भाई दूजोत्सव
न्यारी प्यारी दुनिया
सुधा भार्गव
भोर ही चिड़ियों की चहचहाट सुन घूघर का मन नाच उठा । कहने को तो वह दो बच्चों की माँ हो गई थी। लेकिन आज भाईदूज के दिन बचपन की उस चौखट पर जाकर खड़ी हो गई जहां भाई का हाथ पकड़ जिद किया करती थी मुझे क्लिप चाहिए,मुझे तो चूड़ियाँ चाहिए पर आज तो उसे कुछ और ही चाहिए था भाई से नहीं भगवान से। यही कि हे भगवान मेरे भाई की लंबी उम्र करो। वह खूब खुश रहे।
जल्दी से घर के कामों को निबटाने लगी साथ ही कुछ गुनगुनाती भी जाती। अपने बेटे गुलाल को देखते ही बोली-"अरे जल्दी नहा धोले। अपनी बहन को भी जगादे ।
" अरे परसों ही तो जल्दी जल्दी नहाया था। दीवाली फिर आ गई क्या!"
“तू ठीक कह रहा है । आज मेरे मन की दीवाली है। मेरा मन तो तेरे मामा में ही अटका रहता है। बड़ा प्यारा भाई है। दोपहर को तेरा मामा मुझसे टीका करवाने आने वाला है। खाना भी उसका यही हैं।"
"अच्छा! मामा के आप टीका करोगी!"
"अरे इसमें हैरत की क्या बात है। जैसे तेरी बहन तुझे टीका लगाएगी वैसे ही मैं अपने भाई के लगाऊँगी।जब मैं छोटी थी तब से टीका करती आई हूँ।"
"ओह आपके समय भी भाई दूज होती थी!" भोले भण्डारी गुलाल ने पूछा।
बेटे की मासूमियत पर घूघर ज़ोर से खिलखिला उठी । प्यार से उसे बाहों में लेती बोली - "बेटा इस त्यौहार का सम्बंध तो भाई बहन से है । सुनते हैं बहुत पहले दो भाई -बहन थे। बहन का नाम यमुना और भाई का नाम यम। दोनों में बड़ा प्यार । यमुना बहुत सरल स्वभाव की थी । सब उससे मिलना चाहते। पर यम को तो देखते ही लोग इधर उधर दुबकने लगते। वह उनके प्राण लेने आया करता था। यमुना यह देख बड़ी परेशान हो जाती।
"यमुना कैसी बहन थी !उसने अपने भाई को इतना गंदा काम करने को मना भी नहीं किया !"
"अरे वह तो बड़ी चतुर थी। दूसरों के भाइयों को बचाने की तरकीब निकाल ही ली उसने।"
"क्या तरकीब निकाली माँ?" वह जानने को उतावला हो उठा।
"एक बार उसने यम भाई को दीवाली के दो दिन बाद दूज के दिन घर बुलाया । उसके लिए बड़ा स्वादिष्ट भोजन बनाया और अपने हाथों से भाई को खिलाया। यम बड़ा खुश हुआ और बोला- "बहन तुझे क्या चाहिए?"
"भैया मुझे न रुपया पैसा चाहिए और न हीरे मोती । बस तुम इसी तरह हर साल आज के दिन मेरे पास आते रहना। लेकिन एक इच्छा है।"
"जल्दी बता तेरी क्या इच्छा है। मैं चुटकी बजाते ही उसे पूरा कर दूंगा।"
"भैया, अगर मेरी तरह कोई बहन आज के दिन अपने भाई को घर बुलाकर टीका करे और उसे खाना खिलाए तो उसे तुम्हारा कोई डर न रहे।इस बात का मुझसे वायदा करो।
यमराज ने यमुना की बात मान ली। तभी से दूज के दिन बहन भाई की रक्षा के लिए टीका करती चली आ रही है। नाम भी इसका भाईदूज पड़ गया।"
"माँ भाईदूज की कोई कहानी सुनाओ न ।" गुलाब बोला।
"अरे अभी समय कहाँ?पहले नहा- धोकर तुम दोनों भाई - बहन तैयार हो जाओ। जब तेरी बहन टीका करेगी तब सुना दूँगी।"
दोनों भाई बहन कहानी सुनने के लालच में नए- नए कपड़े पहनकर जल्दी ही हाज़िर हो गए। अब तो माँ को कहानी सुनानी ही पड़ी।उसने शुरू की कहानी -
चटपटी चाट
सुनो गुलाल और मेरी गुलबानो
भाई दौज का त्योहार आने वाला था । भाइयों की मंडली बातों में मगन थी।कोई कहता—मैं तो अपनी बहन को घड़ी दूंगा ---अरे मैं तो उसे बातूनी गुड़िया दूंगा –ऊह--मेरी बहन के पास तो गुड़ियाँ बहुत हैं उसे पैन देना ठीक रहेगा,पढ़ाई में काम आएगा। । गूगल खड़ा सोच रहा था –"मैं अपनी बहन चंपी को क्या दूँ? मैं तो इनकी तरह पैन -घड़ी दे भी नहीं सकता लेकिन उसे बहुत प्यार करता हूँ और कुछ न कुछ जरूर दूंगा।"
घर जाकर अपनी गुल्लक उलट- पुलट की । बड़ी बेचैनी से सिक्के गिनने शुरू किए –एक –दो ---तीन । अरे ये तो 20 रुपए ही हुए।सब तो खर्च नहीं कर सकता । दादा जी हमेशा कहते हैं गुल्लक को कभी खाली नहीं छोड़ना चाहिए इसलिए 10 रुपए मैं इसी में रख देता हूँ। गुल्लक बंद करके दिमागी घोड़े दौड़ाने लगा –कान के कुंडल तो दस रुपए में आ ही जाएंगे पर उसके तो कान ही नहीं छिदे हैं। पहनेगी कैसे?गले की माला कैसी रहेगी? न बाबा उसे नहीं ख़रीदूँगा। कोई चोर गले से खींचकर ले गया तो --। दस रुपयों की तो बहुत सी टॉफियाँ आ जाएंगी पर उन्हें तो वह मिनटों में चबा जाएगी । अच्छा किताब खरीद लेता हूँ । पहले मैं पढ़ लूँगा फिर वह पढ़ लेगी । हम दोनों के ही काम आ जाएगी।
किताब कैसी दी जाए ?वह फिर उलझ गया । कहानी की किताब तो उसे देना बेकार है पहले से ही उसके पास किताबों का ढेर लगा है । तब क्या दूँ?चुटकुलों की किताब ठीक रहेगी । पढ़ते –पढ़ते खुद भी हँसेगी और दूसरों को सुनाएगी तो उन्हें भी गुदगुदी होने लगेगी । अपने दिमाग की खेती पर वह मंद-मंद मुस्कराने लगा जैसे बहुत बड़ा तीर मार लिया हो। दस रुपए उसने जेब के हवाले किए और इठलाता हुआ बाजार चल दिया । तभी चंपा दरवाजा रोककर खड़ी हो गई –"क्यों भैया, इस बार भी क्या रुपए देकर टरका दोगे। वैसे तुम बहुत सयाने हो।पिछली बार पाँच रुपए का नोट दिया था । अगले दिन वापस भी ले लिया। बड़े प्यार से बोले थे-ला छोटी बहना पाँच का नोट,तुझसे खो जाएगा। इस बार तुम्हारे झांसे में नहीं आने वाली।"
"मेरी चंपा ,इस बार रुपये तो नहीं दूंगा पर जो भी दूंगा उसमें मेरा भी थोड़ा हिस्सा रहेगा।"
"जाओ मैं तुमसे नहीं बोलती। मीनू-छीनू के भाई बहुत अच्छे हैं। वे उन्हें गुड़ियाँ देते हैं,बिंदी-चूड़ी देते हैं और तुम –तुम ही एक ऐसे भाई हो जो देकर ले लेते हो या उसमें हिस्सा-बाँट करने की सोचते हो।
"तूने भी तो घर में आकर मेरे हिस्से का प्यार बाँट लिया। अकेला होता तो मम्मी-पापा का सारा प्यार मैं लूटता। न जाने क्या सोचकर माँ ने तुझे कल्लो भंगिन से पाँच किलो नमक के बदले ले लिया।"
चंपा खिसियाकर रो पड़ी। "माँ—माँ—देखो ग़ुगलू मुझे तंग कर रहा है।"
माँ के आने से पहले ही वह वहाँ से खिसक गया। जानता था,हर बार की तरह माँ उसे ही डांटेगी।
गूगल बड़ी शान से किताबों की दुकान पर जा पहुंचा कि बन जाएगा उसका काम चंद मिन्टों में। वहाँ जाकर तो उसका दिमाग घूम गया जब उसने देखा किताबों का पहाड़!कहीं लिखा था इतिहास ,कहीं भूगोल,कहीं संगीत तो कहीं चित्रकला। मन ललचाने लगा-यह भी ले लूँ—वह भी ले लूँ पर जेब में थे केवल 10 रुपए। अचानक उसकी निगाहें एक किताब से जा टकराईं जिसका नाम था ‘चटपटी चाट’। उसकी जीभ चटकारे लेने लगी। उसने तुरंत उसे खरीद लिया और रंगबिरंगे कागजों से सजाकर बीच में भोले मुखड़ेवाली चम्पा की फोटो चिपकाई । नीचे लिखा था –
दो चुटइया वाली चम्पी को /भइया की चटपटी चाट
भाईदूज के दिन चम्पा ने बड़े उत्साह से अपने भैया को टीका किया । बेचैनी से इधर उधर तांक-झांक भी कर रही थी–देखें क्या देता है गुगलू उसे।
गूगल ने चम्पा के हाथों में किताब थमा दी पर यह क्या---वह तो चम्पा की जगह चंपी लिखा देख तुनक पड़ी—"नहीं लेती तुम्हारी किताब –लो वापस लो –अभी लो। मेरा नाम ही बदल दिया !क्यों बदला बोलो –बोलो।"
"अरी बहन इसे खोल तो। इसमें चाट -पापड़ी ,गोलगप्पे,समोसे भरे हुए हैं।''
"यह जादू की किताब है क्या जो खोलते ही पानी से भरे गोलगप्पे प्लेट में सजे धजे हाजिर हो जाएंगे और कहेंगे-हुजूर हमें खाइये।" उसने झुककर ऐसी अदा से कहा की गुल्लू को हंसी आ गई।
"हाँ—हाँ –आ जाएंगे पर इन्हें बनाने में कुछ मेहनत तो करनी पड़ेगी।"
"कौन बनाएगा?"
"मेरी बहना और कौन?" गुटक्कू ने उसे खिजाने की कोशिश की।
"मुझे तो खाना आता है बनाना नहीं।" मासूम चम्पा बोली।
"कोई बात नहीं। बड़ी होने पर बना देना। मैं इंतजार कर लूँगा।"
"मैं बड़ी कब होऊँगी?"
"यह तो मुझे भी नहीं मालूम। चलो माँ से पूछते हैं।"
तभी गुल्लू के दोस्तों ने खेलने के लिए आवाज लगा दी। वह तो वो गया वो गया। रह गई चम्पा। माँ को खोजती आँगन में आई।
''माँ-माँ मैं कब बड़ी होऊँगी?"
माँ ऐसे प्रश्न के लिए तैयार न थी। एक पल बेटी का मुख ताकती रही फिर दुलारती बोली-"मेरे बेटी को बड़ी होने की क्या जरूरत आन पड़ी। तू छोटी ही ठीक है।''
"भैया चटपटी चाट की किताब लाया है । समझ नहीं आता उसके लिए कैसे बनाऊँ?वह कह रहा था बड़ी होने पर मुझे सब आ जाएगा।"
"मैं किसी दिन चाट बना दूँगी। खिला देना अपने चटटू भैया को । अपने मतलब के लिए यह किताब खरीद लाया है।"
"ऐसे न बोलो । मेरा भैया बहुत अच्छा है। माँ आज ही उसके लिए कुछ बना दो।" चम्पा गिड़गिड़ाते हुए बोली।
माँ उसका दिल नहीं दुखाना चाहती थी इसलिए चाट पापड़ी बनाने को तैयार हो गई। एक तरह से वह इन भाई-बहन के स्नेह को देख खुश भी थी। आखिर गुल्लू अपनी बचत के पैसों से बहन के लिए उपहार लेकर आया था। इस त्याग का मूल्य किताब से कहीं—कहीं ज्यादा था।
खेलने के बाद गुल्लू की भूख चौगुनी हो जाया करती थी। हाथ-पैर-मुंह धोकर चटपट रसोई की तरफ जाने लगा । भुने जीरे की खुशबू से उसकी नाक कुछ ज्यादा ही मटकने लगी। उसी समय चम्पा प्लेट लेकर आई-"गूगल चाट- पापड़ी खाएगा?
"भला चाट कैसे छोड़ सकता हूँ?मगर इतनी जल्दी बन कैसे गई!"
"माँ ने कहा कि मेरे बड़े होने से पहले भी चाट बन सकती है। मैं माँ को देख कुछ कुछ सीख रही हूँ। माँ ने तो जादू से कुछ मिनटों में ही चाट बना दी।"
"जुग जुग जीओ मेरी छोटी बहना!अब तू जल्दी जल्दी सीखती जा और मैं जल्दी जल्दी खाता जाऊं। हे भगवान हर जनम में चंपा को ही मेरी बहन बनाना।"
'चम्पा को तंग न कर। अभी उसके खाना बनाने के दिन नहीं। खेलने-खाने के दिन हैं।"
"ओह माँ,मगर मेरे तो खाने के दिन हैं। फिर मैंने उसे खेलने को मना तो नहीं किया। मैं तो बस यह चाहता हूँ कि रोज कुछ चटर-पटर चटपटा मिल जाए। आज आलू की चाट तो कल आलू की टिक्की—आह तो परसों पानी से भरे मटके की तरह फूले गोलगप्पे ।"
"बस बस बंद कर पेट का राग अलापना। मैं सब जानती हूँ स्कूल से आकर तुझे दूध पीना तो पसंद नहीं इसी कारण यह किताब उठा लाया।"
"ओह माँ, भैया को डांटो मत। यह किताब तो सबके काम आने वाली है। हाँ याद आया -- मुझे भी तो गुगलू को कुछ देना होगा।
'मुझे तो उपहार मिल गया—दुनिया का सबसे अच्छा --।"गूगल हवा में हाथ हिलाते बोला।
"किसने दिया?"चम्पा हैरान थी।
"माँ ने।"
"मुझे भी तो दिखाओ।"
"चल दिखाता हूँ।"
गुगल ने उसे शीशे के सामने ला खड़ा किया।
"दिखाई दिया?/"
"क्या दिखाई दिया--! इसमें तो कुछ दिखाई नहीं दे रहा । बस मैं ही मैं दीख रही हूँ ।"
"यही तो हैं मेरा प्यारा सा उपहार जो मुझे माँ ने दिया है।"
चम्पा खुशी की लहरों में डूब सी गई जिसमें उसे गुगल का चेहरा ही नजर आ रहा था,वह तो उसके लिए दुनिया का सबसे अच्छा भाई था।
***
लो बच्चों कहानी खतम हुई। कैसी लगी?"माँ बोली ।
"इतनी अच्छी !"गुलबानो ने अपने दोनों हाथ फैलाते हुए कहा।
"मां मैं भी गूगल की तरह अपनी बहन को इतना इतना प्यार करूंगा।" गुलाल ने भी पूरी शक्ति लगाकर दोनों हाथ दो दिशाओं की ओर तान दिये।
"अच्छा अब चलूँ ,मेरा भाई भी आने वाला है।"घूघर ने अपने बच्चों से कहा।
गुलाल अपनी माँ को जाता देख सोच रहा था -'यमुना अपने भाई को प्यार करती थी ,गूगल अपनी बहन को प्यार करता था ,मैं अपनी बहन को प्यार करता हूँ ,माँ भी अपने भाई को बहुत प्यार करती है!
यह भाई बहन की दुनिया सच में बड़ी न्यारी है और प्यारी भी है!'
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