प्यारे बच्चों

कल सपने में देखा -मैं एक छोटी सी बच्ची बन गई हूं । तुम सब मेरा जन्मदिन मनाने आये हो । चारों ओर खुशियाँ बिखर पड़ी हैं ,टॉफियों की बरसात हो रही है । सुबह होते ही तुम में से कोई नहीं दिखाई दिया ।मुझे तो तुम्हारी याद सताने लगी ।

तुमसे मिलने के लिए मैंने बाल कुञ्ज के दरवाजे हमेशा के लिए खोल दिये हैं। यहाँ की सैर करते समय तुम्हारी मुलाकात खट्टी -मीठी ,नाटी -मोती ,बड़की -सयानी कहानियों से होगी । कभी तुम खिलखिला पड़ोगे , कभी कल्पना में उड़ते -उड़ते चन्द्रमा से टकरा जाओगे .कुछ की सुगंध से तुम अच्छे बच्चे बन जाओगे ।

जो कहानी तुम्हें अच्छी लगे उसे दूसरों को सुनाना मत भूलना और हाँ ---मुझे भी वह जरूर बताना ।
इन्तजार रहेगा ----! भूलना मत - -

बुधवार, 20 जनवरी 2021

कोरोना आया लॉकडाउन लाया


बालकहानियाँ 

 5-धन्यवाद कोरोना

सुधा भार्गव 

       नादान अनारू समझ  नहीं पा रहा है माँ को क्या हो  गया है। हर  काम  में देरी करती  हैं।उस दिन  भरी  दुपहरिया में  बिजली चली गई । एक तो गरमी से परेशान दूसरे पेट में जोर जोर से चूहे  कूद रहे थे ।मेज खाली देख उबाल खा गया।

“ माँ --माँ ! कुछ खाने को तो देदो ।”

‘लाई बेटा--बस पांच मिनट रुक जा--।इतने  में तू साबुन से हाथ धोकर आ जा  ।”

अनारू भुनभुनाता चल दिया -'हूँ --हाथ धोकर आ !घडी -घड़ी हाथ धोने को बोलती हैं. पर मेरे हर काम में देरी लगा देती है।पांच मिनट --तो कहने के लिए हैं। पच्चीस मिनट से कम नहीं लगेंगे । पहले तो मेज पर कभी आम का पन्ना होता था जिसे पीते ही मैं सारी गरमी भूल जाता था । वो मीठा रसभरा  आम  तो मुझे अब  भी याद है जिसे मैं चूसता ही रह  गया ।गजब  का मीठा  आम था ।अब तो मेरा ध्यान रखने वाला ही कोई नहीं ।’

अनारू का मूड एकदम ख़राब था । जीअच्छा करने के लिए अपने दोस्त से फ़ोन पर बातें करने लगा -”हेलो कमल,  तूने खाना खा  लिया ?”

“हाँ --अभी -अभी मैंने खिचड़ी खाई है।”

‘तू बीमार है  क्या !खिचड़ी  तो बीमारों का खाना है ।”

“अरे नहीं ऐसी कोई बात नहीं! कोरोना बीमारी फैलने के कारण  कनिका बाई नहीं आ रही हैं न ।सो मेरी माँ को बहुत काम करना पड़ता है ।वे थकी -थकी लग रही थीं ।इसलिए मैंने और पापा ने निश्चय किया कि आज तो खिचड़ी चलेगी ।”

"अब समझ में आया मेरी माँ को आजकल हर काम में देरी क्यों लगती है!”

“देरी तो लगेगी !सच मुझे तो माँ पर बहुत तरस  आता है ।कभी नहीं कहेगी मैं थक गई !आज तो जबरदस्ती पापा ने उनको सुला दिया है । अच्छा अब चलूँ पापा और मैं मिलकर कपड़े सुखाएँगे ,अपने खाये बर्तन भी धो डालेंगे ।”

“यह सब काम तू ---तू करता है ?मैं तो माँ की कुछ भी मदद नहीं करता ।”

“फिर तो तू बड़ी गलती करता है ।”

“हूँ! कहता  तो ठीक है ।अच्छा मैं भी चला।”

झट से अनारू रिसीवर रख रसोईघर में पहुँच गया ।देखा-माँ उसके लिए गरम गरम आलू के परांठे बना रही हैं। बीच-बीच में पल्लू से माथे का पसीना भी पूछती जाती। उसे अपने व्यवहार पर बहुत शर्म आई।थाली लेकर माँ के सामने खड़ा हो गया। “अरे तू यहाँ क्यों आ गया बच्चे ? रसोई गरमी से भभक रही है ।तू जाकर ठंडक में बैठ --मैं बाहर ही आकर तुझे दे जाऊँगी।”

अनारू की आँखें भर आईं।बोला-"माँ मुझे माफ कर दो।आप कितना काम करती हो और मैं बैठा- बैठा हुकुम चलाता हूँ।आज से मैं आपके काम किया करूँगा। बोलो माँ--क्या करूँ मैं?”

माँ एक नए अनारू को अपने सामने खड़ा देख रही थी जो दूसरी ही भाषा बोल रहा था।उसने मन  ही मन कोरोना का धन्यवाद किया जिसने थोड़े से समय में ही उसके बेटे को सहृदयी  व समझदार बना कर वह चमत्कार कर दिखाया जिसे वह शायद जिंदगी भर न कर पाती।

अप्रैल २०२० 


 




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