज़ोर लगाकर आँखें मींच लीं।
कुछ
पल ही गुजरे होंगे कि बच्चे झपझपाने लगे अपनी पलकें। बड़ों की बंद आँखें देख कुछ इशारा किया और भाग खड़े हुए तीनों, तीन दिशाओं की ओर ,पर ---पकड़े गये ।
“कहाँ भागे --पहले दरवाजे पर मिट्टी के दिये जलाओ। फिर
बड़ों को प्रणाम कर उनसे आशीर्वाद लो।’’ दादाजी ने प्यार
से समझाया ।
बच्चे दीयों की तरफ मुड़ गए। टिपटिपाते दीयों
की रोशनी उन्हें बहुत भाई। उमंगभरे बच्चे दीप जलाते –जलाते गाने लगे ---
दीप जलाकर हम खुशी मनाते
छ्म
छ्म आई आह
दिवाली
रात है काली काल कलूटी
फिर भी छिटका उजियाला
घर लगता हमको ऐसा जैसे
पहनी हो दीपों की माला।
गान खतम
करते ही उन्होंने बड़ों के पैर छुए। इसके बाद तो हिरण सी चौकड़ी भरते बाहर भागे जहां
उनके दोस्त इंतजार कर रहे थे।
“ओए देवू --देख
मेरी फुलझड़ी,ये रहा मेरा बम---- धमाके वाला-- आह
अनार छोडूंगा तो फुस से जाएगा आकाश में। तू देखता ही रह जाएगा।‘’
आई दिवाली आई –छोड़ो पटाखे भाई—मित्र मंडली
चहचहा उठी।बच्चों के कलरव को सुनकर दादा जी उनकी खुशी में शामिल हुए बिना न
रहे।लड्डुओं का थाल लिए बाहर ही आ गए। लड्डुओं को देख बच्चों के चेहरे चमक
उठे।सबने अपनी हथेलियाँ लड्डुओं के लिए उनके सामने पसार दीं।
“हे भगवान ! तुम्हारी हथेलियाँ इतनी गंदी—।
किसी के हाथ में लड्डू नहीं रखा जाएगा। आज मैं अपने हाथों से तुम्हें लड्डू
खिलाऊंगा।’’
दादा जी देव,शिक्षा,दीक्षा के अलावा उनके मित्रों को भी बड़े प्यार से लड्डू खिलाने लगे।ऐसा लग रहा था उनके चारों तरफ आनंद और उल्लास की छ्मछ्म बरसात हो रही है । लक्ष्मी जी भी उन्हें देख पुलकित हो उठीं और पूरे वर्ष हंसने-मुस्कुराने का वरदान देकर चली गईं।
प्रकाशित -देवपुत्र मासिक पत्रिका ,अंक नवंबर 2020
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