कहानियाँ
2-हँसी की
गूँज
सुधा भार्गव
“माँ --माँ मुझे भूख लगी है।”
“रम्मू बेटा जरा सब्र कर --।थोड़ा समय लगेगा।”
“अरे इतनी सारी सब्जियां और फल रखे हैं।अच्छा मैं एक केला ही खा लेता हूँ।”
जैसे ही उसने केला तोड़ना चाहा माँ ने झपट कर उससे ले लिया।गुड्डू भौचक्का सा रह गया---यह
माँ को क्या हो गया।वह तो खुद कहती है रोज एक केला खाया करो--सेहत के
लिए बहुत अच्छा होता है। पहले तो कभी ऐसा किया नहीं। फिर सहमा सा
बोला-”क्या कोरोना
ने मुझे केला देने से मना कर दिया है?”
“बच्चे एक तरह से यही समझ लो। केले और
सब्जियां बाजार से अभी अभी आये हैं । न मालूम किस पर कोरोना वायरस बैठा आराम कर
रहा हो !चार घंटे बाद वह हर हालत में भाग जाएगा। तब इसे धोकर खा सकते हैं।”
“माँ जहाँ देखो कोरोना--कोरोना सुनाई
देताहै।आप डांटकर उसे भगा क्यों नहीं देती।”
“बेटा उसको भगाने के लिए ही तो केले को चार घंटे बाद छूते हैं फिर उसे धोकर खाया जाता
है। धोने से वह साफ भी हो जाता है।कोरोना बस सफाई से डरता है ।”
है। धोने से वह साफ भी हो जाता है।कोरोना बस सफाई से डरता है ।”
“तब तो सब्जियों को भी नहलाना
पड़ेगा।ये तो मिट्टी में पैदा होती
है।”
“हाँ रम्मू नहलाना तो पड़ेगा।”
“आह फिर तो मैं उन्हें रगड़ रगड़ कर नहलाऊँगा जैसे आप
मुझे नहलाती हो।मैं अभी बाथरूम से बाल्टी लाता हूँ जिसमें मैं नहाता हूँ ।”
“सब्जियां तो रसोई के बर्तनों में नहाती
हैं क्योंकि वे रोज साफ किये जाते हैं ।इनको हलके गरम पानी में नहलाना होगा ।’
“इनको ठण्ड लगती है क्या माँ?”
“नहीं --।गरम पानी से इनकी ऊपर की गंदगी अच्छे से साफ
हो जाती हैं और कोरोना तो गरम पानी से बहुत घबराता है। यदि इस पर बैठा भी होगा तो
भाग जाएगा ।”
“माँ मैं तो दूध भी पीता हूँ।उसकी कैसे धुलाई होगी। उसमें पानी डाला --वह तो
उसमें मिल जाएगा ।उसे अलग कैसे करोगी?”
“बुद्धू दूध को नहीं दूध के पैकिट को धोया जाता है।”
“अच्छा तब तो अभी उसे गल गल गोते कराता हूँ।”
“यह कोरोना बड़ा शैतान है।आँखों से दिखाई भी नहीं देता और मौक़ा मिलते ही
नाक में घुस जाता है और हमें
बीमार कर देता है ।इसलिए पैकिट देने वाला आये तो उससे लेने न जाना। जाओ तो मास्क
लगाकर।
“मास्क!”
“हाँ ,देखो मैं
अभी मास्क लगाती हूँ ।बताओ कैसी लग रही हूँ?
माँ को देखते ही रम्मू की हँसी फूट पड़ी ।इतना हंसा --इतना हंसा कि उसके पेट में बल पड़ गए
“क्याहो गया तुझे!इसमें इतना हँसने की क्याबात है?”
बड़ी मुश्किल से अपनी हँसी रोकते बोला ,”माँ--माँ इस काले रंग के मास्क में तुम
तो मेरी माँ लग ही नहीं रही हो।तुम--तुम तो वो काले मुंह वाली--हो--हो --उसे फिर
से हँसी का दौरा पड़ गया।”
माँ सोचने लगी---काले ----मुँह --वाला
।हठात उसके मुँह से निकला ---लंगूर--- साथ में निकली उसकी हँसी की गूंज ! माँ -बेटे बहुत देर तक ही --ही
करते रहे ।ही --ही --हो-हो- की आवाज सुन रम्मू के पापा कमरे से बाह र आये ।उनको बेतहाशा हँसते देख उनको भी
हँसी आ गई। बहुत दिनों के बाद ऐसी खुलकर हँसी घर में गूँज रही थी। ऐसा लगा मानो हँसपरी उनके होठों पर आन पसरी है।
सुन्दर बाल कथा।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
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