बालकहानी
गंगा सुंदरी
सुधा भार्गव
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एक ऊँची चट्टान पर बड़ा सा महल था ।न जाने कहाँ से आकर एक राक्षस उसमें रहने लगा ।बड़ा मोटा -ताजा था । सारे शरीर पर लम्बे लम्बे कांटे ,जीभ पर भी काँटे। दस सींगों वाले राक्षस की नाक बांस सी लम्बी --हाथी की सूँड सी ।एक -एक बार में ४-४ जानवरों का शिकार करता। सब उसके पेट में समा जाते । जानवरों का मांस खाते -खाते जब वह उकता गया तो उसने सोचा -”क्यों न गाँव चला जाय ! हो सकता है वहां कुछ ज्यादा स्वादिष्ट खाने को मिल जाय ।
अगले दिन वह गाँव चला । जिस जिसने उसका भयानक चेहरा देखा , बेहोश हो गया । उनमें से एक आदमी को वह सर पर रख चलते बना । राक्षस को उसका माँस बहुत जायकेदार लगा । अब तो उसकी जीभ खूब लपलपाने लगी । हिम्मत भी कुछ ज्यादा ही आ गई । गाँव से शहर की तरफ साँप की तरह फुंफकारता हुआ बढ़ने लगा । चारों तरफ खलबली मच गई-राक्षस आया --राक्षस आया। ।लोगों ने घर से निकलना बंद कर दिया इस डर से कि न जाने वह कब किसको निगल ले।
शहर में कुछ लोग पढ़े -लिखे थे । वे
बुद्धिमान समझे जाते थे । कोई भी मुसीबत के समय लोग
उन्हीं के पास जाते । इस
बार भी ऐसा ही हुआ । एक ने बताया कि राक्षस की आँखों से ऎसी रोशनी निकलती हैं जिससे आदमी का दम घुटने
लगता है। सांसें रुक
जाती हैं। इसकी कोई दवा खोजनी होगी ।जब तक इसकी खोज नहीं होती तब तक लोग घर से न निकलें ।शहर में लॉकडाउन
की घोषणा कर दी गई। सारे काम रुक गए। लोगों को जिन्दा रहने के लिए घर में रहना
पड़ा ।
चकोर कक्षा 5 में पढता था ।शुरू -शुरू में चकोर को घर में रहना बड़ा अच्छा लगा ।सोचता - हा --हा -खाओ- पीयो -मौज उड़ाओ-अच्छे दिन आ गए रे भैया ।पर जल्दी ही उक्ता गया ।बात करे तो किससे करे ।मम्मी-पापा तो अपने -अपने कामों में लगे रहते ।कहानी की किताबें दो- दो बार पढ़ डालीं। टी. वी.के चैनल बदलते -बदलते सर दर्द होने लगा ।मन बहलाने को बालकनी में खड़ा हो जाता । उसे वे दिन याद आते जब वह नदी किनारे टहलने जाया करता था और मछलियों को देखते ही उनके सामने धीरे से आटे की गोल- गोल गोलियाँ डाल देता कि कहीं डरकर भाग न जाएँ ।उसे रंगबिरंगी मछलियां बहुत अच्छी लगती थीं ।
एक दिन उसकी नींद जल्दी खुल गई ।मम्मी -
पापा सोये हुये थे । बिना शब्द लिए उसने बालकनी खोली ।सामने ही नदी की मचलती -उछलती लहरों को दौड़ लगाते देख उसका मन भी चंचल
हो उठा।'काश! बालकनी से कूदकर एक ही छलांग में लहरों पर अपने पैर टिका दूँ ।अरे यह क्या !लहरों पर तो एक
लड़की भी बैठी झूल रही है । अब तो उसके पास बतियाने जरूर ही जाऊँगा ।'जैसे ही यह बात उसके दिमाग में आई उसे
लगा वह उस लड़की की ओर खिंचा चला जा रहा
है ।कुछ ही पलों में उसके पैर रेत पर टिक गए।
"ए लड़की ,तुम कौन हो ?मैंने तो पहले तुम्हें कभी देखा नहीं । पर हो बहुत सुन्दर ।”उसने अपनी बड़ी बड़ी आँखें झपझपाते लहरों
पर झूलने वाली लड़की से पूछा।
"तुम यह सब पूछने वाले कौन होते हो?पहले अपना नाम बताओ। ''लड़की बिगड़ पड़ी।
"मेरा नाम चकोर हैं।''
“ओह चकोर !नाम तो बड़ा अच्छा है। मेरा नाम
गंगा है ।मैं यहाँ बहुत दिनों बाद आई हूँ । कुछ दिनों पहले यहाँ गंदगी ही
गंदगी रहती थी ।मुझे तो साँस लेने में भी तकलीफ होती थी।
“तब तो जल्दी निकलो --तुम्हारा दम घुट जाएगा !”
“अरे नहीं---पहले की बात और थी। अब की बात
और है। उस समय तो मेरे पानी
में जीवनदायिनी
ऑक्सीजन की कमी हो
गई थी । आजकल तो
मेरे सुनहरे दिन चल रहे हैं। आह! मेरे चारों तरफ का पानी कितना चमक
रहा है ।देखो चकोर ,लहरें चांदी की लग रही हैं ।”
“
गंगा
तुम्हारा घर भी है क्या !”
“बुद्धू ,घर तो सबका होता है । मेरा भी घर है । वो देखो हिमालय --उसी की गोद में पली हूँ । उसकी बर्फीली चोटियां कैसी चमचम कर
रही हैं । मैं तो हिमालय को देखने को तरस गई थी ।लगता है कार ,बस के न चलने से धूल,धक्कड़ और धुआँ भी भाग गया है। हवा एकदम साफ हो गई है--तभी तो हिमालय दिखाई दे रहा है।”
“ अरे तुम भी तो गोरी -गोरी लग रही हो। ।”
“हा --हा--तुमने आकर तो मेरी खुशी और बढ़ा दी चकोर । बहुत दिनों के बाद मुझे किसी ने गोरी गंगा कहकर पुकारा है ।वरना हर कोई यही कहता था मैली गंगा मैला पानी, ना पीओ इसका काला पानी । अपनी दुर्दशा पर
रात-दिन आंसू बहाती थी ।जबकि मेरा कोई कसूर नहीं ।”
“तब किसका कसूर है गंगा!”
“इस दुनिया में लालची और मतलबी लोगों की कमी नहीं हैं चकोर ।उन्होंने मेरे पानी से खूब फायदा उठाया ,खूब पैसा कमाया। उसके बदले मुझे क्या मिला ---उनके शरीर
की गंदगी,उनके घर की गंदगी। ! iइसने मुझे काली कलूटी बना दिया ” गंगा रुआंसी सी हो गई।
गंगा को दुखी देखकर चकोर भी सुस्त हो गया ।बोला -”गंगा तुम्हारी उदासी अच्छी नहीं लगती ।तुम मुझे उनके नाम तो बताओ जिन्हों ने
तुम्हें कूड़ेदान बनाया । मैं
अभी तुम्हारे पास उनका कान पकड़कर ले आता हूँ। फिर तुम उन सबको मुर्गा बना देना।’’
गंगा हँस पड़ी -”चकोर तुम तो बहुत प्यारी बातें करते हो ।अभी तो वे वैसे ही मुर्गा
बने घर में कुकड़ूँ
कुकड़ूँ कर रहे हैं लॉक डाउन में हैं न !”
“हाँ--हाँ वो राक्षस जो आ गया है।लेकिन तुम इतनी खुश क्यों हो
। मैं तो बड़ा परेशान हूँ।”
“
जिन्होंने
मुझे कष्ट दिया वे क्या सुखी रह सकते हैं! तुम्हीं बताओ अगर कोई अपने घर का सारा
कचरा तुम्हारे घर में फ़ेंक दे तो तुम्हें कैसा लगेगा? सबसे बड़े दुश्मन तो मेरे कल-कारखाने हैं।
उनके मालिक लाखों कमाते हैं पर यह नहीं कि फैक्टरी का कचरा फेंकने के लिए कहीं और
जगह ढूँढे--उसमें उनका पैसा
जो लगेगा ।बस अंधों की तरह शीशा-लोहे- लकड़ी के टुकड़े,तेल,न जाने क्या -क्या मुझमें डलवा देंगे। i इनके बंद होने से ही तो मैं इतनी चमक रही हूँ एकदम शीशे की तरह
।अच्छा है बंद ही रहें ”
चकोर कुछ समझ नहीं पा रहा था ।उसे
लॉकडाउन अच्छा नहीं लग रहा था पर गंगा उसे चाहती थी। वह बेचैन हो गया।गला सूखता सा
लगा। उसे तर करने के लिए बोला -
“गंगा मुझे तो प्यास लगी है ।”
“मेरा पानी पी लो बिना किसी हिचक के । अब
तो यह एक दम शुद्ध है । ।एक समय था जब मेरा पानी अमृत समझा जाता था।क्या तुम्हारी माँ पूजा करती हैं ?”
“हाँ ---हाँ पिछले महीने तो माँ ने
सत्यनारायण की कथा कही थी ।”
“क्या चरणामृत भी बनाया था ?”
“वही चरणामृत जिसमें दही शहद ,विसलरी वाटर --न जाने क्या क्या डाला जाता है ।”
“हाँ ,पर पहले विस्लरी वाटर नहीं मुझ गंगा का पानी डाला जाता था। मैं थी ही इतनी
पवित्र !”
“तुम तो मुझे बहुत नई नई बातें बताती हो
।क्या तुम यहाँ बहुत दिनों से बहती हो?”
“बहुत दिनों से नहीं वर्ष--वर्ष--बहुत
वर्षों से। मैंने
अच्छे दिन भी देखे हैं और बुरे भी।”
“मुझे तो अच्छे दिनों की अच्छी बातें बताओ
। तुम्हें भी बताने में खुशी मिलेगी और मुझे सुनने में ।”
“मेरी बातें तो तभी समझोगे जब अपने देश का
कुछ इतिहास जानते हो !”
“अरे मैं तो बहुत जानता हूँ।पहले हमारे
देश पर मुसलमानों का राज्य था ।फिर अंग्रेजों के गुलाम हो गए पर हमने उन्हें भगा दिया ।अब तो देश हमारा है । हम इस देश के वासी है
--हिन्दुस्तान हमारा है ।”
“अरे---रे --रे तुम तो बहुत कुछ जानते हो ।लगते तो तुम
बड़े छुटके से बड़े भोले से ।”
“अच्छा तो बताती हूँ ।एक मुसलमान राजा था ।उसका नाम था अकबर ।वह मेरा पानी ही
पीता था। कहता
था-गंगे का पानी मीठा ,शीतल और साफ है । मैं तो अपनी तारीफ सुन इठलाने लगती । और अंग्रेजों की बात
बताऊँ ?”
“हाँ--हाँ --बताओ --न ।”
“अंग्रेज घोड़े पर सवार होकर आते और मेरा पानी अपनी बोतलों में भर कर ले जाते ।”
“इस पानी से क्या वे नहाते थे?
“नहाते नहीं --पीते थे।”
“घर में उनके पीने को पानी नहीं था क्या?
“था क्यों नहीं!पर नल का पानी दो दिन तक
ठीक रहता हैं। उससे ज्यादा दिन का बासी पानी पीना ठीक नहीं।उसमें बीमारी के कीटाणु
पैदा हो सकते हैं। अंग्रेज जब अपने देश जाते थे तो वहां पहुँचने में कई दिन लग
जाते थे ।ऐसे में मेरा पानी बहुत उपयोगी रहता। गंगाजल बहुत दिनों तक शुद्ध रहता है
इसलिए उसे पीते रहते। अंग्रेज लाख बुरे थे पर मेरा तो कभी बुरा न चाहा।भूल से एक तिनका नहीं डालते थे ।मेरा बहुत ध्यान रखते थे ।”
“मेरी दादी कह रही थी -कि एक बार हैजा हुआ था ।तुम्हारा पानी पीने से बहुत
से लोग ठीक हो गए ।क्या तुम्हारे पानी में कोई जादू है ?”
“जादू ही समझो ।मैं जब हिमालय की गोद से नीचे उतरती हूँ तो अपने साथ कई तरह की मिट्टी ,जड़ी -बूटियाँ लाती हूँ ।ये सब पानी में
मिलकर मेरी तलहटी में बैठ
जाती हैं । दूसरे मैं ऑक्सीजन भी बहुत
लेती हूँ ।इन सब
कारणों से मैं सारी गंदगी पचा जाती हूँ ।आजकल तो मेरा पानी एकदम शुद्ध और मीठा है।”
“अरे इतनी सारी मछलियाँ तुम्हारे पानी में
!लाल,नीली।,पीली ,--वह तो एकदम सोने जैसी है ।सोन मछली तुम
कहाँ थीं?मैंने तो इससे पहले यहाँ तुम्हें देखा भी नहीं !”चकित हो चकोर ने पूछा ।
“उँह मैं क्या करती यहाँ आकर --पानी इतना जहरीला हो गया था कि उसे पीने से उल्टी आती थी।
आज तो मैं गंगा से मिलने आई हूँ ।लो उड़ते -उड़ते हंस भी आ गए। आह
गंगा इनके आने से तुम्हारी शोभा दुगुनी हो गई है । किनारे बैठे कमल से उजले हंस कितने खूबसूरत लग रहे हैं !”
“सच में सोनू मैंने तो सपने में भी नहीं
सोचा था कि दुबारा मेरे पुराने दिन लौटेंगे । हैं!राक्षस के जाते ही न जाने मेरा क्या हाल होगा! फिर से
खुदगर्ज इंसान की मर्जी का गुलाम बनना पड़ेगा ।मेरे सीने पर बैठी गंदगी मेरा उपहास करेगी ।मैं उसका कुछ नहीं बिगाड़ पाऊँगी ।”गंगा खिन्न हो उठी।
“गंगा ऐसा न कहो। मैं अपने दोस्तों की एक टीम बनाऊंगा । घर घर यह टीम जाएगी और
कहेगी --
गंगा हमारी
शान है
गंगा हमारा मान है
इसे मैला
करने वाला
हर हाल में दोषी है
उसे सजा
दिलाएंगे
अपनी प्यारी
गंगा को
पूरा न्याय
दिलाएंगे ।
गंगा के चेहरे पर मीठी सी हँसी आ गई ।बोली-”चकोर तुम जितने अच्छे हो उतनी ही
तुम्हारी बातें अच्छी हैं। जो बात आज तक किसी ने न कही वह तुमने कह दी। तुम बच्चों से मैंने बहुत उम्मीद लगा रखी है।”
“गंगा चिंता न करो। मैं किसी को नदी में
कूड़ा नहीं फेंकने दूँगा । तुम इसी तरह सुन्दर चमचमाती रहोगी। मैं रोज तुमसे मिलने आऊँगा। मछलियों को आटे की गोली लाऊंगा । तुम नई- नई बातें बताना । अच्छा मैं चलूँ ।”
अचानक उसे लगा वह बालकनी की ओर खिंचा चला जा रहा है । घर पहुंचकर भी उसे बार बार गंगा से किया
वायदा याद आने लगा। उसने ठान लिया है कि राक्षस के जाते ही वह वायदा पूरा करने
में लग जाएगा।
समाप्त
रचना समय -2021
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