बिखरते सँवरते रंग /सुधा भार्गव
(स्कूलों में गृहकार्य ही बोझिल नहीं हो गया है
बल्कि नित नए प्रोजेक्ट तैयार करना , पाठ से संबन्धित
आकर्षक चार्ट बनाना भी अपने आप में एक समस्या का रूप लेता जा रहा हैं । इसको ध्यान
में रखते हुए एक सकारात्मक सोच के साथ यह कहानी लिखी गई है। और खुशी है कि देवपुत्र
बाल मासिक पत्रिका अंक जुलाई -2014 में इसको प्रकाशित किया है। )
गुल्लू के छोटे छोटे हाथ बड़े चंचल थे। तितली की तरह झूमते हुए चाहे जहां
रंग –बिरंगे फूल बनाकर उसे प्यार से
सहलाने लगते। माँ ने उसके लिए पोस्टर कलर रंगीन पेंसिलें और मोटी सी
ड्राइंग बुक खरीद दी थी। उसके बनाये ,पेड़ ,चन्दा मामा ,चिड़ियाँ
झांक झांक कर उससे बतियाते और गुल्लू की नीली –नीली आँखें खुशी से चमकने लगतीं ।
वह शाला जाने लगा पर जैसे ही समय मिलता उसकी
उँगलियाँ पेंसिल लेकर छोटे –छोटे कागजों पर नाचना शुरू कर देतीं और सुंदर सा कोई
चित्र बनाकर ही दम लेतीं।उसकी शिक्षिका जिन्हें सब बच्चे कला दीदी कहा करते थे
उनको लेकर कक्षा में बोर्ड पर टाँकने लगतीं। सबसे कहतीं-देखो यह चित्र गुल्लू ने
बनाया है। इससे दूसरे बच्चे भी अच्छी ड्राइंग करने की कोशिश करते ।
गुल्लू जब चौथी कक्षा में पहुंचा तो उसकी यह कला अपनी दीदी
की पारखी आँखों से छिपी न रह सकी। वे बड़े स्नेह से बोली –गुल्लू ,हमें तुम सबको एक नया पाठ पढ़ाना है लेकिन उससे पहले उसके बारे में एक
चार्ट बनाना होगा। क्या तुम घर से बना कर ला सकते हो ?
-हाँ दीदी ! गुल्लू ने झट से कह दिया क्योंकि वह
सोचा करता उसकी माँ तो सब कर सकती है ।
माँ ने भी यह सोचकर चार्ट बना दिया कि इस बहाने दीदी
उसके बेटे से खुश रहेंगी और उसका ध्यान रखेंगी । अगले दिन गुल्लू चार्ट शाला ले गया । दीदी ने उसकी तारीफ की तो उसे बड़ा अच्छा लगा । पर यह क्या अगले महीने फिर एक
चार्ट उसे बनाने को कह दिया गया और यह
सिलसिला चलता ही रहा ।
कुछ माह बाद गुल्लू के घर में एक छोटी सी बहन आ गई । इससे माँ का काम बढ़ गया।
उस दिन गुल्लू चार्ट बनाने के लिए लाया । माँ ने कहा –बेटा ,तुम बनाने की कोशिश करो मुझे तुम्हारी बहन को दूध पिलाना है ।
-ओह माँ !मेरे से अच्छा नहीं बनेगा ।
-तुम बनाओ तो –फिर मैं तो हूँ तुम्हारी मदद को ।
गुल्लू जोश में आ गया और कुछ चार्ट उसने बनाया और
कुछ माँ ने । शाला जाकर चार्ट उसने दीदी जी को दे दिया । पर जैसे ही उन्होंने देखा बुरा
सा मुंह बनाया और एक किनारे रख दिया । गुल्लू का
कोमल हृदय घायल हो गया । सारे दिन दीदी उससे नहीं बोली । उस दिन उसका मन पढ़ने में भी न
लगा ।
घर जाते ही वह सुबक पड़ा –माँ –माँ मैं स्कूल नहीं
जाऊंगा । दीदी जी मुझसे गुस्सा है ।
-अच्छे बच्चे ऐसा नहीं कहते । कल हम तुम्हारे साथ शाला
जाएंगे और दीदी जी को मना लेंगे ।
शाला में घुसते ही उनका सामना प्राचार्या अर्थात बच्चों
की बड़े दीदी से हो गया। वे चौंकते हुए बोलीं –अरे गुल्लू अपनी माँ के साथ आए हो !शाला
बस से नहीं आए। तुम्हारी तबियत तो ठीक है ?
-दीदी , यह तो आज आना ही
नहीं चाहता था ।
-क्या बात है गुल्लू –हम खराब हैं या शाला खराब है
।
-मेरा चित्र खराब है ।
-तो लाओ ,उसे अच्छा कर देते
हैं ।
-बड़ी दीदी , माँ का बना चार्ट
कला दीदी को पसंद आता था पर मैं माँ की
तरह नहीं बना सकता । वे मुझसे गुस्सा हो गई है । जब से मेरी छोटी बहन आई है मेरा
सारा काम बिगाड़ दिया । हमेशा माँ को अपने काम बताती रहती है । माँ भी थक जाती है ।
पर मैं दीदी को कैसे खुश करूँ।
उसकी भोली बातों पर मैडम हंस पड़ी और बोलीं –चलो
हमारे साथ –तुम्हारी दीदी जी को खुश करते हैं
और अपनी माँ को जाने दो । तुम्हारी बहन वहाँ अकेली है ।
-हाँ माँ
तुम जाओ । मेरी तरफ से भी उसे प्यार कर देना ।
गुल्लू के साथ बड़ी दीदी उसकी क्लास में पहुंची ।
कक्षा बहुत स्वच्छ और करीने से लगी हुई थी । एक चार्ट की ओर इशारा करते हुए बड़ी दीदी
ने कहा –वाह !बहुत सुंदर !यह किसने बनाया है ।
-बड़ी दीदी जी ये मेरे ड्राइंग सर ने बनाया है जो घर
पर आते हैं । एक छात्र बोल उठा ।
-और यह दूसरा भी कमाल का है ।
-यह तो बहुत बड़े चित्रकार ने बनाया है और इसके बदले
उन्होंने पूरे 200 रुपए लिए। दूसरा छात्र बोला।
बड़ी दीदी चकित थीं और कला दीदी के दिमाग में छा गया सन्नाटा।
-मैंने तो
कभी सोचा भी न था कि चार्ट के कारण ऐसे –ऐसे रंग देखने पड़ेंगे ,इससे तो अच्छा था
मैं ही बना लेती। दीदी के स्वर में पछतावा था ।
-तुमने ठीक कहा ,मगर 4-5
बच्चों का समूह बना कर कक्षा में ही बारी –बारी
से उनसे सहायता ले सकती हो । यह कहकर बड़ी दीदी मुस्कराती हुई वहाँ से चल दीं।
कला दीदी ने समूह में गुल्लू का नाम भी रखा। यह
जानकर वह तो उछल पड़ा –आह !दीदी जी,अब आप मुझसे गुस्सा तो नहीं।
कला दीदी एक मिनट तो उसकी बात नहीं समझीं फिर अचानक
उन्हें अपना वह व्यवहार याद आया जो चार्ट पसंद न आने पर उन्होंने उसके साथ किया था
। वे अंदर ही अंदर शर्मिंदा हो उठीं और उसका हाथ अपने हाथ में लेती हुई बोलीं –गुल्लू
हम किसी से गुस्सा नहीं होते हैं ,सबको प्यार करते
हैं ।
-मुझको भी !
-हाँ तुमको भी ।
दीदी के उमड़ते अनुराग को अनुभव कर गुल्लू का उदास
चेहरा अनोखी चमक से झिलमिला उठा और शाला के कार्यों में बड़े उत्साह से भाग लेने लगा ।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (05-07-2014) को "बरसो रे मेघा बरसो" {चर्चामंच - 1665} पर भी होगी।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सुंदर ।
जवाब देंहटाएंटिप्पणी के लिए धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर कहानी...
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