प्यारे बच्चों

कल सपने में देखा -मैं एक छोटी सी बच्ची बन गई हूं । तुम सब मेरा जन्मदिन मनाने आये हो । चारों ओर खुशियाँ बिखर पड़ी हैं ,टॉफियों की बरसात हो रही है । सुबह होते ही तुम में से कोई नहीं दिखाई दिया ।मुझे तो तुम्हारी याद सताने लगी ।

तुमसे मिलने के लिए मैंने बाल कुञ्ज के दरवाजे हमेशा के लिए खोल दिये हैं। यहाँ की सैर करते समय तुम्हारी मुलाकात खट्टी -मीठी ,नाटी -मोती ,बड़की -सयानी कहानियों से होगी । कभी तुम खिलखिला पड़ोगे , कभी कल्पना में उड़ते -उड़ते चन्द्रमा से टकरा जाओगे .कुछ की सुगंध से तुम अच्छे बच्चे बन जाओगे ।

जो कहानी तुम्हें अच्छी लगे उसे दूसरों को सुनाना मत भूलना और हाँ ---मुझे भी वह जरूर बताना ।
इन्तजार रहेगा ----! भूलना मत - -

मंगलवार, 23 अक्तूबर 2012

दशहरे के अवसर पर बालकथा





बच्चों 
विजयदशमी  
अगरबत्ती सी खुशबू लिए 
तुम्हारे घर  आँगन में आ चुकी है 
जो कह रही है
अच्छे काम  करो
 बुराई से  बचो 
जो बता रही है
 राम अच्छा था
 रावण बुरा था
 राम ने अच्छा किया
 बुरे का अंत किया ।
पर इससे भी ज्यादा जानना तुम्हारे  लिए जरूरी है
इसके लिए एक  कहानी सुनाती हूँ  ।कहानी की कहानी और जानकारी की जानकारी ।

घर का भेदिया 

मनचला मन का बड़ा चंचल था | मिठाई देखकर तो उसका मन हिरन  की तरह कुलाचें  मारने लगता | मन ही मन हिसाब लगाता -एक खाऊँ ---दो खाऊँ-- या-- सब खा जाऊँ |






एक दिन वह सरपट के जन्मदिन पर उसके घर गया |सरपट बहुत सरल हृदय का था |उसको जो भी नई चीज मिलती अपने दोस्तों को दिखा -दिखाकर खुश होता |मनचला तो उसका खास दोस्त  था |जन्मदिन पर वह उसे अपने कमरे में ले गया |


उपहारों के पैकिट देखकर मनचला का मन चल निकला --


-इनमें क्या -क्या है | उसने पूछा  |
-ज्यादातर टाफियां -चाकलेट के डिब्बे हैं |
-एक डिब्बा खोलकर दिखाओ न |
-हाँ --हाँ अभी दिखाता  हूँ |

अरे सर्रू---सरपट आ --|केक काटने का समय हो गया है | सरपट को प्यार से घर  में सरू कहते थे |
माँ की आवाज कानों से टकराते ही सरपट भागा पर मनचला-- मनचला जो ठहरा ---सो वहीं ठहर गया |


उसके दिमाग ने शुरू कर दी अपनी कसरत ---  डिब्बा खुल तो गया ही हैं जरा हाथ डालकर देखूँ,क्या चमकीला -चमकीला सा है |

अरे टाफी --इतनी बड़ी --खुशबूदार !एक तो खा ही लूँ इतनी सारी टाफियों में एक कम हो गई तो क्या पता लगेगा |
बंद मुँह में टाफी का रस चूसता हुआ कमरे से निकला |उसके साथी केक  का स्वाद ले लेकर खा रहे थे |






वह दबे पाँव लौट गया कमरे में और इस बार मुट्ठी भरकर टाफियां  जेब के हवाले कीं |चुस्ती से  बाहर आकार केक खाने में लग गया जिससे किसी को उस पर शक न हो | |केक समाप्त करके बच्चे खेलने में लग गये पर मनचले को चैन कहाँ ! दिमाग में शैतान आन बैठा ----अभी तो डिब्बे  में बहुत टाफियां हैं क्यों न एक मुट्ठी दूसरी जेब में भी  भर लूँ फिर तो घर जाना ही है |घर में तो मुझे कोई इतनी टाफियां  देता भी नहीं हैं |उसने इच्छा पूरी की और अपनी विजय पर मुस्काता जल्दी -जल्दी  घर की राह  ली |

मेहमानों के जाने के बाद  दादा जी बोले --सरपट जरा अपने उपहार तो दिखाओ |
-अभी लाया दादाजी --|
दादा जी इंतजार करते रहे पर सरपट के आने का  नाम ही नहीं |हैरान से वे उसके कमरे में गये |सरपट के आगे टाफी का एक डिब्बा खुला पड़ा था और वह सुबक रहा था |

--क्या हुआ बेटा ?खुशी के दिन यह रोना -धोना क्यों | 
-मेरी टाफियां कोई खा गया ---बहुत सी  चुरा ले गया |

--किसी को मालूम था क्या कि तुम्हें मिले उपहार यहाँ रखे हैं !
-हाँ ,मनचले को !मैं उससे कुछ नहीं छिपाता  |वह तो मेरा सबसे अच्छा दोस्त है |

-यह तुम गलत करते हो |कल को कह दिया -मेरी गुल्लक माँ की अलमारी में रखी रहती है और उसमें बहुत सुन्दर -संदर साड़ियाँ भी है तो आज छोटा चोर मिला है कल बड़ा भी मिल सकता है |घर के भेदी  ने तो लंका भी ढा दी थी |
-वही लंका ---- जिसका राजा रावण था ----- |वह  दुष्ट   तो  सीता जी को चुरा कर ले गया था  और देखने में भी पूरा राक्षस --दस सिर --बीस हाथ |अच्छा किया राम ने उसे मारकर ।



-- बिना जाने बूझे तुम उसकी हँसी उड़ा रहे हो |राक्षसों जैसे बुरे काम करने के कारण वह दुष्ट कहलाया  पर था बहुत विद्वान् !दस दिमागों  के बराबर उसमें बुद्धि थी  और बीस हाथों के बराबर उसमें शक्ति | उस साहसी और युद्ध कला में चतुर  योद्धा को लड़ाई  में राम चन्द्र जी भी  नहीं हरा पा रहे थे ---एक सिर उसका धड़ से अलग करते दूसरा आन लगता |

-फिर वह  कैसे मारा  गया ?
-घर के भेदिये के कारण ---|
-कौन था दादाजी--- भेदिया ?
--तुम सुनकर ताज्जुब करोगे---  भेदिया था उसका ही  छोटा भाई विभीषण जिसे रावण   बहुत प्यार करता था |उसपर विश्वास करके  




अपनी और  अपने राज्य की सारी बातें उसको बता दिया करता |पर वही सगा भाई राम से जाकर  मिल गया और उसने रावण के सारे रहस्य राम के सामने उगल दिए।

 - दुश्मन से दोस्ती कर ली !तब तो वह देश द्रोही था ।

-तुम ठीक कह रहे हो !युद्ध के मैदान में विभीषण  ने चिल्लाकर  कहा --- हे राम ! रावण की नाभि में  उसकी मृत्यु का भेद  छिपा है |पहले 
उसमें भरा  अमृत का तालाब  नष्ट करो वरना वह अमर रहेगा  | वह कभी नहीं मरेगा ।

बस फिर क्या था -- बिना देर किये ,राम ने नाभि पर   निशाना लगाकर उसके टुकड़े -टुकड़े कर दिये और रावण के  सीने में तीर मार कर सदैव के लिए उसे सुला दिया  | 

 मरते समय रावण को मरने या हारने का इतना  दुःख नहीं था जितना विश्वासघात का |विभीष ने अपने भाई को कम दुःख नहीं पहुँचाया था ||रावण को  लगता मानो ,उसके भाई  ने उसके दिल में कीलें ठोक दी हों और उनसे खून बह रहा है ।






घर का भेदिया तो बड़ा खतरनाक होता है |मैं ऐसा खतरा कभी नहीं बनूंगा -सरपट बुदबुदा उठा |
दादाजी उसकी मनोदशा समझ गये |प्यार से बोले --बेटे, कल की बात छोड़ो आगे की सोचो | 
--तुम को तो एक  ऐसा  वीर सिपाही बनना है जो देश की रक्षा करेगा ,जो न देशद्रोही होगा न किसी का जी दुखायेगा ।

--मैं जरूर वीर सिपाही बनूंगा ।सर्रू उत्साह से भर उठा ।

* * * * * * 

7 टिप्‍पणियां:

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    ஜ▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬●ஜ
    ♥~*~विजयदशमी की हार्दिक बधाई~*~♥
    ஜ▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬●ஜ

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  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    ஜ▬▬▬▬▬▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬▬▬▬▬▬●ஜ
    ♥(¯*•๑۩۞۩~*~विजयदशमी (दशहरा) की हार्दिक शुभकामनाएँ!~*~۩۞۩๑•*¯)♥
    ஜ▬▬▬▬▬▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬▬▬▬▬▬●ஜ

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  3. बहुत सुन्दर और शिक्षाप्रद...

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  4. aunty aapki likhi kahani mujhe bahut achhi lagti hain aur ye to ek bahut hi achhi aur sikshaprad kahani hai. kal is kahani ko main apne school mein doston ko bhi sunaunga.

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    1. मुझे बहुत अच्छा लगा कि तुमने कहानी पढ़ी ।अबतक तुमने अपने दोस्तों को भी सुना दी होगी ।हमें नए साल में उनसे मिलवा दो ।नया साल 2013 तुम्हें और तुम्हारे दोस्तों को खूब खुशियाँ लाये ।खूव मिठाई खाओ खूब पटाखे छोड़ो ।

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  5. आप सबको यह प्रस्तुति पसंद आई इसके लिए सबको बहुत -बहुत धन्यवाद ।आशा है भविष्य में भी इसी प्रकार सहयोग बनाये रखेंगे ।

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