4-बहनों का मिलन
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अमीरी गरीबी दो बहनें हैं। उनमें हमेशा झगड़ा होता रहता है। दोनों साथ-साथ तो रह ही नहीं सकतीं। जहाँ गरीबी होती है वहां अमीरी रहना पसंद नहीं करती और जहाँ अमीरी होती है वहां गरीबी को घुसने की आज्ञा नहीं होती। पर कुछ दिनों से लगता है दोनों में मेलजोल हो गया है।
इस बारह हजारी वकील को ही ले लीजिये । बारह कमरे वाले शानदार घर में रहते हैं। पेशे से वकील हैं इसीलिए पूरा शहर उन्हें बारह हजारी वकील कहता है। घर में केवल तीन प्राणी।वे, लाडला बेटा सुरखिया और मेमसाहब।मेमसाहब तो पूरी तीस हजारी हैं।तीस-तीस हजार के जेवरों से लदी -फदी रहती हैं।
घर की देखभाल के लिए रामकटोरी हैं। बड़ी सुघड़ -!घर का सारा काम बड़ी होशियारी से निबटाती हैं। उसके बिना तो घर में पत्ता भी नहीं हिलता। मेमसाहिबा तो उसके कारण इतनी बेफिक्र हो गई हैं कि अपने बेटे को उसके भरोसे ही छोड़ रखा हैं। रामकटोरी अपने बेटे मुरखिया की तरह ही उसे प्यार करती हैं। दोनों के बेटे एक ही उम्र के होंगे --होंगे करीब 9 -10 साल के ।
मेमसाहब ने अपनी सुविधा के लिए घर के पिछवाड़े बना एक कमरा रामकटोरी को दे रखा है। ताकि सुबह ६बजे ही वह उनकी बेड टी लेकर हाजिर हो सके। जाता तो मुरखिया भी स्कूल है पर वह बिलकुल टाट वाला--- ईंटों से बना---खपरैल से ढका मरियल सा है। भला सुरखिया से बराबरी कैसी !कहाँ पब्लिक स्कूल में
जाने वाला अमीरजादा और कहाँ अमीर के टुकड़ों पर पलने वाला गरीबजादा।
आँखें लेकिन धोखा नहीं खा सकतीं--कुछ तो बदल रहा है।वे दोनों बहनें --क्या कहते हैं अमीरी गरीबी !आमने सामने दिखाई देने लगी हैं।शायद कोई उन्हें बराबर करने -समझने वाला पैदा हो गया है।
गली-गली एक ही चर्चा है--भागो--भागो कोरोना आया।उससे दूर रहो। उसके रास्ते में जो भी आता बिना भेदभाव किये वह उसे निगलने की कोशिश करता । यह जानते हुए भी मेमसाहब एक पार्टी में सजधज कर चली गईं।सोचा - “मेरे आगे अच्छे- अच्छे सर झुकाते हैं-मजाल कि कोरोना मेरे पास फटक भी जाए।”
गई तो अकेली थी पर लौटी दुकेली--कोरोना के साथ ।फिर तो वकील साहब ने कोरोना वायरस से छुटकारा दिलाने में हजारों खर्च कर दिए पर उनकी अमीरी के आगे कोरोना ने झुकना पसंद न किया।वह मेमसाहब के प्राण लेकर ही रहा। अस्पताल से बाहर खड़े वे आंसू बहा रहे थे।उन्हीं के पास खड़े कुछ औरों के चेहरे भी गमगीन थे। उन्होंने भी अपने किसी प्रिय को खोया था। वे वकील साहब की तरह संपन्न तो न थे पर व्यथा एक थी,आसुंओं का रंग एक था।वकील साहब बिखर से गए ।सबसे बड़ी बात जो उन्हें चुभ रही थी कि करोड़ों की संपत्ति कुछ काम न आई।
रामकटोरी ने अब पूरी तरह सुरखिया को संभाल लिया था ।उसके प्यार और सेवा भाव को देख उन्हें अपने ऊपर ग्लानि होने लगी । बार बार उनके दिमाग मेन आने लगा , “जब वह उनके बेटे की देखभाल अपने बेटे की तरह करती है तो मैं क्यों नहीं उसके बेटे को सुरखिया की तरह पब्लिक स्कूल में पढ़ा सकता हूँ।”
कुछ महीनों के बाद स्कूल खुलने पर मुरखिया को भी पब्लिक स्कूल में दाखिला दिला दिया गया । मूरखिया तो था ही बुद्दि का कुबेर और सदव्यवहारी । कक्षा में दूसरों की सहायता करने को हमेशा कमर कसे रहता।जल्दी ही उसके बहुत से दोस्त बन गए।जो उसे बहुत प्यार करते थे।
एक दिन हजारी वकील बोले-"मुरखिया मन करता है तुम्हारा नाम बदल दूँ। यह नाम न जाने तुम्हारा क्यों रख दिया। तुम तो बड़े चतुर हो । तुम्हारा नाम तो चतुरिया होना चाहिए। आज से हम तुम्हें चतुरिया कहेंगे।"
"यह नाम मेरी माँ का दिया हुआ ही है। गलती होने पर मुझे डांटती -"अरे मूरख तुझसे कूछ नहीं होगा। एकदम मुरखिया है। लेकिन उसकी डांट भमुझे बहुत अच्छी लगती है।"
"तुमने तो मेरे मुंह की बात छीन ली। मुझे भी अपनी माँ की डांट में मिठास लगती थी। अब मेरे दो बेटे हो गए। एक सुरखिया और दूसरे तुम चतुरिया। आओ दोनों मेरे गले मिलो।" चतुरिया की आँखेँ खुशी से छलक पड़ीं। अपने बापू के मरने के बाद वह बड़ा दुखी रहने लगा था। पिता की तरह इतना प्यार और अपनापन उसे कई साल बाद मिला था।
यह मिलन का नजारा देख अमीरी और गरीबी दोनों ही कुछ देर को तो हैरान रह गईं। जो कभी न हुआ वह अपनी आँखों के समक्ष होता देख रही थीं। तभी उन्हें कोरोना की याद आ गई। जिसके सामने उन्होंने भी घुटने टेक दिये हैं ।
कोरोना ने गरीबी -अमीरी को मिला दिया है । जब देखो एक दूसरे की सहायता करने को तैयार रहती हैं और मृदु हास्य बिखेरती हाथ में हाथ डाले घूमती दिखाई पड़ जाती हैं।अच्छा हो ये हमेशा प्यार -प्यार से रहें।
सुधा भार्गव
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