पायल छोटी सी बच्ची है। मन की इतनी चंचल कि मिनट भर एक जगह नहीं बैठ पाती। उसकी माँ ने उसके पैरों में चांदी की पायल पहना रखी हैं। उसके पापा कहते हैं -पायल बिटिया , पायल सी खनकती बहुत प्यारी लगती है।उसे भी अपनी पायल की आवाज बहुत अच्छी लगती है। वह ठुमक-ठुमककर उससे आवाज निकालती है।घेरे वाला नीला फ्रॉक पहनकर गोल -गोल चक्कर लगाने लगती है। उस समय तो वह एक दम नीलपरी लगती है ।
आजकल उसके पापा बाहर नहीं जाते। सारे दिन कमरे में बंद रहते हैं। हाँ जब भूख लगती है तो डाइनिंग टेबल पर दिखाई दे जाते हैं ।खाते समय न पायल को पुकारते हैं और न माँ से ज्यादा बोलते हैं ।पायल की खनक तो उन्हें सुनाई ही नहीं देती ।ये पापा इतने चुप क्यों रहते हैं !खुद तो चुप रहते ही है चाहते हैं पायल भी चुप रहे । जब भी वह बोलती है -पीछे से माँ की आवाज आती है --धीरे नहीं बोल सकती --पापा काम कर रहे हैं !जरूर पापा ने माँ से कहा होगा । घर में सारे दिन पापा रहते ही क्यों हैं !पायल कुछ नहीं समझ पाती ।
उस दिन शाम को पापा कमरे से बाहर आये । पायल अपने पापा को देख खुशी से चिल्लाई -“माँ कहाँ हो ?पापा आ गए ---पापा आ गए ।”
“आ रही हूँ ।हाथ का ज़रा काम निबटा लूँ ।”
पायल फिर सोच में पड़ गई---- यह मम्मा को क्या हो गया है !पहले तो ऎसी नहीं थीं ।पापा के आने पर सारे काम छोड़कर उनके हाथ से ब्रीफ केस लेती थीं।जरूर कुछ हो गया है ।पर क्या हो गया है वह भोली समझ न सकी।
झुंझलाकर बोली -“माँ पापा को चाय !”
“चाय बनाकर मैंने मेज पर रख दी है --पापा अपने आप ले लेंगे ।”
पायल समझ न सकी पापा अपने हाथ से चाय कैसे लेंगे ।उन्हें तो लेनी ही नहीं आती ।हमेशा माँ के हाथ से लेते हैं।एक बार उसके नन्हें दिमाग मेंआया वह खुद पापा को चाय दे दे पर बड़ी सी-- भारी सी केतली को उठाने की नन्हे हाथों को हिम्मत न हुई।
पायल के दिमाग में खलबली मच गई ---न मम्मी पापा को चाय देती हैं न उसे पहले की तरह खाना खिलाती है। कुछ दिनों से वह भी खुद ही खाती है--भूखी ही उठ जाती है।उसको माँ के हाथ से खाने में ज्यादा स्वाद आता है माँ इतनी सी बात नहीं समझ पा रही। बहुत दिनों से पापा उसे बाहर घुमाने भी नहीं ले गए न कोई गुड़िया खरीदी । शायद माँ और पापा दोनों ही उससे नाराज है पर क्यों ?पायल कुछ नहीं समझ पा रही।माँ घर का सारा काम क्यों करने लगी है?लल्लन बाई की छुट्टी कर दी है! उससे भी माँ नाराज हो गई क्या!
उसे मैडम से भी नहीं मिलने देती हैं ।स्कूल नहीं भेजतीं ।मोनी ,पम्मी,बॉबी की बहुत याद आती है।किस्से बातें करूँ --किसके साथ लुक्का-छिप्पी खेलूँ । जब-जब बाहर जाने को दरवाजे के पास जाती हूँ न जाने माँ को कैसे पता लग जाता है। आकर आँखें दिखाने लगती है -एकदम बाहर नहीं।मगर क्यों ?मेरा तो उनसे कोई झगड़ा नहीं !शायद माँ चाहती है मैं उनसे कुट्टी कर लूँ। मैं क्यों कुट्टी करूँ! कुट्टी करना,गुस्सा गुस्सी करना तो बुरी बात है ।वैसे भी लल्लन बाई के न आने से अब माँ ही मेरे लिए पीज्जा -नूडल्स बनाती है बहुत यमी --यमी --। फिर तो उससे आड़ी अड्डी ही रखूँगी।कुट्टी करने से तो वह मेरे मन की कोई चीज नहीं बनाएगी माँ इतनी सी बात नहीं समझ पा रही--न जाने उसे क्या हो गया है।
बहुत सुन्दर।
जवाब देंहटाएंअच्छी कहानी सुधाजी
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